प्रकृति द्वारा बनाये गये असंख्य पदार्थों में पानी एक अनमोल तथा अनोखा पदार्थ है जिसके बारे में वैज्ञानिक अभी तक सभी तथ्यों को नहीं खोज पाये हैं। आपको ज्ञात ही होगा कि पानी का घनत्व 4 डिग्री सेल्सियस ( सेन्टीग्रेड) पर अधिकतम होता है तथा इससे कम तथा अधिक तापमान पर इसका घनत्व घट जाता है। आपको यह भी ज्ञात होगा कि पदार्थों का आयतन गैस से तरल तथा तरल से ठोस अवस्था में आने पर घट जाता है लेकिन पानी एक ऐसा पदार्थ है जिसका आयतन तरल से ठोस अवस्था में आने पर बढ़ जाता है। पानी की गुप्त ऊष्मा सभी तरल पदार्थों में सबसे अधिक है।
उपर्युक्त तथ्यों की गुत्थी अभी वैज्ञानिक भले ही पूरी तरह न सुलझा पाये हों लेकिन इतना अवश्य समझा जा सकता है कि पानी में उपरोक्त गुण प्रकृति के सुलभ संचालन के लिये अति आवश्यक हैं। उदाहरण के लिये यदि पानी का घनत्व 4 डिग्री सेल्सियस पर अधिकतम न होता तथा इसका आयतन ठोस अवस्था में आने पर नही घटता तो ठंडे स्थानों पर पाये जाने वाले जलचरों का जीना सम्भव न हो पाता । इस बात को इस प्रकार समझा जा सकता है कि ठंडे प्रदेशों में शरद ऋतु में वातावरण का तापमान कम होने पर गहरे जलाशयों / झीलों इत्यादि में ऊपरी सतह (2-4 मीटर) का पानी ठंडा होने लगता है जिससे वह भारी होकर नीचे जाने ( गिरने) लगता है तथा नीचे से अधिक तापमान वाला हल्कापानी ऊपर आने लगता है। इस प्रकार पानी का एक चक्र शुरू हो जाता है।
जिससे धीमे-धीमे सम्पूर्ण पानी का तापमान गिरने लगता है। यह प्रक्रिया केवल 4 डिग्री सेल्सियस तक ही सम्भव है क्योंकि ऊपरी सतह के पानी का घनत्व 4 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर आते ही कम होने लगता है इस प्रकार ऊपरी सतह का पानी हल्का हो जाता है तथा उसके नीचे गिरने का क्रम रूक जाता है। यदि वातावरण का तापमान लगातार गिरता जाता है तथा ऊपरी सतह के पानी का तापमान भी 0 डिग्री सेल्सियस तक अथवा उसके नीचे गिर जाता है एवं पानी बर्फ के रूप में जम जाता है फिर भी वह अपने स्थान पर ही रहता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पानी की ऊपरी, 2 से 4 मीटर तक की सतह ही बर्फ बनती है। तथा नीचे का शेष पानी तरल रूप में ही बना रहता है। बर्फ क्योंकि ऊष्मा की कुचालक होती है अतः ऊपरी सतह के बर्फ बनने पर वातावरण के काफी कम तापमान का प्रभाव भी निचली सतहों के पानी पर नहीं पड़ता है तथा वह तरल अवस्था में ही बना रहता है जिससे ठंडे प्रदेश के जलचरों को गहरे जलाशयों, झीलों अथवा पानी के अन्य भरावों में शरदऋतु में जीवनयापन में कोई कठिनाई नहीं होती है । यह तो पानी के एक विशिष्ट गुण की बात हुई, अब आइये आपको पानी की उम्र तथा उसके महत्व के बारे में बताते हैं।
अपने सभी जीवित प्राणी मात्र, जैसे मनुष्य, जानवर तथा पक्षी एवं पेड़ पौधे इत्यादि की उम्र के बारे में तो पढ़ा अथवा सुना होगा, लेकिन पानी की भी उम्र होती है, शायद ऐसा सुनने अथवा पढ़ने में नहीं आया होगा। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ब्रहमांड में ऐसी कोई भी जीवित तथा जीवनरहित वस्तु नहीं है जिसकी उम्र जीवन काल अथवा उसके रूप परिवर्तन का समय निश्चित न हो अर्थात प्रत्येक वस्तु लगभग एक निर्धारित समय में एक रूप से धीमे-धीमे दूसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है तथा एक समय के पश्चात उसके एक रूप का अस्तित्व समाप्त हो जाता है तथा दूसरे रूप में उसका रूप, व्यवहार एवं गुण इत्यादि पहले वाले रूप से सर्वथा भिन्न हो सकते हैं। मैं आपको यहाँ पहले उम्र तथा जीवन काल में अन्तर बतला दूँ। किसी भी वस्तु की उम्र उस वस्तु के अस्तित्व में आने से वर्तमान तक का समय होता है जबकि जीवन काल अस्तित्व में आने से रूप परिवर्तन अथवा समाप्त होने तक के समय को कहते हैं। पानी की उम्र की बात करते समय हम अधिकतर भूगर्भ जल के बारे में ही बात करते हैं लेकिन उम्र सतही जल की भी होती है । जैसे यदि किसी जलाशय अथवा झील इत्यादि में पानी के प्रवेश से लेकर निकासी तक का समय उस जलाशय अथवा झील का नविनीकरण समय (Turn Over Period) तथा पानी का समयकाल कहलाता है। इसी प्रकार पानी का समुद्र से वाष्प बनकर उड़ने से लेकर पुनः जलीय चक्र पूर्ण करने के उपरान्त समुद्र में मिलने तक का समय उस पानी का समयकाल या जीवनकाल कहलाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि अत्यधिक गहरी झील एवं समुन्द्रों में जहाँ अलग-अलग गहराइयों का पानी आपस में नहीं मिलता है। (Stratification) पानी की उम्र भी अलग-अलग होती है।
यहाँ हम अभी केवल भूगर्भ जल की उम्र की बात करते हैं जिसका हमारे जीवन में एक खास महत्व है। जल की उम्र उस समय से शुरू होती है जब से वह भूमि में प्रवेश करता है अर्थात वर्षा अथवा अन्य जल जैसे ही भूमि में प्रवेश करते हैं उनका वातावरण से सम्पर्क लगभग समाप्त हो जाता है तथा वह अपने साथ जो भी रेडियोधर्मिता रखते हैं उसका नवीनीकरण रूक जाता है एवं क्षय शुरू हो जाता है। वह स्थान जहाँ से पानी भूमि में प्रवेश करता है उसे भूमिगत जल का नवीनीकरण क्षेत्र कहते हैं। भूमि में प्रवेश करने वाला पानी धीमे-धीमे असंतृप्त क्षेत्र से होता हुआ भूमिगत जल अथवा भूमिगत जलाशय का हिस्सा बन जाता है।
भूमिगत जलाशय को हम मुख्यतः दो प्रकारों में बाँट सकते हैं अर्थात ऐसे भूमिगत जलाशय जो कि जहाँ वर्षा होती हो वहीं की सतह से सीधे नवीनीकृत होते हैं तथा जिनके नवीनीकरण में कम समय लगता है। अथवा भूमिगत जल को कम दूरी तय करनी पड़ती है। ऐसे भूमिगत जलाशयों को उथला अथवा कम गहराई वाला जलाशय कहते हैं। अतः सबसे ऊपरी भूमिगत जलाशय इसी श्रेणी में आते हैं तथा इन्हें खुले हुए भूमिगत जलाशय भी कहते हैं। इन भूमिगत जलाशय की निचली सतह पर तो चिकनी मिट्टी अथवा अन्य ऐसी ही कोई पर्त जो अपने अन्दर से पानी का बहाव नहीं होने देती है लेकिन ऊपर ऐसी कोई पर्त नहीं होती है। दूसरे भूमिगत जलाशय वह होते हैं जोकि दो चिकनी मिट्टी की पर्तो के बीच में होते हैं तथा इनमें पानी मुख्यत इनके किसी एक तरफ के खुले हुए भाग से अन्दर जाता है जिसे इनका नवीनीकरण क्षेत्र कहते हैं तथा दूसरे खुले हुए भाग से पानी बाहर निकलता है जिसे निकासी क्षेत्र कहते हैं। ऐसे भूमिगत जलाशय अलग- २ गहराईयों पर मिलते हैं तथा जो जलाशय जितनी अधिक गहराई पर होता है उसका नवीनीकरण एवं निकासी क्षेत्र उतने ही दूर होते जाते है। अर्थात इनका नवीनीकरण अधिकतर उस वर्षा से होता है जोकि इनके नवीनीकरण क्षेत्र में होती है।
इन भूमिगत जलाशयों में कहीं-कहीं परस्पर सम्पर्क भी होते हैं जिससे एक जलाशय से दूसरे में पानी रिसता रहता है। लेकिन उसका महत्व पानी की उपलब्धता की दृष्टि से कम ही होता है। अतः गहरे भूमिगत जलाशयों में पानी की उपलब्धता का मुख्य स्रोत इन जलाशयों के नवीनीकरण क्षेत्र में सतही पानी की उपलब्धता होती है जोकि उस क्षेत्र में वर्षा द्वारा अथवा किसी नदी, झील, नहर अथवा पानी के किसी अन्य स्रोत से हो सकती है। इस प्रकार पानी गहरे भूमिगत जलाशयों के नवीनीकरण क्षेत्र से भूमि में प्रवेश करके अन्दर ही अन्दर चलता रहता है तथा यह जलाशय के आकार एवं प्रकृति के अनुसार सैकड़ों तथा हजारों किमी. की दूरी, सैकड़ों तथा हजारो वर्षों में तय करता हे। अब यदि हम विभिन्न स्थानों से गहरे भूमिगत जलाशय से पानी के नमूने एकत्रित करते हैं तो नमूनों के पानी का अलग-अलग स्थानों तक पहुँचने में अलग-२ समयलगा होगा । अतः किसी किसी क्षेत्र में पाये जाने वाले भूमिगत जलाशय के पानी की उम्र उस जलाशय के नवीनीकरण क्षेत्र से नमूने एकत्रित करने वाले क्षेत्र तक की दूरी तय करने में लगने वाले समय को कहते हैं।
पानी की उम्र पानी के नमूनों में कुछ खास रेडियोधर्मी समस्थानिकों की मात्रा की गणना करके की जाती है। ये रेडियोधर्मी समस्थानिक पानी में वायुमंडल से वर्षाजल में एवं वर्षा के उपरान्त पानी के भूमि में प्रवेश करते समय भी मिल जाते हैं। पानी के उम्र की गणना करने के लिये मुख्यतः जो समस्थानिक प्रयोग में लाये जाते हैं ट्रीटियम ( हाइड्रोजन का तीसरा समस्थानिक ) एवं कार्बन 14 प्रमुख हैं, इनके द्वारा एक वर्ष से 40 हजार वर्ष तक के पुराने पानी की उम्र का पता लगाया जा सकता है। विशेषतौर पर ट्रीटियम नवीन पानी ( एक वर्ष से 50 वर्ष) तक तथा कार्बन 14 पुराने पानी ( 50 वर्ष से 40,000 ) वर्ष तक की पहचान के लिये प्रयोग में लाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त और भी कई अन्य रेडियोधर्मी समस्थानिक हैं जिनका प्रयोग करके हम कई लाख वर्ष पुराने पानी का पता लगा सकते हैं।
पानी की उम्र का पता लगने पर हम भूमिगत जलाशय के नवीनीकरण होने से सम्बन्धित जानकारी के साथ -२ पानी की उपलब्धता के बारे में एवं पानी की गति तथा जलाशय धारण करने वाली मिट्टी की चालकता इत्यादि का पता लगा सकते हैं। इसमें सबसे अधिक उपयोगी प्रथम दो सूचनायें होती है जोकि हमारे जीवन के लिये उपयोगी है। उदाहरण के लिये यदि हम बढ़ती हुई आबादी, शहरीकरण अथवा उद्योग- धन्धों के विकास की बात करें तो हमारी सर्वप्रथम आवश्यकता पानी की ही होती है। यदि नई कालोनी अथवा कोई बड़ा कलकारखाना किसी भी क्षेत्र में विकसित किया जाता है तो सर्वप्रथम वहाँ पानी की उपलब्धता पता लगाने के लिये आवश्यक जाँच पड़ताल के बाद गहरी बोरिंग की जाती है। मान लीजिए कि हमें 300 मीटर की गहराई पर पानी की उपलब्धता का पता चलता है लेकिन हमारे लिये केवल पानी की उपलब्धता का पता लगना ही काफी नहीं होता है। हमारे लिये यह भी जानना आवश्यक है कि जिस गहराई पर अथवा जिस क्षेत्र में हमें पानी मिल रहा है उसका नवीनीकरण किस गति से होता है।
इसका पता लगाने के लिये कई किलस्ट, एवं अत्यधिक धन तथा समय का व्यय करने वाले साधन हैं, लेकिन पानी की उम्र का पता लगाकर यह कार्य बड़ी ही सुगमता से कर सकते हैं। यदि पानी की उम्र काफी कम (50 वर्ष) आती है तब हम यह अन्दाजा लगा सकते हैं कि उपलब्ध जलाशय तीव्र गति से नवीनीकृत होता है तथा भविष्य में पानी लगातार मिलता रहेगा लेकिन यदि पानी की उम्र अधिक ( हजारों वर्ष ) मिलती है तो यह इस बात का स्पष्ट संकेत है। कि या तो जलाशय बहुत धीमी गति से नवीनकृत होता है जिससे पानी का व्यय सीमित दर से ही किया जा सकता है अथवा पानी हजारों वर्ष पहले किसी भूमिगत बदलाव के समय फंस गया था। अतः जो भी पानी की मात्रा उपलब्ध है, केवल उसे ही प्रयोग में लाया जा सकता है तथा उसके समाप्त होने पर हमें भविष्य में भूमिगत जल की उपलब्धता इस जलाशय से अथवा उस क्षेत्र में प्राप्त नहीं हो सकेगी । अतः पानी की आवश्यक मात्रा की लगातार उपलब्धता की गारन्टी न होने पर वहाँ कोई भी व्यय करना व्यर्थ होगा ।
इसके अलावा पानी की उम्र का उपयोग विशेषतः भूमिगत गहरे जलाशयों के नवीनीकरण क्षेत्र का पता लगाने के लिये और भी अधिक उपयोगी है। आपको ज्ञात होगा कि भूमिगत जल का प्रयोग उथले भूमिगत जलाशयों की अपेक्षा गहरे भूमिगत जलाशयों से अधिक ( लगभग 70%) किया जाता है। जबकि अधिकतर वैज्ञानिक अध्ययन उथले भूमिगत जलाशयों एवं उसके पानी तक ही सीमित होते हैं। बहुत अधिक आबादी वाले शहरों में लगातार भूमि की सतह को पक्की सड़कों व मकान इत्यादि बनाने के लिये प्रयोग में लाने पर शहरी क्षेत्र से भूमि में प्रवेश करने वाले पानी की मात्रा में लगातार कमी होती जाती है तथा पानी सतही जल के रूप में शीघ्र ही बह जाता है। इस प्रकार शहरी क्षेत्र में पाये जाने वाले उथले भूमिगतजलाशयों से भूमिगत जल के प्रयोग होने की दर बढ़ने तथा रिचार्ज की दर में कमी आने से पानी का स्तर गिरना शुरू हो जाता है तथा एक समय के पश्चात उथले भूमिगत जलाशयों में पानी की उपलब्धता लगभग समाप्त हो जाती है। इसके अतिरिक्त यदि किन्ही परिस्थितियों में उथले भूमिगत जलाशयों में पानी की उपलब्धता बनी भी रहती है तो वह विभिन्न प्रकार की मानवीय गतिविधियों के कारण भूमिगत जल को दूषित कर देती है। इस प्रकार हमें भविष्य में अत्यधिक घनी आबादी वाले अथवा विशाल शहरी क्षेत्रों में भूमिगत जल की उपलब्धता बनाये रखने के लिये गहरे भूमिगत जलाशयों पर ही निर्भर करना होगा। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारतवर्ष जैसे विशाल देश में जहाँ आबादी दिन दूनी तथा रात चौगुनी गति से बढ़ रही है वहाँ भूमिगत जल उपलब्धता की समस्या काफी क्षेत्रों में विकराल रूप धारण करती जा रही है। हमें भविष्य में पानी के स्रोत गहरे भूमिगत जलाशयों के नवीकरण क्षेत्रों एवं इनके नवीनीकरण के मुख्य स्रोतों की जानकारी या तो बिल्कुल नही है अथवा अत्यधिक सीमित है।
अतः यदि समय रहते इस दिशा में वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं किये गये तो वह दिन दूर नहीं जब हमें अभी जिन शहरी क्षेत्रों में प्रातः एवं सांय एक-एक घंटे के लिये पानी की जो सप्लाई मिलती है वह धीरे-धीरे सप्ताह में बदल जायेगी। उदाहरण के लिये यह मान लिया जाये कि दिल्ली शहरी क्षेत्र में पाये जाने वाले गहरे भूमिगत जलाशयों का नवीनीकरण क्षेत्र हरियाणा अथवा पंजाब राज्य में कहीं स्थिति हैं तथा वहाँ विकास अपने तरीके से किया जा रहा है अथवा दूषित तथा अवशेषों को बिना किसी जानकारी के उन्हीं क्षेत्रों में डम्प किया जा रहा है जो कि दिल्ली के गहरे भूमिगत जलाशयों के नवीनीकरण क्षेत्र हैं ऐसी स्थिति में निश्चित ही आने वाले वर्षों में दिल्ली में पाये जाने वाले गहरे भूमिगत जलाशय या तो सूख जायेंगे अथवा दूषित हो जायेंगे ।
उपर्युक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भविष्य में भूमिगत जल की उपलब्धता बनाये रखने के लिये हमें विशेष रूप से गहरे भूमिगत जलाशयों के नवीनीकरण क्षेत्र अथवा क्षेत्रों की जानकारी के लिए आवश्यक अनुसंधान कार्य अभी से शुरू कर देने चाहिए जिसके लिए विभिन्न स्थलों पर भूमिगत पानी की उम्र की जानकारी आवश्यक है।
स्रोत-राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान
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