पेड़ों की जंजीर से बाँधें पाँव प्रदूषण के


वृक्ष हमारे लिये अनमोल खजाना हैं। पशु-पक्षियों के लिये सुरक्षित बसेरा और भोजन का ठिकाना भी। इंसानी संवेदना कंक्रीट के जंगलों में लुप्त होती जा रही है तभी पर्यावरण असन्तुलन और प्रदूषण हावी हो रहा है। इसका सर्वाधिक असर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ा है। प्रदूषण की समस्या विकराल रूप ले चुकी है और इससे निपटने का एकमात्र माध्यम हैं हरे-भरे वृक्ष।

पर्यावरण प्रदूषण के विकराल रूप से निपटने के लिये उगाने होंगे आबादी के बीच छोटे-छोटे जंगल। इनमें लगानी होंगी पेड़ों की वे विलुप्त होती प्रजातियाँ, जिनका जीवन से है गहरा नाता। मलय बाजपेयी की रिपोर्ट…

सुनने में अजीब लगेगा कि इंसान जंगल कैसे उगा सकते हैं? मगर यह किसने कहा है कि कंक्रीट होती इस दुनिया में हम कोई कोशिश भी न करें। दो-चार पेड़ों से शुरुआत कर छोटा सा जंगल बनाया जा सकता है। पृथ्वी को इंसानों के रहने लायक बनाए रखना है तो छोटे-छोटे जंगलों के रूप में वृक्षों का ऐसा गुलदस्ता लगाना होगा जिनमें विलुप्त होती प्रजातियों के पेड़ शामिल हों ताकि आने वाली पीढ़ी इनके बारे में जान सके। सब मिलकर पेड़ लगाएँ और पर्यावरण को सुरक्षित बनाएँ तो ही बात बन सकती है।

काफी है छोटी सी जगह

ऐसा नहीं है कि आबादी के बीच हरे-भरे वातावरण के लिये इतनी जगह भी न मिल सके, जिसमें 2-4 पेड़ लगाकर उनका संरक्षण और पोषण किया जा सके। जरूरत है तो एक साथ मिलकर जज्बे के साथ प्रदूषण से निपटने के लिये छोटे-छोटे जंगल बनाने की पहल करने की। मात्र 10-15 वर्ग फुट क्षेत्र में ही 2 से 4 पेड़ उगाए जा सकते हैं। आबादी के बीच जहाँ थोड़ी सी भी जगह मिले वहाँ छायादार वृक्ष और कृषि वानिकी से सम्बन्धित फलों के वृक्ष लगाकर जंगल की पहल को आगे बढ़ाया जा सकता है।

जंगल उगाकर बनाई पहचान

छोटी सी जगह पर जंगल बनाना कोरी कल्पना नहीं है। छोटी जगहों पर जंगल उगाने का काम किया है बंगलुरु में बसे उत्तराखण्ड के मूलवासी शुभेंदु शर्मा ने। शुभेंदु और उनकी टीम ने 700 वर्ग फुट क्षेत्र में छोटा जंगल उगाया, तो 10 वर्ग फुट क्षेत्र में 3 से 4 पेड़ उगाकर छोटे-छोटे जंगलों की परिकल्पना को साकार किया। वे अब तक 6 देशों में 101 जंगल उगा चुके हैं और अगले जंगल की तैयारी में हैं। प्रकृति प्रेमी शुभेंदु शर्मा के अनुसार, “जंगल प्रकृति का अनमोल करिश्मा हैं। ये हैं तो मौसम सन्तुलित होगा और पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। करीब 4 से 8 साल लगते हैं एक पौधे को वृक्ष बनने में। बीज, नमी, पानी, सूर्य की रोशनी, घास, पौधे, झाड़ियाँ और पेड़ों के निरन्तर बढ़ने का प्राकृतिक चक्र जंगल का रूप ले लेता है।”

तभी तो जानेंगे नाम

आज अधिकतर बच्चे पीपल, बरगद, नीम के अलावा अन्य वृक्षों के बारे में बहुत कम जानते हैं। ऐसे में विलुप्त होते कई बहुउपयोगी वृक्षों से उनको परिचित कराना जरूरी है। इनके नाम बच्चों ने पढ़े-सुने तो हैं लेकिन शायद ही देखे हों। आबादी से दो-चार किलोमीटर दूर बने वन-उपवन में शायद वे पेड़ लगे हों जो विलुप्त प्राय हैं। इनमें कई ऐसे पौधे हैं जिनमें प्रदूषण और विषैली गैसों से लड़ने की जबर्दस्त क्षमता है।

यदि अभी से प्रयास शुरू नहीं किये गये तो विकास की आँधी में विलुप्त होते जनहितैषी वृक्षों को भविष्य में देख पाना शहरी बच्चों को ही नहीं, गाँवों के बच्चों के लिये भी स्वप्न जैसा होगा। छोटे जंगल बनाकर हम उनको स्वस्थ रहने का तोहफा दे सकते हैं। जब थोड़ी-थोड़ी दूर पर छायादार और कृषि वानिकी से जुड़े वृक्ष होंगे तो पक्षी भी आएँगे और उनका कलरव भी सुनाई देगा।

समझें वृक्षों का जीवन चक्र

वृक्ष हमारे लिये अनमोल खजाना हैं। पशु-पक्षियों के लिये सुरक्षित बसेरा और भोजन का ठिकाना भी। इंसानी संवेदना कंक्रीट के जंगलों में लुप्त होती जा रही है तभी पर्यावरण असन्तुलन और प्रदूषण हावी हो रहा है। इसका सर्वाधिक असर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ा है। प्रदूषण की समस्या विकराल रूप ले चुकी है और इससे निपटने का एकमात्र माध्यम हैं हरे-भरे वृक्ष। इनके जीवन चक्र को ठीक से समझना होगा ताकि इंसान और प्रकृति के बीच का सामंजस्य बना रहे।

जरूरी हैं ये वृक्ष

इमली, बेल, जामुन, बेर, गूलर, खैर, शहतूत, शरीफा, बड़हल, खिन्नी जैसे बहु उपयोगी कृषि वानिकी के देशी फलों के वृक्ष आज विलुप्त होने की कगार पर हैं। अशोक, अर्जुन, शीशम, कदम्ब के पेड़ों के अलावा पीपल, बरगद और पाकड़ जैसे बहुतायत में ऑक्सीजन देने वाले पर्यावरण हितैषी पेड़ों की संख्या भी कम होती जा रही है।

परिवर्तन की शुरुआत

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आबादी को शुद्ध हवा मुहैया कराने के लिये देश का पहला ऑक्सीजन तैयार किया गया है। ग्रीन कवर बढ़ाने के लिये शहर के बीचो-बीच 19 एकड़ जमीन पर ऐसे पौधे लगाये गये हैं जिनसे अधिक मात्रा में ऑक्सीजन निकलती है। इसी के साथ करीब 202 हेक्टेयर जमीन पर माइक्रो फॉरेस्ट भी बन रहा है।

नदी को जिलाएँगे पेड़

उत्तराखण्ड में देहरादून की रिस्पना नदी को पुनर्जीवित करने के लिये प्रयास शुरू किये जा चुके हैं। इसके तहत नदी के उद्गम लंढौर के शिखर फॉल से संगम मोथरोवाला के किनारों पर एक ही दिन में 2.5 लाख पौधों का वृक्षारोपण किया जाएगा।

ऐसे करनी होगी प्लानिंग

1. हर मकान के दोनों छोरों पर लगाया जाए एक वृक्ष।
2. पार्कों में विलुप्त होती प्रजातियों के पौधे लगायें। साथ ही उसके नाम और खासियत के बारे में लिखें।
3. कूड़ाघरों के किनारों पर दूषित गैसें सोखने वाले पेड़ लगाये जायें।
4. घनी आबादी में पेड़ों के लिये अनिवार्य तौर पर जगह निर्धारित हो।
5. पौधा लगाने से पूर्व ही ट्रीगार्ड की व्यवस्था करें। पौधे के थोड़ा बड़ा होते ही उसके चारों ओर पक्का चबूतरा बना दें।

मिलेगा तोहफा पर्यावरण का

शहर में जो जगह सरकार की ओर से हरियाली के लिये मुहैया कराई गई है वहाँ ऐसे पौधे लगाए जाने चाहिए जो हर-भरे रहने के साथ ही वातावरण में बढ़ते प्रदूषण को कम करें। सामूहिक जिम्मेदारी के पौधों की सिंचाई की पर्याप्त सुविधा, उनकी सुरक्षा और देखभाल करनी होगी, तभी पौधे बढ़ेगें। इनसे छाया और फल तो मिलेंगे ही साथ ही पर्यावरण का तोहफा भी मिलेगा। -डॉ.वी.के.त्रिपाठी एसोसिएट प्रोफेसर, चन्द्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय, कानपुर

1. 24 घण्टे अॉक्सीजन छोड़ते हैं पीपल और तुलसी।
2. 100 प्रतिशत कार्बन डाई अॉक्साइड सोखता है पीपल। बरगद और नीम में यह आँकड़ा क्रमशः 80 प्रतिशत और 75 प्रतिशत का है।
3. 22 करोड़ से अधिक पौधे लग चुके हैं वृक्षारोपण अभियान के तहत बीते 2 साल में। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में हुआ यह अभियान बना चुका है विश्व रिकॉर्ड।

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