पानी को ‘पानी की तरह’ न बहावें


प्रकृति की अनुपम बेशकिमती सौगात है पानी,
दुनिया में नहीं इसका कोई विकल्प और सानी,
वक्त का तकाजा है इसकी अहमियत को समझें और कद्र करें।
दूसरे की जरूरत ध्यान में रख इसे न बहाएं,
बेकार जल है अनमोल इसकी कीमत दिल से करें स्वीकार।

डॉ. सेवा नंदलाल

हम सबका यह दायित्व बन जाता है कि हम पानी की उपयोगिता को यथावत् समझें। आजकल पानी की बचत के लिए बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में आए दिन व्याख्यान आयोजित किए जाते हैं, विशेषकर कन्या महाविद्यालयों में, क्योंकि ये छात्राएं ही आगे चलकर गृहकार्य संभालने वाली है और महिलाएं ही पानी की खपत को रोकने के लिए अहम भू्मिका निभा सकती हैं। घरों में पानी का प्रयोग बर्तन धोने, कपड़े धोने, फर्श एवं पाखाने की सफाई आदि सभी कार्यों में होता है। स्वयं की सूझबूझ से इन तमाम कार्यों में पानी की खपत को कम किया जा सकता है।

दुनिया के लगभग हर बड़े शहर में जल प्रबंधन व्यवस्था गड़बड़ा चुकी है। विशेषज्ञों ने कह दिया है कि पानी अब एक साधारण वस्तु नहीं रह गई है, इसे एक दुर्लभ उपयोगी वस्तु मान लेना ही समय का तकाजा है। दुनिया भर में इस सवाल पर तीखी बहस चल रही है कि क्या अन्य वस्तुओं की तरह पानी को भी संसाधन माना जाना चाहिए। विश्व बैंक का मानना है कि उपभोक्ता को बिजली की तरह पानी की कीमत का भुगतान करना चाहिए। अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं पानी को संसाधन मानने का विरोध कर रही हैं।

वर्ल्ड वाच्ड इंस्टीट्यूट की उपाध्यक्षा सेंट्रा पोस्टल कहती हैं कि यदि समाज पानी को एक दुर्लभ वस्तु नहीं मानेगा तो आने वाले समय में जल संकट और बदतर हो जाएगा।

प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता तेजी से घटती जा रही है। यदि पानी के उपयोग की यही प्रवृत्ति जारी रही तो स्वच्छ जल की उपलब्धता और घट जाएगी।

हमें यह जानकर आश्चर्य होता था कि आज से कुछ दशकों पूर्व चेरापूंजी में सर्वाधिक वर्षा 11000 मिमी. हुआ करती थी लेकिन आज वहां ऐसी स्थिति नहीं है। वहां पर कभी जल संरक्षित नहीं किया जा सका। दिल्ली में हर वर्ष भूजल का स्तर कई फुट तक नीचे चला जाता है। जहां चेन्नई में 200 किमी. दूर से पानी लाया जाता है वहीं बेंगलुरू में 95 किमी. दूर कावेरी से पानी की आपूर्ति करनी पड़ती है।

इन सभी बातों को देखते हुए आज हम सबका यह दायित्व बन जाता है कि हम पानी की उपयोगिता को यथावत् समझें। आजकल पानी की बचत के लिए बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में आए दिन व्याख्यान आयोजित किए जाते हैं, विशेषकर कन्या महाविद्यालयों में, क्योंकि ये छात्राएं ही आगे चलकर गृहकार्य संभालने वाली है और महिलाएं ही पानी की खपत को रोकने के लिए अहम भू्मिका निभा सकती हैं।

घरों में पानी का प्रयोग बर्तन धोने, कपड़े धोने, फर्श एवं पाखाने की सफाई आदि सभी कार्यों में होता है। स्वयं की सूझबूझ से इन तमाम कार्यों में पानी की खपत को कम किया जा सकता है। सिर्फ महिलाएं ही नहीं अपितु घर के हर सदस्य व समाज के हर व्यक्ति का यह दायित्व है कि जल खपत में मितव्ययता लाएं। पानी महत्ता वही जान सकता है जिसे पानी भरने के लिए नल के सामने काफी समय व्यतीत करना पड़ता है। या पानी कहीं दूर-दराज से लाना पड़ता है या जहां पर पानी के लिए बहुत रकम अदा करनी पड़ती है। विश्व बैंक का मानना है कि 20वीं शताब्दी को जहां खनिज, तेल के संघर्ष के कारण याद किया जाएगा 21वीं शताब्दी में पानी के लिए युद्ध की संभावनाएं प्रबल हो सकती हैं इस सोच का प्रमुख आधार वह अध्ययन है जो विश्व की जनसंख्या वृद्धि दर तथा पानी की सीमित उपलब्धि को आधार मानकर किया गया था। इस अध्ययन के अनुसार मानव जाति की पानी की मांग प्रति वर्ष 2.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। वर्तमान अनुमानों से विश्व की 40 प्रतिशत जनसंख्या पानी की कमी का दुख भोग रही है और यह संकट विश्व के 80 से भी अधिक देशों में विद्यमान है।

पानी प्रकृति की अनुपम, अमूल्य और सर्वश्रेष्ठ देन है और उसे बचाना हम सबका दायित्व है। हम पानी की खपत को रोक सकते हैं। अज्ञानतावश हम कितना पानी अपनी दैनिक आवश्यकताओं में फालतू बहा देते हैं। इसका आंकलन मुंबई की इंडिया वाटर वर्क्स एसोसिएशन ने अपनी प्रकाशित पुस्तक ‘लीकेज डिटेक्शन एंड प्रिवेन्शन’ में प्रस्तुत किया है। इस शोध आंकलन में बताया गया है कि आधुनिक युग में बीते युग की अपेक्षा दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं तथा तौर-तरीकों के कारण पानी का कितना अपव्यय हो रहा है। एक अध्ययन के अनुसार काफी पानी तो लीकेज के चलते बर्बाद हो जाता है। हमारी सामूहिक मूर्खता का परिणाम है कि आज देश के कई राज्यों में पानी के संकट का सामना करना पड़ रहा है।

क्या आप जानते हैं कि एक कूलर उतना पानी पी जाता है जितना कि घर के सदस्यों के पीने के लिए पर्याप्त होता है। एक कारखाने को उतना ही पानी चाहिए जितना कि पूरे गांव वालों को चाहिए होता है। आज हम देख रहे हैं कि आबादी बढ़ने के साथ-साथ उद्योग और कृषि के क्षेत्र में पानी की मांग कई गुना बढ़ गई। पुराने समय में शौच के लिए आदमी जंगल में एक लोटा लेकर जाता था मगर आज फ्लश में एक बाल्टी चाहिए। आधुनिक जीवनशैली के कारण पानी की मात्रा की खपत में भी निरंतर बढ़ोतरी होना स्वाभाविक ही है। पानी की किल्लत के तीन मुख्य कारण हैं।

1. अनियमित-अनिश्चित वर्षा, 2. वर्षा जल का व्यर्थ बह जाना, एवं 3. जल का विलासितापूर्ण दुरुपयोग।

पानी कैसे बचाएं


ब्रश व मंजन करने के लिए हम प्रायः वाश बेसिन में नल खुला छोड़ देते हैं जब तक 5-7 मिनट हम ब्रश करते रहते हैं, वाशबेसिन की टोंटी चालू रहती है व पानी बहता रहता है। पानी के इस दुरुपयोग को रोकने के लिए आप एक जग या मग में पानी लेकर ब्रश करें तो 4-5 व्यक्ति के परिवार में ही एक बाल्टी पानी की बचत हो जाएगी। हमेशा ताजा पानी लेकर ही ब्रश करें क्योंकि ऐसा करने से स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा और पानी की भी बचत होगी। शेव करते समय भी एक मग/कप में पानी लें तथा ब्रश व रेजर धोते समय भी नल नहीं खोलें।

नल के नीचे नहाते समय टोंटी को कम से कम खोलें। साबुन लगाते समय टोंटी को बंद कर दें। बेहतर तो यह होगा कि आप टब या बाल्टी में पानी भर लें, उसके बाद उससे ही स्नान करें। इससे पानी की काफी बचत होगी। महिलाएं कपड़े धोते समय टब या बाल्टी में डिटरजेंट या पाउडर डालकर कपड़े को भिगो दें। एक घंटे बाद बाल्टी में ही कपड़ों को अच्छी प्रकार रगड़ें व पानी से खंगाल लें। इस साबुन के पानी को एकत्रित करती जाएं। जिसका इस्तेमाल आप पानी से फर्श की सफाई, बाथरूम की सफाई, अपने वाहन की धुलाई में कर सकती हैं, बाद में साफ पानी से धुलाई की जा सकती है।

हम घरों में आंगन, फुटपाथ आने-जाने के रास्ते की सफाई पाइप से करते हैं। इसके लिए चाहिए कि कपड़े धोने के बाद जो पानी शेष रह जाए उससे या बाल्टी में पानी लेकर सफाई करें। इसी प्रकार मोपेड, मोटर साइकिल इत्यादि को धोने के लिए भी पाइप का उपयोग किया जाता है, उन्हें भी बाल्टी में पानी लेकर सफाई करें, इससे कम पानी में ही काम हो जाएगा। कपड़े धोने से बचे पानी का उपयोग भी किया जा सकता है। आपके यहां पालतू गाय भैंस हैं तो उन्हें भी नहलाने के लिए यह पानी प्रयोग किया जा सकता है।

महिलाएं घरों में नल खुला छोड़कर बर्तन रखकर इधर-उधर चली जाती हैं या पड़ोसियों से बातें करने में मस्त हो जाती हैं, इस दौरान नल से पानी बहता रहता है। अतः जल आने के बाद ही टोंटी खोलनी चाहिए कई बार महिलाएं नल में पानी न आने के चक्कर में घर के सभी बर्तनों में पानी भरकर रख लेती हैं और जब शाम के समय पुनः नल में पानी आता है तो सभी बर्तनों का बहा देती हैं। बेहतर होगा कि आवश्यकतानुसार ही पानी भरें।

इस एकत्रित पानी को अन्य कामों में इस्तेमाल कर लें। प्रातः काल जब नल से पानी आता है तो एक दिन पूर्व का पानी मटके इत्यादि को धोकर फेंक देते हैं। इस पानी को फेंकने के बजाए सफाई के कार्य में लिया जा सकता है। बाथरूम व फर्श की सफाई की जा सकती है, गर्मी के दिनों में कूलर में भी यह पानी डाला जा सकता है।

आधुनिक समय में निजी वाहनों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। कुत्ते पालने के शौक में भारी इजाफा हुआ है। इनकी प्रतिदिन धुलाई में भी पानी को बहाया जा रहा है। इन सब कार्यों में यदि पानी की कमी नहीं लाई गई तो भविष्य में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

होटलों में प्रायः ग्राहक के आते ही पानी का गिलास प्रस्तुत किया जाता है, चाहे ग्राहक को पानी की आवश्यकता है या नहीं। अतः होटलों में ग्राहक के द्वारा पानी मांगे जाने पर ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए अन्यथा बेरर उस पानी को फेंक कर दूसरा पानी भरते हैं, जो पानी का अपव्यय ही है।

भवन निर्माण के समय सीमेंट के कार्य पर कुछ दिनों तक नियमित तराई की जाती है जो कि आवश्यक है। समतल स्थान पर टाट या बोरी के टुकड़ों को बिछाकर गीला कर दें इसमें पानी का पूरा सदुपयोग होगा साथ ही आपको बार-बार पानी डालने की आवश्यकता भी नहीं रहेगी। इस प्रकार भवन निर्माण का कार्य भी मजबूत होगा।

लोग सरकारी कार्यालयों, बस स्टैंड व सरकारी नलों को प्रायः खुला छोड़ देते हैं। जिससे पानी बहता रहता है। अतः ऐसी टोटियां लगी होनी चाहिए जिन्हें कि पुश करने पर ही पानी निकले। हर यात्री को चाहिए कि वह खुले नल को बंद कर दें। आपके घर पर नल की किसी टोंटी से पानी टपकता है तो उसे ठीक करवाएं, उसका वाशर बदल दें ताकि व्यर्थ ही पानी बहता न रहे। कूलर की जब आवश्यकता न हो तो उसे तत्काल बंद कर दें।

खेतों में सिंचाई के लिए आज के समय में बहुत ही अच्छे तौर-तरीके (पाइप द्वारा फव्वारा सिंचाई) विकसित हो गए हैं, किंतु आज भी कई किसान भाई परंपरागत तरीके से धोरों से सिंचाई करते हैं। यह गलत तरीका है। इसके द्वारा मुख्य खेत में काफी समय बाद पानी पहुँचता है तथा पानी की भी बहुत बर्बादी होती है। अतः पाइप द्वारा सिंचाई करें।

खेतों पर मजदूर व श्रमिक पानी पीने के लिए बार-बार मोटर चलाते हैं। यहां पानी काफी मात्रा में व्यर्थ हो जाता है। अतः मटकी या बाल्टी में पानी भर लेना चाहिए, ताकि बारंबार मोटर नहीं चलानी पड़े इससे पानी की बचत होगी साथ ही मोटर खराब होने का अंदेशा भी नहीं रहेगा।

आवश्यकता आविष्कार की जननी है, यह पंक्ति कोई नई नहीं है। हमारे नगर भवानीमंडी में भी मारवाड़ के भांति श्री मूलचंद जी सरावगी ने प्रयोग किया है। उन्होंने पूरी बरसात का पानी एक टैंक में एकत्रित कर लिया है, इससे उन्हें 2-3 माह तक पानी की समस्या का सामना ही नहीं करना पड़ा। उन्होंने अपनी छत का पूरा पानी पाइप की सहायता से कुएं में पहुंचाया व जलस्तर बढ़ाया। इन सभी बातों का अधिकाधिक प्रसार-प्रचार कर हम भूजल स्तर को बढ़ाने में योगदान दें सकते हैं।

आज सर्वत्र जल संकट है जिसे हम अपने प्रयास से पानी की बचत कर इस महत्वपूर्ण समस्या से निजात पा सकते हैं। तो आइए, संकल्प लें और आज से ही पानी की बचत शुरू करें। इस महायज्ञ में योगदान दें। तो आइए, हम पानी की बूंद-बूंद बचाएं- पानी की हर बूंद कीमती है। पानी को पानी की तरह समझ कर न बहाएं।

संपर्क
श्री अभय कुमारे जैन, तृप्ति, बंदा रोड, भवानीमंडी-326502 (बिहार)

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