प्लास्टिक के विरुद्ध जंग ज़रूरी

प्लास्टिक के विरुद्ध जंग ज़रूरी।
प्लास्टिक के विरुद्ध जंग ज़रूरी।

यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि प्लास्टिक आज पर्यावरण प्रदूषण का आम कारक है। सरकारों की ओर से इस पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगाने के बारे में लम्बे समय से आश्वासन दिए जाते रहे हैं। मगर हकीकत यही है कि सरकारों और सम्बन्धित महकमों ने प्लास्टिक पर रोक लगाने सम्बन्धी जरूरी कदम नहीं उठाए, जबकि एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित अधिकरण से लेकर देश की अदालतों तक ने अलग-अलग मामलों में सरकारों को इसे लेकर कई बार निर्देश दिया है। पर इस सबका कोई ठोस असर जमीन पर होता हुआ नहीं दिखा है। अब सीपीसीबी यानी केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनजीटी को यह जानकारी दी है कि अठारह राज्य प्लास्टिक की थैली पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा चुके हैं। इतने बड़े पैमाने पर अगर यह पहलकदमी हुई है तो निश्चित रूप से यह पर्यावरण को बचाने की दिशा में एक अहम कदम होगा। लेकिन यह तभी सम्भव हो पाएगा जब पहले की घोषणाओं की तरह इस बार भी सरकारें केवल दावों की औपचारिकता निभाने के बजाय इस दिशा में कुछ ठोस नतीजा-आधारित काम करेंगी।
प्लास्टिक के विरुद्ध जंग ज़रूरी। फोटो स्त्रोत-humsamvet.inप्लास्टिक के विरुद्ध जंग ज़रूरी। फोटो स्त्रोत-humsamvet.in  
गौरतलब है कि एनजीटी प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबन्धन नियम, 2016 के क्रियान्वयन और इससे सम्बन्धित मामलों पर दाखिल सीपीसीबी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस दौरान यह बताया गया कि अठारह राज्यों ने जहाँ प्लास्टिक की थैलियों या उत्पादों पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है, वहीं कुछ राज्यों ने इस मामले में आंशिक प्रतिबंध लगाया है। मगर समस्या यह है कि जब भी ऐसे कई राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश हैं जिन्होंने इस तरह की पाबंदी लगाने की औपचारिकता पूरी करना भी जरूरी नहीं समझा। जबकि इससे सम्बन्धित कानून प्लास्टिक के उपयोग को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश तय करते हैं। सवाल है कि जब इस मसले पर बने कानूनों को अमल में लाना कुछ राज्य सरकारों तक को जरूरी नहीं लगता, तो वैसे आम लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है जो पर्यावरण और प्रदूषण जैसी समस्याओं पर पर्याप्त स्तर पर जागरूक भी नहीं हैं! 

आज चारों तरफ प्लास्टिक की थैलियों या बोतलों से लेकर इससे तैयार सामान थोड़ी सुविधा की कीमत पर पर्यावरण और सामान्य जन-जीवन के लिए एक बड़ी समस्या बन चुके हैं। हालांकि जिन राज्यों ने प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है, वहाँ भी यह देखना बाकी है कि व्यवहार में यह कितना लागू है। लेकिन जहाँ आंशिक प्रतिबंध लगाया गया है, वहाँ सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस छूट का फायदा किस तरह उठाया जा रहा होगा। यह पूरी तरह साफ है कि रोजमर्रा के जीवन में आम हो चुका प्लास्टिक आज किस हद तक प्रदूषण का वाहक बन गया है। शहरों-महानगरों के तमाम नाले अगर जाम होते हैं, सड़कों पर और मोहल्लों में गंदा पानी फैल जाता है, उसमें रासायनिक प्रतिक्रियाओं की वजह से हवा और पानी में जहरीले तत्व घुलते हैं तो इसके लिए जिम्मेदार बड़ी तादाद में रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाला प्लास्टिक ही है। लोग थोड़ी सुविधा के लिए प्लास्टिक की थैलियों या इससे बने सामान का उपयोग तो करते हैं, लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभावों की अनदेखी करते हैं। दूसरी ओर, सरकार को भी प्लास्टिक के उपयोग पर लगाम लगाने वाले नियम-कायदों को सख्ती से अमल में लाना जरूरी नहीं लगता। एक सवाल यह भी है कि अगर प्लास्टिक से तैयार सामान का उत्पादन होता रहेगा तो इसके उपयोग को प्रतिबन्धित करना कितना सम्भव होगा!

 

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Post By: Shivendra
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