पांच संस्कृतियों का हो साथ तो गोमा रहेगी खास

नए शोध का नतीजा, 750 नहीं 950 किमी. लंबी है गोमती नदी, खतरनाक स्तर तक प्रदूषण की चपेट में

ggs-2उद्गम से विलय तक हर जगह प्रदूषण से गोमती नदी कराह रही है। बस हालात वहीं बेहतर हैं जहां प्राकृतिक तरीके से गोमा का संरक्षण किया गया है। नए शोध के मुताबिक अपने हाल पर कराह रही गोमा से कुछ नए तथ्य जरूर जुड़े हैं। रिसर्च के मुताबिक गोमती की लंबाई 200 किमी. और अधिक पाई गई है। यही नहीं गोमती का प्रदूषण मुक्त करने के लिए पांच तरीके सुझाए गए हैं। इसके अनुसार आस्था नाव, कछुए नारी और वृक्ष से गोमती की निर्मलता कायम रहेगी।

मार्च-अप्रैल में गोमती यात्रा का आयोजन पीलीभीत से वाराणसी तक किया गया था। इसमें मुख्य रूप से तकनीकी रिसर्च टीम का नेतृत्व डॉ. भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी में इनवायरमेंटल साइंस के डॉ. वेंकटेश दत्ता ने किया था। पूरी यात्रा के दौरान रिसर्च के बिंदुओं का खुलासा उन्होंने राज्य भूगर्भ जल दिवस के मौके पर आयोजित सेमिनार में किया। उन्होंने बताया कि पूर्व में जियालॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने गोमती की कुल लंबाई को 750 किमी के करीब नापा था। यह दूरी माधौ टाण्डा पीलीभीत से कैथी वाराणसी तक की है। जबकि यह दूरी सड़क आदि को आधार मानकर बताई जाती है। जीपीएस के तहत जब गोमती के साथ-साथ चले तो नदी की कुल लंबाई 950 किमी. पाई गई है।

बरसात को छोड़ कर हर वक्त ठहराव


सामान्य दिनों में गोमती अपने उद्गम स्थल से लेकर आखिर तक कहीं भी फुल फ्लो में नहीं बहती है। केवल बारिश में ही इसका प्लो दिखता है। इसी वजह से प्रदूषण अधिक है। इसके अलावा छोटी-बड़ी कुल 26 नदियां गोमती में मिलती हैं। इनमें से एक सई भी है। सई में कई अन्य नदियां मिलती हैं। जिनकी संख्या गोमती में शामिल होने वाली नदियों में नहीं की गई है।

चाहिए 12 और हैं 4 प्रतिशत वन


गोमती के 950 किमी. लंबे रास्ते में वनों की संख्या मात्र 4 प्रतिशत जबकि मानकों के हिसाब से यह संख्या 12 प्रतिशत होनी चाहिए। इसी वजह से नदी में दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं। वेंकटेश और उनकी रिसर्च टीम ने गोमती के प्रदूषण स्तर को ए,बी,सी, डी और ई पांच वर्गों में बांटा गया। हर जगह प्रदूषण का स्तर सी से ई के बीच रहा।

नदी


लोगों को नदियों के नजदीक तक ले जाया जाए। वह नदी के महत्व को समझे जितना लोग नदी तक पहुंचेगे यह उतना ही उसकी स्वच्छता को लेकर गंभीर होते जाएंगे। जिससे सुधारने की कोशिशों में भी बढ़ोतरी होगी।

वट


वट संस्कृति का मतलब है अधिक से अधिक पौधरोपण। नदी के बीच से 500-500 मीटर दोनों ओर के लैंडयूज को वाटर बॉडी घोषित किया जाए ताकि यहां पौधरोपण के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हो सके। पार्क विकसित किए जाएं। ताकि लोग यहां घूमने आएं।

नाव


यात्रा के दौरान देखा गया कि जहां पुलों की संख्या अधिक है और नाव कम चलती हैं, वहां गोमती में प्रदूषण अधिक है। लोगों को नदी के नजदीक कम से कम पहुंचना पड़ता है इसलिए उनको नदी की चिंता भी कम होती है। इसलिए गोमती में नौकायन को बढ़ावा दिया जाए।

नारी


नारी संस्कृति का अर्थ है कि गोमती प्रदूषण मुक्ति अभियान से महिलाओं को अधिक संख्या में जोड़ने की आवश्यकता है। गांव में जहां भी पानी से जुड़े काम महिलाएं कर रही हैं। वहां गोमती बहुत साफ है। ये कम से कम गंदगी नदी में फैलने देती हैं।

कच्छप


गोमती के इकोलॉजिकल वैलेंस के लिए कछुए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। नदी में कई जगह बहुत बड़े-बड़े कछुए हैं। वहां प्रदूषण बहुत कम है। इसलिए नदी में कछुआ पालन को बढ़ावा देने की जरूरत है।

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