भारत में दुनिया के कुल जल संसाधनों का 4 फीसदी जल उपलब्ध है। राष्ट्रीय एकीकृत जल संसाधन विकास आयोग की रिपोर्ट 1999 के मुताबिक, भारत के अनुमानित 1123 अरब घन मीटर (बीसीएम) इस्तेमाल लायक पानी में से सतही जल की मात्रा लगभग 690 बीसीएम है और भूगर्भीय जल संसाधन 433 बीसीएम है।
जल ही जीवन है। वाकई पानी के बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं की जा सकती, लेकिन अफसोस की बात यह है कि जहां एक तरफ करोड़ों लोग बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं, वहीं इतने ही लोग जरूरत से ज्यादा पानी का इस्तेमाल करके इसे बर्बाद करने पर आमादा हैं। जब हम पानी पैदा नहीं कर सकते तो फिर हमें इसे बर्बाद करने का क्या हक है? भारत सहित दुनिया भर के अनेक देशों के लिए जल संकट एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम की 1999 में पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि 50 देशों के वैज्ञानिकों ने पेयजल किल्लत को नई सदी की सबसे बड़ी दो गंभीर समस्याओं में से एक करार दिया है।
उपलब्ध पानी का 70 फीसदी हिस्सा कृषि में इस्तेमाल होता है। विश्व जल परिषद के मुताबिक, 2020 तक मौजूदा पानी से 17 फीसदी ज्यादा की जरूरत होगी। इस वक्त दुनिया में हर पांच में से एक व्यक्ति को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग के मुताबिक, यूरोप में हर सातवें व्यक्ति को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के एक अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया भर के 110 करोड़ लोगों को पीने के लिए साफ पानी नहीं मिलता। इसलिए हर साल 50 लाख लोग जलजनित बीमारियों का शिकार होकर मौत के मुंह में समा जाते हैं। यह तादाद संघर्षों में मारे जाने वाले लोगों से दस गुना ज्यादा है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक, अगर इसी तरह जल संपदा का दोहन होता रहा तो 2027 तक दुनिया भर में 270 करोड़ लोगों को पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा, जबकि 250 करोड़ लोगों को मुश्किल से पानी मुहैया हो सकेगा। पृथ्वी का दो तिहाई हिस्सा पानी से घिरा है, लेकिन इसमें से पीने योग्य पानी बहुत कम यानी सिर्फ ढाई फीसदी है। इस पानी का भी दो तिहाई हिस्सा बर्फ के रूप में है। दुनिया भर में जितना पानी है, उसका महज 0.08 फीसदी हिस्सा ही मानव को उपलब्ध है। अनुमान है कि अगले दो दशकों में पानी की मांग करीब 40 फीसदी तक बढ़ जाएगी। जल संकट के लिए बढ़ती आबादी, जल संसाधनों का कुप्रबंधन और जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार हैं। जनसंख्या में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी के कारण पानी की ज्यादा जरूरत महसूस की जा रही है। जितना पानी जुटाया जाता है, उससे कहीं ज्यादा आबादी बढ़ जाती है, इसलिए पानी की कमी बनी रहती है।
इसके अलावा कृषि की परंपरागत सिंचाई व्यवस्था के कारण भी पानी बर्बाद होता है, जबकि आधुनिक फव्वारा तकनीक के जरिए सिंचाई में कम पानी इस्तेमाल होता है। आजादी के बाद भारत की कृषि भूमि में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। 1951 में जहां सिंचित भूभाग 226 लाख हेक्टेयर था, वहीं 2000 में यह बढ़कर 10 हजार करोड़ हेक्टेयर हो गया है। अमेरिका के नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के मुताबिक, आगामी पांच से दस सालों में उत्तर भारत में पानी की जबरदस्त किल्लत होने वाली है, क्योंकि दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भू-जल स्तर तेजी से गिर रहा है। इन प्रदेशों के भू-जल स्तर में पिछले सात सालों में एक फुट प्रति वर्ष की गिरावट दर्ज की गई है। इसकी सबसे बड़ी वजह सिंचाई में भू-जल का इस्तेमाल है। हालांकि भारत के नदियों में अथाह जलराशि है, लेकिन औद्योगिक कचरा और शहरों की गंदगी बहा दिए जाने से इनका पानी दूषित हो गया है।
जल संसाधन मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक, भारत में दुनिया के कुल जल संसाधनों का 4 फीसदी जल उपलब्ध है। राष्ट्रीय एकीकृत जल संसाधन विकास आयोग की रिपोर्ट 1999 के मुताबिक, भारत के अनुमानित 1123 अरब घन मीटर (बीसीएम) इस्तेमाल लायक पानी में से सतही जल की मात्रा लगभग 690 बीसीएम है और भूगर्भीय जल संसाधन 433 बीसीएम है। इसमें यह भी कहा गया है कि सभी स्रोतों में उठती मांगों की वजह से 2025 में करीब 843 बीसीएम जल की जरूरत होगी, जिसमें भूजल का योगदान 35.3 फीसदी अथवा 298 बीसीएम होगा। तीसरी लघु सिंचाई जनगणना के मुताबिक, 2001 में भारत में एक करोड़ 80 लाख भूजल विकास संरचनाएं थीं। अनुमान है कि यह संख्या अब बढ़कर 2 करोड़ तक पहुंच चुकी होगी।
1951 से 2001 के बीच भूजल सिंचित क्षेत्र में नौ गुना बढ़ोत्तरी हुई है। केंद्रीय भूजल बोर्ड ने राज्यों के साथ मिलकर सक्रिय भूजल संसाधनों का जो आकलन लगाया है, उसके मुताबिक, देश के भूजल संसाधनों में से करीब 50 फीसदी का ही इस्तेमाल हो रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों में भूजल की उपलब्धता और उपयोग में भारी भिन्नता है, मसलन भारत के गांगेय क्षेत्र और ब्रह्मपुत्र के व्यापक कछारों की भूगर्भीय संरचनाओं में प्रचुर भूजल संसाधन उपलब्ध हैं, जबकि प्रायद्वीपीय भारत की चट्टानी संरचनाओं में बेहद सीमित मात्रा में कहीं-कहीं ही पानी मिलता है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात और तमिलनाडु के अधिकांश क्षेत्रों में भूगर्भीय जलस्तर काफी नीचे चला गया है और जल संसाधनों का ह्रास हो रहा है। उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार एवं उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों और असम जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों में भी भूजल का स्तर संतोषजनक नहीं है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड नौवीं योजना की शुरुआत से ही देश के विभिन्न हिस्सों में विविध प्रकार की भूजल संरचनाओं के लिए उपयुक्त किफायती रिचार्ज तकनीक को लोकप्रिय बनाने के मकसद से वर्षा जल संचय और भूजल के कृत्रिम रिचार्ज प्रदर्शन की परियोजनाओं पर काम कर रहा है। ग्यारहवीं योजना के दौरान केंद्र प्रवर्तित योजना भूजल प्रबंधन एवं नियमन के तहत एक अरब रुपये का प्रावधान किया गया है। जल संसाधन मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, गुजरात और मध्य प्रदेश आदि सात राज्यों के उन स्थानों में खुदे हुए सूखे कुओं को रिचार्ज करने काम शुरू किया है, जहां पानी का अत्यधिक दोहन किया जाता रहा है और पानी की गंभीर कमी है। जल संसाधन मंत्रालय ने देश के 5000 प्रदर्शन स्थलों में कृषक सहभागिता कार्य अनुसंधान कार्यक्रम को भी मंजूरी दी है, जिस पर 24 करोड़ 46 लाख रुपये खर्च किए जाएंगे।
यह कार्यक्रम देश के 25 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के 375 जिलों में लागू किया जा रहा है। इसमें 60 कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध संस्थाओं, अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध शुष्क-उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र फसल अनुसंधान संस्थान, जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान और गैर सरकारी संगठनों की मदद ली जा रही है। इसका मकसद है कि पानी की हर बूंद के इस्तेमाल से पैदावार में बढ़ोतरी हो। हर कार्यक्रम न्यूनतम एक हेक्टेयर क्षेत्र में इस प्रकार सहभागिता के आधार पर चलाया जाता है कि किसान परिवार को लगे कि यह उसका अपना कार्यक्रम है। इसके तहत कृषि पद्धति, पानी की बचत और उसके भंडारण की व्यवस्था तथा कृषि यंत्रों का प्रदर्शन किया जाता है। भूजल संसाधनों में सुधार के अलावा मंत्रालय ने देश के उन क्षेत्रों में भूजल के उपयोग के नियमन के लिए अनेक कदम भी उठाए हैं, जहां पानी का अत्यधिक दोहन किया जाता रहा है। देश में भूजल के विकास और नियमन के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) का गठन किया गया है। प्राधिकरण ने 43 ऐसे क्षेत्रों को अधिसूचित किया है, जहां पीने के अलावा अन्य किसी कार्य के लिए पानी निकालने की संरचना के निर्माण की इजाजत नहीं है।
पीने एवं घरेलू उपयोग के लिए पानी निकालने की अनुमति देने का अधिकार जिला मजिस्ट्रेटों को सौंपा गया है। सरकार ने भूजल विकास और प्रबंधन पर नियंत्रण के दृष्टिकोण से उपयुक्त कानून बनाने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को विधेयक का एक प्रारूप भेजा है। इसमें राज्यों में संबंधित अधिकारियों द्वारा वर्षा जल संचय कार्यक्रम पर अमल के लिए प्रावधान किया गया है। ग्यारह राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने इस विधेयक को कानून का रूप दे दिया है। 18 अन्य राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में इसे कानून में बदलने की दिशा में कदम उठाए गए हैं। अब तक 18 राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों ने भवनों की छतों पर वर्षा जल संचय को अनिवार्य बना दिया है। जीआईएस तकनीक की मदद से केंद्रीय भूजल बोर्ड ने एक वेब जनित भूजल सूचना प्रणाली (डब्ल्यूईजीडब्ल्यूआईएस) का विकास किया है। इस प्रणाली से नीति निर्माताओं एवं नियोजकों को बड़े अथवा छोटे पैमाने पर योजना तैयार करने के लिए सभी तरह की जरूरी जानकारियां मिल रही हैं, जिनमें पानी का स्तर, उसकी गुणवत्ता और क्षेत्र की अन्य सामाजिक-आर्थिक सूचनाएं शामिल हैं।
सरकार ने भूजल विकास और प्रबंधन पर नियंत्रण के दृष्टिकोण से उपयुक्त कानून बनाने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को विधेयक का एक प्रारूप भेजा है। इसमें राज्यों में संबंधित अधिकारियों द्वारा वर्षा जल संचय कार्यक्रम पर अमल के लिए प्रावधान किया गया है। ग्यारह राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने इस विधेयक को कानून का रूप दे दिया है।
जल संसाधन मंत्री की अध्यक्षता में 2006 में भूजल कृत्रिम रिचार्ज सलाहकार परिषद का गठन किया गया। इस परिषद में केंद्र एवं राज्य सरकारों के संबंधित मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों, वित्तीय संस्थाओं, उद्योगों, गैर सरकारी संगठनों और किसानों के प्रतिनिधियों के अलावा विषय विशेषज्ञ सदस्यों को शामिल किया गया। परिषद की अब तक तीन बैठकें हो चुकी हैं। परिषद की सिफारिशों के आधार पर मंत्रालय ने अनेक कदम उठाए हैं, जिनमें राष्ट्रीय भूजल कांग्रेस, कृषक सहभागिता कार्य अनुसंधान कार्यक्रम (एफपीएआरपी), भूजल संवर्धन पुरस्कार और राष्ट्रीय जल पुरस्कार की स्थापना आदि शामिल हैं, ताकि गैर सरकारी संगठनों, ग्राम पंचायतों, शहरी स्थानीय निकायों, निजी व्यवसायिक क्षेत्रों एवं व्यक्तियों को वर्षा जल संचय, कृत्रिम रिचार्जिंग, पानी के उपभोग में किफायत और पानी को दोबारा इस्तेमाल में लाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। परिषद की सिफारिशों के मुताबिक, 2007 और 2010 में राष्ट्रीय भूजल कांग्रेस का आयोजन किया गया। भारत के उथले जलग्राही क्षेत्रों में भूजल की गुणवत्ता के बारे में केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा तैयार रिपोर्ट पिछले साल 8 अप्रैल को परिषद की तीसरी बैठक में पेश की गई। मंत्रालय द्वारा स्थापित भूमि जल संवर्धन पुरस्कार और राष्ट्रीय जल पुरस्कार अब तक दो बार यानी 2007 और 2010 में दिए जा चुके हैं।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने पेयजल संकट पर चिंता जताते हुए कहा है कि जहां पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध है, वहां प्रदूषण है। उन्होंने कहा कि पानी को बर्बाद करने का सिलसिला जारी है। चाहकर भी इस पर रोक नहीं लगाई जा रही है। इसकी एक वजह यह भी है कि अभी भी बहुत से लोगों को बिना मेहनत के आसानी से जरूरत से ज्यादा पानी मिल रहा है। कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि पानी बर्बाद करने वालों को किसी भी तरह की कोई सजा दी जाए। जो लोग पानी बर्बाद करते हैं, उन्हें ऐसी जगह भेज दिया जाना चाहिए, जहां पानी बहुत ही मुश्किल से मिलता हो, तभी वे पानी के महत्व को समझ पाएंगे।
जिन लोगों के घरों या नजदीक के किसी स्थान में पानी का नल उपलब्ध नहीं है, ऐसे शहरी बाशिंदों की तादाद पिछले एक दशक के दौरान करीब 11 करोड़ चालीस लाख तक पहुंच गई है, जबकि पानी की कमी के कारण साफ-सफाई की सुविधाओं से वंचित लोगों की संख्या 13 करोड़ 40 लाख है। पानी संबंधी चुनौतियाँ काफी आगे बढ़ चुकी हैं। अनेक देशों में महिलाओं को पनघट से पानी लाना पड़ता है। इसके अलावा समाज के अत्यधिक गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को अमीर लोगों के मुकाबले 20 से 100 फीसदी ज्यादा कीमत पर पानी खरीदना पड़ता है। रियो डि जेनेरियो में 2012 में होने वाले संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास सम्मेलन में पानी का मसला उठाया जाएगा। बहरहाल, हमें यह समझना होगा कि पानी पर सबका हक है। अगर हम किफायत से पानी का इस्तेमाल करें तो उस बचे पानी से किसी और का गला तर हो सकता है।
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