वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी का सृजन लगभग 450 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। पृथ्वी में जीवन का प्रादुर्भाव होने के पूर्व लगातार पृथ्वी में वर्षा होती रही है, ऐसा वैज्ञानिकों का मत है। जाहिर है कि करोड़ों-करोड़ों वर्षों तक जो वर्षा होती रही है, उसका काफी हिस्सा भू-जल के रूप में पृथ्वी के अंदर एकत्रित होता रहा है। चूंकि शुरुआती दौर में पृथ्वी की सतह पर जंगल, घास आदि की बहुतायत थी, अतः वर्षा के जल का पृथ्वी में भू-जल के रूप में प्रवेश करने की संभावनाएं भी आज की स्थिति से कहीं ज्यादा थी।
सामान्यतः मानव जीवन पूर्व में सतही जलस्रोत जैसे- नदी, नाला, तथा तालाब आदि पर निर्भर हुआ करता था। यह भी उल्लेखनीय है कि अब से लगभग 50 वर्ष पूर्व तक सामान्यतः नदियों और नालों में पूरे वर्ष पानी बहता रहता था। सन् 1970 के दशक में इंजन, मोटर तथा ट्यूबवेल का प्रचलन आने पर लोगों की निर्भरता इन जलस्रोतों से हट कर ट्यूबवेल, हैंडपंप आदि पर बढ़ती गई है। तथा इंजन आने से लोगों ने कुएं, ट्यूबवेल आदि से अधिक से अधिक जल खींचकर सिंचाई करना शुरू किया। परिणामस्वरूप 35 से 40 वर्षो में ही भू-जल लगभग खत्म होने की कगार पर पहुँच गया है। जैसा कि आपको ज्ञात है कि बहुतायत गांवों में जमीन के अंदर एक बूंद भी पानी नहीं बचा है। विचारणीय प्रश्न यह है कि यदि करोड़ों करोड़ों वर्षा का भूजल के रूप में एकत्रित पानी, हम लोगों ने मात्र 35 से 40 वर्षों में प्रयोग करके समाप्त कर दिया है तो आगे आने वाली पीढ़ियों का क्या होगा? क्या यह मानव संस्कृति के विनाश की आशंका नहीं दर्शाता है? और यदि हां तो प्रश्न है कि क्या करना चाहिए?
आप निश्चित रूप से एक जिम्मेदार नागरिक हैं और आप अगली पीढ़ी को एक अच्छी ज़िंदगी देना भी चाहते हैं, लेकिन यह पानी के अभाव में असंभव है। आप यह बेहतर ढंग से समझते ही होंगे कि यदि भविष्य में पीढ़ी को विनाश की लीला से बचाना है तो सतही जलस्रोतों अर्थात तालाबों आदि जैसी संरचनाएं निर्माण कर अधिक से अधिक वर्षा के जल को एकत्रित करना ही एकमात्र विकल्प है।
इसी को ध्यान में रखकर मध्यप्रदेश शासन की अपेक्षा अनुसार आप सब के सहयोग से पीढ़ी बचाओ अभियान चलाया गया है। इसमें कई जगह मीडियाकर्मी, जनप्रतिनिधि एवं अन्य लोग इस पवित्र काम के विभिन्न रूप से अपना बहुमूल्य अनुकरणीय योगदान व सहयोग दे रहे हैं। मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि आपके नेतृत्व में पुराने तालाबों के जीर्णोद्धार तथा नये तालाबों के सृजन की ऐसी एक मुहिम मूर्त रूप लेगी कि हम विश्वास से कह सकें कि हमारी अगली पीढ़ी सुरक्षित रहेगी।
संकलन/टायपिंग
नीलम श्रीवास्तव, महोबा
सामान्यतः मानव जीवन पूर्व में सतही जलस्रोत जैसे- नदी, नाला, तथा तालाब आदि पर निर्भर हुआ करता था। यह भी उल्लेखनीय है कि अब से लगभग 50 वर्ष पूर्व तक सामान्यतः नदियों और नालों में पूरे वर्ष पानी बहता रहता था। सन् 1970 के दशक में इंजन, मोटर तथा ट्यूबवेल का प्रचलन आने पर लोगों की निर्भरता इन जलस्रोतों से हट कर ट्यूबवेल, हैंडपंप आदि पर बढ़ती गई है। तथा इंजन आने से लोगों ने कुएं, ट्यूबवेल आदि से अधिक से अधिक जल खींचकर सिंचाई करना शुरू किया। परिणामस्वरूप 35 से 40 वर्षो में ही भू-जल लगभग खत्म होने की कगार पर पहुँच गया है। जैसा कि आपको ज्ञात है कि बहुतायत गांवों में जमीन के अंदर एक बूंद भी पानी नहीं बचा है। विचारणीय प्रश्न यह है कि यदि करोड़ों करोड़ों वर्षा का भूजल के रूप में एकत्रित पानी, हम लोगों ने मात्र 35 से 40 वर्षों में प्रयोग करके समाप्त कर दिया है तो आगे आने वाली पीढ़ियों का क्या होगा? क्या यह मानव संस्कृति के विनाश की आशंका नहीं दर्शाता है? और यदि हां तो प्रश्न है कि क्या करना चाहिए?
आप निश्चित रूप से एक जिम्मेदार नागरिक हैं और आप अगली पीढ़ी को एक अच्छी ज़िंदगी देना भी चाहते हैं, लेकिन यह पानी के अभाव में असंभव है। आप यह बेहतर ढंग से समझते ही होंगे कि यदि भविष्य में पीढ़ी को विनाश की लीला से बचाना है तो सतही जलस्रोतों अर्थात तालाबों आदि जैसी संरचनाएं निर्माण कर अधिक से अधिक वर्षा के जल को एकत्रित करना ही एकमात्र विकल्प है।
इसी को ध्यान में रखकर मध्यप्रदेश शासन की अपेक्षा अनुसार आप सब के सहयोग से पीढ़ी बचाओ अभियान चलाया गया है। इसमें कई जगह मीडियाकर्मी, जनप्रतिनिधि एवं अन्य लोग इस पवित्र काम के विभिन्न रूप से अपना बहुमूल्य अनुकरणीय योगदान व सहयोग दे रहे हैं। मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि आपके नेतृत्व में पुराने तालाबों के जीर्णोद्धार तथा नये तालाबों के सृजन की ऐसी एक मुहिम मूर्त रूप लेगी कि हम विश्वास से कह सकें कि हमारी अगली पीढ़ी सुरक्षित रहेगी।
संकलन/टायपिंग
नीलम श्रीवास्तव, महोबा
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Post By: pankajbagwan