पक्षियों को संरक्षित करने का यह भी है तरीका

छत्रौल डीह गाँव में पेड़ पर लटकाए गए कृत्रिम घोंसले
छत्रौल डीह गाँव में पेड़ पर लटकाए गए कृत्रिम घोंसले
छत्रौल डीह गाँव में पेड़ पर लटकाए गए कृत्रिम घोंसले (फोटो साभार - दैनिक जागरण)बिहार के चम्पारण जिले का बगहा दो प्रखण्ड का छत्रौला डीह गाँव इन दिनों पक्षियों से प्यार करने वाले लोगों के बीच कौतुहल का विषय बना हुआ है। वजह है गाँव के लोगों का पक्षियों से प्रेम। पक्षियों से प्रेम के इस अलख को जगाने का श्रेय 28 वर्षीय दिग्विजय राणा को दिया जाता है। इन्होंने ही कई वर्ष पूर्व पक्षियों को गाँव की तरफ आकर्षित करने के लिये कृत्रिम घोसला बनाने का बीड़ा उठाया था और आज पूरा गाँव उनके साथ कदमताल कर रहा है। अब गाँव के हर पेड़ पर कृत्रिम घोसले दिखता है। लोग पक्षियों के खाने के लिये घोसलों में दाना-पानी भी डालते हैं।

इन्हीं विशेषताओं की वजह से यह गाँव दूर-दूर तक पक्षियों के संरक्षक के रूप में जाना जाने लगा है। पर्यावरण को सन्तुलित रखने में पशु-पक्षियों की अहम भूमिका होती है। पक्षी, पौधों के फल या बीज को खाते हैं जो उनके मल विसर्जन के माध्यम से जमीन पर गिरते हैं और पौधों के प्रसार का कारण बनते हैं।

कारवाँ बनता गया

गाँव के लोगों के लिये प्रेरणास्रोत बने दिग्विजय राणा में कृत्रिम घोसले बनाने और पक्षियों को संरक्षित करने की चाहत एक डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से जगी। वे जब 10 वर्ष के थे तो उन्होंने एक डॉक्यूमेंट्री देखी थी जिसमें विदेश में रहने वाले एक चिकित्सक दम्पती ने घर में ही पक्षियों के रहने और भोजन की व्यवस्था की थी। इस डॉक्यूमेंट्री ने उनके मन पर इतनी गहरी छाप छोड़ी कि उन्होंने भी ऐसा ही करने का प्रण कर लिया। सबसे पहले घर में टिन का घोसला बनाया और रोशनदान पर रख दिया, फिर उसमें दाना-पानी। कुछ दिनों बाद पक्षी आने लगे। फिर क्या था बढ़ती उम्र के साथ वे पेड़ पर पक्षियों के लिये आशियाना बनाने लगे। ग्रामीणों का साथ मिला और कारवाँ बनता गया।

सुनाई देती है पक्षियों की चहचहाहट

ग्रामीणों ने टिन के डिब्बे व मिट्टी के घड़े के तीन दर्जन से अधिक घोसले बनाकर पेड़ों पर लटका दिये हैं। उसमें हर तीसरे दिन दाना-पानी रखा जाता है। पूरे दिन पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देती है। पीपल, बरगद, अशोक और आम के पेड़ों पर तो पक्षियों ने स्थायी आशियाना बना रखा है। गाँव के निवासी अरुण महतो, प्रिंस महतो, जंगली महतो और रविंद्र बड़घड़िया कहते हैं कि पक्षियों को यह गाँव भाता है। यही वजह है कि पक्षियों की संख्या बढ़ी है। इन घोसलों में विलुप्त हो रही गौरैया के अलावा कठफोड़वा, उल्लू, मैना, तोता व बुलबुल समेत अन्य पक्षी निवास करते हैं।

युवा विकास समिति रखती है ध्यान

पक्षियों की सुरक्षा के लिये युवा विकास समिति बनाई गई है, जिसके 12 सदस्य हैं। पक्षियों की देख-भाल के लिये दो गार्ड भी तैनात किये गए हैं। बिहार हरियाली मिशन के तहत गाँव में 1500 से अधिक पौधे लगाए गए हैं ताकि पक्षियों को प्राकृतिक वातावरण मिले। दिग्विजय के नेतृत्व में युवा आस-पास के गाँवों में भी पक्षियों की सुरक्षा के लिये अभियान चला रहे हैं।

Path Alias

/articles/pakasaiyaon-kao-sanrakasaita-karanae-kaa-yaha-bhai-haai-taraikaa

Post By: editorial
Topic
Regions
×