पानी पर राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण

पानी पर राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण
पानी पर राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण

हाल में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने ‘पेयजल शुद्धता रिपोर्ट’ जारी की है। यह रिपोर्ट भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा देश के 21 राज्यों की राजधानियों में नल से सप्लाई किए जाने वाले पेयजल की शुद्धता की जांच पर आधारित है। भौतिक परीक्षण, रासायनिक परीक्षण, विषाक्त पदार्थ और बैक्टीरिया आदि की मौजूदगी पर आधारित परीक्षण समेत कुल दस मानकों के अध्ययन के पश्चात जारी की गई इस रिपोर्ट में मुंबई पेयजल की शुद्धता के मामले में शीर्ष पर है, जबकि दिल्ली इस सूची में सबसे नीचे है। यह रिपोर्ट देश में पेयजल गुणवत्ता की भयावह तस्वीर पेश कर रही है!रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद उम्मीद थी कि पूरा देश इस मसले पर एकजुट होकर सकारात्मक विमर्श करेगा और इस विपदा से निपटने के निमित्त विभिन्न प्रयत्नों पर जोर देगा, लेकिन इसके ठीक विपरीत यह राजनीति की भेंट चढ़ गया!

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जल संपदा की घटती मात्र तथा उसकी गुणवत्ता में निरंतर हो रहे ह्रास पर चिंतन के बजाय सियासी नफा-नुकसान पर चर्चाओं का बाजार गर्म है। ऐसे समय में जब संयुक्त राष्ट्र ने भारत में 2025 तक ‘जल त्रसदी’ उत्पन्न होने की चेतावनी दी है, तब पर्यावरणीय समस्याओं का हल निकालने के बजाय उसे राजनीति की परिधि में लाना कितना उचित है? आज देश एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां जलवायु परिवर्तन, नगरीकरण-औद्योगीकरण की तीव्र रफ्तार, तालाबों-झीलों के अतिक्रमण, बढ़ते प्रदूषण, बढ़ती आबादी तथा जल संरक्षण के प्रति जागरूकता के अभाव ने प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता को गहरे तौर पर प्रभावित किया है। देश की एक बड़ी ग्रामीण आबादी के हिस्से को साफ पानी मयस्सर नहीं होता है। एक बड़ा शहरी तबका भी साफ पानी से महरूम है। ऐसे लोग दूषित जल पीने को लाचार हैं। चूंकि प्रदूषित जल में आर्सेनिक, लौह, फ्लोराइड आदि की मात्र अधिक होती है, इसलिए इसे पीने से तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी व्याधियां भी उत्पन्न हो जाती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में 86 फीसद से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित एवं दूषित पेयजल का सेवन है।बहरहाल इन दिनों जिस तेजी से भूगर्भीय जल के स्तर और गुणवत्ता में गिरावट आ रही है, उसने वर्तमान पीढ़ी की चिंताएं बढ़ा दी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दस वर्षो के दौरान अत्यधिक दोहन के कारण भूगर्भीय जल का स्तर 54 फीसद तक नीचे जा चुका है। वहीं जिस तेजी से देश में नदियों, तालाबों, कुंओं सहित चापाकलों का जलस्तर घट रहा है, उससे स्पष्ट है कि जल संरक्षण पर अब भी गंभीरता से काम नहीं हुआ तो भविष्य में सूखता कंठ हमारी जान ले लेगा। जल संरक्षण केवल सरकारी प्रयासों से नहीं हो सकता, अपितु इसके लिए समाज को भी आगे आने की जरूरत है। हालांकि देश में गर्मी के आगमन के साथ ही जल संरक्षण पर विमर्श का दौर भी शुरू हो जाता है, लेकिन जिस रफ्तार से सूरज की तपिश खत्म होती है, उसी रफ्तार में लोग बहुमूल्य जल के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भूलना भी शुरू कर देते हैं। हमें यह प्रवृत्ति बदलनी होगी। जल संरक्षण को दिनचर्या का हिस्सा बनाना होगा। जल की प्रत्येक बूंद का संरक्षण हमारी नैतिक, सामाजिक और पर्यावरण जिम्मेदारी हो, तभी इस स्थिति में सुधार की गुंजाइश है।

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Post By: Shivendra
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