बुंदेलखंड में तो कृषि व उद्योग तालाबों पर निर्भर है, फिर भी तालाबों के रखरखाव और संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। तालाबों पर अतिक्रमण किया जा रहा है, उनको पाटकर बस्तियां बनाई जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश में तालाब, पोखर, झील, कुआं आदि की खोजबीन की गई तो बुंदेलखंड में दो हजार 963 तालाब व कुएं गायब पाए गए। चार हजार 263 तालाबों पर अवैध कब्जे हैं। आयुर्वेद में जल को दवा बताया गया है। बुंदेलखंड के उन क्षेत्रों में जहां नदियों का अभाव रहा, वहां तालाबों का निर्माण किया गया। महोबा के चंदेली तालाब, चरखारी रियासत के तालाब और बुंदेलखंड के अन्य तालाब इलाके की खेतीबारी में सराहनीय योगदान देते रहे हैं। समय रहते इनका संरक्षण किया जाना चाहिए। वर्तमान में बुंदेलखंड ही क्यों, समूचा विश्व जल संकट का सामना कर रहा है।
एशिया में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से लेकर अफ्रीका में केन्या, इथियोपिया और सूडान तक हर देश साफ पानी की कमी से जूझ रहा है। अपने देश में राजस्थान के जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी इलाकों में पानी आदमी की जान से भी ज्यादा कीमती हो जाता है। महिलाओं को पांच-छह किमी दूर से सिर पर रखकर पानी लाना पड़ता है।
आंकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। एशिया और अफ्रीका के कई इलाकों में महिलाएं प्रतिदिन औसतन छह किमी पैदल चलकर पानी जुटा पाती हैं। दुनिया की ऐसी 17 फीसदी आबादी अकेले भारत में है। यहां आज भी एक तिहाई लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। विश्व का सिर्फ चार फीसदी साफ पानी ही देश में है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि जल संपदा का दोहन मौजूदा रफ्तार से होता रहा तो सन् 2027 ई. तक दुनिया में 270 करोड़ लोगों को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ेगा।
अपने उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में तो कृषि व उद्योग तालाबों पर निर्भर है, फिर भी तालाबों के रखरखाव और संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। तालाबों पर अतिक्रमण किया जा रहा है, उनको पाटकर बस्तियां बनाई जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश में तालाब, पोखर, झील, कुआं आदि की खोजबीन की गई तो बुंदेलखंड में दो हजार 963 तालाब व कुएं गायब पाए गए। चार हजार 263 तालाबों पर अवैध कब्जे हैं।
यद्यपि सरकारी आंकड़ों में तीन हजार 747 तालाबों से अवैध कब्जे हटा दिए जाने का आंकड़ा प्रस्तुत किया गया है, फिर भी 465 तालाब अभी अवैध कब्जों की गिरफ्त में हैं। राजस्व परिषद की जानकारी के अनुसार, बुंदेलखंड के सातों जनपदों में 39 हजार 144 तालाब, कुएं, पोखर आदि राजस्व अभिलेखों में दर्ज हैं। ये सभी 72 हजार 247 हेक्टेयर भूमि में स्थित हैं।
अभियान के दौरान 159 तालाब व कुएं आदि गायब पाए गए। इनका रकबा 17 हजार 721 हेक्टेयर था। इसी तरह चार हजार 263 तालाब व कुओं आदि पर अवैध कब्जे मिले। इनमें तीन हजार 798 तालाब व कुओं से अवैध कब्जे हटाकर करीब 12 हेक्टेयर भूमि खाली कराई गई।
तेजी से नदारद हो रहे तालाब वाकई चिंता का विषय है। बांदा में 14 हजार 598 तालाब व कुएं दर्ज हैं। इनमें से 869 नदारद हैं, जबकि 332 पर अवैध कब्जे हैं। चित्रकूट में तीन हजार 692 तालाब व कुएं आदि दर्ज हैं, जिनमें से 151 गायब हैं और एक हजार 730 अवैध कब्जे हैं। हमीरपुर जनपद में तीन हजार 79 तालाब व कुएं इत्यादि राजस्व अभिलेखों में दर्ज हैं, लेकिन 541 गायब हैं और 655 अवैध कब्जे में हैं।
महोबा में आठ हजार 399 दर्ज तालाब व कुओं में से एक हजार 402 गायब हैं और 1495 अवैध कब्जे में हैं। इस तरह तालाब व कुओं को हड़प लिए जाने से 14 हजार 721 हेक्टेयर भूमि अवैध कब्जे के हवाले हो गई है। अभी भी 71 एकड़ से ज्यादा भूमि पर अवैध कब्जे बताए गए हैं। जहां एक ओर तालाबों में अवैध कब्जे हैं, वहीं दूसरी ओर तालाब अप्रैल-मई तक सूख जाया करते हैं। हमीरपुर जिले के तालाबों की स्थिति तो बहुत ही खराब है। बांदा जनपद में लगभग 1,983 तालाब हैं, जिनमें से 822 तालाबों का पानी सूख चुका है।
गौरतलब है कि महोबा, चरखारी, बांदा, ललितपुर, हमीरपुर आदि के तालाब ऐतिहासिक हैं। यदि ये तालाब नष्ट हो जाएंगे तो हमारा इतिहास व संस्कृति भी नष्ट हो जाएगी। सबसे बड़ी बात यह है कि ये तालाब विकास के आधार हैं। इनका संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है।
संविधान के सातवें मौलिक कर्तव्य में हर नागरिक को नदी, झील, तालाबों व वन्य प्राणियों की रक्षा करने के लिए कहा गया है। बुंदेलखंड के निवासी अपने तालाबों पर गर्व रहे हैं। महोबा के ऐतिहासिक तालाब इस प्रकार हैं-
चंदेल शासक कीर्ति वर्मन ने 1060 ई. में ऐतिहासिक कीरत सागर का निर्माण कराया था। 1182 ई. में इसी सरोवर के तट पर राजा परमाल के वीर सैनिक आल्हा व ऊदल ने श्रावण पूर्णिमा को दिल्ली के राजा पृथ्वीराज को हराया था। तभी से परेवा को विश्व प्रसिद्ध कजली मेला कीरत सागर के तट पर लगता आ रहा है।
इस सरोवर क्षेत्र में आल्हा बारादरी, उत्तरी पहाड़ी पर आल्हा-ऊदल के सैन्य गुरु ताला सैयद की कब्र व ढेबा की चौकी आज भी अपने ऐतिहासिक महत्व की गवाही दे रही है। इस सरोवर का घेरा लगभग ढाई किमी है। कीरत सागर व मदन सागर का निर्माण चंदनौर और मगरिया नदी को रोककर किया गया था। जनश्रुति है कि महोबा की पारसमणि इसी तालाब में जलमग्न करा दी गई थी। पृथ्वीराज चौहान के किसी एक हाथी की लौह श्रृंखला इसमें तैरते समय छूकर स्वर्ण बन गई थी। आल्हा खंड में उल्लेख है- पारस पथरी है महुबे में, लौह छुअत सोन हुइ जाय।
इतिहासकार कनिंघम के अनुसार, मदन सागर बुंदेलखंड का सर्वाधिक सुंदर और विशिष्ट तड़ाग है। इस तालाब का घेरा लगभग पांच किमी है। इसका निर्माण काल 1129-1163 ई. है। 17वें यशस्वी चंदेल नरेश मदन वर्मन ने मकरध्वज नदी को रोककर इस तालाब का निर्माण कराया था। इस तालाब के पूर्व में आल्हा की गिल्ली, पश्चिम में खखरा मठ, मध्य उत्तर में मनियां देव मंदिर, आल्हा की लाट और पीर मुबारक शाह की दरगाह स्थित है।
सर्वप्रथम विजय सागर का निर्माण गहरवार राजाओं ने कराया था। इसके बाद 11वीं शताब्दी में 11वें चंदेल नरेश विजय ब्रह्म ने पूरा किया। इसका घेरा लगभग छह किमी है। सन् 1906-07 के दुर्भिक्ष काल और सन् 1968-69 ई. के अवर्षण काल में भी यह तालाब सूखा नहीं था और नगरवासियों को जल देता रहा। वर्ष 1909 में जिला गजेटियर में इसे उत्तर प्रदेश की सुंदरतम झीलों में से एक कहा गया था। इसके तट पर वन विभाग ने नर्सरी, मृग विहार और बाल क्रीड़ा केंद्र की व्यवस्था की है। यह क्षेत्र शीतकाल में पक्षी विहार बन जाता है।
दिसरापुर सरोवर वीर आल्हा-ऊदल के पिता दस्सराज और मलखान-सुलखान के पिता बच्छराज से संबंधित होने के कारण ऐतिहासिक महत्व रखता है। आल्हा-ऊदल का शैशवकाल यहीं बीता था। मांडव राजकुमार करिंगाराय ने महोबा का नौलखाहार लूटने के उद्देश्य से रात में आक्रमण कर दस्सराज व बच्छराज की उनके आवासों में सोते समय हत्या कर दी थी। बाद में आल्हा-ऊदल ने माड़ोगढ़ पर चढ़ाई करके अपने पिता की हत्या का बदला लिया था।
महोबा के राजा परमाल ने दस्सराज व बच्छराज की वीरता से प्रसन्न होकर उन्हें बक्सर से बुलाकर अपना सेनापति नियुक्त किया था और उन्हें दस गांव माफी में प्रदान किए थे। इसलिए इस गांव का नाम दशपुरवा हुआ, जो बाद में दिसरापुर के नाम से जाना जाने लगा। अब इस तालाब के तट पर बने दस्सराज व बच्छराज के महल प्रकृति के प्रकोप से नष्ट हो चुके हैं।
कल्याण सागर का निर्माण 21वें चंदेल नरेश वीर वर्मन ने 13वीं शताब्दी के मध्य अपनी रानी कल्याण देवी के नाम पर कराया था। इसका जलभराव लगभग एक किमी तक रहता है। इसके उत्तर बंधन पर कीरतपाल के 14 पुत्रों की रानियों के सती चबूतरे, चामुंडा शिला और काजी कुतुबशाह की दरगाह है।
चंदेल नरेश राहिल्य देव वर्मा ने राहिल्य सागर का निर्माण कराया था। यह सरोवर महोबा के दक्षिण-पश्चिम लगभग तीन किमी की दूरी पर ग्राम रहलिया में है। ग्रामवासियों के लिए यह कृषि का आधार है। वर्तमान में सभी तालाबों में थोड़े-बहुत अवैध कब्जे हो रहे हैं। इन्हें हर हालत में रोके जाने चाहिए।
अन्य तालाबों में जैतपुर का बेला सागर, चरखारी के तालाब विजय सागर, जय सागर, गुमान सागर, रतन सागर, टोला तालाबों की प्राकृतिक छटा देखकर ही उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने इसे बुंदेलखंड के कश्मीर के नाम से नवाजा था। असल में बुंदेलखंड में जलस्रोत के आधार तालाब ही हैं। इनका संरक्षण होगा इनमें जल का संरक्षण करके- वर्षाजल का सदुपयोग करते ही लाभ होगा और मजदूरों का पलायन भी रुकेगा। महोबा चरखारी के अलावा बुंदेलखंड के बांदा, झांसी, उरई, ललितपुर व छतरपुर के तालाबों का भी हर संभव संरक्षण होना चाहिए।
(लेखक महोबा के वीरभूमि राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)
एशिया में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से लेकर अफ्रीका में केन्या, इथियोपिया और सूडान तक हर देश साफ पानी की कमी से जूझ रहा है। अपने देश में राजस्थान के जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी इलाकों में पानी आदमी की जान से भी ज्यादा कीमती हो जाता है। महिलाओं को पांच-छह किमी दूर से सिर पर रखकर पानी लाना पड़ता है।
आंकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। एशिया और अफ्रीका के कई इलाकों में महिलाएं प्रतिदिन औसतन छह किमी पैदल चलकर पानी जुटा पाती हैं। दुनिया की ऐसी 17 फीसदी आबादी अकेले भारत में है। यहां आज भी एक तिहाई लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। विश्व का सिर्फ चार फीसदी साफ पानी ही देश में है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि जल संपदा का दोहन मौजूदा रफ्तार से होता रहा तो सन् 2027 ई. तक दुनिया में 270 करोड़ लोगों को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ेगा।
अपने उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में तो कृषि व उद्योग तालाबों पर निर्भर है, फिर भी तालाबों के रखरखाव और संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। तालाबों पर अतिक्रमण किया जा रहा है, उनको पाटकर बस्तियां बनाई जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश में तालाब, पोखर, झील, कुआं आदि की खोजबीन की गई तो बुंदेलखंड में दो हजार 963 तालाब व कुएं गायब पाए गए। चार हजार 263 तालाबों पर अवैध कब्जे हैं।
यद्यपि सरकारी आंकड़ों में तीन हजार 747 तालाबों से अवैध कब्जे हटा दिए जाने का आंकड़ा प्रस्तुत किया गया है, फिर भी 465 तालाब अभी अवैध कब्जों की गिरफ्त में हैं। राजस्व परिषद की जानकारी के अनुसार, बुंदेलखंड के सातों जनपदों में 39 हजार 144 तालाब, कुएं, पोखर आदि राजस्व अभिलेखों में दर्ज हैं। ये सभी 72 हजार 247 हेक्टेयर भूमि में स्थित हैं।
अभियान के दौरान 159 तालाब व कुएं आदि गायब पाए गए। इनका रकबा 17 हजार 721 हेक्टेयर था। इसी तरह चार हजार 263 तालाब व कुओं आदि पर अवैध कब्जे मिले। इनमें तीन हजार 798 तालाब व कुओं से अवैध कब्जे हटाकर करीब 12 हेक्टेयर भूमि खाली कराई गई।
तेजी से नदारद हो रहे तालाब वाकई चिंता का विषय है। बांदा में 14 हजार 598 तालाब व कुएं दर्ज हैं। इनमें से 869 नदारद हैं, जबकि 332 पर अवैध कब्जे हैं। चित्रकूट में तीन हजार 692 तालाब व कुएं आदि दर्ज हैं, जिनमें से 151 गायब हैं और एक हजार 730 अवैध कब्जे हैं। हमीरपुर जनपद में तीन हजार 79 तालाब व कुएं इत्यादि राजस्व अभिलेखों में दर्ज हैं, लेकिन 541 गायब हैं और 655 अवैध कब्जे में हैं।
महोबा में आठ हजार 399 दर्ज तालाब व कुओं में से एक हजार 402 गायब हैं और 1495 अवैध कब्जे में हैं। इस तरह तालाब व कुओं को हड़प लिए जाने से 14 हजार 721 हेक्टेयर भूमि अवैध कब्जे के हवाले हो गई है। अभी भी 71 एकड़ से ज्यादा भूमि पर अवैध कब्जे बताए गए हैं। जहां एक ओर तालाबों में अवैध कब्जे हैं, वहीं दूसरी ओर तालाब अप्रैल-मई तक सूख जाया करते हैं। हमीरपुर जिले के तालाबों की स्थिति तो बहुत ही खराब है। बांदा जनपद में लगभग 1,983 तालाब हैं, जिनमें से 822 तालाबों का पानी सूख चुका है।
गौरतलब है कि महोबा, चरखारी, बांदा, ललितपुर, हमीरपुर आदि के तालाब ऐतिहासिक हैं। यदि ये तालाब नष्ट हो जाएंगे तो हमारा इतिहास व संस्कृति भी नष्ट हो जाएगी। सबसे बड़ी बात यह है कि ये तालाब विकास के आधार हैं। इनका संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है।
संविधान के सातवें मौलिक कर्तव्य में हर नागरिक को नदी, झील, तालाबों व वन्य प्राणियों की रक्षा करने के लिए कहा गया है। बुंदेलखंड के निवासी अपने तालाबों पर गर्व रहे हैं। महोबा के ऐतिहासिक तालाब इस प्रकार हैं-
कीरत सागर
चंदेल शासक कीर्ति वर्मन ने 1060 ई. में ऐतिहासिक कीरत सागर का निर्माण कराया था। 1182 ई. में इसी सरोवर के तट पर राजा परमाल के वीर सैनिक आल्हा व ऊदल ने श्रावण पूर्णिमा को दिल्ली के राजा पृथ्वीराज को हराया था। तभी से परेवा को विश्व प्रसिद्ध कजली मेला कीरत सागर के तट पर लगता आ रहा है।
इस सरोवर क्षेत्र में आल्हा बारादरी, उत्तरी पहाड़ी पर आल्हा-ऊदल के सैन्य गुरु ताला सैयद की कब्र व ढेबा की चौकी आज भी अपने ऐतिहासिक महत्व की गवाही दे रही है। इस सरोवर का घेरा लगभग ढाई किमी है। कीरत सागर व मदन सागर का निर्माण चंदनौर और मगरिया नदी को रोककर किया गया था। जनश्रुति है कि महोबा की पारसमणि इसी तालाब में जलमग्न करा दी गई थी। पृथ्वीराज चौहान के किसी एक हाथी की लौह श्रृंखला इसमें तैरते समय छूकर स्वर्ण बन गई थी। आल्हा खंड में उल्लेख है- पारस पथरी है महुबे में, लौह छुअत सोन हुइ जाय।
मदन सरोवर
इतिहासकार कनिंघम के अनुसार, मदन सागर बुंदेलखंड का सर्वाधिक सुंदर और विशिष्ट तड़ाग है। इस तालाब का घेरा लगभग पांच किमी है। इसका निर्माण काल 1129-1163 ई. है। 17वें यशस्वी चंदेल नरेश मदन वर्मन ने मकरध्वज नदी को रोककर इस तालाब का निर्माण कराया था। इस तालाब के पूर्व में आल्हा की गिल्ली, पश्चिम में खखरा मठ, मध्य उत्तर में मनियां देव मंदिर, आल्हा की लाट और पीर मुबारक शाह की दरगाह स्थित है।
विजय सागर
सर्वप्रथम विजय सागर का निर्माण गहरवार राजाओं ने कराया था। इसके बाद 11वीं शताब्दी में 11वें चंदेल नरेश विजय ब्रह्म ने पूरा किया। इसका घेरा लगभग छह किमी है। सन् 1906-07 के दुर्भिक्ष काल और सन् 1968-69 ई. के अवर्षण काल में भी यह तालाब सूखा नहीं था और नगरवासियों को जल देता रहा। वर्ष 1909 में जिला गजेटियर में इसे उत्तर प्रदेश की सुंदरतम झीलों में से एक कहा गया था। इसके तट पर वन विभाग ने नर्सरी, मृग विहार और बाल क्रीड़ा केंद्र की व्यवस्था की है। यह क्षेत्र शीतकाल में पक्षी विहार बन जाता है।
दिसरापुर सरोवर
दिसरापुर सरोवर वीर आल्हा-ऊदल के पिता दस्सराज और मलखान-सुलखान के पिता बच्छराज से संबंधित होने के कारण ऐतिहासिक महत्व रखता है। आल्हा-ऊदल का शैशवकाल यहीं बीता था। मांडव राजकुमार करिंगाराय ने महोबा का नौलखाहार लूटने के उद्देश्य से रात में आक्रमण कर दस्सराज व बच्छराज की उनके आवासों में सोते समय हत्या कर दी थी। बाद में आल्हा-ऊदल ने माड़ोगढ़ पर चढ़ाई करके अपने पिता की हत्या का बदला लिया था।
महोबा के राजा परमाल ने दस्सराज व बच्छराज की वीरता से प्रसन्न होकर उन्हें बक्सर से बुलाकर अपना सेनापति नियुक्त किया था और उन्हें दस गांव माफी में प्रदान किए थे। इसलिए इस गांव का नाम दशपुरवा हुआ, जो बाद में दिसरापुर के नाम से जाना जाने लगा। अब इस तालाब के तट पर बने दस्सराज व बच्छराज के महल प्रकृति के प्रकोप से नष्ट हो चुके हैं।
>कल्याण सागर
कल्याण सागर का निर्माण 21वें चंदेल नरेश वीर वर्मन ने 13वीं शताब्दी के मध्य अपनी रानी कल्याण देवी के नाम पर कराया था। इसका जलभराव लगभग एक किमी तक रहता है। इसके उत्तर बंधन पर कीरतपाल के 14 पुत्रों की रानियों के सती चबूतरे, चामुंडा शिला और काजी कुतुबशाह की दरगाह है।
राहिल्य सागर
चंदेल नरेश राहिल्य देव वर्मा ने राहिल्य सागर का निर्माण कराया था। यह सरोवर महोबा के दक्षिण-पश्चिम लगभग तीन किमी की दूरी पर ग्राम रहलिया में है। ग्रामवासियों के लिए यह कृषि का आधार है। वर्तमान में सभी तालाबों में थोड़े-बहुत अवैध कब्जे हो रहे हैं। इन्हें हर हालत में रोके जाने चाहिए।
अन्य तालाबों में जैतपुर का बेला सागर, चरखारी के तालाब विजय सागर, जय सागर, गुमान सागर, रतन सागर, टोला तालाबों की प्राकृतिक छटा देखकर ही उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने इसे बुंदेलखंड के कश्मीर के नाम से नवाजा था। असल में बुंदेलखंड में जलस्रोत के आधार तालाब ही हैं। इनका संरक्षण होगा इनमें जल का संरक्षण करके- वर्षाजल का सदुपयोग करते ही लाभ होगा और मजदूरों का पलायन भी रुकेगा। महोबा चरखारी के अलावा बुंदेलखंड के बांदा, झांसी, उरई, ललितपुर व छतरपुर के तालाबों का भी हर संभव संरक्षण होना चाहिए।
(लेखक महोबा के वीरभूमि राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)
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