पहाड़ का 'बेशकीमती चंदन' 6 साल में लगा डाले 40 हजार पेड..

6 साल में लगा डाले 40 हजार पेड
6 साल में लगा डाले 40 हजार पेड

उत्तराखंड के नैनीताल जनपद के ओखलकांडा ब्लाॅक के  ग्राम नाई के तोक चामा निवासी चंदन सिंह नयाल अभी महज 26 साल के हैं। इंजीनियरिंग का डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद इंजीनियरिंग में कैरियर बनाने की जगह चंदन नयाल नें पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा उठाया। वे विगत 6 सालों में 40 हजार से अधिक पेड अभी तक लगा चुके हैं। उन्होंने पेड़ो के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है और अपना शरीर भी हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया है। शरीर दान करने पीछे उद्देश्य है कि इस दुनिया से जाने के बाद उनकी खातिर एक छोटा सा पेड़ भी न कटे। प्रकृति को अपने हाथों से संवार रहें युवा चंदन नयाल से जो बिना किसी हो-हल्ला, शोर-शराबे, चमक-धमक, दिखावे से इतर चुपचाप अपने कार्य को बखूबी से धरातल पर क्रियान्वित कर रहे हैं।

नाम के अनुरूप कार्य

चंदन की लकडी का विशेष महत्व है। इसकी खुशबु से पूरा वातावरण महक उठता है। चंदन के पेड़ में साल में दो बार नई कोपलें, फल और फूल आते है। बरसात के पहले और बरसात के बाद चंदन के पेड़ फलों और फूलों से लदकर पूरे वन को एक नई आभा से युक्त कर देते हैं। ठीक इसी तरह पहाड़ का युवा चंदन नयाल भी विगत 6 सालों से बडी शिद्दत से प्रकृति को संवारने में जुटा हुआ है।

माँ से मिली प्रेरणा, बांज बचाओ- बांज लगाओ का दिया नारा...!

चंदन नयाल का जीवन बेहद संघर्षमय रहा ओखलकांडा से अपने चाचा के साथ पढ़ाई के लिए रामनगर छोई आये। फिर लोहाघाट से इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। तत्पश्चात रुद्रपुर में कुछ समय बतौर शिक्षक अध्यापन का कार्य भी किया। इस दौरान उन्होंने लोगों को पेड़ो और जंगल के प्रति जागरूक भी किया। उन्होंने छात्र छात्राओं और अन्य लोगों के सहयोग से विभिन्न अवसरों पर पौधारोपण भी किया। चंदन का मन कभी भी शहर में नहीं रमा। उन्हें बस अपने पहाड़ और वहां के जंगलों में मौजूद पेड़ो से लगाव था। चंदन के गांव के पास चीड और बुरांस का जंगल था जिनमें अक्सर आग लगा करती थी। एक बार इन जंगल में इतनी भयंकर आग लगी की बुरांस का पूरा जंगल तबाह हो गया। अपने आंखो के सामने जंगल को आग की भेंट चढते देख चंदन नयाल को बेहद पीडा हुई। उन्होंने मन ही मन दृढ निश्चय किया की वो जरूर एक दिन इस जंगल को पुनर्जीवित करेंगे। उन्होंने चीड की जगह बांज बचाओ- बांज लगाओ का दिया नारा दिया और हजारों बांज के पौधे यहाँ रोपे। इस साल चंदन नें अपने गांव के पास के जंगलों में चाल खाल बनायें हैं ताकि जंगल में पानी का संग्रहण हो जंगली जानवरों को पीने के लिए पानी मिले और जंगल के पेड़ो को नमी। चंदन नयाल जब 12 वी में थे तो उनकी माँ का असमय देहांत हो गया था। इस हृदयविदारक घटना नें चंदन को अंदर ही अंदर से तोडकर रख दिया था। कुछ महीनों तक उन्हें कुछ समझ में नहीं आया की क्या करना है। लेकिन माँ की प्रेरणा से चंदन नें अपनी माटी थाती की सेवा करने की ठानी। चंदन बताते हैं कि उनकी माँ बचपन से ही उनकी प्रेरणा रही है। जब भी मैं एक नया पौधा लगाता हूँ तो जरूर पहले अपनी माँ का स्मरण करता हूँ। आज जो भी हूँ अपनी माँ की प्रेरणा और आशीर्वाद से हूँ। आजकल वे गांव की महिलाओं को अपने मवेशियों के चारे और घास के लिए दूर न जाना पडे इसलिए वो गांव के निकट बांज का जंगल तैयार करने में जुटे हुए हैं जिसके लिए बांज के पौधे रोपे गयें हैं और चाल खाल बनाकर पानी का संग्रहण किया गया ताकि पेड़ो के लिए नमी बनी रही। निकट भविष्य में जब ये जंगल तैयार होगा तो महिलाओं को चारे के लिए दूर नहीं जाना पडेगा।

चंदन पौधा रोपण करते हुए ,Source:संजय चौहान फेसबुक,फोटो

पौधारोपण के जरिए हर साल लगाते हैं हजारों फलदार और बांज, पर्यावरण संरक्षण का छात्रों और लोगों को दे रहें हैं  संदेश

चंदन नयाल हर साल हजारों फलदार और बांज के पौधों का वितरण और पौधारोपण करते हैं। चंदन विगत 6 सालों में नैनीताल जनपद के विभिन्न ब्लाॅको में लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक कर चुके हैं। अब इनके पास हर ब्लॉक में युवाओं की एक एक टीमें है। चंदन अब तक लगभग 150 विद्यालयों में हजारों छात्र छात्राओं को पर्यावरण का पाठ पढा चुके हैं और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दे चुके हैं। चंदन का मुख्य उद्देश्य बांज के जंगलों को तैयार करना और चाल खाल, खंतिया बनाकर जलस्रोतों को रीचार्ज करना व जंल संग्रहण कर जंगल को बचाना है। वे हर साल बांज, आडू, पोलम, सेब, अखरोट, आंवला, माल्टे, नींबू की पौध वितरित करते हैं। बकौल चंदन पौधारोपण के लिए वन विभाग का सदैव सहयोग मिलता है लेकिन पौध कम पड जाते थे इसलिए मैने खुद की नर्सरी भी तैयार की है और हर कोई 5-6 हजार पौध लोगों को वितरित करता हूँ।

युवा पर्यावरणविद्ध चंदन नयाल से पर्यावरण संरक्षण पर लंबी गुफ्तगु हुई। बकौल चंदन नयाल हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक और धरातलीय प्रयास करने होंगे। खासतौर पर बांज के जंगलों को बढावा देना होगा। बांज हमारे लिए हरा सोना है। इससे न केवल चारा मिलेगा अपितु भूस्खलन को रोकने में भी मददगार साबित होगा और जल संरक्षण में भी बांज की भूमिका होती है। प्रकृति से संग कार्य करना है तो हर रोज समस्याओं से आमना सामना होता है लेकिन सतत प्रयास जरूरी है। जब जंगल है तो तभी जीवन भी। जंगल ही नहीं रहेंगे तो सबका जीवन खतरे में होगा। मेरा बचपन से ही सपना था कुछ अलग से कार्य करूँ। मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे उत्तराखंड के समस्त पर्यावरणविद्धों का सानिध्य प्राप्त हुआ है। उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है। छोटी छोटी कोशिशें करके अभी तो शुरूआत भर की है, अभी लंबा सफर तय करना बाकी है। मेरी माँ, मेरे परिवार और मेरे चाचा जी मोहन सिंह नयाल जी के मार्गदर्शन की वजह से आज यहाँ तक पहुंच पाया हूँ। आज मुझे खुशी होती है कि पहाड़ में बसे मेरे छोटे से गांव को मेरी वजह से आज पूरे देश में नयी पहचान मिली है।

वास्तव में देखा जाए तो महज 26 साल की छोटी सी उम्र में चंदन नयाल नें वो कर दिखलाया है जिसके लिए लोगों नें सारी उम्र खपा दी। पर्यावरण संरक्षण के लिए सराहनीय कार्य के लिए चंदन को विभिन्न मंचों पर सम्मानित भी किया जा चुका है। हमें चंदन के कार्य का अनुसरण करना चाहिए और इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। यही हमारे वास्तविक और असली हीरो हैं। चंदन के हौंसलों और जज्बे को देखकर लगता है कि आने वाले बरसों में हम चंदन नयाल को एक पर्यावरणविद्ध के रूप में उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी चमक बिखरते हुये देखेंगे। आशा और उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में चंदन नयाल का पर्यावरण संरक्षण का ये प्रयास फलीभूत होकर ओखलकांडा के नाई गांव से देश दुनिया तक पहुंचें। पहाड़ के इस बेशकीमती चंदन को हजारों हजार सैल्यूट

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Post By: Shivendra
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