पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 (The protection of plant varieties and farmers right act, 2001)

(2001 का अधिनियम संख्यांक 53)


{30 अक्तूबर, 2001}


पौधा किस्म, कृषकों और पौधा संवर्धकों के अधिकारों के संरक्षण के लिये प्रभावी प्रणाली स्थापित करने और पौधों कीनई किस्मों के विकास को प्रोत्साहितकरने हेतु उपबन्ध करने के लिये अधिनियम

यह आवश्यक समझा जाता है कि कृषकों के, नई पौधा किस्मों के विकास के लिये पौधा आनुवंशिक साधनों के संरक्षण, सुधार और उनको उपलब्ध कराने में किसी भी समय किये गए उनके योगदान के सम्बन्ध में अधिकारों को मान्यता दी जाये और उनका संरक्षण किया जाये;

और देश में त्वरित कृषि विकास के लिये यह आवश्यक है कि नई पौधा किस्मों के विकास के लिये सार्वजनिक और निजी दोनों ही सेक्टरों में अनुसन्धान और विकास के लिये विनिधान को प्रोत्साहित करने हेतु पौधा संवर्धकों के अधिकारों का संरक्षण किया जाये;

और ऐसे संरक्षण से देश में बीज उद्योग की वृद्धि सुकर होगी जिससे कृषकों को उच्च क्वालिटी के बीज और पौधा रोपण सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित होगी;

और पूर्वोक्त उद्देश्यों को प्रभावी बनाने के लिये कृषकों और पौधा संवर्धकों के अधिकारों के संरक्षण के लिये उपाय करना आवश्यक है;

और भारत, जिसने बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के व्यापार सम्बन्धी पहलुओं से सम्बन्धित करार का अनुसमर्थन कर दिया है, अन्य बातों के साथ-साथ, पौधा किस्मों के संरक्षण से सम्बन्धित उक्त करार के भाग 2 के अनुच्छेद 27 के उपपैरा (ख) को प्रभावी बनाने के लिये उपबन्ध करता है;

भारत गणराज्य के बावनवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनयिमत हो:-

अध्याय 1


प्रारम्भिक


1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ


(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 है।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे और इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबन्धों के लिये भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी और ऐसे किसी उपबन्ध में इस अधिनियम के प्रारम्भ के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस उपबन्ध के प्रवृत्त होने के प्रति निर्देश है।

2. परिभाषाएँ


इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) “प्राधिकरण” से धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण अभिप्रेत है;
(ख) किसी किस्म के सम्बन्ध में, “फायदे में हिस्सा बटाना” से अभिप्रेत है फायदे का ऐसा अनुपात जो ऐसी किस्म के संवर्धक को प्रोद्भूत हुआ है जिसके लिये कोई दावेदार धारा 26 के अधीन प्राधिकरण द्वारा अवधारित रूप में हकदार होगा;

(ग) “प्रजनक” से ऐसा कोई व्यक्ति या व्यक्ति-समूह या कोई कृषक या कृषक-समूह या ऐसी कोई संस्था अभिप्रेत है जिसने किसी किस्म का प्रजनन, क्रम-विकास या विकास किया है;
(घ) “अध्यक्ष” से अधिकरण का अध्यक्ष अभिप्रेत है;
(ङ) “अध्यक्ष” से धारा 3 की उपधारा (5) के खण्ड (क) के अधीन नियुक्त प्राधिकरण का अध्यक्ष अभिप्रेत है;
(च) “अभिसमय देश” से ऐसा देश अभिप्रेत है जिसने पौधे की किस्मों के संरक्षण के लिये किसी अन्तरराष्ट्रीय अभिसमय को अंगीकार कर लिया है जिसे भारत ने भी अंगीकार किया है या ऐसा देश जिसमें पौधे की किस्मों के संरक्षण सम्बन्धी कोई विधि है जिसके आधार पर भारत ने दोनों देशों के नागरिकों को पौधा प्रजनक अधिकार प्रदान करने के लिये करार किया है;
(छ) किसी किस्म य उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री के सम्बन्ध में “अभिधान” से, किसी भाषा में लिखित अक्षरों या अक्षरों और अंकों के समुच्चय द्वारा अभिव्यक्त, यथास्थिति, उसकी किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री का अभिधान अभिप्रेत है;
(ज) “आवश्यक लक्षण” से किसी पौधा-किस्म की ऐसी वंशागत विशेषताएँ अभिप्रेत हैं जो ऐसे अन्य वंशागत अवधारकों के किसी एक या अधिक जीनों की अभिव्यंजना द्वारा अवधारित की जाती हैं, जो पौधे की किस्म के मुख्य लक्षणों, क्रिया या उपयोगिता में सहायक होते हैं;
(झ) किसी किस्म (प्रारम्भिक किस्म) के सम्बन्ध में, “अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म” ऐसी प्रारम्भिक किस्म से अनिवार्यतः व्युत्पन्न कही जाएगी जब वह-

(i) प्रधानतः ऐसी प्रारम्भिक किस्म से, या किसी ऐसी किस्म से व्युत्पन्न की जाती है जो प्रधानतः स्वयं, ऐसी प्रारम्भिक किस्म से, उन आवश्यक लक्षणों की अभिव्यंजना को बनाए रखते हुए, जो किसी ऐसी प्रारम्भिक किस्म की समजीनी या समजीनियों के संयोजन का परिणाम है, व्युत्पन्न की जाती है;

(ii) ऐसी प्रारम्भिक किस्म से स्पष्ट रूप से विभेद्य है; और
(iii) उन आवश्यक लक्षणों की अभिव्यंजना में ऐसी प्रारम्भिक किस्म के अनुरूप है (उन भिन्नताओं के सिवाय जो व्युत्पन्न के कार्य के परिणाम हैं) जो ऐसी प्रारम्भिक किस्म की समजीनी या समजीनियों के संयोजन का परिणाम है;

(ञ) “विद्यमान किस्म” से भारत में उपलब्ध ऐसी किस्म अभिप्रेत है, जो,-

(i) बीज अधिनियम, 1966 (1966 का 54) की धारा 5 के अधीन अधिसूचित है; या
(ii) कृषक किस्म है; या
(iii) ऐसी किस्म है जिसके बारे में सामान्य ज्ञान है; या
(iv) कोई अन्य किस्म है जो सार्वजिनक क्षेत्र में है;

(ट) “कृषक” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो,-

(i) स्वयं भूमि की जुताई करके फसलों की खेती करता है; या
(ii) किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से भूमि की जुताई का सीधे पर्यवेक्षण करते हुए फसलों की खेती करता है; या
(iii) जंगली जातियों या परम्परागत किस्मों का पृथक्त: या किसी अन्य व्यक्ति के साथ संयुक्ततः संरक्षण और परिरक्षण करता है या ऐसी जंगली जातियों या परम्परागत किस्मों के मूल्य में, उनके लाभकारी गुणधर्मों के चयन और उनकी पहचान द्वारा वृद्धि करता है;
(ठ) “कृषक किस्म” से ऐसी किस्म अभिप्रेत है जो,-

(i) कृषकों द्वारा अपने खेतों में परम्परागत रूप से जोती जाती है और विकिसत की जाती है; या
(ii) जंगली जाति की है या किसी किस्म की भूमि प्रजाति है जिसके बारे में कृषक सामान्य ज्ञान रखता है;
(ड) “जीन निधि” से धारा 45 की उपधारा (1) के अधीन गठित राष्ट्रीय जीन निधि अभिप्रेत है;
(ढ) “न्यायिक सदस्य” से धारा 55 की उपधारा (1) के अधीन इस रूप में नियुक्त अधिकरण का कोई सदस्य अभिप्रेत है;
(ण) “सदस्य” से अधिकरण का न्यायिक सदस्य या तकनीकी सदस्य अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत अध्यक्ष भी है;
(त) “सदस्य” से धारा 3 की उपधारा (5) के खण्ड (ख) के अधीन नियुक्त प्राधिकरण का सदस्य अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत सदस्य सचिव भी है;
(थ) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(द) “प्रवर्धन सामग्री से कोई पौधा या उसका घटक या उसका कोई भाग अभिप्रेत है जिसके अन्तर्गत ऐसा आशयित बीज या ऐसा बीज है जो पौधे के रूप में पुनरुत्पादन के लिये समार्थ या उपयुक्त है;
(ध) “रजिस्टर” से धारा 13 में निर्दिष्ट राष्ट्रीय पौधा किस्म रजिस्टर अभिप्रेत है;
(न) “रजिस्ट्रार” से धारा 12 की उपधारा (4) के अधीन नियुक्त पौधा किस्म रजिस्ट्रार अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत महारजिस्ट्रार है;
(प) “महारजिस्ट्रार” से 12 की उपधारा (3) के अधीन नियुक्त पौधा किस्म महारजिस्ट्रार अभिप्रेत है;
(फ) “रजिस्ट्री’ से धारा 12 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट पौधा किस्म रजिस्ट्री अभिप्रेत है;
(ब) “विनियम” से इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरण द्वारा बनाए गए विनियम अभिप्रेत हैं;
(भ) “बीज” से जीवित भ्रूण या प्रवर्ध्य की ऐसी कोई किस्म अभिप्रेत है जो पुनरुत्पादन में समर्थ हो और ऐसे पौधे को जन्म दे सके जो वस्तुतः उसी प्रकार का हो;
(म) “अधिकरण” से धारा 54 के अधीन स्थापित पौधा किस्म संरक्षण अपील अधिकरण अभिप्रेत है;
(य) “तकनीकी सदस्य” से अधिकरण का ऐसा सदस्य अभिप्रेत है जो न्यायिक सदस्य नहीं है;
(यक) “किस्म” से निम्नतम ज्ञात रैंक के एकल वनस्पतिक वर्ग के भीतर आने वाले सूक्ष्म जीवाणु के सिवाय पौधे का समूह अभिप्रेत है, जो-

(i) उन लक्षणों की अभिव्यंजना द्वारा परिभाषित किया जा सकता है जो उस पौधा समूह को दी गई समजीनी का परिणाम है;
(ii) उक्त मूल लक्षणों के कम-से-कम एक लक्षण की अभिव्यंजना द्वारा किसी अन्य पौधा समूह से विभक्त किया जा सकता है; और
(iii) प्रवर्धन करने के लिये, जो ऐसे प्रवर्धन के पश्चात अपरिवर्तित रहता है, उसकी उपयुक्तता के सम्बन्ध में एक इकाई के रूप में माना जा सकता है, और इसके अन्तर्गत ऐसी किस्म विद्यमान किस्म, ट्रांसजीनी किस्म, कृषक किस्म, और अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म की प्रवर्धन सामग्री भी है।

अध्याय 2


पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण तथा रजिस्ट्रीपौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण

3. प्राधिकरण की स्थापना


(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के नाम से ज्ञात एक प्राधिकरण की स्थापना करेगी।

(2) प्राधिकरण पूर्वोक्त नाम का एक निगमित निकाय होगा जिसका शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा होगी और जिसे जंगम और स्थावर दोनों ही प्रकार की सम्पत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने और संविदा करने की शक्ति होगी तथा वह उक्त नाम से वाद लाएगा और उस पर वाद लाया जाएगा।

(3) प्राधिकरण का प्रधान कार्यालय ऐसे स्थान पर होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे और प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार की पूर्व अनुमति से भारत में अन्य स्थानों पर शाखा कार्यालय स्थापित कर सकेगा।

(4) प्राधिकरण अध्यक्ष और पन्द्रह सदस्यों से मिलकर बनेगा।

(5) (क) अध्यक्ष, केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा जो, पौधा किस्म अनुसन्धान या कृषि विकास क्षेत्र में विशेष रूप से उस सरकार के समाधानप्रद रूप में उत्कृष्ट रूप से योग्य और विख्यात व्यक्ति तथा दीर्घ व्यावहारिक अनुभव वाला होगा।
(ख) प्राधिकरण के सदस्य, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किये जाएँगे, निम्न प्रकार होंगे, अर्थात-

(i) कृषि आयुक्त, भारत सरकार, कृषि और सहकारिता विभाग, नई दिल्ली, पदेन;
(ii) उपमहानिदेशक फसल विज्ञान भारसाधक, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, नई दिल्ली, पदेन;
(iii) संयुक्त सचिव, बीज भारसाधक, भारत सरकार कृषि और सहकारिता विभाग, नई दिल्ली, पदेन;
(iv) उद्यान कृषि आयुक्त, भारत सरकार, कृषि और सहकारिता विभाग, नई दिल्ली, पदेन;
(v) निदेशक, राष्ट्रीय पौधा आनुवंशिक सम्पदा ब्यूरो, नई दिल्ली, पदेन;
(vi) भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग का प्रतिनिधित्व करने के लिये एक सदस्य, जो भारत सरकार के संयुक्त सचिव की पंक्ति से नीचे का न हो, पदेन;
(vii) भारत सरकार के पर्यावरण और वन से सम्बन्धित मामलों के मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने के लिये एक सदस्य, जो भारत सरकार के संयुक्त सचिव की पंक्ति से नीचे का न हो, पदेन;
(viii) भारत सरकार के विधि, न्याय और कम्पनी कार्य मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने के लिये एक सदस्य, जो संयुक्त सचिव की पंक्ति से नीचे का न हो, पदेन;
(ix) किसी राष्ट्रीय या राज्य स्तर के कृषक संगठन से एक प्रतिनिधि जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाएगा;
(x) किसी जनजातीय संगठन से एक प्रतिनिधि जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाएगा;
(xi) बीज उद्योग से एक प्रतिनिधि जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाएगा;
(xii) किसी कृषि विश्वविद्यालय से एक प्रतिनिधि जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाएगा;
(xiii) कृषि क्रियाकलापों से सहयोजित किसी राष्ट्रीय या राज्य स्तर के महिला संगठनों से एक प्रतिनिधि जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाएगा;
(xiv) चक्रानुक्रम के आधार पर राज्य सरकार के दो प्रतिनिधि जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किये जाएँगे;

(ग) महारजिस्ट्रार, प्राधिकरण का पदेन सदस्य-सचिव होगा।

(6) अध्यक्ष की पदावधि और पद को भरने की रीति वह होगी जो विहित की जाये।

(7) अध्यक्ष, पाँच सदस्यों की एक स्थायी समिति नियुक्त करेगा जिनमें से एक सदस्य, ऐसा होगा जो कृषकों के अधिकारों सहित सभी मुद्दों पर प्राधिकरण को सलाह देने के लिये किसी कृषक संगठन का प्रतिनिधि होगा।

(8) अध्यक्ष ऐसे वेतन और भत्तों का हकदार होगा और छुट्टी, पेंशन, भविष्य निधि तथा अन्य विषयों से सम्बन्धित सेवा की ऐसी शर्तों के अधीन होगा जो विहित की जाएँ। प्राधिकरण के अधिवेशन में उपस्थित होने के लिये किन्हीं गैर-सरकारी सदस्यों के भत्ते वे होंगे जो विहित किये जाएँ।

(9) अध्यक्ष केन्द्रीय सरकार को लिखित रूप में त्यागपत्र की सूचना देकर अपना पद त्याग सकेगा और ऐसा त्यागपत्र स्वीकार किये जाने पर यह समझा जाएगा कि उसने पद रिक्त कर दिया है।

(10) अध्यक्ष द्वारा त्यागपत्र दिये जाने या किसी कारण से अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर, केन्द्रीय सरकार, सदस्यों में से किसी एक सदस्य को अध्यक्ष के रूप में, उपधारा (5) के खण्ड (क) के अनुसार नियमित अध्यक्ष की नियुक्ति होने तक, कार्यवहन करने के लिये नियुक्त कर सकेगी।

4. प्राधिकरण के अधिवेशन


(1) प्राधिकरण ऐसे समय और स्थान पर अधिवेशन करेगा और अपने अधिवेशनों में {जिसके अन्तर्गत उसके अधिवेशनों में गणपूर्ति और धारा 3 की उपधारा (7) के अधीन नियुक्त उसकी स्थायी समिति के कारबार का संव्यवहार भी है} कारबार के संव्यवहार के सम्बन्ध में प्रक्रिया के ऐसे नियमों का अनुपालन करेगा, जो विहित किये जाएँ।

(2) प्राधिकरण का अध्यक्ष, प्राधिकरण के अधिवेशनों की अध्यक्षता करेगा।

(3) यदि किसी कारण अध्यक्ष प्राधिकरण के किसी अधिवेशन में उपस्थित होने में असमर्थ हो तो प्राधिकरण का ऐसा कोई सदस्य, जो अधिवेशन में उपस्थित सदस्यों द्वारा चुना गया हो, अधिवेशन की अध्यक्षता करेगा।

(4) ऐसी सभी प्रश्नों का, जो अधिकरण के किसी अधिवेशन के समक्ष आते हैं, विनिश्चय अधिकरण के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा किया जाएगा और मत बराबर होने की दशा में प्राधिकरण के अध्यक्ष का या उसकी अनुपस्थिति में, अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति का दूसरा या निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा।

(5) प्रत्येक सदस्य, जो किसी भी रूप में चाहे प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से या वैयक्तिक रूप से किसी मामले में, जो अधिवेशन में विनिश्चित किया जाना है, सम्बद्ध है या हितबद्ध है, अपने सरोकर या हित की प्रकृति को प्रकट करेगा और ऐसे प्रकटीकरण के पश्चात सदस्य, जो सम्बद्ध या हितबद्ध है, उस अधिवेशन में हाजिर नहीं होगा।

(6) प्राधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस कारण से ही अविधिमान्य नहीं होगी कि-

(क) प्राधिकरण में कोई रिक्ति या उसके गठन में कोई त्रुटि है; या
(ख) प्राधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य के रूप में कार्यरत किसी व्यक्ति की नियुक्ति में कोई त्रुटि है; या
(ग) प्राधिकरण की प्रक्रिया में ऐसी कोई अनियमितता है, जो मामले के गुणागुण को प्रभावित नहीं करती है।

5. प्राधिकरण की समितियाँ


(1) प्राधिकरण, ऐसी समितियाँ नियुक्त कर सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन उसके कर्तव्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन और उसके कृत्यों के अनुपालन के लिये आवश्यक हों।

(2) उपधारा (1) के अधीन समिति के सदस्यों के रूप में नियुक्त व्यक्ति, समिति के अधिवेशनों में हाजिर होने के लिये ऐसे भत्ते और फीस प्राप्त करने के हकदार होंगे, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियत किये जाएँ।

6. प्राधिकरण के अधिकारी और कर्मचारी


ऐसे नियंत्रण और निर्बन्धन के अधीन रहते हुए जो विहित किये जाएँ प्राधिकरण ऐसे अन्य अधिकारी और अन्य कर्मचारी नियुक्त कर सकेगा, जो उसके कृत्यों के दक्षतापूर्ण अनुपालन के लिये आवश्यक हों और प्राधिकरण के ऐसे अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति की रीति, वेतन और भत्ते तथा सेवा की अन्य शर्तें ऐसी होंगी, जो विहित की जाएँ।

7. अध्यक्ष का मुख्य कार्यपालन होना


अध्यक्ष प्राधिकरण का मुख्य कार्यपालक होगा और वह ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो विहित किये जाएँ।

8. प्राधिकरण के साधारण कृत्य


(1) प्राधिकरण का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसे अध्युपायों द्वारा, जिन्हें वह ठीक समझे, पौधों की नई किस्मों के प्रोत्साहन और विकास का सम्प्रवर्तन करे और पौधों की उन किस्मों के सम्बन्ध में कृषकों और प्रजनकों के अधिकारों का संरक्षण करे।

(2) विशिष्टत: और पूर्वगामी उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उपधारा (1) में निर्दिष्ट अध्युपाय निम्नलिखित के लिये उपबन्ध कर सकेंगे-

(क) ऐसे निबन्धनों और शर्तों के अधीन रहते हुए और ऐसी रीति में जो विहित की जाये, पौधों की विद्यमान किस्मों का रजिस्ट्रीकरण;
(ख) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किस्मों का विकास, स्वरूप और प्रलेखीकरण;
(ग) कृषकों की किस्मों का प्रलेखीकरण, अनुक्रमणिका बनाना और सूचीकरण करना;
(घ) पौधों की सभी किस्मों के लिये अनिवार्य सूचीकरण सुविधाएँ;
(ङ) यह सुनिश्चित करना कि कृषकों को इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किस्मों के बीज उपलब्ध हों और यदि ऐसी किस्मों के संवर्धक या इस अधिनियम के अधीन ऐसी किस्म का उत्पादन करने का हकदार कोई अन्य व्यक्ति, बीजों के उत्पादन और विक्रय की व्यवस्था ऐसी रीति में, जो विहित की जाये, नहीं करता है तो ऐसी किस्मों के अनिवार्य अनुज्ञापन के लिये उपबन्ध करना;
(च) संकलन और प्रकाशन के लिये पौधा किस्मों के सम्बन्ध में, जिनके अन्तर्गत भारत में या किसी अन्य देश में किसी पौधा किस्म के क्रमिक विकास या परिवर्धन में किसी समय किसी व्यक्ति का योगदान भी है, आँकड़े एकत्रित करना;
(छ) रजिस्टर के अनुरक्षण को सुनिश्चित करना।

9. प्राधिकरण के आदेशों आदि का प्राधिकृत किया जाना


प्राधिकरण के सभी आदेश और विनिश्चय, अध्यक्ष या इस निमित्तप्राधिकरण द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य सदस्य के हस्ताक्षर द्वारा प्राधिकृत किये जाएँगे।

10. प्रत्यायोजन


प्राधिकरण, लिखित रूप से साधारण या विशेष आदेश द्वारा प्राधिकरण के अध्यक्ष, किसी सदस्य या अधिकारी को ऐसी शर्तों या परिसीमाओं के अधीन, यदि कोई हों, जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएँ, इस अधिनियम के अधीन अपनी ऐसी शक्तियों और कृत्यों को (धारा 94 के अधीन विनियम बनाने की शक्ति के सिवाय) प्रत्योजित कर सकेगा जो वह आवश्यक समझे।

11. प्राधिकरण की शक्ति


इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरण या रजिस्ट्रार के समक्ष सभी कार्यवाहियों में,-

(क) यथास्थिति, प्राधिकरण या रजिस्ट्रार को साक्ष्य प्राप्त करने, शपथ दिलाने, साक्षियों को उपस्थित कराने,दस्तावेजों की तलाशी कराने और उन्हें प्रस्तुत कराने तथा साक्षियों की परीक्षा के लिये कमीशन निकालने के प्रयोजनों के लिये किसी सिविल न्यायालय की सभी शक्तियाँ होंगी;
(ख) प्राधिकरण या रजिस्ट्रार, इस अधिनियम के अधीन इस निमित्त बनाए गए किसी नियम के अधीन रहते हुए लागत के बारे में ऐसे आदेश कर सकेगा जो वह युक्तियुक्त समझे और कोई ऐसा आदेश किसी सिविल न्यायालय की डिक्री केरूप में निष्पादनीय होगा।

रजिस्ट्री


12. रजिस्ट्री और उसके कार्यालय


(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये पौधा किस्म रजिस्ट्री के नाम से एक रजिस्ट्री स्थापित करेगी।

(2) पौधा किस्म रजिस्ट्री का प्रधान कार्यालय प्राधिकरण के प्रधान कार्यालय में अवस्थित होगा और पौधा किस्मों में रजिस्ट्रीकरण को सुकर बनाने के प्रयोजन के लिये, ऐसे स्थानों पर जिन्हें प्राधिकरण ठीक समझे, रजिस्ट्री के शाखा कार्यालय स्थापित किये जा सकेंगे।

(3) प्राधिकरण पौधा किस्मों का एक महारजिस्ट्रार नियुक्त करेगा जो ऐसे वेतन और भत्तों का हकदार होगा और छुट्टी, पेंशन, भविष्य निधि और ऐसे ही अन्य मामलों के सम्बन्ध में सेवा की ऐसी शर्तों के अधीन होगा, जो विहित की जाएँ।

(4) प्राधिकरण इस अधिनियम के अधीन महारजिस्ट्रार के अधीक्षण और निदेशन के अधीन पौधा किस्मों के रजिस्ट्रीकरण के लिये उतने रजिस्ट्रार नियुक्त कर सकेगा जो वह आवश्यक समझे और उनके कर्तव्यों और अधिकारिता के सम्बन्ध में विनियम बना सकेगा।

(5) रजिस्ट्रारों की पदावधि और सेवा की शर्तें ऐसी होंगी जो विनियमों द्वारा उपबन्धित की जाएँ।

(6) प्राधिकरण, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उन राज्य क्षेत्रीय सीमाओं को परिभाषित कर सकेगा जिनके भीतर रजिस्ट्री का कोई शाखा कार्यालय अपने कृत्यों का प्रयोग कर सकेगा।

(7) पौधा किस्म रजिस्ट्री की एक मुद्रा होगी।

13. राष्ट्रीय पौधा किस्म रजिस्टर


(1) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये, राष्ट्रीय पौधा किस्म रजिस्टर के नाम से ज्ञात एक रजिस्टर रजिस्ट्री के प्रधान कार्यालय में रखा जाएगा जिसमें सभी रजिस्ट्रीकृत पौधा किस्मों के नाम उनके अपने-अपने प्रजनकों के नामों और पतों सहित, रजिस्ट्रीकृत किस्मों के सम्बन्ध में ऐसे संवर्धकों के अधिकार, प्रत्येक रजिस्ट्रीकरण किस्म के अभिधान की विशिष्टियाँ, उसके बीज या उसके प्रमुख लक्षण के विनिर्देश के साथ अन्य प्रवर्धन सामग्री और अन्य विषय जो विहित किये जाएँ, प्रविष्ट किये जाएँगे।

(2) केन्द्रीय सरकार के अधीक्षण और निदेशन के अधीन रजिस्टर, प्राधिकरण के नियंत्रण और प्रबन्ध के अधीन रखा जाएगा।

(3) रजिस्ट्री के प्रत्येक शाखा कार्यालय में रजिस्टर की एक प्रति और ऐसे अन्य दस्तावेज, जिनका केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निदेश दे, रखे जाएँगे।

अध्याय 3


पौधा किस्मों और अनिवार्य रूप से व्युत्पन्न किस्मों का रजिस्ट्रीकरण


रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन


14. रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन


धारा 16 में विनिर्दिष्ट कोई व्यक्ति किसी ऐसी किस्म के-

(क) जो ऐसे जीन और जातियों की हैं जो धारा 29 की उपधारा (2) के अधीन विनिर्दिष्ट हैं; या
(ख) जो कोई विद्यमान किस्म है; या
(ग) जो कृषक किस्म है,रजिस्ट्रीकरण के लिये रजिस्ट्रार को आवेदन कर सकेगा।

15. रजिस्ट्रीकरण योग्य किस्म


(1) इस अधिनियम के अधीन नई किस्म तभी रजिस्टर की जाएगी यदि वह विलक्षणता, सुभिन्नता, एकरूपता और स्थिरता की कसौटी के अनुरूप है।

(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, कोई वर्तमान किस्म इस अधिनियम के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर रजिस्टर नहीं की जाएगी यदि वह सुभिन्नता, एकरूपता और स्थिरता के ऐसे मानदण्ड के अनुरूप न हो जो विनियमों के अधीन विनिर्दिष्ट किये जाएँगे।

(3) यथास्थिति, उपधारा (1) और उपधारा (2) के प्रयोजनों के लिये नई किस्म,-

(क) विलक्षण सामग्री समझी यदि संरक्षण के लिये रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन फाइल करने की तारीख को ऐसी किस्म के उपयोग के प्रयोजनों के लिये उसके प्रजनक या उसके उत्तराधिकारी द्वारा या उसकी सहमति से ऐसी किस्म की प्रवर्धन या फसल सामग्री का विक्रय या अन्यथा व्ययन-

(i) भारत में, एक वर्ष से पूर्व; या
(ii) भारत के बाहर वृक्षों या लताओं के मामले में छह वर्ष से पूर्व या किसी अन्य मामले में चार वर्ष से पूर्व,

ऐसा आवेदन फाइल करने की तारीख से पूर्व, नहीं किया गया है:

परन्तु ऐसी किसी नई किस्म का परीक्षण, जिसका विक्रय या अन्यथा व्ययन नहीं हुआ है, संरक्षण के अधिकार को प्रभावित नहीं करेगा:

परन्तु यह और कि यह तथ्य कि रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन फाइल करने की तारीख को ऐसी किस्म की प्रवर्धन या फसल सामग्री, पूर्वोक्त रीति के माध्यम से भिन्न सामान्य ज्ञान की बात हो गई है, ऐसी किस्म के लिये विलक्षणता की कसौटी को प्रभावित नहीं करेगी;
(ख) सुभिन्न समझी जाएगी यदि वह किसी अन्य ऐसी किस्म से, जिसकी विद्यमानता आवेदन फाइल करने के समय किसी देश में सामान्य बात है, कम से कम एक आवश्यक लक्षण द्वारा स्पष्ट रूप से सुभेद्य है।

स्पष्टीकरण

शंकाओं के निराकरण के लिये, यह घोषित किया जाता है कि किसी नई किस्म के लिये प्रजनक के अधिकार को मंजूर करने के लिये या किसी अभिसमय देश में ऐसी किस्म को शासकीय रजिस्टर में प्रविष्ट करने के लिये किसी आवेदन का फाइल करना उस किस्म को आवेदन की तारीख से सामान्य ज्ञान की बात होना समझा जाएगा यदि आवेदन से, यथास्थिति, संवर्धक का अधिकार मंजूर हो जाता है या ऐसी किस्म को ऐसे शासकीय रजिस्टर में प्रविष्ट कर दिया जाता है;
(ग) एकरूप समझी जाएगी यदि वह ऐसे फेरफार के अधीन रहते हुए जिसकी उसके प्रवर्धन के विशिष्ट लक्षणों से प्रत्याशा की जाती है अपने आवश्यक लक्षणों में पर्याप्त रूप से एकरूप है;
(घ) स्थिर समझी जाएगी यदि उसके आवश्यक लक्षण बार-बार के प्रवर्धन के पश्चात या प्रवर्धन के विशिष्ट चक्र के मामले में ऐसे प्रत्येक चक्र के अन्त में, अपरिवर्तित रहते हैं।

(4) कोई नई किस्म इस अधिनियम के अधीन रजिस्टर नहीं होगी यदि ऐसी किस्म को दिया गया अभिधान-

(i) ऐसी किस्म की पहचान कराने में समर्थ नहीं है; या
(ii) मात्र आँकड़े समाविष्ट करता है; या
(iii) ऐसी किस्म के लक्षणों, मूल्य पहचान या ऐसी किस्म के प्रजनक की पहचान के सम्बन्ध में भुलावा देने वाला या भ्रम पैदा करने वाला है; या
(iv) ऐसे किसी भी अभिधान से भिन्न नहीं है जो इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत वैसी ही वनस्पति जातियों या घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित जातियों की किसी किस्म को अभिहित करता है; या
(v) ऐसी किस्म की पहचान के सम्बन्ध में जनता में प्रवंचना या भ्रम पैदा होने की सम्भावना है; या
(vi) भारत के नागरिकों के क्रमशः किसी वर्ग या प्रवर्ग की धार्मिक भावनाओं को क्षति पहुँचने की सम्भावना है; या
(vii) सम्प्रतीक और नाम (अनुसूचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950 (1950 का 12) की धारा 3 में वर्णित प्रयोजनों में से किसी के लिये कोई नाम या सम्प्रतीक के रूप में उपयोग के लिये प्रतिषिद्ध है; या
(viii) पूर्णतः या भागतः कोई भौगोलिक नाम है:

परन्तु रजिस्ट्रार ऐसी किस्म को रजिस्टर कर सकेगा जिसके अभिधान में पूणर्तः या भागतः भौगोलिक नाम समाविष्ट है यदि वह ऐसी किस्म के सम्बन्ध में ऐसे अभिधान के उपयोग का, उस मामले की परिस्थितियों में, सद्भावी उपयोग समझता है।

16. व्यक्ति जो आवेदन कर सकते हैं


(1) धारा 14 के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिये कोई आवेदन निम्नलिखित द्वारा किया जाएगा-

(क) किस्म का प्रजनक होने का दावा करने वाला व्यक्ति; या
(ख) किस्म के प्रजनक का कोई उत्तराधिकारी; या
(ग) ऐसा व्यक्ति जो ऐसा आवेदन करने के अधिकार के सम्बन्ध में किस्म के प्रजनक का समनुदेशिती है; या
(घ) किस्म के संवर्धक के रूप में दावा करने वाला कोई कृषक या कृषकों का समूह या कृषकों का समुदाय;
(ङ) कोई व्यक्ति जो खण्ड (क) से खण्ड (घ) में विनिर्दिष्ट किसी व्यक्ति द्वारा उसकी ओर से आवेदन करने के लिये, विहित रीति में, प्राधिकृत किया गया है;
(च) कोई विश्वविद्यालय या सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित कृषि संस्था जो उस किस्म का प्रजनक होने का दावा कर रही है।

(2) उपधारा (1) के अधीन कोई आवेदन उसमें निर्दिष्ट व्यक्तियों में से किसी के द्वारा वैयक्तिक रूप से या किसी अन्य व्यक्ति के साथ संयुक्त रूप से किया जा सकेगा।

17. अनिवार्य किस्म अभिधान


(1) प्रत्येक आवेदक ऐसी किसी किस्म को, जिसके सम्बन्ध में वह इस अधिनियम के अधीन विनियमों के अनुसार रजिस्ट्रीकरण की वांछा करता है, एक या भिन्न अभिधान समनुदेशित करेगा।

(2) प्राधिकरण, किसी ऐसे अन्तरराष्ट्रीय अभिसमय या सन्धि के, जिसमें भारत एक पक्षकार बन गया है, उपबन्धों पर विचार करके किसी पौधा किस्म को अभिधान के समनुदेशन को शासित करने के लिये विनियम बनाएगी।

(3) जहाँ किस्म का समनुदेशित अभिधान, विनियमों में विनिर्दिष्ट अपेक्षाओं को पूरा नहीं करता है वहाँ रजिस्ट्रार आवेदक से, ऐसे समय के भीतर जो ऐसे विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाये, कोई दूसरा अभिधान प्रस्तावित करने की अपेक्षा कर सकेगा।

(4) व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 (1999 का 47) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, किसी किस्म को समनुदेशित अभिधान उस अधिनियम के अधीन व्यापार चिह्न के रूप में रजिस्टर नहीं किया जाएगा।

18. आवेदन का प्रारूप


(1) धारा 14 के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिये प्रत्येक आवेदन-

(क) किसी किस्म के सम्बन्ध में होगा;
(ख) आवेदक द्वारा ऐसी किस्म को समनुदेशित अभिधान का कथन करेगा;
(ग) आवेदक के इस शपथ पत्र के साथ होगा कि ऐसी किस्म में, कोई जीन या जीन अनुक्रम जिसमें समापक प्रौद्योगिकी है, अन्तर्विष्ट नहीं है;
(घ) ऐसे प्रारूप में होगा जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाये;
(ङ) उस मूल उद्गम का होगा जिससे ऐसी किस्म व्युत्पन्न की गई है और भारत में भौगोलिक अवस्थान का, जहाँ से आनुवंशिक सामग्री ली गई है सम्पूर्ण पासपोर्ट डाटा और उस किस्म के प्रजनन, क्रम विकास या विकास करने में किसी कृषक, ग्राम समुदाय, संस्था या संगठन का योगदान, यदि कोई है, से सम्बन्धित सभी ऐसी जानकारी, अन्तर्विष्ट करेगा;
(च) विवरण के साथ होगा जिसमें ऐसी किस्म का संक्षिप्त ब्यौरा होगा जिससे उसकी विलक्षणता, सुभिन्नता, एकरूपता और स्थिरता सम्बन्धी अभिलक्षण जो रजिस्ट्रीकरण के लिये अपेक्षित हैं, प्रकट हों;
(छ) ऐसी फीस के साथ होगा जो विहित की जाये;
(ज) ऐसी घोषणा के साथ होगा कि किस्म का संवर्धन, क्रम विकास या विकास करने के लिये अर्जित आनुवंशिक सामग्री या मूल सामग्री विधिपूर्वक अर्जित की गई है; और
(झ) ऐसी अन्य विशिष्टियों सहित होगा, जो विहित की जाएँ;

परन्तु उस दशा में, जिसमें आवेदन कृषक की किस्म के रजिस्ट्रीकरण के लिये है खण्ड (ख) से खण्ड (झ) में अन्तर्विष्ट कोई बात आवदेन की बाबत लागू नहीं होगी और आवेदन ऐसे प्रारूप में होगा, जो विहित किया जाये।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रत्येक आवेदन रजिस्ट्रार के कार्यालय में फाइल किया जाएगा।

(3) जहाँ ऐसा आवेदन रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन करने के अधिकार के उत्तराधिकार या समनुदेशन के आधार पर किया गया है वहाँ आवेदन करने के समय या आवेदन करने के पश्चात ऐसे समय के भीतर, जो विहित किया जाये, आवेदन करने के अधिकार का सबूत प्रस्तुत किया जाएगा।

19. किये जाने वाले परीक्षण


(1) प्रत्येक आवेदक, इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन के साथ रजिस्ट्रार को ऐसी किस्म के, जिसके रजिस्ट्रीकरण के लिये ऐसा आवेदन किया गया है, बीज की ऐसी मात्रा, यह मूल्यांकन करने का परीक्षण करने के प्रयोजन के लिये, उपलब्ध कराएगा कि ऐसी किस्म मूल सामग्री के साथ उन मानकों के अनुरूप है जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किये जाएँ:

परन्तु रजिस्ट्रार या कोई व्यक्ति या परीक्षण केन्द्र जिसे ऐसा बीज परीक्षण के लिये भेजा गया है, ऐसे बीज को अपने कब्जे के दौरान ऐसी रीति और ऐसी दशा में रखेगा जिससे उसकी जीवन क्षमता और क्वालिटी अपरिवर्तित बनी रहे।

(2) आवेदक उपधारा (1) में निर्दिष्ट परीक्षण करने के लिये ऐसी फीस जमा करेगा जो विहित की जाये।

(3) उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट परीक्षण ऐसी रीति से और ऐसे ढंग से किया जाएगा जो विहित किया जाये।

20. आवेदन या उसके संशोधन की स्वीकृति


(1) धारा 14 के अधीन किसी आवेदन की प्राप्ति पर, रजिस्ट्रार ऐसे आवेदन में अन्तर्विष्ट विशिष्टियों के सम्बन्ध में ऐसी जाँच करने के पश्चात जिसे वह उचित समझता है आवेदन को पूर्ण रूप से या ऐसी शर्तों या परिसीमाओं के अधीन जो वह उचित समझता है, स्वीकार कर सकेगा।

(2) जहाँ रजिस्ट्रार का यह समाधान हो जाता है कि आवेदन इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों या विनियमों की अपेक्षाओं का अनुपालन नहीं करता है वहाँ वह-

(क) आवेदक से अपने समाधानप्रद रूप में आवेदन को संशोधित करने की अपेक्षा कर सकेगा; या
(ख) आवेदन को नामंजूर कर सकेगा:

परन्तु कोई आवेदन तब तक नामंजूर नहीं किया जाएगा जब तक कि आवेदक को अपना मामला प्रस्तुत करने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो।

21. आवेदन का विज्ञापन


(1) जब किसी किस्म के रजिस्ट्रीकरण के लिये कोई आवेदन, धारा 20 की उपधारा (1) के अधीन पूर्ण रूप से या शर्तों अथवा परिसीमाओं के अधीन स्वीकार कर लिया गया है तब रजिस्ट्रार उसकी स्वीकृति के पश्चात यथाशीघ्र ऐसे आवेदन को ऐसी शर्तों अथवा परिसीमाओं के साथ, यदि कोई हों, जिनके अधीन वह स्वीकार किया गया है और उस किस्म के विनिर्देश, जिसके रजिस्ट्रीकरण के लिये ऐसा आवेदन किया गया है, उसके फोटोचित्र या रेखाचित्र सहित उस मामले में हितबद्ध व्यक्तियों से आक्षेप आमंत्रित करते हुए, विहित रीति में विज्ञाप्ति कराएगा।

(2) कोई व्यक्ति, रजिस्ट्रीकरण के आवेदन के विज्ञापन की तारीख से तीन मास के भीतर विहित फीस का सन्दाय करके विहित रीति से लिखित रूप में रजिस्ट्रीकरण के लिये अपने विरोध की सूचना रजिस्ट्रार को दे सकेगा।

(3) उपधारा (2) के अधीन रजिस्ट्रीकरण का विरोध निम्नलिखित आधारों में से किसी एक आधार पर किया जा सकेगा, अर्थात यह कि:-

(क) आवेदन का विरोध करने वाला व्यक्ति आवेदक के मुकाबले प्रजनक के अधिकार का हकदार है;
(ख) किस्म इस अधिनियम के अधीन रजिस्टर किये जाने योग्य नहीं है; या
(ग) रजिस्ट्रीकरण के लिये प्रमाणपत्र प्रदान किया जाना लोकहित में नहीं होगा; या
(घ) किस्म का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

(4) रजिस्ट्रार विरोध की सूचना की एक प्रति को रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदक पर तामील करेगा और आवेदक द्वारा विरोध की सूचना की ऐसी प्रति की प्राप्ति से दो मास के भीतर आवेदक, रजिस्ट्रार को विहित रीति में उन आधारों का एक प्रतिकथन भेजेगा जिन पर वह अपने आवेदन के लिये निर्भर करता है और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो यह समझा जाएगा कि उसने अपने आवेदन का परित्याग कर दिया है।

(5) यदि आवेदक ऐसा प्रतिकथन भेजता है तो रजिस्ट्रार उसकी एक प्रति की विरोध की सूचना देने वाले व्यक्ति पर तामील करेगा।

(6) ऐसा कोई साक्ष्य जिस पर विरोधकर्ता और आवेदक निर्भर है रजिस्ट्रार को विहित रीति में और विहित समय के भीतर पेश किया जाएगा और रजिस्ट्रार, यदि वह ऐसा चाहता है तो, उन्हें सुनवाई का अवसर प्रदान करेगा।

(7) रजिस्ट्रार पक्षकारों को सुनने के पश्चात, यदि ऐसी अपेक्षा हो और साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात यह विनिश्चत करेगा कि क्या और किन शर्तों और परिसीमाओं के, यदि कोई हों, अधीन रजिस्ट्रीकरण अनुज्ञात किया जाये और आक्षेप के आधार पर विचार कर सकेगा, चाहे विरोधकर्ता उस पर निर्भर है या नहीं।

(8) जहाँ विरोध की सूचना देने वाला कोई व्यक्ति या ऐसी सूचना की प्रति की प्राप्ति के पश्चात प्रतिकथन भेजने वाला कोई आवेदक न तो भारत में निवास करता है और न ही कारबार करता है, वहाँ रजिस्ट्रार उसके समक्ष की कार्यवाहियों के खर्च के लिये उससे प्रतिभूति देने की अपेक्षा कर सकेगा और ऐसी प्रतिभूति के सम्यक रूप से दिये जाने में व्यतिक्रम होने पर उसे, यथास्थिति, विरोध या आवेदन के परित्याग किये जाने के रूप में मान सकेगा।

(9) रजिस्ट्रार, निवेदन किये जाने पर ऐसे निबन्धनों पर जिन्हें वह ठीक समझता है, विरोध की सूचना या प्रतिकथन में किसी त्रुटि के सुधार या किसी संशोधन को अनुज्ञात कर सकेगा।

22. रजिस्ट्रार का विरोध के आधारों पर विचार करना


रजिस्ट्रार, ऐसे सभी आधारों पर विचार करेगा जिन पर आवेदन का विरोध किया गया है और अपने विनिश्चय के कारण देने के पश्चात आदेश द्वारा विरोध को मान्य ठहराएगा या नामंजूर करेगा।

अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म का रजिस्ट्रीकरण


23. अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म का रजिस्ट्रीकरण


(1) धारा 29 की उपधारा (2) के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट जीनस या जातियों की अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म के रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन, रजिस्ट्रार को धारा 14 में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से और धारा 18 में विनिर्दिष्ट रीति में इस प्रकार किया जाएगा मानो उसमें “किस्म” शब्द के स्थान पर “अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म” शब्द रखे गए हैं और उसके साथ ऐसे दस्तावेज और फीस होगी जो विहित किये जाएँ।

(2) जब रजिस्ट्रार का यह समाधान हो जाता है कि उपधारा (1) की अपेक्षाओं का पालन उसके समाधानप्रद रूप में हो गया है तो वह आवेदन को, अपनी रिपोर्ट और सभी सुसंगत दस्तावेजों के साथ, प्राधिकरण को अग्रेषित करेगा।

(3) उपधारा (2) के अधीन ऐसे आवेदन की प्राप्ति पर, प्राधिकरण ऐसी अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म की यह अवधारित करने के लिये परीक्षा करवाएगा कि क्या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म ऐसी किस्म है जो मूल किस्म से, ऐसा परीक्षण करके और ऐसी प्रक्रिया का अनुसरण करके, जो विहित की जाये, व्युत्पन्न किस्म है।

(4) जब प्राधिकरण का उपधारा (3) में निर्दिष्ट परीक्षण रिपोर्ट से वह समाधान हो जाता है कि अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म मूल किस्म से व्युत्पन्न की गई है तो वह रजिस्ट्रार को ऐसी अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म को रजिस्टर करने का निदेश दे सकेगा और रजिस्ट्रार अधिकरण के निदेश का पालन करेगा।

(5) जहाँ अधिकरण का उपधारा (3) में निर्दिष्ट परीक्षण रिपोर्ट पर यह समाधान नहीं होता है कि अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म मूल किस्म से व्युत्पन्न की गई है तो वह आवेदन को नामंजूर कर देगा।

(6) धारा 28 में अन्तर्विष्ट किसी किस्म के प्रजनक के अधिकार, अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म के प्रजनक को लागू होंगे:

परन्तु मूल किस्म के प्रजनक द्वारा धारा 28 की उपधारा (2) के अधीन अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्
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