नई दिल्ली: अस्पतालों, निर्माण कार्यों और मूर्तियाँ बनाने में बड़े पैमाने पर उपयोग होने वाले प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) का अपशिष्ट पर्यावरण के लिये हानिकारक होता है। भारतीय शोधकर्ताओं ने पीओपी अपशिष्ट के निपटारे के लिये अब एक नई इको-फ्रेंडली तकनीक विकसित की है। इस तकनीक की मदद से पीओपी अपशिष्ट का सुरक्षित रूप से पुनर्चक्रण करके नये किफायती उत्पाद बनाए जा सकते हैं।
इस तकनीक की मदद से पीओपी अपशिष्ट में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करके उससे अमोनियम सल्फेट और कैल्शियम बाइकार्बोनेट जैसे उपयोगी उत्पाद बनाए जा सकते हैं। यह नई तकनीक पीओपी अपशिष्ट के निपटारे की मौजूदा दहन पद्धति का पर्यावरण हितैषी विकल्प बन सकती है। इसका उपयोग पानी में विसर्जित की जाने वाली मूर्तियों को विघटित करने में भी कर सकते हैं। यह तकनीक पुणे स्थित राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला और मुम्बई के इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गई है।
अस्पतालों में टूटी हड्डियों को जोड़ने और दाँतों का ढाँचा बनाने के लिये अलग-अलग तरह की पीओपी का उपयोग होता है। उपयोग के बाद इसके अपशिष्ट को फेंक दिया जाता है, जो हानिकारक होता है क्योंकि इस अपशिष्ट में बैक्टीरिया होते हैं। इसे विष-रहित करने की जरूरत पड़ती है। इस तरह का पीओपी अपशिष्ट न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि इसे एकत्रित एवं निपटारा करने वाले लोगों को भी खतरा रहता है।
इस तरह का अपशिष्ट आमतौर पर म्युनिसिपल कर्मचारी अस्पतालों से एकत्रित करते हैं, जिसका अन्ततः दहन कर दिया जाता है। दहन प्रक्रिया के कारण जहरीली गैसों और भारी धातुओं का उत्सर्जन होता है, जिसके कारण हवा और मिट्टी प्रदूषित होती है।
इस नई तकनीक के अन्तर्गत पीओपी अपशिष्ट को अमोनियम बाइकार्बोनेट के घोल से उपचारित किया जाता है। इस घोल के उपयोग से पीओपी अपशिष्ट को अमोनियम सल्फेट और कैल्शियम बाइकार्बोनेट जैसे रसायनों में गाढ़े तरल के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। कमरे के तापमान पर इस प्रक्रिया को पूरा होने में 24-36 घंटे लगते हैं।
अमोनियम सल्फेट का उपयोग नाइट्रोजन फर्टिलाइजर और आग बुझाने के लिये पाउडर के निर्माण में किया जा सकता है। इसके अलावा, इसका उपयोग दवा, कपड़ा और काठ की लुग्दी से सम्बन्धित उद्योगों में कर सकते हैं। कैल्शियम कार्बोनेट का उपयोग धातु शोधन एवं इस्पात उत्पादन में किया जा सकता है।
इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता, डॉ. महेश धारने ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “अमोनियम बाइकार्बोनेट के 20 प्रतिशत घोल में बैक्टीरिया-रोधी और कवक-रोधी गुण होते हैं। इसके उपयोग से पीओपी में मौजूद 99.9 प्रतिशत जीवाणुओं को तीन घंटे से भी कम समय में नष्ट किया जा सकता है। इस घोल की मदद से ऑर्थोपेडिक पीओपी अपशिष्ट पर निर्मित बायो-फिल्म को भी विघटित किया जा सकता है। यह तकनीक ग्रामीण एवं दूर-दराज के क्षेत्रों में अधिक उपयोगी हो सकती है, जहाँ बायोमेडिकल कचरे के निपटारे की सुविधाएँ नहीं होती हैं।”
प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों को विघटित करने में भी इस तकनीक को उपयोगी पाया गया है। मूर्तियों के विसर्जन से जल-स्रोतों में होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिये पुणे म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने इस तकनीक के उपयोग में रुचि व्यक्त की है।
इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला के डॉ. धारने के अलावा जी.आर. नावले, के.एन. गोहिल, के.आर. पुप्पाला, डॉ. एस. अम्बारकर और इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी के डॉ. एस.एस. शिंदे शामिल थे। यह अध्ययन शोध पत्रिका इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित किया गया है।
Twitter handle: @VaishaliLavekar
अनुवाद: उमाशंकर मिश्र
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