पीली नदी का प्रपंच

पीली नदी के इलाके में बाढ़ नियंत्रण की असली तस्वीर कुछ और थी। हमारे विशेषज्ञों के चीन जाने तक पीली नदी के तटबंधों में कम से कम 1500 बार दरारें पड़ चुकी थीं। 1048 ई. से 1954 ई. के बीच 906 वर्षों में कम से कम 9 बार नदी की धारा में वृहद परिवर्तन हुआ। वैसे, कुल मिलाकर 26 बार इसकी धारा परिवर्तित हुई थी। सिर्फ, 1955 तक के 100 वर्षों में इस नदी के तटबंध कम से कम 200 बार टूटे थे। अकेले 1933 के बाढ़ के समय पीली नदी के तटबंध कम से कम 50 जगहों पर टूटे थे। इसके कारण लगभग 11000 वर्ग कि.मी. में बाढ़ का भयंकर प्रकोप हुआ। उत्तर बिहार की वर्तमान दुर्गति के लिए तटबंध निर्माण का वह गलत राजनीतिक फैसला मुख्य तौर पर जिम्मेवार हैं, जो स्वतंत्रता पूर्व की तटबंध विरोधी बहस को नकार कर लागू किया गया था। इस फैसले को लागू करने के लिए मात्र तकनीकी तथ्यों को ही नहीं तोड़ा-मरोड़ा गया बल्कि, इसकी पूरी भूमिका प्रपंच और कपट की बुनावट से तैयार की गई। कोसी नियंत्रण के लिए तटबंधों वाली परियोजना को जब केंद्रीय सरकार 1954 में अंतिम स्वीकृति दे रही थी, तब इस परियोजना के औचित्य को उपयोगी सिद्ध करने के लिए केंद्रीय सरकार ने अपने दो विशेषज्ञों डॉ. के.एल.राव और श्री कंवर सेन को चीन भेजने का नाटक किया था। कोसी की तरह “चीन का शोक” कही जाने वाली ह्वांग-हो नदी (पीली नदी) पर तटबंध बनाकर इसकी बाढ़ विभीषिका को रोकने की कोशिशें चीन में सैकड़ों साल से चल रही थी। इन दोनों विशेषज्ञों को चीन की इस बाढ़ नियंत्रण परियोजना का अध्ययन करके कोसी की तत्कालीन बाढ़ नियंत्रण परियोजना पर तकनीकी राय देने का दायित्व सौंपा गया था।

लेकिन ये दोनों विशेषज्ञ जब चीन से लौटकर आये तो वहां पीली नदी के क्षेत्रों में उन लोगों ने जो कुछ देखा-परखा था, वैसा आंखों देखा बयान यहां नहीं दिया। पीली नदी की बाढ़ नियंत्रण परियोजना के कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर ये लोग चुप्पी साधे रहे। इन विशेषज्ञों के कंधे पर तत्कालीन राजनीति इस कदर सवार थी कि तकनीकी ज्ञान को राजनीति का अनुगामी बनना पड़ा। कोसी परियोजना पर अपनी तकनीकी राय में इन विशेषज्ञों ने कहा “चीन की पीली नदी के तटबंधों में रख-रखाव तथा किनारों की निगरानी की समस्या है। इन तटबंधों में समय समय पर दरारें पड़ी हैं। फिर भी वे सदियों से सक्षम हैं। पीली नदी अपनी साद का वहन कोसी नदी के मुकाबले अधिक सुगमता से करती है क्योंकि इसके साद-कण कोसी की साद के तुलना में महीन होते हैं। कोसी की साद बहुत ज्यादा परेशानी नहीं प्रस्तुत करेगी, सिर्फ इसके मोटे कणों को अलग करने की व्यवस्था करनी होगी। यदि पीली नदी अपनी साद को सुगमतापूर्वक समुद्र तक ले जा सकती है, तो कोई वजह नहीं कि कोसी को काबू में लाने की ऐसी ही व्यवस्था नहीं की जा सकती। ऐसी व्यवस्था संभव है, जिससे कोसी अपने साद को बहा ले जाए जिसके कारण नदी के धारा में अक्सर विस्थापन होता है। अतः कोसी तटबंधों का निर्माण बराज निर्माण से भी पहले तुरंत करना चाहिए।”

डॉ. के.एल. राव और कंवर सेन की इस सिफारिश से कोसी की तटबंधों वाली बाढ़ नियंत्रण योजना पर तकनीकी मोहर लगी और उसी परियोजना का क्रियान्वयन भी हुआ। लेकिन जनता को धोखे में रखा गया। क्योंकि, “पीली नदी पर तटबंधों द्वारा बाढ़ नियंत्रण” की वह तस्वीर अधूरी थी जिसका जिक्र इन विशेषज्ञों ने कोसी योजना से संबंधित सिफारिशों के समर्थन में किया था।

पीली नदी का पागलपन


पीली नदी के इलाके में बाढ़ नियंत्रण की असली तस्वीर कुछ और थी। हमारे विशेषज्ञों के चीन जाने तक पीली नदी के तटबंधों में कम से कम 1500 बार दरारें पड़ चुकी थीं। 1048 ई. से 1954 ई. के बीच 906 वर्षों में कम से कम 9 बार नदी की धारा में वृहद परिवर्तन हुआ। वैसे, कुल मिलाकर 26 बार इसकी धारा परिवर्तित हुई थी। सिर्फ, 1955 तक के 100 वर्षों में इस नदी के तटबंध कम से कम 200 बार टूटे थे। अकेले 1933 के बाढ़ के समय पीली नदी के तटबंध कम से कम 50 जगहों पर टूटे थे। इसके कारण लगभग 11000 वर्ग कि.मी. में बाढ़ का भयंकर प्रकोप हुआ। 36 लाख 40 हजार लोग बाढ़ से प्रभावित हुए और करीब 18,000 लोग मौत के शिकार हुए।

1955 में प्रकाशित चीन की एक सरकारी रिपोर्ट में पीली नदी की बाढ़ समस्या के बारे में यह जानकारी दी गई है कि पीली नदी में बाढ़ की असाधारण विभीषिका का कारण बारिश नहीं है बल्कि नदी के मुहाने पर साद-गाद का अत्यधिक जमाव है। उत्तरी चीन के पीले मैदान से पीली नदी हजारों किलोमीटर की यात्रा के दौरान अपने प्रवाह में काफी बड़ी मात्रा में साद समेट कर लाती है। लेकिन, समुद्र के किनारे से लगभग 800 कि.मी. पहले ज़मीन का ढाल सपाट होने के कारण नदी के प्रवाह में बह कर आयी साद समुद्र में न जाकर नदी तल में जमा होने लगती है। नतीजतन नदी तल हमेशा ऊंचा होता रहता है और नदी उथली होकर हमेशा धारा परिवर्तन करती रहती है। मुहाने पर लगातार बढ़ते साद जमाव के कारण निचले इलाकों में बाढ़ का प्रकोप अधिक विनाशकारी होता है। साद जमाव से तटबंधों के बीच में नदी का तल तटबंधों की बाहर की ज़मीन से ऊंचा हो गया है। कुछ स्थानों पर नदी तल आसपास की ज़मीन से 10 मीटर ऊपर है।

चीन के विदेशी भाषा विभाग से प्रकाशित इस रपट में पीली नदी की बदहाल बाढ़ नियंत्रण परियोजना के बारे में यह स्वीकारोक्ति दर्ज है कि साद का इतना अधिक जमाव, तटबंधों को ऊंचा करके या उन्हें और मजबूत करके नहीं रोका जा सकता। तटबंध जितने ऊंचे और मजबूत होते जायेंगे, साद का जमाव उतनी ही तेजी से बढ़ेगा, क्योंकि साद के बाहर जाने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। इस प्रकार हम अपने ही जाल में फंसते जाते हैं और बाढ़, तटबंध टूटना, नदी का धारा परिवर्तन आदि कई खतरे हमारा पीछा नहीं छोड़ते।

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