मेघ पाईन अभियान अपने शुरूआती दौर में उत्तर बिहार के विभिन्न बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का अध्ययन किया। अध्ययन के उपरान्त चार जिलों (सुपौल, सहरसा, खगड़िया तथा मधुबनी) के एक-एक पंचायत में बाढ़ के समय आनेवाली समस्याओं में प्रमुख समस्या ‘‘शुद्ध पेय जल की समस्या’’ को चुनौती के रूप में स्वीकार किया। अभियान स्थानीय संसाधन व तकनीक से ‘वर्षाजल’ संग्रहण कर इसे पेयजल स्रोत के रूप में उपयोग करने की जानकारी लोगों को दी। उत्तर बिहार में ‘वर्षाजल संग्रहण’ का यह पहला प्रयोग था, जिसे सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली तथा यह क्रम चलता रहा। इस कार्य को मूर्त रूप देने के लिए अभियान सतत् समुदाय के सम्पर्क में रहता है।
अभियान के दूसरे-चरण में ‘जल-मंथन शिविर’ का आयोजन किया गया। अभियान द्वारा प्रथम चरण में किए गए प्रयासों, दूसरे चरण के शुरू में किए गए सर्वेक्षण के दौरान लोगों द्वारा प्राप्त जानकारी के आधार पर अभियान के मजबूत पक्ष, कमजोर पक्ष, अवसर तथा आशंका के सभी पक्षों का विश्लेषण, विशेषज्ञों के साथ किया गया। विश्लेषण से स्थानीय जल परिदृश्यों के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण सूचनाएं तथा जन-जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा हुई। भूजल में ‘‘लौह तत्व’’ की अधिकता होने की बात उभरकर आयी।
ग्रामीण इलाकों में अभियान के कार्यकर्ताओं को चापाकल से ‘लौह तत्व’ युक्त पानी पीने की परेशानी लोगों द्वारा बताई जाने लगी। चापाकल के पानी से वर्तन का पीला होना, सफेद कपड़ा इस पानी से साफ करने पर पीला होना, पानी पीने पर स्वाद में अन्तर होना इत्यादि, सारे लक्षण ग्रामीणों द्वारा बताये जाने लगे।
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