पेड़ों पर चलने वाली हर आरी का हिसाब

वरुण हेमचंद्रन (फोटो फेसबुक पेज से)
वरुण हेमचंद्रन (फोटो फेसबुक पेज से)

वरुण हेमचंद्रन (फोटो फेसबुक पेज से) दो बिल्डरों ने पौधरोपण से सम्बन्धित अखबार में विज्ञापन दिये थे। विज्ञापन से मालूम हुआ कि उन्होंने रोपण के लिये कोई व्यवस्थित योजना नहीं बनाई थी। मसलन, किसी भी प्रकार का पौधा कहीं भी लगाया गया था। जबकि हर पेड़ की अपनी विशेषता होती है। यूकेलिप्टस हर दिन नब्बे लीटर पानी सोख सकता है, इसलिये ऐसे पेड़ ज्यादा पानी वाले इलाके में लगाए जाते हैं। नहीं तो पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। ऐसी चीजों को ही लगातार देखने के बाद ही मैंने पर्यावरण के क्षेत्र में कुछ ठोस काम करने का फैसला किया था।

दुबई में पलने-बढ़ने के बाद कुछ वक्त पहले तक मैं चेन्नई में काम करता था। इससे पहले मैं जब भी भारत आता था, मैं वापस दुबई नहीं जाना चाहता था। यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती मुझे हमेशा आकर्षित करती थी। लेकिन मैंने दक्षिण भारतीय शहरों की इस खूबसूरती पर दाग लगते हुए देखा है। किन्हीं कारणों से दो साल पहले मुझे चेन्नई से बंगलुरु आना पड़ा। यहाँ आकर ही मैंने पेड़ बचाने का काम शुरू किया था।

मेरे काम की असल परीक्षा तब हुई, जब दो साल पहले बंगलुरु की एक व्यस्त सड़क पर एक स्टील फ्लाई ओवर बनाने का प्रोजेक्ट शुरू होना था। इसके लिये करीब दो हजार पेड़ों की कुर्बानी तय की गई थी। लेकिन हैरत की बात थी कि प्रशासन की ओर से आधिकारिक तौर पर बताया गया कि आठ सौ पेड़ काटे जाएँगे। स्थानीय लोगों समेत मुझे यह कवायद नागवार गुजरी। हमने मिलकर आन्दोलन किया। हमारी माँग थी कि अगर कागजों में आठ सौ पेड़ काटने की बात कही गई है तो उससे अधिक एक भी पेड़ पर आरी नहीं चलनी चाहिए। इसी आन्दोलन के वक्त मेरे दिमाग में विचार आया कि भविष्य में इस तरह की व्यवस्थित धोखाधड़ी से बचने के लिये कोई ठोस उपाय करना चाहिए। मेरा संगठन टॉकिंग अर्थ उसी सोच का परिणाम है।

टॉकिंग अर्थ के जरिए मैंने पेड़ों की मैपिंग करके उनका पूरा लेखा-जोखा तैयार करना शुरू किया। यह डाटा पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले एनजीओ तथा अन्य संगठनों के भी काम आने लगा। स्थानीय प्रशासन को भी इसकी जरूरत हुई, ताकि किसी भी विकास कार्य में सहूलियत हो। ‘टॉकिंग अर्थ’ का मकसद सिर्फ पेड़ गिनने तक सीमित नहीं है, बल्कि हम लगातार लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करते रहते हैं। हमारे साथी हर दिन लोगों को यह समझाने की कोशिश करते हैं कि उनके आस-पास के पेड़ कटने से क्या नुकसान होगा। साथ ही पेड़ों से मिलने वाले अप्रत्यक्ष लाभों के बारे में समझाने का पूरा प्रयास होता है।

हमारा काम एक एप के जरिए अंजाम दिया जाता है। हमारे साथी इसी एप का प्रयोग करते हैं। सारा डाटा इस एप में होता है। इसी डाटा की मदद से हमने स्टील फ्लाई ओवर से प्रभावित होने वाले दो हजार पेड़ों को बचाया था, जिसमें एनजीटी की भागीदारी भी शामिल थी। दक्षिण भारत के दोनों बड़े शहर, बंगलुरु और चेन्नई में हमारे साथ काम करने वाले दर्जनों स्वयंसेवक हैं, जबकि दिल्ली में भी हमारी उपस्थिति हो गई है। सैकड़ों लोग हमसे सीधे न जुड़कर परोक्ष रूप से हमारे लिये काम कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त मेरे दुबई और यूरोप के कुछ मित्रों ने भी हमारे कन्धे से अपना कन्धा मिलाया है। मैं चाहता हूँ कि हर भारतीय शहर में इस तरह की मुहिम शुरू हो और लोग अपने अास-पास के पेड़ों की अहमियत समझें।

विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित

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