पग-पग पूजनीय मां नर्मदा

मनोहर एस. बिल्लौरे/ February 02, 2009

नर्मदा जयंती


गंगा कनखले पुण्या प्राच्यां पुण्या सरस्वती।
थाम्ये गोदावरी पुण्या, पुण्या सर्वत्र नर्मदा॥(स्कंदपुराण)


गंगा कनखल (हरिद्वार) में पुण्य देने वाली है, पश्चिम में सरस्वती पुण्यदा है, दक्षिण में गोदावरी पुण्यवती है और नर्मदा सब स्थानों पर पुण्यवती और पूजनीय है। भारत में वैसे तो अनेक पुण्यप्रदाता नदियां हैं, उनका स्थान विशेष पर महत्व है लेकिन नर्मदा पग-पग पर पूजनीय है।

ऐसा अनुमान है कि मानव की उत्पत्ति नर्मदा और उसके दक्षिण में हुई। आदि नर्मदा विंध्याचल और सतपुड़ा के मिलन स्थल पर अवरुद्ध होकर एक बड़ी झील के रूप में थी। जब नर्मदा ने पहाड़ों को भेदकर जाने का प्रयत्न किया तो पौराणिक तथ्यों के अनुसार दोनों पर्वतों ने ब्रrा से उनकी मर्यादा की रक्षा करने की प्रार्थना की। तब ब्रrा ने उन्हें आश्वस्त किया कि नर्मदा पहाड़ों से नीचे निकल जाएगी। नर्मदा एक पाषणी नदी है जो दोनों ओर दृढ़ पाषाणों के किनारों से बंधी है।

पांच लाख वर्ष पूर्व मानव सभ्यता से परिचित नर्मदा का नाम क्या था, यह ज्ञात नहीं है। नर्मदा आर्यो का दिया हुआ नाम है जिसका अर्थ है आनंदिनी या आनंद देने वाली नदी। नर्म का अर्थ है आनंद और दा का अर्थ देने वाली। नर्मदा का दूसरा प्राकृतिक नाम मेकलसुता है। विंध्याचल की जिस पर्वतमाला से नर्मदा निकलती है वह मेकल ऋषि की तपस्या से मुखरित होने के कारण मेकल पर्वत कहलाया। इसी से उद्गम के कारण यह नाम पड़ा। नर्मदा का विशिष्टता सूचक एक नाम है रेवा। रेवा का अर्थ है सभी चीजों को बालू बना देने वाली।

वैसे इसकी एक विशेषता और है पाषाण को शिवशंकर में तब्दील कर देने की। इसीलिए कहा जाता है-नर्मदा के कंकर शिवशंकर समान हैं। नर्मदा को देव तीर्थत्व प्राप्त है। एक बार देवर्षि नारद ने संसार के ताप को नष्ट करने में सक्षम नर्मदा के जल में स्नान कर ओंकारेश्वर की अभ्यर्थना की थी तथा मार्कण्डेय ऋषि ने नर्मदा जल पर दस हजार वर्षो तक निर्भर रहकर शिव की आराधना की थी। मां नर्मदा की आज जयंती है। इस पावन अवसर पर हम संकल्प लें कि इसे प्रदूषित होने से बचाकर अपनी आस्था प्रकट करेंगे।

साभार – भास्कर

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