झारखंड में 'नीलाम्बर-पीताम्बर जल समृद्धि योजना' से चुल्हे की आग जलाने की कोशिश हो रही है। कोविड-19 की वजह से प्रवासी श्रमिकों का लाखों की संख्या में अपने गांव घरों की ओर लौटना अब सरकारों के लिए चुनौती बन गई है। 'नीलाम्बर-पीताम्बर जल समृद्धि योजना' के माध्यम से कोशिश यह है कि जो श्रमिक वापस आए हैं, उनको मनरेगा के माध्यम से काम दिया जाए। और काम ऐसा दिया जाए कुछ स्थाई-सामाजिक-संपत्तियों का निर्माण हो जाए और बेरोजगारों श्रमिकों को आजीविका भी मिल सके। झारखंड सरकार ने भारत सरकार से मिलने वाली मनरेगा मजदूरी को ₹182 से बढ़ाकर ₹ 202 कर दिया है। और सरकार को उम्मीद है कि श्रमिकों के मनरेगा में काम करने से ग्रामीण विकास में तेजी से मदद मिलेगी। झारखंड सरकार की ओर से बताया गया है कि सरकार 'नीलाम्बर-पीताम्बर जल समृद्धि योजना' के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा कृषि-जल भंडारण इकाइयां बनाना चाहती है। साथ ही सरकार का जोर भूजल भंडारों को बढ़ाने पर भी होगा। इस योजना का लक्ष्य पांच-लाख करोड़ लीटर भूमिगत-जल भंडार का अतिरिक्त क्षमता के निर्माण का है।
झारखंड एग्रो-क्लाइमेटिक जोन-7 में आता है। झारखंड की भौगोलिक स्थिति अधिकांशतः पठारी है। पठारी भूगोल होने के कारण वर्षा का जल तेजी से नदियों में उतर कर राज्य से बाहर चला जाता है। ऐसे में किसान ज्यादातर खरीफ की फसल के ही भरोसे रह जाते हैं। इसलिए झारखंड सरकार ने 'नीलाम्बर-पीताम्बर जल समृद्धि योजना' के तहत ऐसे उपाय करेगी, जिससे खेत का पानी खेत में रह सके। और खेत की नमी बढ़ जाए। इससे सरकार को उम्मीद है की किसान दो-सीजन की फसल तो ज़रूर ले पाएंगे।
दैनिक जागरण में छपी आनन्द मिश्र की एक रिपोर्ट बताती है कि जल संरक्षण से जुड़ी इस योजना को कार्यान्वित कर तत्काल रोजगार के साधन तो सृजित किए ही जाएंगे, भविष्य के लिए जल भी सहेजा जाएगा ताकि खेतों को पानी मिले। ऊपरी जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़े। मुख्यमंत्री ने 'नीलाम्बर-पीताम्बर जल समृद्धि योजना' को चार मई को लांच किया था, इस योजना पर अमल शुरू हो चुका है। 1200 करोड़ रुपये की इस पंचवर्षीय योजना की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि कुल लागत का 90 प्रतिशत सिर्फ मजदूरी मद में भुगतान किया जाएगा। दस करोड़ मानव कार्य दिवस का सृजन तो होगा ही। मनरेगा अंतर्गत संचालित इस योजना का विस्तृत ब्लू प्रिंट तैयार कर उस पर अमल की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। पहले साल पांच लाख हेक्टेयर भूमि का ट्रीटमेंट किया जाएगा। खेत का पानी खेत में रोकने के लिए प्रत्येक पंचायत के लिए औसतन 200 हेक्टेयर का टास्क तय किया गया है। झारखंड एग्रो क्लाइमेटिक जोन-7 में आता है, इसे आधार मानकर ही ब्लू प्रिंट का खाका इसी को आधार बना बुना गया है। वर्षा जल को ऊपर ही रोका जाएगा। इसके लिए दो तरह की टांड़ भूमि की मेढ़बंदी की जाएगी। जहां 5-20 प्रतिशत का ढलान है, वहां ट्रेंच कम बंड बनाए जाएंगे। जहां, पांच प्रतिशत से कम ढलान है, उन खेतों में फील्ड बंड बना पानी को बहने से रोका जाएगा।
'नीलाम्बर-पीताम्बर जल समृद्धि योजना' में सरकार के लक्ष्य एक नजर में -
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नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना के तहत जल संरक्षण की विभिन्न संरचनाओं का निर्माण कर राज्य की वार्षिक जल संरक्षण क्षमता में पांच लाख करोड़ लीटर जल की वृद्धि का लक्ष्य है।
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वर्षा जल के बहाव को कम करना। वर्षा जल का संरक्षण। जमीन में नमी की मात्रा को बढ़ाना। टांड़ खेत के पानी को खेत में रोकना। ऊपरी जमीन का संवर्धन एवं उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाना। इसके लिए जल संरक्षण की विभिन्न संरचनाओं का निर्माण करना।
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योजना के अंतर्गत 5 लाख एकड़ बंजर भूमि को ठीक किया जाएगा।
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योजना के अंतर्गत मनरेगा के तहत 10 करोड़ मानव दिवस का सृजन होगा।
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