पानी की फिक्र : दस मई से पहले धान की नर्सरी नहीं

जैसे-जैसे औद्योगिक इकाइयों की तादाद, किसानों में नकदी फसल उगाने आदि से भूजल का दोहन तेज हुआ है। इसके चलते बहुत से इलाके बिल्कुल सूख गए हैं। वहां जमीन से पानी खींचना नामुमकिन हो गया है। अनेक क्षेत्रों में जल्दी ही ऐसी स्थिति पैदा होने की आशंका जताई जाने लगी है। भूजल संरक्षण के लिए कुछ राज्य सरकारें छिटपुट उपाय तो करती नजर आती हैं, मगर संकट के मुकाबले यह बहुत कम है। दिल्ली सरकार ने कुछ साल पहले नए नलकूप लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया और पहले से मौजूद नलकूपों के इस्तेमाल को नियंत्रित करने के मकसद से शुल्क की दर बढ़ा दी। अब पंजाब सरकार ने सिंचाई के नलकूपों के मनमाने इस्तेमाल करने पर लगाम लगाने की पहल की है। उसने एक अध्यादेश जारी कर दस मई से पहले धान की नर्सरी लगाने और पंद्रह जून से पहले रोपाई शुरू करने पर रोक लगा दी है। अगर कोई किसान ऐसा करता पाया जाएगा तो उसे दस हजार रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है। दरअसल, पंजाब में जल्दी धान उगाने की होड़ के चलते बहुत से किसान समय से पहले नर्सरी लगाना और रोपाई करना शुरू कर देते हैं। इससे गर्मी के मौसम में पानी का दोहन काफी बढ़ जाता है। अगर यही काम मानसून आने पर किया जाए तो भू- जल की खपत काफी कम हो जाती है। भू जल पर मंडराने वाले खतरे को पंजाब विश्वविद्यालय के कृषि विशेषज्ञों ने काफी पहले भांप लिया था। अठारह साल पहले ही उन्होंने राज्य सरकार को सुझाव दिया था कि नलकूपों के अंधाधुंध इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए धान की खेती से संबंधित दिशा- निर्देश जारी किए जाएं। मगर राज्य सरकार को अब आकर इसकी सुध आई है जब पंजाब के एक सौ आठ ब्लॉक शुष्क घोषित किए जा चुके हैं।

पंजाब सरकार के ताजा कदम से राज्य में भूजल के बेहिसाब दोहन पर निश्चय ही कुछ लगाम लगेगी। मगर यह उपाय बिल्कुल नाकाफी है। सिंचाई के अलावा भूजल का सबसे ज्यादा दोहन औद्योगिक इकाइयों के लिए किया जाता है। शीतल पेय और बोतलबंद पानी के कारोबार और कपड़े की रंगाई- धुलाई वगैरह करने वाले कारखानों में भी बड़े पैमाने पर भूजल का इस्तेमाल होता है। कई अध्ययनों से जाहिर हो चुका है कि जिन क्षेत्रों में शीतल पेय बनोन के संयंत्र लगे हैं वहां जमीनी पानी का स्तर काफी नीचे चला गया है। इसे लेकर स्थानीय लोगों के विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं। कुछ राज्यों ने औद्योगिक इकाइयों में जलशोधन संयंत्र लगाने की अनिवार्यता जरूर लागू की है, मगर इन कंपनियों के मनमाने भू जल दोहन पर रोक लगाने के मद्देनजर कोई व्यावहारिक और पारदर्शी दिशा- निर्देश अब तक नहीं तैयार किया जा सका है। रोजमर्रा के उपयोग लागय पानी की उपलब्धता लगातार कम होते जाना गंभीर चिंता का विषय है। जिन इलाकों में धरती के नीचे पानी है भी वह खेतों में रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के चलते तेजी से प्रदूषित हो रहा है। लिहाजा, धान की खेती को नियंत्रित करने जैसे हल्के उपायों से भूजल को बचाने का दावा नहीं किया जा सकता। पारंपरिक जल- स्रोतों के संरक्षण के साथ ही सिंचाई और औद्योगिक इकाइयों के लिए हो रही पानी की खपत को नियंत्रित करना होगा।
 

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