![राजमहल पहाड़ी श्रृंखला धीरे धीरे अस्तित्व खोती हुई](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/hwp-images/godda%20surrounded%20by%20forest%20the%20state%20of%20Jharkhand_3.jpg?itok=vumsQKqz)
गोड्डा की ऐतिहासिक धरोहर और प्राकृतिक सौंदर्य के रूप में विख्यात राजमहल की पहाड़ियों के अस्तित्व संकट में है। गोड्डा जिला राजमहल पहाड़ी श्रृंखला से घिरा हुआ है। अंधाधुंध उत्खनन से दर्जनों पहाड़ियों का नामोनिशान धीरे-धीरे मिटता जा रहा है।
स्थानीय लोग कहते हैं कि पहाड़ों के नष्ट होने से पर्यावरण पर गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है। इस क्षेत्र में मौसम बदलने लगा है। कभी बारिश देरी से होती है तो कभी बेमौसम बारिश होती है। नदियां, झरने, कुएं तेजी से सूखने लगे हैं।
आज भी अनुसूचित प्रखंड के तौर पर आरक्षित
अंग्रेजी शासनकाल मे 1356 वर्ग मिल आंशिक क्षेत्र में पहाड़ियों (स्थानीय आदिम जनजाति) का राज था। इसका अधिकांश हिस्सा गोड्डा के बोआरीजोर और सुंदरपहाड़ी प्रखंड में है। आज भी दोनों प्रखंड अनुसूचित प्रखंड के तौर पर आरक्षित हैं। लेकिन आज इन पहाड़ियों के खान-पान, रहन-सहन सब के सब गायब हो गए हैं। इनकी जनसंख्या में भी काफी कमी आ रही है।
आदिवासी संस्कृति में पहाड़ों का विशेष महत्व है
पहाड़ियां लोग पहाड़, जल, जंगल और जमीन को अपना मानते हैं। पहाड़ों के नियमित कटने से इन लोगों पर आर्थिक, सामाजिक और प्राकृतिक असर पड़ता है। पहाड़ कटने से पहाड़िया अब यत्र-तत्र बसने को मजबूर हो रहे हैं। समूह से अलग रहना इनकी मजबूरी हो गई है। ऐसे में इन लोगों का जमकर शोषण हो रहा है। इन्हें सरकारी सुविधाओं का भी लाभ नहीं मिल पा रहा है।
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