पहाड़ के कचरे से गांवों को मिल रही बिजली

पीठ पर प्लास्टिक कचरे से भरे बोरो को लादे हुए प्रदीप सांगवान।
पीठ पर प्लास्टिक कचरे से भरे बोरो को लादे हुए प्रदीप सांगवान।

पहाड़ का सौंदर्य हर किसी को लुभाता है। कोई पर्यटक के तौर पर पहाड़ों पर जाता है, तो कोई पर्यटन को ही रोजगार का आधार बनाकर इसे अपने जीवन का हिस्सा बना लेता है, लेकिन ऐसे बिरले ही लोग होते हैं, जो पर्यटन के साथ साथ स्वच्छता और पर्यावरण का भी ध्यान रखते हैं। इन्हीं लोगों में शामिल हैं, मूल रूप से हरियाणा के निवासी प्रदीप सांगवान। सांगवान हिमाचल प्रदेश में न केवल एक पेशेवर ट्रैकर हैं, बल्कि ट्रैकिंग के दौरान रास्ते पर दिखने वाले प्लास्टिक कूड़े को भी एकत्रित करते हैं। अपने संघर्षपूर्ण जीवन में प्रदीप अभी तक पहाड़ों से चार लाख किलोग्राम से ज्यादा प्लास्टिक कचरा एकत्रित कर चुके हैं। इस कचरे से बनी बिजली से कई गांव रोशन भी हो रहे हैं। 

हरियाणा में जन्मे प्रदीप सांगवान के पिता सेना में थे। उनकी पढ़ाई-लिखाई भी आर्मी स्कूल में ही हुई थी। जिस कारण अनुशासन का पालन करना वे बचपन से ही सीख गए। पिता की इच्छा थी कि प्रदीप बड़ा होकर उन्हीं की तरह सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा करे, लेकिन प्रदीप का मन पहाड़ों की बर्फीली वादियों में ही रमता था। फिल्मों में बर्फ पर ट्रैकिंग के दृश्य देखकर वो काफी रोमांचित होता था। 12वी की पढ़ाई पूरी करने के बाद लोगों ने भी आर्मी में जाने के लिए कहा, लेकिन प्रदीप ने एक काॅलेज में दाखिला लिया और समय समय पर पहाड़ों पर ट्रैकिंग के लिए जाया करते। पहाड़ों पर जाना और ट्रैकिंग करना धीरे धीरे उनका शोक बन गया। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब कोई उच्च शिक्षा की तरफ जाता है तो कोई नौकरी करता है, तब प्रदीप अपने ट्रैकिंग के जुनून को पूरा करना चाहता था। इस बात से घरवाले काफी नाराज रहते थे और उन्हें हमेशा प्रदीप के भविष्य की चिंता सताती थी। अपने इसी जुनून को पूरा करने के लिए प्रदीप घरवालों की नाराजगी के बावजूद भी हिमाचल प्रदेश के मानाली में जाकर वहां रहने लगे। मनाली आने के बाद शुरूआती दिनों में उन्हें वहां के मौसम और रहन सहन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और न ही किसी प्रकार का रोजगार। सर्दियों में जब लोग ठंड से बचने की व्यवस्था करते थे, तब प्रदीप को समझ नहीं आता था कि वह अपने लिए कैसे व्यवस्था करे। हालांकि मनाली में शुरूआती दिनों में काफी पेरशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन रोजी रोटी चलाने के लिए होम स्टे का व्यवसाय शुरू किया। 

मनाली में रहते रहते उन्होंने पहाड़ों पर बढ़ते पर्यटन व्यवसाय को प्रत्यक्ष तौर पर जाना और अनुभव किया। पर्यटकों के बढ़ने से ट्रैवलिंग एजेंसियां भी विभिन्न स्थानों पर फलफूल रही थीं। ये एजेंसियां पर्यटकों के रहने-खाने की व्यवस्था से लेकर यात्रा के दौरान उनके सफर को सुगम बनाने के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत रहतीं। साथ ही पर्वतारोहियों को रोमांचित करने वाले विभिन्न ट्रैक्स पर जाने की सुविधा भी प्रदान कराती है, जहां से पहाड़ों की सुंदरता को आत्मसात किया जा सके। सुविधाएं मिलने का दौर जैसे बढ़ता गया, हिमाचल प्रदेश के मनाली, शिमला सहित विभिन्न पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों की संख्या करोड़ों में पहुंचने लगी। ट्रैवलिंग कंपनियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई। कंपनियां विभिन्न पर्यटन स्थलों के पोस्टर बनवाकर ऑफलाइन और ऑनलाइन प्रचार करने लगी। पर्यटकों को लुभाने के लिए आकर्षक ऑफर दिए जाने लगे, लेकिन प्रदीप ने जब वास्तव में पहाड़ों को करीब से देखा और जाना तो वहां सब कुछ तस्वीरों से विपरीत था। रास्तों पर फैला कूड़ा पहाड़ों के सौंदर्य को धूमिल कर रहा था। पहाड़ों के इस दर्द को देखते हुए प्रदीप ने खुद से ही कचरा साफ करने की पहल की।

प्रदीप सांगवान।स्वयंसेवियों के दल के साथ एक ट्रैकिंग अभियान के दौरान प्रदीप सांगवान और थैलों में भरकर साथ में लाए सैंकड़ों किलोग्राम प्लास्टिक कचारा।

ट्रैकिंग के दौरान कचरे को साफ करने का काम शरुआती दिनों में काफी चुनौतीभरा रहा। इस कार्य के लिए क्या और कैसे करना है, सोचते सोचते वे दो साल तक दुविधा में रहे। फिर एक दिन उन्हें महसूस हुआ कि पहाड़ों में पर्यटन भले ही बढ़ रहा है। इससे लोगों को बड़े स्तर पर रोजगार मिल रहा है, लेकिन पहाड़ के प्रति पर्यटकों के दिल में भावना और सम्मान नहीं है। ये चीज पहाड़ के लिए खतरा बन रही है। इसलिए उन्होंने वर्ष 2014 में अकेले ही अपने अभियान की शुरुआत की। प्रदीप जब भी ट्रैक पर जाते तो अपने साथ प्लास्टिक कचरा एकत्रित करके लाते। इस कार्य में स्थानीय लोगों ने उनका पूरा साथ दिया। कुछ लोग तो ऐसे भी थे, जिन्होंने रिसाइक्लिंग संयंत्रों तक कूडें को ले जाने में उनका प्रोत्साहन किया। इस बीच कुछ लोग उनको ‘‘कूड़े वाला’’ बोलकर हतोत्साहित करते, लेकिन पहाड़ों को बचाने और ट्रैकिंग के प्रति अपने जुनून के सहारे वे निरंतर अपनी राह पर अथक बढ़ते रहे और कुछ समय बाद अपने आप को पूरी तरह से पहाड़ों के संरक्षण के कार्य पर लगा दिया। 

पहाड़ों को बचाने के लिए एक टीम खड़ी करने के लिए अपने जैसे विचारधारा के लोगों की तलाश करने लगे। ताकि वे लोग भी उनके इस कार्य में सहयोग कर सकें। इसके लिए उन्होंने ‘‘द हीलिंग हिमालय फाउंडेशन’’ नाम से एक संस्था की शुरुआत की। प्रचार के लिए सोशल मीडिया पर आईडी और एक वेबसाइट बनाई। सोशल मीडिया के माध्यम से कई स्वयंसेवियों को अपने साथ जोड़ा। स्वयंसेवी के रूप में पंजीकृत होने के लिए वेबसाइट पर पंजीकरण का ऑप्शन भी दिया है। कई स्वयंसेवी निस्वार्थ भाव से पर्यावरण के संरक्षण के लिए संस्था से जुड़ने लगे। द हीलिंग हिमालय फाउंडेशन द्वारा स्वयंसेवियों की उपलब्धता के अनुसार ट्रैकिंग अभियानों का आयोजन कराया जाता है। जिसमें सभी स्वयंसेवी अपने साथ जूट के बोरे और दस्ताने तैयार रखते हैं, ताकि ट्रैक पर मिलनेवाले गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे को उठाकर वापिस ला सके। अब संस्था को शुरू करे चार साल से अधिक समय हो गया है। इन वर्षों में सैंकड़ों ट्रैकिंग अभियानों का आयोजन कराया गया है। जिसमें चार लाख किलोग्राम से ज्यादा प्लास्टिक कचरा एकत्रित किया गया है। इस अभियान की खास बात ये है कि कचरा रिसाइक्लिंग प्लांट में भेजा जाता है, जहां से प्लास्टिक कचरे से उत्पन्न होने वाली बिजली के गांवों को बिजली मिल रही है, जिससे पहाड़ स्वच्छ होने के साथ ही यहां रोशनी की बहार आ रही है।

 

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Post By: Shivendra
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