![वाबसंद्रा झील: पुनरोद्धार के बाद की तस्वीर](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/hwp-images/33111_3.jpg?itok=8gKXeqQm)
सिल्वर सिटी बेंगलुरु पानी की किल्लत से बेहाल हो चुका है। एक करोड़ से अधिक आबादी वाला शहर बेंगलुरु साफ़ पानी के भारी संकट से जूझ रहा है। शहर को पानी की आपूर्ति का मुख्य स्रोत कावेरी नदी और झीलें ही रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि यहाँ की झीलों पर अतिक्रमण की बहुलता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक राज्य में 14198 जल-निकायों को प्रदूषित तथा अतिक्रमण से पटा हुआ पाया गया है। यह कितनी बड़ी समस्या है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बेंगलुरु जिसे कभी ‘झीलों का शहर' की उपाधि मिली थी, वहां भूजल का स्तर इस कदर नीचे हो गया है कि शहर में पानी का संकट विकराल हो चुका है। शहर के आर के पूरम, व्हाइटफील्ड, आर टी नगर, और जे पी नगर में बोरवेल लगभग 1500 फीट की गहराई पर है।
पानी की ऐसी किल्लत के बीच यह आवश्यकता है कि स्थानीय नागरिकों द्वारा झीलों को पुनर्जीवित करने की पहल की जानी चाहिए। तब जाकर ही क्षेत्र में पानी की समस्या से निजात मिल सकेगी।
बेंगलूरू के आनंद आंनद मल्लिगावद सूखती झीलों के लिये जैसे मसीहा बन गए। आनंद कॉर्पोरेट की नौकरी छोड़ शहर से पानी की समस्या खत्म करने के लिए कूद पड़ते है। उन्होंने बेंगलुरु में ‘इंडिया रीवर्स कलेक्टिव’ नाम से अभियान चलाया। जो झीलों, तालाबों और नदियों को बचाने के लिए काम करता है। आनंद वह व्यक्ति हैं जो बेझिझक झीलों और पर्यावरण के बारे में बात कर सकते हैं। उनका मानना है कि यदि सभी लोग हमारी इस मुहिम या ऐसे और अभियानों से जुड़कर काम करें तो हम शहर और पर्यावरण को बड़े स्तर पर प्रदूषित होने से बचा सकते हैं। मुख्यतः वह ऐसी झीलों को बचाने के अभियान पर है जो लगभग मरणासन्न हालत में है या अपने अस्तित्व को बचाने की बाट जोह रही हैं। ऐसी झीलों की तलाश में वे शहर और शहर के आस-पास यात्रा करते हैं, ताकि उन झीलों को एक नया जीवन दिया जा सके।
आनंद को देश-दुनिया में सुर्खियाँ तब मिली जब इन्होंने अपनी कॉर्पोरेट नौकरी की एक प्रोजेक्ट के दौरान एक झील पर काम कर रहे थे। इस प्रोजेक्ट की सफलता ने आनंद को पर्यावरण प्रेमी बना दिया। उनका दिल अब नौकरी में बंधकर काम करने में नहीं लग रहा था। उन्होंने स्वतंत्र रूप से पर्यावरण और समाज के लिये कुछ करने का मन बना लिया। बस फिर क्या था नौकरी से इस्तीफा दिया और चल पड़े झीलों को बचाने। फिलहाल इनका लक्ष्य 2025 तक ऐसी 45 झीलों के पुनर्निर्माण और कायाकल्प करने का है। इस कड़ी में उनका पहला लक्ष्य वाबसांद्रा झील था।
वाबसांद्रा झील की 4 एकड़ जमीन सूख चुकी थी
कायाकल्प से पूर्व वाबसंद्रा झील की तस्वीर
वाबसांद्रा झील बेंगलुरु में स्थित है। यह झील समतल सतह पर स्थित नहीं है, यह ऊँची-नीची सतहों पर करीब 10 एकड़ में फैली हुई है। शुरुआत में टीम को समझने में मुश्किलें आई कि वे कैसे इस प्रोजेक्ट को अंजाम दे। क्योंकि झील के चारो तरफ जंगली घास और गाद फैले हुए थे। झील की लगभग 4 एकड़ जमीन सूखी पड़ चुकी थी। जिसमे से 2 एकड़ जमीन को पहले खोदकर साफ़ किया गया और उसमे जलीय-जीव के साथ फ़िल्टर किया हुआ पानी भरा गया। झील की सफाई में यह ख़ास तौर पर ध्यान दिया गया कि पानी की बर्बादी न हो। सफाई की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद झील के चारों ओर एक अवरोध का निर्माण शुरू किया गया। जिसमे वहां के स्थानीय लोगों ने भी साथ दिया और उनके साथ 8 से 30 फीट तक की गहराई को बढ़ाते हुए झील के चारों ओर 2.5 किमी के क्षेत्र में इसे फैलाया। यह भी सुनिश्चित किया कि इन सभी प्रक्रिया में मिट्टी का क्षरण नहीं हो। इसके बाद प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करने के लिए हजारों देशी औषधीय पौधों, फलों और फूलों के साथ झील पर एक द्वीप की स्थापना की गई। इसके अलावा 1000 पौधे, जिनमें से 600 पौधे अलग-अलग किस्म के 20 प्रजातियों के फल थे, झील के चारों ओर लगाया गया। इस तरह टीम ने 2 से 2.5 एकड़ अतिक्रमित भूमि को मुक्त करने और उसे झील परिसर में पुनर्स्थापित करने में कामयाबी हासिल की।
वाबसंद्रा झील की तस्वीर
झील का पुनर्निर्माण हो जाने से अन्य झीलों को पानी आसानी से मिल सकेगी
वाबसांद्रा झील की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है कि इसके जल प्रवाह से अन्य झीलों को भी अपना जल-प्रवाह बनाए रख सकने में मदद मिलती है। इस झील की ऊपरी धारा होने के नाते इस झील को बहाल करने से यह सुनिश्चित हो गया कि वाबसांद्रा का पानी अन्य झीलों की यात्रा कर सकता है। बेंगलुरु की ज्यादातर झीलें अन्दर से एक-दुसरे के साथ जुडी हुई हैं। जिससे वाबसांद्रा की उंचाई पर स्थित होने के कारण नीचे की झीलों को पानी आसानी से उपलब्ध हो सकता था।
झील के पुनर्निर्माण का कार्य 60 दिनों में 80 लाख रुपये की धनराशि के साथ पूरा किया गया
इस प्रोजेक्ट पर काम करने हेतु आनन्द को अच्छी-खासी धन-राशि की ज़रूरत थी। वह अपने प्रोजेक्ट को लेकर कई कॉरपोरेट ऑफिसों में गए, ताकि उन्हें इसके लिए कहीं से आर्थिक मदद मिल सके। तब हेवलेट-पैकर्ड (एचपी) के तरफ से इस प्रोजेक्ट के लिए आर्थिक मदद देने की आश्वासन मिली। और उनसे प्राप्त लगभग 80 लाख रुपये की धनराशि से इन्होने 5 अप्रैल, 2018 को वाबसांद्रा प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया और महज दो महीने में 10 एकड़ क्षेत्र में इसे अच्छी-खासी साफ़ झील में तब्दील कर दिया। इस तरह आनंद और उनके साथ के स्वयंसेवकों की एक टीम ने 60 दिनों तक काम किया और 5 जून, 2018 को झील को पूरी तरह तैयार कर लिया।
वाबसांद्रा झील अन्य झीलों को जलदार बनाए रखने में मददगार
लगभग खत्म हो चुकी इस झील को आनंद और उनके साथियों ने अपनी मेहनत से 30 फीट गहरे पानी का भंडार बना दिया था जो पानी के स्वस्थ प्रवाह के साथ अन्य झीलों को जलदार बनाए रखने में मददगार है। बकौल आनंद भविष्य में इस क्षेत्र में आवासीय परिसरों के निर्माण की संभावना है। इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि वनस्पतियों और जीवों की निर्बाधता बनी रहे और कोई कचरा डंप न बने, इनकी टीम ने झील के परिसर में एक प्राकृतिक जैविक सीवेज संयंत्र को भी डिजाइन और निष्पादित किया है।
पुनरोद्धार के बाद की तस्वीर
आज इस जगह पर प्रकृति की छटा देखने को मिल रही हैं। नीलगिरी पहाड़ियों के बीच और ऊँचे पेड़ों के बीच स्थित यह स्थान अब एक प्रकार के छोटे ऊटी में बदल गया है, तो इसका श्रेय आनंद आंनद मल्लिग्वाद को जाता है। उन्होंने उम्मीद जतायी कि ऐसे ही स्थानीय लोगों के द्वारा मदद मिलती रहे तो वह और अधिक-से-अधिक झीलों का पुनर्निर्माण कर सकेंगे और शहर को पानी की समस्या से काफी हद तक निकालने में कामयाब भी होंगे।
आज बेंगलुरु ही नहीं, देश की कई बड़े शहरों में पानी की कमोबेश यही स्थिति है। ज़रूरत है तो आनंद आंनद मल्लिग्वाद जैसे चेहरों की जो इस समस्या को समझे और इससे निवारण हेतु काम करे। यह जानकर खुशी होती है कि आंनद 2025 तक बेंगलुरु तथा आस-पास के 45 झीलों का पुनर्निर्माण और कायाकल्प करने के लक्ष्य के साथ अपने काम मे अग्रसर हैं।
आनंद और उनकी टीम वृक्षारोपण वाले दिन
बेंगलुरु की झीलों को बचाने के इस अभियान से जुड़ने व आनंद के 'लेक रिवाइवर्स कलेक्टिव' मुहीम में मदद हेतु यहाँ सम्पर्क कर सकते हैं -
Email - m.anand161980@gmail.com
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