पेयजल की गुणवत्ता एवं उपयोग के लिए प्रचार-प्रसार की जरूरत

मानव जीवन में पेयजल व स्वच्छता का महत्व आदि काल से ही रहा है। जीवन के हर क्षेत्र में जल की आवश्यकता सर्वविदित है। जल की आवशयकता को ध्यान में रखते हुए ही हमारे पूर्वजों के द्वारा जितने भी बड़े शहर बसाये गए हैं वे किसी न किसी नदी के किनारे अवस्थित है। गीता में श्री भगवान कृष्ण ने अपने को जल के रूप में प्रदर्शित करते हुए इसकी महत्ता को बताया है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने तो स्वच्छता को जीवन दायनी एवं जीने का आधार मानते हैं। वहीं पौराणिक काल में भी लगभग 2500 वर्ष पूर्व विद्वान उदभट व अर्थशास्त्र के प्रणेता चाणक्य ने स्वच्छता जागरण की बात कही थी और वे पेयजल एवं स्वच्छता के प्रबंधन के लिए व्यवस्था किया था। पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने भी अपने ‘एकात्म मानवतावाद’ के दर्शन में तन-मन की शुद्धि एवं सुचिता पर बल दिया था। समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति की गरिमा एवं उसे समाज के मुख्यधारा से जोड़ने में उन्होंने पेयजल एवं स्वच्छता की उपस्थिति को अहम स्थान दिया था।

पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने अपने ‘एकात्म मानवतावाद’ के दर्शन में तन-मन की शुद्धि एवं सुचिता पर बल दिया था। समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति की गरिमा एवं उसे समाज के मुख्यधारा से जोड़ने में उन्होंने पेयजल एवं स्वच्छता की उपस्थिति को अहम स्थान दिया था। महान समाजवादी राम मनोहर लोहिया ने स्वच्छता को महिलाओं की गरिमा का आधार माना था। सभ्यता के शुरुआत में जल की व्यवस्था आम लोगों के द्वारा अपने स्तर से कुआं, तालाब एवं अन्य परंपरागत स्रोतों का निर्माण किया जाता था। सभ्यता के विकास के साथ-साथ जल की गुणवत्ता व सतत उपलब्धता को बनाये रखने के उद्देश्य से सरकार ने इसमें विशेष पहल प्रारंभ किया। राज्य की हर क्षेत्र के लिए पीने योग्य जल पर्याप्त मात्रा में समुचित जगह पर और समाज के सभी वर्गों को खासकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं कमजोर वर्ग के लिए सहजता से उपलब्ध कराना सरकार का उद्देश्य है।

पेयजल आपूर्ति योजनाओं के क्रियान्यवन, रख-रखाव एवं प्रबंधन में स्थानीय लोगों, पंचायतों, महिलाओं व समाजिक कार्यकर्ताओं की सहभागिता को सम्मिलित किया जाना आवश्यक है। सरकार के प्रयास से बहुत हद तक राज्य के सभी टोलों में पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चत करने के लिए कार्य किये गये हैं। इसमें सफलता भी मिली है। फिर भी हर आदमी को पर्याप्त मात्रा में पीने योग्य जल सही जगह पर उपलब्ध कराने में अभी पूर्ण सफलता नहीं मिल पायी है।

पेयजल का हमारे स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। इसीलिए पेयजल की व्यवस्था को सरकारी नीति के प्रबंधन से किया जाना आवश्यक है। इसे बाजार शैली के रूप में अन्य लोगों पर अकेले नहीं छोड़ा जा सकता है। पेयजल की गुणवत्ता व विश्वसनीयता जल स्रोत से लेकर उपभोगता के उपयोग तक सुनिश्चित किया जाना जरूरी है।

पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सिर्फ एक जलस्रोत पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है। इसके लिए कुशल जल प्रबंधन की आवश्यकता है जिसके तहत जल की मात्रा एवं जल की गुणवत्ता विभिन्न कार्यों के लिए अलग से परिभाषित करने की जरूरत है। जल की उपलब्धता के लिए भू-गर्भीय जलस्रोत, सतही जलस्रोत व वर्षा जल का संग्रहण एवं उपयोग की आवश्यकता है। वहीं खाना बनाने व पीने के लिए पूर्णरूप से शुद्ध जल का उपयोग करने पर बल दिये जाने की जरूरत है।

जबकि अन्य कार्यों- कपड़ा धोने, नहाने व शौचालय का उपयोग गार्डेनिंग के लिए कम गुणवत्ता वाले जल का उपयोग किया जा सकता है। सभी जगहों के लिए सस्टेनेबल पेयजल की व्यवस्था के लिए राज्य स्तरीय, जिलास्तरीय व प्रखंडस्तरीय पेयजलापूर्ति पाइप लाइन का ग्रिड के रूप में बनाने की आवश्यकता है।

लोगों को मांग के अनुरूप जलापूर्ति नहीं


पेयजल के लिए पेयजल की मात्रा भी 40 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन रखी गयी है। हालांकि यह मात्रा बहुत ही कम है। सरकार को यह प्रयास किया जाना है कि स्थानीय लोगों के जल मांग के अनुरूप उन्हें पेयजलापूर्ति उपलब्धी करायी जाए। सरकार सभी लोगों को पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वर्ष 2015 तक 70 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन उपलब्ध कराने के लिए पूरी तरह से कृतसंकल्प है।

ग्राम स्तर तक पेयजल सुविधा को सुनिशिचत करने के लिए पंचायती राज संस्थानों, स्वयंसेवी संस्थाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं स्थानीय लोगों की भूमिका भी अहम है। ग्रामीण क्षेत्रों के हर टोलें के सार्वजनिक स्थल, स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र, सार्वजनिक भवन, पंचायत कार्यालय, बाजार, मेला, पूजा स्थल व अन्य स्थलों पर पेयजल का बोझ कम हो सके, पेयजल के प्रबंधन में महिलाओं, समाज के कमजोर वर्गों तथा महादलित, दलित, छोटे किसान, अति पिछड़ा वर्ग की भागीदारी को सुनिश्चित करना होगा।

पेयजल की गुणवत्ता एवं उसके उपयोग के लिए सघन प्रचार-प्रसार एवं आईईसी सामग्री का निर्माण तथा पंचायत स्तर के लोगों को प्रशिक्षित कर सक्षमता संवर्द्धन की आवश्यकता है।

सक्षम प्रणाली विकसित करने की जरूरत


योजनाओं के मॉनिटरींग के लिए भी एक सक्षम प्रणाली विकसित किये जाने की आवशयकता है ताकि सभी आमलोगों को योजना के संबंध में किसी भी समय पूर्ण जानकारी मिल सके। साथ ही चालू योजनाओं को बंद होने की स्थिति में उसे शीघ्र चालू करने के लिए एक समय सीमा निर्धारित किये जाने की जरूरत है। इसके लिए सूचना प्रौद्योगिकी को भी अपनाया जा सकता है।

पेयजलआपूर्ति व स्वच्छता के क्षेत्र में नित्य नये प्रणाली विकसित हो रहे हैं। इन नयी प्रणाली को लगाने के लिए शोध व विकास कार्य के लिए एक सेल का गठन किये जाने की आवश्यकता है। विभाग में इस कार्य के प्रांजल नाम से एक प्रशिक्षण सह शोध केंद्र की स्थापना भी की जा रही है।

ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी शुद्ध पेयजल के संबंध में लोगों में जानकारी का काफी अभाव है। लोगों में ऐसी धारणा है कि चापाकल का पानी देखने में साफ व स्वच्छ शुद्ध होता है। परंतु जल गुणवत्ता की जांच से यह सामने आया है कि दिखने में साफ पानी भी रासायनिक अथवा जैविक रूप से अशुद्ध हो सकता है।

अशुद्ध पेयजल के उपयोग से ग्रामीण क्षेत्रों में जल-जनित बीमारियां होती हैं। ग्रामीणों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए नमूनों की जांच कराये जाने की अत्यंत आवश्यकता है। जल नमूनों की जांच के लिए विभाग ने सभी जिलों में जिलास्तरीय प्रयोगशाला की स्थापना की है जहां कि जल, जलनमूनों की जांच की जाती है।

पेयजल एवं स्वच्छता की गुणवत्ता से जुड़े मानक


क्षेत्र के प्रत्येक को पर्याप्त मात्रा में शुद्ध एवं गुणवत्तायुक्त जल पीने व अन्य घरेलू कार्यों के लिए स्थायी तौर पर जल उपलब्ध कराना होगा।

1. गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों के लिए पेयजल उपलब्ध कराने के विशेष टास्क फोर्स व वित्त की व्यवस्था करना।
2. कृषि संबंधित विभिन्न प्रकार के पौधों व पशुओं पर गुणवत्ता प्रभावित जल के प्रभाव का अध्ययन एवं इसके लिये समुचित नीति-निर्धारण करना आवशयक है।
3. जिन क्षेत्रों में भू-गर्भीय जल की उपलब्धता कम है या नहीं है, वहां वर्षा जल को संग्रहीत कर जलाशयों का निर्माण करना होगा।
4. पंचायत स्तर पर लाभान्वितों को योजना स्रोतों के रख-रखाव करने के लिये समुचित प्रशिक्षण की व्यवस्था हो।
5. गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों में आम जनता को आर्सेनिक, फ्लोराइड, आयरन एवं नाइट्रेट आदि से प्रभावित जल को पीने से होने वाले दुष्परिणाम को अवगत कराना।
6. गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों में सतही जल आधारित पेयजल योजनाओं के निर्माण पर जोर दिया जाय व कम गांवों को लेकर योजना बनायी जाय ताकि सुचारू रूप से चल सके एवं इनका रख-रखाव भी सुनिशिचत हो।
7. भू-गर्भ जल के दोहन को कम करने के लिए अपशिष्ट जल को साफ कर फिर से उपयोग करने के सिद्धांत पर बल देना चाहिए। इस जल का उपयोग गरेलू काम, शौचालय एवं खेती में उपयोग कर सकतेहैं।
8. उच्च प्रवाही नलकूप लगाने के लिए अलग से नियम का निर्धारण एवं रजिस्ट्रेशन की व्वस्था करना होगा।
9. ऐसी व्यवस्था स्थापित की जाए जो कि पेयजल स्रोत को जीवाणु प्रदूषण से रोके।

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Post By: pankajbagwan
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