पाप और परंपरा

ऐसा है एक नदी बह रही है
कोलतार की
चिता और गर्भ के बीच के धुँधलके में
और मेरे सर पर गट्ठर है कपास का।
‘बचाओ’ चिल्लाने से पहले
मैंने ऊँगलियाँ भर देखी थीं
डूबते पिता की
घाटी के पास उस चीख का
कोई लेखा नहीं!
ऐसा है जिस जगह मेरे पैर हैं
वहाँ दीमक घर हैं ताजे बने हुए
लगातार हवा घूँसे मार रही है
मेरी पीठ पर।
सँभलने के लिए जब मैं
‘शाखा’ पकड़ता हूँ
हाथ में चिमगादड़ आ जाता है
ऐसा है मेरी पसलियों के ठीक नीचे
खंदक है
और मेरी देह गर्म रहती है
ऊपर लटकी हुई स्लेट पर
पढ़ा जाता कोई शब्द नहीं
और नदी है कि बही चली जा रही है
कोलतार की।

Path Alias

/articles/paapa-aura-paranparaa

Post By: admin
×