पेयजल की किल्लत


समस्या का निपटारा सिर्फ सरकारों के प्रयास द्वारा सम्भव नहीं है। जल बचाने की लड़ाई में आम आदमी का शामिल होना भी उतना ही आवश्यक है। यहाँ सरकार का कर्तव्य बनता है कि वह आम लोगों को जल संरक्षण के लिये न सिर्फ जागरूक करे, बल्कि जल के संरक्षण के लिये प्रोत्साहित भी करें। साथ ही लोगों को वाटर हार्वेस्टिंग जैसे उपायों के बारे में बताया जाये, ताकि हम बारिश के पानी को अधिक-से-अधिक संजोकर उसका अधिकतम उपयोग कर सकें। देश की राजधानी दिल्ली में इन दिनों पेयजल की आपूर्ति में तेजी से कमी आती जा रही है। जल की आपूर्ति की कटौती के कारण दिल्ली सरकार की चिन्ता बढ़ गई है। वैसे ऐसा पहली बार नहीं है जब लोगों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले भी कई बार लोगों को तापमान बढ़ते ही जल समस्या से दो-चार होना पड़ा है।

दिल्ली पानी के लिये मुख्य रूप से हरियाणा और उत्तर प्रदेश पर ही निर्भर है। हरियाणा के हथिनीकुण्ड बैराज से यमुना नदी के पानी की दिल्ली में आपूर्ति होती है, जबकि उत्तर प्रदेश की गंग नहर के जरिए टिहरी से 240 एमजीडी पानी सोनिया विहार और भागीरथी जलशोधन संयंत्र को मिलता है।

हालांकि अब हरियाणा से यमुना में पानी की कम आपूर्ति के कारण जहाँ वजीराबाद और चंद्रावल जलशोधन संयंत्रों के पानी की आपूर्ति आधी हो गई है, वहीं राज्य सरकार को टिहरी से आने वाले गंगा के पानी को बन्द करने का अल्टीमेटम भी मिल गया है।

वैसे अकेले दिल्ली राज्य में ही लोगों को जल संकट का सामना नहीं करना पड़ रहा है। देश के अधिकतर राज्यों में पहले ही सूखे की घोषणा की जा चुकी है, जिसके कारण किसानों से लेकर आम आदमी तक को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। आज बढ़ती हुई आबादी को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराना भारत जैसे विकासशील देशों के लिये एक बड़ी चुनौती बन गया है।

पानी की बढ़ती हुई कमी के कारण आने वाले दिनों में पेयजल संकट पूरे देश में कितना भयावह रूप ले सकता है, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक ओर जहाँ इस बार किसानों ने पानी की कमी के कारण अपनी फसलें देरी से बोई हैं, वहीं पानी की कमी के कारण खाद्यान्न उत्पादन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ना तय है। जिसका समग्र असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। ऐसे में जल संकट को हल्के में लेना केन्द्र और राज्य सरकारों की नासमझी ही कही जाएगी।

अब समय आ गया है कि जलसंकट के उन्मूलन के लिये युद्धस्तर पर प्रयास किये जाएँ। सिर्फ बारिश के पानी पर निर्भर रहकर जल आपूर्ति को सामान्य नहीं बनाया जा सकता। निरन्तर घटता भूजल और सूखी नदियाँ इस बात की गुहार लगा रही हैं कि जल आपूर्ति को बढ़ाने के लिये वैकल्पिक उपायों पर विचार करने की आवश्यकता है।

इस समस्या का निपटारा सिर्फ सरकारों के प्रयास द्वारा सम्भव नहीं है। जल बचाने की लड़ाई में आम आदमी का शामिल होना भी उतना ही आवश्यक है। यहाँ सरकार का कर्तव्य बनता है कि वह आम लोगों को जल संरक्षण के लिये न सिर्फ जागरूक करे, बल्कि जल के संरक्षण के लिये प्रोत्साहित भी करें। साथ ही लोगों को वाटर हार्वेस्टिंग जैसे उपायों के बारे में बताया जाये, ताकि हम बारिश के पानी को अधिक-से-अधिक संजोकर उसका अधिकतम उपयोग कर सकें। साथ ही नदियों, तालाबों के पानी को भी दूषित होने से बचाना होगा तभी पेयजल को बचाया जा सकता है। इतना ही नहीं, अगर मनुष्य चाहे तो अपने स्तर पर छोटे-छोटे उपायों द्वारा पानी की बर्बादी को काफी हद तक कम कर सकता है।

बूँद-बूँद से सागर बनता है, यदि इस पर अमल किया जाये तो छोटे-छोटे प्रयास एक दिन काफी बड़े समाधान में परिवर्तित हो सकते हैं। इसके लिये हमें रोजमर्रा के जीवन में पानी के संरक्षण की नीति को अपनाना होगा। मसलन अगर हम आधा गिलास पानी को फेंकने के बजाय उसका संरक्षण करके उसे अगली बार पी सकते हैं। इस प्रकार रोजमर्रा होने वाले पानी की बर्बादी को रोका जा सकता है। याद रखिए जल है तो कल है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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