योजना बनाते हुए कभी समाज से नहीं पूछा जाता कि उन्हें क्या चाहिए? क्या उनके पास उनकी अपनी समस्या का कोई सरल और स्थायी समाधान है। पानी और हवा पर इस देश का हर नागरिक का अधिकार था। पहले पानी पीने लायक नहीं छोड़ा गया। अब पानी को खरीदकर पीना महानगरीय समाज की आदत में शामिल हो गया है। अब आने वाले समय में यह हवा के साथ ना हो। हमें साँस लेने के लिये भी कीमत ना चुकानी पड़े, इसके लिये यही समय है हम सबके सावधान हो जाने का। देश इक्कीसवीं सदी में विकास की नई-नई इबारत लिख रहा है। पाँच राज्यों के चुनाव में विकास सबसे बड़ा मुद्दा बना है। यह सुनते हुए क्या हमें शर्मिन्दा नहीं होना चाहिए कि अब भी देश में पचास हजार से अधिक ऐसे क्षेत्रों को केन्द्र की सरकार पहचानती है, जहाँ का पानी पीने योग्य नहीं है। सम्भव है कि उन्हें पीने योग्य बनाने के लिये हम बड़ी-बड़ी योजना लेकर आएँ लेकिन उसका हासिल क्या होगा?
अगले पाँच साल की योजना में वह एक लाख की संख्या को नहीं छुएगा इसकी जिम्मेवारी कौन लेगा? यमुना के सन्दर्भ में हमने देखा ही है कि यमुना की सफाई के नाम पर सरकारी पैसों की बाढ़ में रकम यमुना सफाई के नाम पर बढ़ रहा है और रकम बढ़ने के बावजूद गन्दगी कम होने का नाम नहीं ले रहा।
पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने 07 फरवरी को राज्यसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि 66663 इलाकों में पेयजल आर्सेनिक और फ्लोराइड से प्रभावित है और पीने लायक नहीं है। उन्होंने सदन में कहा कि सरकार जनता को साफ एवं स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की दिशा में काम कर रही है और इस सम्बन्ध में विभिन्न योजनाएँ लाई गई हैं।
योजनाओं का जिक्र करते हुए श्री तोमर ने 2022 तक पाइप के जरिए अस्सी फीसदी लोगों तक पानी पहुँचाया जाएगा। साथ ही श्री तोमर यह बताना नहीं भूले कि पेयजल राज्य का विषय है, जिसे केन्द्र अपनी अलग-अलग योजनाओं के माध्यम से मदद देता है। इस बात को मानने से मंत्रीजी ने इनकार कर दिया कि कई जगहों पर बिना ट्रीटमेंट के लोगों को पीने के लिये पानी उपलब्ध कराया जा रहा है। श्री तोमर ने राष्ट्रीय पेयजल योजना का जिक्र करते हुए कहा कि इसके और इस तरह के अन्य योजनाओं के माध्यम से केन्द्र की सरकार राज्य सरकारों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने में तकनीकी एवं वित्तीय मदद उपलब्ध कराती है।
खनन क्षेत्र में स्वच्छ पीने के पानी के लिये सरकार ने एक अलग योजना बनाई है। मंत्रीजी ने जानकारी दी कि नीति आयोग ने पेयजल के सुधार के लिये प्रत्येक राज्य में 800 करोड़ रुपए आवंटन की योजना बनाई है। श्री तोमर ने बताया कि राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य जो आर्सेनिक से सबसे अधिक प्रभावित हैं, उन्हें 100-100 करोड़ रुपए की अतिरिक्त सहायता उपलब्ध कराई गई है।
पश्चिम बंगाल और राजस्थान के अलावा अन्य फ्लोराइड और आर्सेनिक प्रभावित राज्यों के लिये 25000 करोड़ की विशेष योजना पर सरकार काम कर रही है। जिसमें 760 करोड़ रुपए राज्योें को दिये जा चुके हैं और 1250 करोड़ रुपए इस साल राज्यों में जाना है। देश भर में 9113 ड्रिंकिंग वाटर स्टेशन लगाए गए हैं, लोगों को साफ और स्वच्छ पानी देने के लिये। एक लाख स्कूलों को प्रतिदिन 1000 लीटर पानी उपलब्ध कराने पर काम चल रहा है। जिस पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च किया जाएगा।
यह सारी योजनाएँ सरकार समाज के लिये बनाती है लेकिन इस तरह की योजनाओं में समाज की भागीदारी नहीं होती। सरकार और सरकार से जुड़ने वाली एजेंसियाँ सबकों बड़ा बजट चाहिए। बहुत सारा खर्च चाहिए। लेकिन यह सारी योजना बनाते हुए कभी समाज से नहीं पूछा जाता कि उन्हें क्या चाहिए? क्या उनके पास उनकी अपनी समस्या का कोई सरल और स्थायी समाधान है।
पानी और हवा पर इस देश का हर नागरिक का अधिकार था। पहले पानी पीने लायक नहीं छोड़ा गया। अब पानी को खरीदकर पीना महानगरीय समाज की आदत में शामिल हो गया है। अब आने वाले समय में यह हवा के साथ ना हो। हमें साँस लेने के लिये भी कीमत ना चुकानी पड़े, इसके लिये यही समय है हम सबके सावधान हो जाने का।
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Post By: Editorial Team