पानी पर हो समाज का मालिकाना हक, पर्यावरणविदों ने कहा

इसे बुनियादी अधिकार बनाने की माँग

अनुपम मिश्र ने कहा कि आज भारत समेत पूरी दुनिया गम्भीर जल संकट से जूझ रही है। विश्व का 70 फीसद भाग जल से भरा हुआ है। लेकिन इसके 2.5 फीसद भाग को ही मानव के उपयोग लायक बताया गया है। शेष जल लवणीय होने के कारण मानव के उपयोग के लायक नहीं है।

नई दिल्ली, 15 फरवरी (भाषा)। पृथ्वी का करीब 70 फीसद हिस्सा जल से घिरे होने के बावजूद आज स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता बड़ा प्रश्न बनकर उभरा है। खास तौर पर भारत में जनसंख्या वृद्धि, प्रदूषण, औद्योगिकीकरण और भूजल के गिरते स्तर के कारण यह गम्भीर समस्या बन गया है। विशेषज्ञों ने इस दिशा में ठोस पहल करने और पेयजल को मौलिक अधिकार बनाने व पानी पर समाज का स्वामित्व स्थापित करने की माँग की है।

पर्यावरणविद अनुपम मिश्र ने कहा कि भारत में तीव्र नगरीकरण से तालाब और झीलों जैसे परम्परागत जल स्रोत सूख गए हैं। उत्तर प्रदेश में 36 जिले ऐसे हैं जहाँ भूजल स्तर में 20 सेंटीमीटर से ज्यादा गिरावट आ रही है। राज्य के विभिन्न जनपदों में प्रति वर्ष भारी संख्या में तालाब सूख रहे हैं। बंगलूर में हाल के कुछ सालों में 101 जलाशयों के सूखने की खब आई है। दिल्ली में भूजल का स्तर अप्रत्याशित रूप से नीचे गिरा है। चेन्नई और उसके आस-पास के क्षेत्रों में भूजल के स्तर में गम्भीर गिरावट आई है। यह गम्भीर जल संकट की ओर संकेत करता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत का संविधान अच्छे जीवन की गारण्टी देता है और अनुच्छेद 21 में देश के नागरिकों को जीवन का अधिकार तय करता है। ऐसे में सभी नागरिकों को स्वच्छ पेयजल जीवन का अधिकार है और इसे तय किए जाने और विभिन्न कानूनों व नीतिगत पहलों के अध्ययन व मूल्यांकन की जरूरत है।

जल जीवन है और यह सभी लोगों का मौलिक अधिकार है। जल नैसग्रिक प्राकृतिक संसाधन है जिसका उपयोग सदियों से लोग निःशुल्क करते आ रहे हैं। हालाँकि उदारीकण के युग में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ जहाँ जल का अपने फायदे के लिए दोहन कर रही हैं, वहीं आम लोगों को पीने का पानी मुहैया कराने के एवज में शुल्क लिए जा रहे हैं, जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

एक ओर जहाँ देश की बड़ी आबादी को स्वच्छ पेयजल मुहैया नहीं है, वहीं दूसरी ओर बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ बोतलबन्द पानी बेचकर मुनाफा कमाने में लगी हुई है। दूसरी ओर, अनुपम मिश्र ने कहा कि आज भारत समेत पूरी दुनिया गम्भीर जल संकट से जूझ रही है। विश्व का 70 फीसद भाग जल से भरा हुआ है। लेकिन इसके 2.5 फीसद भाग को ही मानव के उपयोग लायक बताया गया है। शेष जल लवणीय होने के कारण मानव के उपयोग के लायक नहीं है।

‘यमुना जिये’ आंदोलन के मनोज मिश्र ने कहा कि उदारीकरण के बाद से पानी की परिभाषा बदलती जा रही है और जल स्रोतों का अतिक्रमण भी किया जा रहा है। औद्योगिकीकरण के कारण तमाम जल स्रोत प्रदूषण के शिकार होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश के कई प्रदेशों में तालाबों व जलाशयों को नष्ट किया जा रहा है और वे अतिक्रमण के शिकार हो रहे हैं। पानी का सवाल आवश्यकता, आजीविका, पर्यावरण के दृष्टिकोण और सामाजिक व सांस्कृतिक तौर पर जुड़ा हुआ है। आदिवासी व दलित वर्ग इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं और इन्हें पानी के हक से वंचित किया जा रहा है।

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