मनुष्य के जीवन में शुद्ध पेयजल व स्वच्छता का महत्वपूर्ण स्थान है। इससे हमारा जीवन न केवल स्वस्थ रहता है, बल्कि कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है। स्वस्थ्य जीवन के लिए शुद्ध पेयजल की आपूर्ति व स्वच्छता संबंधी आचरणों का पालन करना भी जरूरी है। स्वास्थ्य सर्वेक्षण से विदित है कि 60 से 70 प्रतिशत बीमारियां अशुद्ध पेयजल व गंदगी से होती है। ग्रामीण क्षेत्र में अशुद्ध पेयजल व दूषित वातावरण से बहुत सी बीमारियां लोगों को हो रही हैं, जैसे- हैजा, पेचिस, पीलिया व टायफाइड आदि। इन बीमारियों का सबसे अधिक प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। स्वच्छ पेयजल व स्वच्छता सुविधा उपलब्ध कराकर बहुत हद तक इन बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए सरकार के स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध व पर्याप्त पेयजलापूर्ति तथा स्वच्छता सुविधा उपलब्ध कराने संबंधी कार्य लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के द्वारा किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए विभाग द्वारा बसावट पर आधारित प्लांनिग के अनुरूप कार्य कराया जा रहा है।
विभाग ने ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित प्राथमिक व मध्य विद्यालय में पेयजल की व्यवस्था के लिए चापाकलों का निर्माण कराया गया है। विगत वर्षों में सरकार के प्रयास से विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र- छात्राओं की संख्या में वृद्धि हुयी है, इसके मद्देनजर विद्यालय में शौचालयों का निर्माण भी कराया गया है। सरकार की ओर से सभी प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में कम से कम एक चापाकल का निर्माण कर पेयजल की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है। इसके अलावा अतिरिक्त चापाकलों का निर्माण भी कराया जा रहा है। विद्यालयों में समुचित पेयजल की व्यवस्था के लिए रनिंग वाटर की व्यवस्था के योजनाएं की स्वीकृति दे दी गयी है। उनका कार्यान्यवयन कराया जा रहा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी व सार्वजनिक भवनों में संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों में पेयजल की व्यवस्था के लिए चापाकलों का निर्माण कराया जा रहा है। इसके लिए विभाग ने योजना की स्वीकृति प्रदान कर दी है और कार्य भी कराया जा रहा है।
राज्य के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित श्मशान घाटों के विकास व उन्नयन की आवश्यकता को देखते हुए विभिन्न जिलों के 50 महत्वपूर्ण घाटों का उन्नयन करने के लिए ‘मुक्तिधाम योजना’ की स्वीकृति दी गयी थी, जिसका कार्यान्यवन कराया जा रहा है। अब तक 34 श्मशान घाटों का विकास का उन्नयन कार्य पूरा कर लिया गया है। बाकी का कार्य चल रहा है।
ग्रामीण के घरों में शौचालय की सुविधा नहीं रहने से महिलाएं, बच्चे व बुढ़े लोगों को खुले में शौच जाने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। खासकर महिलाओं एवं बच्चियों को तो शौच जाने के लिए सूर्योदय के पहले व सूर्यास्त के बाद के समय का इंतजार करना पड़ता है। इसी परेशानी को देखते हुए हर परिवार को शौचालय उपलब्ध कराने के लिए केंद्र व राज्य सरकार सतत प्रयास कर रहा है ताकि ‘निर्मल बिहार’ का सपना साकार हो सके।
ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत निर्मल भारत अभियान चलाया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच की प्रथा को समाप्त करने के लिए केंद्र द्वारा प्रायोजित ‘निर्मल भारत अभियान’ व राज्य सम्पोषित ‘लोहिया स्वच्छता योजना’ चलायी जा रही है। इस अभियान के तहत वैयक्तिक शौचालय, विद्यालयों, आंगनबाड़ी केंद्रों आदि में शौचालय के निर्माण के साथ ठोस व तरल कचरा निपटाने का कार्य भी ग्रामीण क्षेत्रों में कराए जाने का हैं।
वैयक्तिक शौचालय के निर्माण के लिए पहले दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि में बढ़ोतरी की गयी है। बीपीएल परिवारों, चिन्हित श्रेणी के एपीएल परिवारों तथा अनुसूचित जातियों, जनजातियों, छोटे तथा सीमान्त किसानों, वासभूमि के साथ भूमिहीन मजदूरों, शारीरिक रूप से विकलांगों तथा महिला पुरुषों को भी प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान किया गया है।
वर्तमान में सभी बीपीएल परिवारों तथा चिन्हित श्रेणी के उपरोक्त एपीएल परिवारों को शौचालय निर्माण के लिए केंद्र की ओर से 3200 रुपए, राज्य की ओर से 1400 रुपए यानि कुल 46 सौ रुपए प्रोत्साहन राशि के रूप में दी जाती है। इसमें लाभार्थी द्वारा 900 रुपए का वहन लाभार्थी अंशदान के रूप में किया जाता है। मनरेगा से अधिकतम 4500 रुपए व निर्मल भारत अभियान के तहत 4600 रुपए को यदि मिला दे तो लाभार्थी अधिकतम 10 हजार रुपए तक के शौचालय का निर्माण करवा सकता है।
‘निर्मल ग्राम पुरस्कार’ के लिए ग्राम पंचायतो को चिन्हित कर उन पंचायतो में सेचूरेशन एपरोच से शौचालयों का निर्माण कराया जाना है। प्रथम चरण में राज्य में 634 ग्राम पंचायतों को निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए लक्षित व चिन्हित किया गया है। इस वित्तीय वर्ष में पांच लाख के करीब बीपीएल व 2 लाख एपीएल यानि कुल मिलाकर साढ़े छह लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है।
ग्रामीण क्षेत्रों के प्रारंभिक विद्यालयों में छात्र व छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय यूनिट का निर्माण किया जाना है, जिसके लिए प्रति यूनिट लागत राशि 35 हजार रुपए हैं। जिसमें केंद्र सरकार की ओर से 24500 रुपए व राज्य सरकार की ओर से 10500 रुपए निर्धारित किया गया है। वहीं सरकारी, आंगनबाड़ी व सार्वजनिक भवनों में संचालित केंद्रों में शौचालय का निर्माण की लागत राशि 8000 रुपरु हैं जिसमें केंद्र की ओर से 5600 रुपए व राज्य की ओर से 2400 रुपए दिया जाता है।
एपीएल परिवारों के अतिरिक्त अन्य श्रेणी के परिवारों को जिन्हें निर्मल भारत अभियान के तहत प्रोत्साहन राशि नहीं दी जाती है, उसे राज्य सरकार द्वारा ‘लोहिया स्वच्छता योजना’ के तहत शौचालय निर्माण के लिए 4600 रुपए प्रोत्साहन राशि दी जाती।
इस परियोजना के अंतर्गत पेयजलापूर्ति व स्वच्छता सुविधा के उन्नयन व सुदृढीकरण के लिए विभाग को सहायता प्राप्त हो रही है। इस परियोजना के तहत वित्तीय सहायता व तकनीकी सहायता के रूप में अगले पांच वर्षों में करीब 235 करोड़ रुपए की सहायता मिलनी है। इसके अंतर्गत गया जिला के चार प्रखंड बोधगया, नगर प्रखंड, मानपुर तथा डाभी के अनुसूचित जाति बाहुल्य क्षेत्रों में सौर ऊर्जा चालित पंप के साथ 100 मिनी पाइप जलापूर्ति योजना, पेयजल गुणवत्ता जांच के लिए चार चलंत प्रयोगशाला, 38 जिलास्तरीय प्रयोगशाला का उन्नयन, राज्य के आर्सेनिक, फ्लोराइड प्राभवित 22 जिलों में चार लाख के करीब पेयजल स्रोतों के जल गुणवत्ता की जांच व गुणवत्ता प्राभवित क्षेत्रों की मैपिंग तथा 100 प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में रनिंग वाटर के साथ शौचालय कम्पलेक्स के निर्माण की योजनाओं की स्वीकृति प्रदान की गयी है।
ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की सुविधा मुख्यत: चापाकलों के माध्यम से उपलब्ध करायी गयी है। पाइप जलापूर्ति योजनाओं से आच्छादन लगभग चार प्रतिशत है। विभाग ने ग्रामीण क्षेत्रों में पाइप जलापूर्ति के माध्यम से पेयजल की व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए योजनाओं को कार्यान्यवन किया जा रहा है, ताकि ग्रामीण अपने घरों में जल संयोजन लेकर पेयजल की सुविधा प्राप्त कर सकें।
12वीं पंचवर्षीय योजना काल में ग्रामीण क्षेत्रों में पाइप जलापूर्ति से 10 प्रतिशत आबादी को आच्छादित करने का लक्ष्य रखा गया है। इस नयी ग्रामीण पाइप जलापूर्ति योजना की स्वीकृति के लिए कार्रवाई की जा रही है। साथ ही पुरानी पाइप जलापूर्ति योजना के पुनर्गठन का कार्य भी कराया जा रहा है। जिससे बढ़ी हुयी आबादी के अनुरूप ग्रामीणों को पर्याप्त पेयजल की सुविधा उपलब्ध हो सके। इसके अलावा मिनी जलापूर्ति योजनाओं का भी निर्माण किया जा रहा है।
इस योजना के अंतर्गत सभी 38 जिलों में पेयजलापूर्ति की व्यवस्था के लिए प्रति सदस्य 100 की दर से 2012-13 में 55,240 चापाकलों का निर्माण तथा निर्मित चापाकलों का अगले तीन वर्षों तक मरम्मत व रख-रखाव के लिए 225.29 करोड़ की राशि पर योजना स्वीकृत की गयी है।
केंद्र सरकार के मार्गदर्शन के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम 40 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के आधार पर 250 व्यक्ति पर एक पेयजल स्रोत उपलब्ध कराए जाने का प्रावधान है। वर्ष 2003-04 में राज्य सरकार ने ग्रामीण टोलों का सर्वेक्षण विभाग द्वारा कराया था। इस रि-एलायंमेंट के अनुसार राज्य में कुल एक लाख सात हजार के करीब ग्रामीण क्षेत्र हैं। जिसमें से अप्रैल 2012 तक लगभग 83 हजार बसावटों का आच्छादन पूर्णरूप से कर लिया गया था। शेष 25 हजार के करीब बसावट जो आंशिक रूप से आच्छादित हैं, उसका आच्छादन किया जाना अभी बाकी है, जिनमें से 10 हजार के लगभग गैर-गुणवत्ता प्रभावित एवं तकरीबन 15 हजार गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्र हैं।
वर्ष 2012-13 में कुल 15 हजार आबादी वाले क्षेत्रों को पूर्णरूप से आच्छादन का लक्ष्य रखा गया हैं। इसमें 8000 गैर-गुणवत्ता प्रभावित व 6000 गुणवत्ता प्रभावित बसावट और 2000 के करीब गुणवत्ता प्राभवित बसावटों का आच्छादन किया गया है।
ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी व सार्वजनिक चापाकलों व अन्य पेयजलापूर्ति योजनाओं में जल नमूनों की जांच के लिए सभी 38 जिलों में जिलास्तरीय प्रयोगशाला स्थापित हैं, जो कार्यरत हैं। इन जिलास्तरीय प्रयोगशालाओं से प्रतिमाह कम से कम 250 जल नमूनों की जांच कराए जाने का लक्ष्य रखा गया है। अब तक किए गए पेयजल नमूनों की जांच के आधार पर गंगा नदी के किनारे अवस्थित दोनों ओर के 13 जिलों के 1590 बसावटों के भू-गर्भीय जल में आर्सेनिक की मात्रा पेयजल के लिए अनुमान्य सीमा से अधिकतम पायी गयी है। अब तक 646 बसावटों में पेयजल की सुविधा उपलब्ध कराकर आच्छादन किया गया है। पठारी व उप-पठारी क्षेत्रों के 11 जिलों के 4,157 बसावटों के भू-गर्भीय जल में फ्लोराइड की मात्रा पेयजल के लिए अनुमान्य सीमा से अधिक पायी गयी है। इन बसावटों में से 2,627 बसावटों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था उपलब्ध कराकर आच्छादित किया गया है।
वहीं पूर्वोत्तर कोशी क्षेत्र के नौ जिलों के 18,673 बसावटों के भू-गर्भीय जल में लौह की मात्रा पेयजल के लिए अनुमान्य सीमा से अधिक पायी गयी है। जिसमें से 10,582 बसावटों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था उपलब्ध कराकर आच्छादित किया गया है। बाकी गुणवत्ता प्रभावित बसावटों में शुद्ध पेयजल की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए विभाग ने चरणबद्ध तरीके से कार्रवाई कर रहा है।
आबादी क्षेत्र में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था के लिए आवश्यकता के अनुसार ट्रिटमेंट यूनिट के साथ चापाकल, गहरे नलकूप, सौर ऊर्जा चालित मिनी जलापूर्ति योजना तथा सतही जल नदी व झील का जलस्रोत के रूप में उपयोग कर बहुग्रामीय पाइप जलापूर्ति योजना का कार्यान्वयन कराया जा रहा है।
राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था और उसकी निगरानी के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल गुणवत्ता अनुश्रवण व निगरानी कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य राज्य के सरकारी व सार्वजनिक जलस्रोतों के जल नमूनों की नियमित जांच व शुद्ध पेयजल के महत्व के संबंध में आमलोगों के बीच प्रचार-प्रसार करना, पंचायतीराज संस्थाओं के प्रतिनिधियों व अन्य साझेदारों को शुद्ध पेयजल के महत्व के बारे में जानकारी देना व उनकी क्षमता में संवर्द्धन करना है।
इस कार्यक्रम के तहत विभाग द्वारा प्रखंड स्तर पर शुद्ध पेयजल के महत्व व दूषित जल के उपयोग से होने वाली बीमारियों के संबंध में जागृति लाने के लिए योजना स्वीकृत की गयी है। साथ ही पंचायतीराज संस्थाओं के प्रतिनिधियों, विभागीय कर्मचारियों एवं पदाधिकारियों आदि को प्रशिक्षित करने के लिए योजना स्वीकृत की गयी है। राज्य के मस्तिष्क ज्वर से प्रभावित 11 जिलों के 114 प्रखंडों में अवस्थित जलस्रोतों के जल नमूनों की जांच के लिए योजना की स्वीकृत के लिए कार्रवाई भी गयी है ताकि पेयजल स्रोतों के जलनमूनों की गुणवत्ता की जांच से वे अवगत हो सकें। साथ ही मस्तिष्क ज्वर से प्रभावित जिलों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था के लिए शैलो हैंडपंप के स्थान पर इंडिया मार्क-2 पंप के साथ गहरे चापाकलों के निर्माण तथा पुराने निर्मित चापाकलों के क्षतिग्रस्त प्लेटफार्मों के स्थान पर नए ऊंचे प्लेटफार्म व नाली के निर्माण के लिए भी योजना स्वीकृत की गयी है।
1. ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त पेयजलापूर्ति व्यवस्था व स्वच्छता सुविधा का विकास करना।
2. पेयजल गुणवत्ता की मॉनिटरिंग व सतत निगरानी करना।
3. पेयजलापूर्ति व स्वच्छता क्षेत्र में जनसहभागिता आधारित योजनाओं में जनसमुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करना।
4. ग्रामीण क्षेत्रों में चापाकलों व पाइप जलापूर्ति योजनाओं का निर्माण, रख-रखाव करना।
5 राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के प्राथमिक, मध्य विद्यालयों, आंगनबाड़ी केंद्रों और सार्वजनिक स्थलों पर पेयजल व स्वच्छता सुविधा की व्यवस्था करना।
1. इस योजना के अंतर्गत चापाकलों का निर्माण व ग्रामीण पाइप जलापूर्ति योजनाओं का निर्माण तथा केंद्र प्रायोजित योजनाओं के राज्यांश की राशि उपलब्ध करना।
2. ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा प्रायोजित ‘निर्मल भारत अभियान’ के लिए राज्यांश की राशि उपलब्ध करना।
3. ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत गरीबी रेखा से ऊपर के चिन्हित श्रेणी के परिवारों को छोड़कर अन्य परिवारों के घरों में शौचालय निर्माण के लिए ‘लोहिया स्वच्छता योजना’ का कार्यान्वयन करना।
प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में पेयजल की व्यवस्था
विभाग ने ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित प्राथमिक व मध्य विद्यालय में पेयजल की व्यवस्था के लिए चापाकलों का निर्माण कराया गया है। विगत वर्षों में सरकार के प्रयास से विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र- छात्राओं की संख्या में वृद्धि हुयी है, इसके मद्देनजर विद्यालय में शौचालयों का निर्माण भी कराया गया है। सरकार की ओर से सभी प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में कम से कम एक चापाकल का निर्माण कर पेयजल की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है। इसके अलावा अतिरिक्त चापाकलों का निर्माण भी कराया जा रहा है। विद्यालयों में समुचित पेयजल की व्यवस्था के लिए रनिंग वाटर की व्यवस्था के योजनाएं की स्वीकृति दे दी गयी है। उनका कार्यान्यवयन कराया जा रहा है।
आंगनबाड़ी केंद्रों में पेयजल की व्यवस्था
ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी व सार्वजनिक भवनों में संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों में पेयजल की व्यवस्था के लिए चापाकलों का निर्माण कराया जा रहा है। इसके लिए विभाग ने योजना की स्वीकृति प्रदान कर दी है और कार्य भी कराया जा रहा है।
मुक्तिधाम योजना
राज्य के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित श्मशान घाटों के विकास व उन्नयन की आवश्यकता को देखते हुए विभिन्न जिलों के 50 महत्वपूर्ण घाटों का उन्नयन करने के लिए ‘मुक्तिधाम योजना’ की स्वीकृति दी गयी थी, जिसका कार्यान्यवन कराया जा रहा है। अब तक 34 श्मशान घाटों का विकास का उन्नयन कार्य पूरा कर लिया गया है। बाकी का कार्य चल रहा है।
ग्रामीण स्वच्छता
ग्रामीण के घरों में शौचालय की सुविधा नहीं रहने से महिलाएं, बच्चे व बुढ़े लोगों को खुले में शौच जाने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। खासकर महिलाओं एवं बच्चियों को तो शौच जाने के लिए सूर्योदय के पहले व सूर्यास्त के बाद के समय का इंतजार करना पड़ता है। इसी परेशानी को देखते हुए हर परिवार को शौचालय उपलब्ध कराने के लिए केंद्र व राज्य सरकार सतत प्रयास कर रहा है ताकि ‘निर्मल बिहार’ का सपना साकार हो सके।
ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत निर्मल भारत अभियान चलाया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच की प्रथा को समाप्त करने के लिए केंद्र द्वारा प्रायोजित ‘निर्मल भारत अभियान’ व राज्य सम्पोषित ‘लोहिया स्वच्छता योजना’ चलायी जा रही है। इस अभियान के तहत वैयक्तिक शौचालय, विद्यालयों, आंगनबाड़ी केंद्रों आदि में शौचालय के निर्माण के साथ ठोस व तरल कचरा निपटाने का कार्य भी ग्रामीण क्षेत्रों में कराए जाने का हैं।
वैयक्तिक शौचालय के निर्माण के लिए पहले दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि में बढ़ोतरी की गयी है। बीपीएल परिवारों, चिन्हित श्रेणी के एपीएल परिवारों तथा अनुसूचित जातियों, जनजातियों, छोटे तथा सीमान्त किसानों, वासभूमि के साथ भूमिहीन मजदूरों, शारीरिक रूप से विकलांगों तथा महिला पुरुषों को भी प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान किया गया है।
वर्तमान में सभी बीपीएल परिवारों तथा चिन्हित श्रेणी के उपरोक्त एपीएल परिवारों को शौचालय निर्माण के लिए केंद्र की ओर से 3200 रुपए, राज्य की ओर से 1400 रुपए यानि कुल 46 सौ रुपए प्रोत्साहन राशि के रूप में दी जाती है। इसमें लाभार्थी द्वारा 900 रुपए का वहन लाभार्थी अंशदान के रूप में किया जाता है। मनरेगा से अधिकतम 4500 रुपए व निर्मल भारत अभियान के तहत 4600 रुपए को यदि मिला दे तो लाभार्थी अधिकतम 10 हजार रुपए तक के शौचालय का निर्माण करवा सकता है।
‘निर्मल ग्राम पुरस्कार’ के लिए ग्राम पंचायतो को चिन्हित कर उन पंचायतो में सेचूरेशन एपरोच से शौचालयों का निर्माण कराया जाना है। प्रथम चरण में राज्य में 634 ग्राम पंचायतों को निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए लक्षित व चिन्हित किया गया है। इस वित्तीय वर्ष में पांच लाख के करीब बीपीएल व 2 लाख एपीएल यानि कुल मिलाकर साढ़े छह लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है।
ग्रामीण क्षेत्रों के प्रारंभिक विद्यालयों में छात्र व छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय यूनिट का निर्माण किया जाना है, जिसके लिए प्रति यूनिट लागत राशि 35 हजार रुपए हैं। जिसमें केंद्र सरकार की ओर से 24500 रुपए व राज्य सरकार की ओर से 10500 रुपए निर्धारित किया गया है। वहीं सरकारी, आंगनबाड़ी व सार्वजनिक भवनों में संचालित केंद्रों में शौचालय का निर्माण की लागत राशि 8000 रुपरु हैं जिसमें केंद्र की ओर से 5600 रुपए व राज्य की ओर से 2400 रुपए दिया जाता है।
लोहिया स्वच्छता योजना
एपीएल परिवारों के अतिरिक्त अन्य श्रेणी के परिवारों को जिन्हें निर्मल भारत अभियान के तहत प्रोत्साहन राशि नहीं दी जाती है, उसे राज्य सरकार द्वारा ‘लोहिया स्वच्छता योजना’ के तहत शौचालय निर्माण के लिए 4600 रुपए प्रोत्साहन राशि दी जाती।
डीएफआइडी ‘स्वस्थ’ परियोजना
इस परियोजना के अंतर्गत पेयजलापूर्ति व स्वच्छता सुविधा के उन्नयन व सुदृढीकरण के लिए विभाग को सहायता प्राप्त हो रही है। इस परियोजना के तहत वित्तीय सहायता व तकनीकी सहायता के रूप में अगले पांच वर्षों में करीब 235 करोड़ रुपए की सहायता मिलनी है। इसके अंतर्गत गया जिला के चार प्रखंड बोधगया, नगर प्रखंड, मानपुर तथा डाभी के अनुसूचित जाति बाहुल्य क्षेत्रों में सौर ऊर्जा चालित पंप के साथ 100 मिनी पाइप जलापूर्ति योजना, पेयजल गुणवत्ता जांच के लिए चार चलंत प्रयोगशाला, 38 जिलास्तरीय प्रयोगशाला का उन्नयन, राज्य के आर्सेनिक, फ्लोराइड प्राभवित 22 जिलों में चार लाख के करीब पेयजल स्रोतों के जल गुणवत्ता की जांच व गुणवत्ता प्राभवित क्षेत्रों की मैपिंग तथा 100 प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में रनिंग वाटर के साथ शौचालय कम्पलेक्स के निर्माण की योजनाओं की स्वीकृति प्रदान की गयी है।
पाइप जलापूर्ति योजना
ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की सुविधा मुख्यत: चापाकलों के माध्यम से उपलब्ध करायी गयी है। पाइप जलापूर्ति योजनाओं से आच्छादन लगभग चार प्रतिशत है। विभाग ने ग्रामीण क्षेत्रों में पाइप जलापूर्ति के माध्यम से पेयजल की व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए योजनाओं को कार्यान्यवन किया जा रहा है, ताकि ग्रामीण अपने घरों में जल संयोजन लेकर पेयजल की सुविधा प्राप्त कर सकें।
12वीं पंचवर्षीय योजना काल में ग्रामीण क्षेत्रों में पाइप जलापूर्ति से 10 प्रतिशत आबादी को आच्छादित करने का लक्ष्य रखा गया है। इस नयी ग्रामीण पाइप जलापूर्ति योजना की स्वीकृति के लिए कार्रवाई की जा रही है। साथ ही पुरानी पाइप जलापूर्ति योजना के पुनर्गठन का कार्य भी कराया जा रहा है। जिससे बढ़ी हुयी आबादी के अनुरूप ग्रामीणों को पर्याप्त पेयजल की सुविधा उपलब्ध हो सके। इसके अलावा मिनी जलापूर्ति योजनाओं का भी निर्माण किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री चापाकल योजना
इस योजना के अंतर्गत सभी 38 जिलों में पेयजलापूर्ति की व्यवस्था के लिए प्रति सदस्य 100 की दर से 2012-13 में 55,240 चापाकलों का निर्माण तथा निर्मित चापाकलों का अगले तीन वर्षों तक मरम्मत व रख-रखाव के लिए 225.29 करोड़ की राशि पर योजना स्वीकृत की गयी है।
पेयजल के लिए ग्रामीण टालों का आच्छादन
केंद्र सरकार के मार्गदर्शन के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम 40 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के आधार पर 250 व्यक्ति पर एक पेयजल स्रोत उपलब्ध कराए जाने का प्रावधान है। वर्ष 2003-04 में राज्य सरकार ने ग्रामीण टोलों का सर्वेक्षण विभाग द्वारा कराया था। इस रि-एलायंमेंट के अनुसार राज्य में कुल एक लाख सात हजार के करीब ग्रामीण क्षेत्र हैं। जिसमें से अप्रैल 2012 तक लगभग 83 हजार बसावटों का आच्छादन पूर्णरूप से कर लिया गया था। शेष 25 हजार के करीब बसावट जो आंशिक रूप से आच्छादित हैं, उसका आच्छादन किया जाना अभी बाकी है, जिनमें से 10 हजार के लगभग गैर-गुणवत्ता प्रभावित एवं तकरीबन 15 हजार गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्र हैं।
वर्ष 2012-13 में कुल 15 हजार आबादी वाले क्षेत्रों को पूर्णरूप से आच्छादन का लक्ष्य रखा गया हैं। इसमें 8000 गैर-गुणवत्ता प्रभावित व 6000 गुणवत्ता प्रभावित बसावट और 2000 के करीब गुणवत्ता प्राभवित बसावटों का आच्छादन किया गया है।
पेयजल की गुणवत्ता
ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी व सार्वजनिक चापाकलों व अन्य पेयजलापूर्ति योजनाओं में जल नमूनों की जांच के लिए सभी 38 जिलों में जिलास्तरीय प्रयोगशाला स्थापित हैं, जो कार्यरत हैं। इन जिलास्तरीय प्रयोगशालाओं से प्रतिमाह कम से कम 250 जल नमूनों की जांच कराए जाने का लक्ष्य रखा गया है। अब तक किए गए पेयजल नमूनों की जांच के आधार पर गंगा नदी के किनारे अवस्थित दोनों ओर के 13 जिलों के 1590 बसावटों के भू-गर्भीय जल में आर्सेनिक की मात्रा पेयजल के लिए अनुमान्य सीमा से अधिकतम पायी गयी है। अब तक 646 बसावटों में पेयजल की सुविधा उपलब्ध कराकर आच्छादन किया गया है। पठारी व उप-पठारी क्षेत्रों के 11 जिलों के 4,157 बसावटों के भू-गर्भीय जल में फ्लोराइड की मात्रा पेयजल के लिए अनुमान्य सीमा से अधिक पायी गयी है। इन बसावटों में से 2,627 बसावटों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था उपलब्ध कराकर आच्छादित किया गया है।
वहीं पूर्वोत्तर कोशी क्षेत्र के नौ जिलों के 18,673 बसावटों के भू-गर्भीय जल में लौह की मात्रा पेयजल के लिए अनुमान्य सीमा से अधिक पायी गयी है। जिसमें से 10,582 बसावटों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था उपलब्ध कराकर आच्छादित किया गया है। बाकी गुणवत्ता प्रभावित बसावटों में शुद्ध पेयजल की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए विभाग ने चरणबद्ध तरीके से कार्रवाई कर रहा है।
आबादी क्षेत्र में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था के लिए आवश्यकता के अनुसार ट्रिटमेंट यूनिट के साथ चापाकल, गहरे नलकूप, सौर ऊर्जा चालित मिनी जलापूर्ति योजना तथा सतही जल नदी व झील का जलस्रोत के रूप में उपयोग कर बहुग्रामीय पाइप जलापूर्ति योजना का कार्यान्वयन कराया जा रहा है।
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल गुणवत्ता अनुश्रवण व निगरानी कार्यक्रम
राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था और उसकी निगरानी के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल गुणवत्ता अनुश्रवण व निगरानी कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य राज्य के सरकारी व सार्वजनिक जलस्रोतों के जल नमूनों की नियमित जांच व शुद्ध पेयजल के महत्व के संबंध में आमलोगों के बीच प्रचार-प्रसार करना, पंचायतीराज संस्थाओं के प्रतिनिधियों व अन्य साझेदारों को शुद्ध पेयजल के महत्व के बारे में जानकारी देना व उनकी क्षमता में संवर्द्धन करना है।
इस कार्यक्रम के तहत विभाग द्वारा प्रखंड स्तर पर शुद्ध पेयजल के महत्व व दूषित जल के उपयोग से होने वाली बीमारियों के संबंध में जागृति लाने के लिए योजना स्वीकृत की गयी है। साथ ही पंचायतीराज संस्थाओं के प्रतिनिधियों, विभागीय कर्मचारियों एवं पदाधिकारियों आदि को प्रशिक्षित करने के लिए योजना स्वीकृत की गयी है। राज्य के मस्तिष्क ज्वर से प्रभावित 11 जिलों के 114 प्रखंडों में अवस्थित जलस्रोतों के जल नमूनों की जांच के लिए योजना की स्वीकृत के लिए कार्रवाई भी गयी है ताकि पेयजल स्रोतों के जलनमूनों की गुणवत्ता की जांच से वे अवगत हो सकें। साथ ही मस्तिष्क ज्वर से प्रभावित जिलों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था के लिए शैलो हैंडपंप के स्थान पर इंडिया मार्क-2 पंप के साथ गहरे चापाकलों के निर्माण तथा पुराने निर्मित चापाकलों के क्षतिग्रस्त प्लेटफार्मों के स्थान पर नए ऊंचे प्लेटफार्म व नाली के निर्माण के लिए भी योजना स्वीकृत की गयी है।
विभाग के कार्य क्षेत्र
1. ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त पेयजलापूर्ति व्यवस्था व स्वच्छता सुविधा का विकास करना।
2. पेयजल गुणवत्ता की मॉनिटरिंग व सतत निगरानी करना।
3. पेयजलापूर्ति व स्वच्छता क्षेत्र में जनसहभागिता आधारित योजनाओं में जनसमुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करना।
4. ग्रामीण क्षेत्रों में चापाकलों व पाइप जलापूर्ति योजनाओं का निर्माण, रख-रखाव करना।
5 राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के प्राथमिक, मध्य विद्यालयों, आंगनबाड़ी केंद्रों और सार्वजनिक स्थलों पर पेयजल व स्वच्छता सुविधा की व्यवस्था करना।
राज्य योजना
1. इस योजना के अंतर्गत चापाकलों का निर्माण व ग्रामीण पाइप जलापूर्ति योजनाओं का निर्माण तथा केंद्र प्रायोजित योजनाओं के राज्यांश की राशि उपलब्ध करना।
2. ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा प्रायोजित ‘निर्मल भारत अभियान’ के लिए राज्यांश की राशि उपलब्ध करना।
3. ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत गरीबी रेखा से ऊपर के चिन्हित श्रेणी के परिवारों को छोड़कर अन्य परिवारों के घरों में शौचालय निर्माण के लिए ‘लोहिया स्वच्छता योजना’ का कार्यान्वयन करना।
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Post By: pankajbagwan