पीपीपी क्या है? जन-निजी भागीदारी की कुछ व्याख्याएँ

‘‘पीपीपी एक तरह का निजीकरण है जिसमें निजी कंपनी या कंपनियों का संघ सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा योजनाओं (अस्पताल, पुल आदि) की डिजाईन, निर्माण, संचालन और अनेक प्रकरणों में वित्त व्यवस्था को अपने हाथ में लेती है।’’

अनेक सरकारों, जन-निजी भागीदारी एजेंसियों, शिक्षाशास्त्रियों, नीतिगत शोध संरथाओं और अलाभकारी समूहों ने जन-निजी भागीदारी को विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है जो इसके विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं। भारत सरकार ने पीपीपी को इस प्रकार परिभाषित किया है-

‘‘पीपीपी परियोजना का अर्थ उस परियोजना से है जिसमें एक तरफ सरकार या स्वतंत्र अस्तित्व के वैधानिक निकाय और दूसरी ओर निजी क्षेत्र की कंपनी के बीच एक अनुबंध या रियायती अनुबंध होता है जो बुनियादी ढाँचागत सेवा प्रदान करने के लिए उपभोक्ता से शुल्क वसूल करेगी।’’27

योजना आयोग के सामाजिक क्षेत्र के लिए पीपीपी उप समूह की रिपोर्ट, पीपीपी को निम्नानुसार परिभाषित करती है-

‘‘जन-निजी भागीदारी (पीपीपी) दूसरी ओर एक ऐसा मॉडल है जिसमें सेवाप्रदाय का कार्य निजी क्षेत्र (अलाभकारी/लाभार्थ संगठन) द्वारा किया जाता है जबकि सेवा प्रदान करने की जिम्मेदारी सरकार पर होती है। इस प्रकार की व्यवस्था में सरकार या तो निजी भागीदार के साथ अनुबंध में शामिल रहती है या निजी क्षेत्र को सेवा प्रदान करने की प्रतिपूर्ति करती है। अनुबंध नई गतिविधियों को तत्परता प्रदान करता है विशेषकर, जब सेवा प्रदान करने के लिए न तो निजी क्षेत्र और न ही सार्वजनिक उपस्थित क्षेत्र होता है।’’28

केनेडियन काउन्सिल फॉर पीपीपी (पीपीपी को प्रोत्साहित करने वाले समूहों द्वारा प्रायोजित संस्था)29 के अनुसार पीपीपी ‘‘निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के बीच एक सहकारी योजना है जो प्रत्येक भागीदार की विशेषज्ञता पर बनी है, जो स्पष्ट सार्वजनिक आवश्यकताओं को पुरस्कारों, जोखिमों और संसाधनों के उचित आबंटन द्वारा पूरी करती है’’।30

परंतु पीपीपी को प्रोत्साहित करने वाली एजेंसियों द्वारा दी गई परिभाषाओं के विपरीत कुछ शैक्षणिक एवं शोध अध्ययनों ने स्पष्ट किया है कि ‘‘‘जन-निजी भागीदारी’ शब्द ‘अनुबंध करने’ या ‘निजीकरण’ जैसे शब्दों से बचने के लिए भागीदारियों के पक्ष में गढ़ी गई शब्दावली से अधिक कुछ नहीं है। यह सार्वजनिक प्रबंधन के अंतर्गत एक सामान्य चलन का एक हिस्सा हो सकता है जिसमें समय-समय पर नए लुभावने शब्दों की आवश्यकता पड़ती है या शायद यह उन्हीं नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए अन्य और अधिक आकर्षक नाम देने की प्रथा को प्रकट करता है’’।31

केनेडियन सेंटर फॉर पॉलिसी आल्टरनेटिव्स के अध्ययन ने स्पष्ट किया है कि -

‘‘पीपीपी एक तरह का निजीकरण है जिसमें निजी कंपनी या कंपनियों का संघ सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा योजनाओं (अस्पताल, पुल आदि) की डिजाईन, निर्माण, संचालन और अनेक प्रकरणों में वित्त व्यवस्था को अपने हाथ में लेती है।’’32

अब हम भागीदारी की कानूनी परिभाषा पर विचार करेंगें भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 के अनुसार ‘भागीदारी’ उन व्यक्तियों के बीच वह संबंध है जो व्यापार के लाभों को बाँटने पर सहमत हैं। यह साझा व्यापार सभी के द्वारा या किसी एक के द्वारा सभी के लिए चलाया जाता है।

कॉलिन्स अंग्रेजी शब्दकोष में भागीदारी ‘‘किन्हीं दो या अधिक लोगों के बीच एक अनुबंधीय संबंध जिसे किसी संयुक्त व्यापारिक योजना से लाभ कमाने के दृष्टिकोण से चलाया जाए और नुकसान की जिम्मेदारी सब पर होगी तथा लाभ पर सबका हक होना परिभाषि है’’।

वास्तव में पीपीपी को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नाम दिए गए हैं। उदाहरणार्थ इंग्लैण्ड में पीपीपी को ‘‘निजी-वित्तीय पहल’’ के नाम से जाना जाता है। इंग्लैण्ड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड में पीपीपी को ‘‘वैकल्पिक वित्तीय एवं क्रय परियोजनाएँ’’, ‘‘वैकल्पिक सेवाप्रदाय प्रणाली’’ के नामों से तथा कनाड़ा में पीपीपी पीथ्री के नाम से लोकप्रिय है।

जन-निजी भागीदारी एक व्यापक शब्द है और इसके विभिन्न पहलुओं को परियोजना लागू करने के विभिन्न स्तरों पर अमल में लाया जाता है। बिल्ड-ओन-ट्रांसफर (बीओटी), बिल्ड-ओन-ऑपरेट (बीओओ), बिल्ड-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओओटी) आदि पीपीपी के विभिन्न प्रकार निर्माण और प्रबंधन अनुबंधों की शुरूआत से ही हो सकते हैं। संचालन एवं रखरखाव अनुबंध, डिजाईन-बिल्ड-मेन्टेन/ऑपरेट अनुबंध, प्रबंधन अनुबंध, टर्न-की अनुबंध जैसे विशिष्ट अनुबंध सेवाप्रदाय के लिए होते हैं।

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