पेयजल ढाँचे का कायाकल्प

पेयजल
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भारत में विकास का वितरण असमान रहा है। कई जिले जीवन यापन की स्थितियों के लिहाज से प्रगतिशील जिलों की तुलना में काफी पीछे हैं। यहाँ तक कि सम्पन्न राज्यों में भी पिछड़े इलाके हैं जिनमें सरकार की ओर से खास ध्यान दिए जाने की जरूरत है। नए भारत के निर्माण के सरकार के संकल्प के मद्देनजर इन जिलों के 2022 तक तेजी और प्रभावशाली ढंग से कायाकल्प के लिये नीति आयोग ने हाल ही में आकांक्षी जिला कार्यक्रम चलाया है।

आयोग ने छह सामाजिक-आर्थिक मापदंडों के आधार पर 28 राज्यों के 115 जिलों को इस कार्यक्रम के लिये चुना है। जिन मापदंडों के आधार पर इन जिलों का चयन किया गया उनमें स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, वित्तीय समावेशन और कौशल विकास, कृषि और जल संसाधन तथा पेयजल समेत बुनियादी सुविधाएँ शामिल हैं। प्रौद्योगिकी की मदद से इन आकांक्षी जिलों के क्रान्तिकारी कायाकल्प के काम में सरकार सार्वजनिक और निजी भागीदारी (पीपीपी) को बढ़ावा दे रही है। योजना में वाम अतिवादी हिंसा से प्रभावित 35 और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के प्रभाव वाले 15 जिलों को भी शामिल किया गया है।

पेयजल, स्वास्थ्य और सम्पूर्ण तन्दुरुस्ती के बीच सीधा नाता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में दूषित पेयजल, निजी स्वच्छता का अभाव और कचरे का गलत ढंग से निस्तारण कई बीमारियों का प्रमुख कारण रहा है। ऊँची शिशु मृत्यु दर तथा बच्चों में अपक्षय और अल्प विकास के लिये भी असुरक्षित पेयजल को जिम्मेदार माना जा सकता है। इसके अलावा आबादी में ऊँची रुग्णता दर और औसत जीवनकाल में कमी के लिये भी काफी हद तक यही जिम्मेदार है। आजादी मिलने के बाद के शुरूआती वर्षों में लोग पेयजल की अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये काफी हद तक पारम्परिक कुओं, नदियों, हैंडपम्पों इत्यादि पर निर्भर थे। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए हर गाँव वासी को पीने, खाना पकाने और अन्य बुनियादी जरूरतों के लिये सुरक्षित पानी पर्याप्त मात्रा में निरन्तर मुहैया कराने के मकसद से 2009 में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (National Rural Drinking Water Programme - NRDWP) शुरू किया गया।

एनआरडीडब्ल्यूपी में निचले स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) तथा ग्राम जल और स्वच्छता उपसमिति (वीडब्ल्यूएसएससी) के जरिए सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने के लिये सामुदायिक योगदान और प्रबन्धन पर जोर दिया गया। एनआरडीडब्ल्यूपी की बदौलत मौजूदा समय में पानी की उपलब्धता में काफी सुधार आया है। इसकी मुख्य वजह यह है कि बारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान एनआरडीडब्ल्यूपी में बदलाव करते हुए उसका रुझान पाइपों के जरिए पानी की आपूर्ति की तरफ मोड़ा गया।

देश के 115 आकांक्षी जिलों के लिये हाल में घोषित स्वजल योजना पर 700 करोड़ रुपए का खर्च आएगा जिसे एनआरडीडब्ल्यूपी के मौजूदा बजट के तहत फ्लेक्सी कोषों के जरिए पूरा किया जाएगा। इस योजना का मकसद गाँवों को सौर ऊर्जा की मदद से पाइपों के जरिए पानी की निरन्तर आपूर्ति करना है। सरकार ने यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में निरन्तर जल आपूर्ति के लिये चलाई है। सामुदायिक स्वामित्व वाली इस पेयजल योजना में प्रबन्धन स्थानीय ग्रामीणों के हाथों में है।


पेयजल योजना में सैकड़ों ग्रामीण तकनीशियनों को स्वजल इकाइयों के संचालन और रख-रखाव का प्रशिक्षण देने का प्रावधान है। योजना के तहत परियोजना का 90 प्रतिशत खर्च सरकार और बाकी 10 प्रतिशत व्यय लाभार्थी समुदाय उठाएँगे। योजना के तहत सभी गाँवों को पानी की आपूर्ति पाइपों के जरिए की जाएगी। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि पानी दूषित नहीं हो। पानी की पाइपों के रख-रखाव की जिम्मेदारी तकनीशियनों के ऊपर होगी।

स्वजल पायलट परियोजना के विभिन्न चरण

स्वजल पायलट परियोजना के विभिन्न चरणों का विवरण नीचे दिया गया है। निगरानी और मूल्यांकन का काम परियोजना के इन सभी चरणों में शामिल होगा।

(क) तैयारी का चरण

इस चरण में राज्य में स्वजल पायलट परियोजना के उद्देश्यों और विस्तृत विवरण का प्रचार किया जाना शामिल है। मौजूदा जल स्रोतों का डाटाबेस तैयार करने और कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिये संस्थाओं की लामबंदी का काम भी इसी चरण में किया जाएगा।

(ख) योजना चयन

इस चरण में विभिन्न वर्गों में चलाई जाने वाली योजनाओं की पहचान की जाएगी। योजनाओं के बुनियादी आंकड़े एकत्र करने के लिये व्यावहारिकता अध्ययन करना भी इसी चरण में शामिल है।

(ग) परियोजना चक्र का क्रियान्वयन

इस चरण में निर्धारित व्यवस्था और गतिविधियों के अनुरूप समुदाय को शामिल करते हुए योजना का निर्माण और क्रियान्वयन किया जाएगा।

(घ) क्रियान्वयन पश्चात सहायता

इस चरण में ग्राम पंचायतों को योजना के क्रियान्वयन के बाद संचालन, रख-रखाव और संवहनीयता की निगरानी के लिये सहायता दी जाएगा।

सामुदायिक योगदान
(क) जलापूर्ति योजना के पूँजीगत खर्च में हित धारकों का योगदान

इस खर्च में केन्द्र और राज्य सरकार का हिस्सा विभिन्न राज्यों में लागू एनआरडीडब्ल्यूपी के मौजूदा दिशा-निर्देशों के अनुरूप होगा। सम्बन्धित ग्राम पंचायत पूँजी में पाँच प्रतिशत का योगदान करेगी। पूँजी व्यय में अपने हिस्से के रूप में सामान्य वर्ग के उपयोगकर्ता 2000 रुपए तथा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लाभार्थी 1000 रुपए का अशंदान करेंगे।

(ख) योजना के संचालन और रख-रखाव में हित धारकों का योगदान

ग्राम पंचायत संचालन और रख-रखाव के खर्च में वित्त आयोग से मिलने वाले सालाना अवक्रमित कोष का 15 प्रतिशत योगदान करेगी। योजना का शुरुआती दो साल का बीमा होगा जिसके लिये रकम ग्राम पंचायत और परियोजना व्यय से बराबर-बराबर ली जाएगी। आकस्मिक स्थिति में सरकार निर्जीव योजना को बहाल करेगी। वह बीमा काल के खत्म होने के बाद योजना में परिवर्तन और उसके विस्तार की भी जिम्मेदारी उठाएगी।

संस्थागत ढाँचा
(क) राज्य-स्तरीय


पेयजल राज्य जल और स्वच्छता मिशन (State Water and Sanitation Mission)- स्वजल पायलट परियोजना के लिये नीति बनाने वाली सर्वोच्च संस्था राज्य का एसडब्ल्यूएसएम होगा।

पेयजल और स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस)

पेयजल आपूर्ति के लिये जिम्मेदार डीडीडब्ल्यूएस पायलट परियोजना की प्रमुख एजेंसी होगी। वह स्वास्थ्य और शिक्षा इत्यादि के विभागों जैसे हितधारकों के साथ तालमेल के जरिए परियोजना को लागू करेगा।

(ख) जिला-स्तरीय
जिला जल और स्वच्छता मिशन (डीडब्ल्यूएसएम)

यह स्वजल पायलट परियोजना के क्रियान्वयन की समीक्षा करेगा। यह जल आपूर्ति योजना के निर्माण, डिजाइन, क्रियान्वयन, संचालन और रख-रखाव में जिला जल और स्वच्छता समिति (डीडब्ल्यूएससी) का निर्देशन करेगा। योजना से सम्बन्धित सालाना बजट की मंजूरी भी यह मिशन ही देगा। ग्राम पंचायत और वीडब्ल्यूएसएससी को कोष भी इसी के जरिए मिलेंगे। योजना के लिये खरीद और निर्माण में भी यह ग्राम पंचायत और वीडब्ल्यूएसएसी की मदद करेगा। ग्राम पंचायतों के लिये विवादों के निपटारे के तौर-तरीके मुहैया कराने की जिम्मेदारी भी इस मिशन की ही होगी।

जिला जल और स्वच्छता समिति (डीडब्ल्यूएससी)

योजना के एक खास निर्धारित स्तर तक मूल्यांकन के लिये पायलट जिलों में डीडब्ल्यूएससी स्थापित की जा रही है। वे सम्बन्धित राज्य सरकार के फैसले के अनुरूप योजना का मूल्यांकन करेंगी। डीडब्ल्यूएससी ग्राम पंचायतों के चयन तथा निगरानी और मूल्यांकन के लिये जिम्मेदार होगी। समिति को डीडब्ल्यूएसएम की ओर से तकनीकी सहायता मुहैया कराई जाएगी।

जिला स्तरीय क्रियान्वयन एजेंसी

पायलट परियोजना पर अमल इस एजेंसी के जिम्मे है। इस जिला-स्तरीय एजेंसी के अधिकारी पायलट परियोजना के कार्यों के क्रियान्वयन के लिये स्वजल योजना के सिद्धान्तों के अनुसार वीडब्ल्यूएसएससी को तकनीकी दिशा-निर्देश और सहायता मुहैया कराएँगे तथा डीडब्ल्यूएसएम को रिपोर्ट करेंगे।

(ग) ग्राम-स्तरीय
ग्राम पंचायत

ग्राम पंचायत परियोजना में ग्रामीणों की भागीदारी सुनिश्चित करने के मकसद से वीडब्ल्यूएसएससी के गठन के लिये उन्हें एकजुट करेगी और सहयोग देगी। वह वीडब्ल्यूएसएससी को अधिकार सम्पन्न बनाने के अलावा क्षमता निर्माण में उसे मदद देगी। ग्राम पंचायत योजना का संचालन और रख-रखाव तथा खर्च की वापसी सुनिश्चित करेगी। वह कोष के प्रवाह, योजना को मंजूरी, लेखा प्रबन्धन, अॉडिटिंग, निगरानी और मूल्यांकन तथा विवाद निपटारे के लिये भी जिम्मेदार होगी।

ग्राम जलापूर्ति और स्वच्छता उपसमिति (वीडब्ल्यूएसएससी)

हर जलापूर्ति योजना के लिये वीब्ल्यूएसएससी का गठन किया जाएगा और इसमें सभी लाभार्थी शामिल होंगे। योजना में कई गाँवों के शामिल होने की स्थिति में वीडब्ल्यूएसएससी का हर गाँव में गठन किया जाएगा। योजना को बनाने तथा इसके लिये डिजाइन, खरीद, निर्माण, संचालन और रख-रखाव, शुल्क निर्धारण और समीक्षा, सामुदायिक वित्तीय योगदान, लेखा प्रबन्धन तथा अॉडिटिंग की जिम्मेदारी वीडब्ल्यूएसएससी की है।

वीडब्ल्यूएसएससी के कार्य और जिम्मेदारियाँ

1. यह उपसमिति योजना के पूँजीगत तथा संचालन और रख-रखाव व्यय के लिये ग्रामीण समुदाय से नकदी या श्रम के रूप में स्वैच्छिक योगदान स्वीकार करेगी। यह ग्रामीणों के बीच स्वच्छता और साफ-सफाई के बारे में जागरुकता फैलाने के प्रयास करेगी। उप समिति निर्माण कार्यों के तकनीकी विकल्पों के बारे में चर्चा कर बेहतर विकल्प को अपनाएगी ताकि योजना ग्रामीण की उम्मीदों के अनुरूप बने।
2. जलापूर्ति और स्वच्छता योजनाओं के निर्माण, डिजाइन, क्रियान्वयन, संचालन और रख-रखाव की जिम्मेदारी इस उप समिति की होगी।
3. यह उप समिति रख-रखाव के लिये पेयजल योजना के उपयोगकर्ताओं से शुल्क का संग्रह करेगी। वह शुल्क का भुगतान नहीं करने वालों के खिलाफ समुचित कार्रवाई भी करेगी।
4. नियमों के अनुसार निर्माण सामग्री की खरीद और उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने का दायित्व भी वीडब्ल्यूएसएससी का होगा।
5. उप समिति पूँजी निवेश रकम को ग्राम पंचायत से हासिल कर उसे ग्राम जल और स्वच्छता उप समिति के पूँजी व्यय खाते में जमा कराएगी। वह योजना पर उसकी प्लानिंग के अनुरूप खर्च करेगी।
6. पूँजी व्यय निवेश का विस्तार से हिसाब-किताब रखने का काम भी इस उप समिति के जिम्मे होगा।
7. जलापूर्ति और स्वच्छता योजना के संचालन और रख-रखाव के लिये उपयोगकर्ता शुल्क भी वीडब्ल्यूएसएससी ही तय करेगी।
8. यह उप समिति मासिक वित्तीय प्रगति रिपोर्ट क्रियान्वयन एजेंसी को सौंपेगी।

वीडब्ल्यूएसएससी द्वारा खातों का रख-रखाव

1. ग्राम जल और स्वच्छता उप समिति दो अलग-अलग खाते खोलेगी। वह पूँजीगत खर्च तथा संचालन और रख-रखाव के लिये अलग-अलग खाते रखेगी। इन खातों का निरीक्षण उसके अलावा ग्राम पंचायत भी करेगी।

2. इन खातों का संचालन और रख-रखाव उप समिति के सभापति और कोषाध्यक्ष करेंगे। क्रियान्वयन एजेंसी द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर मुहैया कराया गया सामुदायिक लेखाकार खातों के रख-रखाव और अॉडिटिंग में वीडब्ल्यूएसएससी की सहायता करेगा।

3. वीडब्ल्यूएसएससी पेयजल और स्वच्छता योजना के नियोजन, क्रियान्वयन, संचालन और रख-रखाव का काम देखेगी। इन कार्यों को ग्राम पंचायत अपनी खुली बैठक में मंजूरी देगी।

ग्राम पंचायत की भूमिका और जिम्मेदारियाँ

1. ग्राम पंचायत वीडब्ल्यूएसएससी द्वारा तैयार और जल प्रबन्धन समिति के जरिए सौंपी गई योजना को मंजूरी देगी।

2. ग्राम पंचायत क्रियान्वयन एजेंसी से कोष हासिल करेगी। पेयजल योजना के लिये कोष का प्रबन्धन उसके हाथों में होगा। ग्राम निधि में प्राप्त रकम को वह 15 दिनों के भीतर वीडब्ल्यूएसएससी को चेक के जरिए हस्तान्तरित कर देगी। वह विभिन्न परियोजनाओं के लिये अलग-अलग खाते रखेगी।

3. ग्राम पंचायत पेयजल योजना के लिये प्राप्त कोष के खातों का रख-रखाव महालेखाकार द्वारा निर्धारित प्रारूप के मुताबिक करेगी।

4. ग्राम पंचायत ग्राम निधि खाते की अॉडिटिंग सुनिश्चित करेगी। ग्राम जल और स्वच्छता उप समिति के खाते की अॉडिटिंग वीडब्ल्यूएसएससी ही सुनिश्चित करेगी।

5. पेयजल से सम्बन्धित कार्यों के लिये एक खाता ग्राम पंचायत स्तर पर खोला जाएगा। इसका संचालन ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत के सचिव करेंगे। ग्राम पंचायत के सचिव की गैर-मौजूदगी में परियोजना के किसी कार्यकर्ता को सह सचिव मनोनीत किया जा सकता है। इस खाते के परियोजना द्वारा रख-रखाव के लिये एक सामुदायिक लेखाकार मुहैया कराया जाएगा।

6. ग्राम पंचायत पेयजल से सम्बन्धित विवादों के अपने स्तर पर निपटारे के लिये प्रयास करेगी।

निष्कर्ष

ग्रामीण जलापूर्ति और स्वच्छता के क्षेत्र में माँग-संचालित दृष्टिकोणों पर आधारित सुधार काफी सफल रहे हैं। उनकी इस सफलता का स्वजल सिद्धान्तों को देशभर में मुख्यधारा में लाने के लिये केन्द्र सरकार के स्तर पर कार्यक्रम बनाने में बहुत योगदान रहा है। माँग संचालित दृष्टिकोणों पर आधारित पिछले मॉडलों के अनुभव और ग्रामीण समुदायों, गैर-सरकारी संगठनों और सरकार के बीच भागीदारी तथा साझा वित्त प्रबन्ध समेत समुदाय केन्द्रित सिद्धान्त सफल साबित हुए हैं। हर चरण पर पारदर्शिता और हितधारकों द्वारा निगरानी से कोष में गड़बड़ी और उसके दुरुपयोग की आशंकाएँ न्यूनतम हो जाती हैं। सेवाओं की डिलीवरी के विकेन्द्रित मॉडल को बढ़ाने के लिये पंचायती राज संस्थाओं का सशक्तीकरण एक व्यावहारिक और संवहनीय विकल्प है। आपूर्ति-आधारित मॉडल से माँग-संचालित मॉडल में तब्दीली के लिये एक नए दृष्टिकोण की जरूरत पड़ती है। नए मॉडल की स्वीकार्यता के लिये विभिन्न चरणों पर निवेश की दरकार होती है। सामुदायिक प्रबन्धन के मॉडल में अच्छी सहूलियत और समुचित तकनीकों को लागू करने की आवश्यकता होती है। दीर्घकालिक संवहनीयता को सुनिश्चित करने के लिये समुदायों को कुछ बाहरी समर्थन दिया जाना भी अपरिहार्य है।

(डॉ. पी शिवराम राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान, तेलंगाना में ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर केन्द्र और आजीविका केन्द्र के प्रोफेसर और प्रमुख हैं। विष्णु पार्थीपतेज पी श्री कृष्णदेवराय विश्वविद्यालय, अनंतपुरम, आंध्र प्रदेश में रिसर्च स्कॉलर और यूजीसी के जूनियर फेलो हैं।)

ई-मेल: sivaram.nird@gov.in


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