महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सूखे की मार झेल रहे दो बड़े राज्य है। यहाँ की स्थिति भयावह है। इन राज्यों से आ रही खबर और तस्वीरे प्यास की दर्द भरी कहानी कह रही हैं। देश में लापता हुए आधे-से-अधिक बच्चे इन दो राज्यों से आते हैं। सूखे के जैसे हालात इन दो राज्यों में हैं, आने वाले समय में यह चेतावनी ही है कि सावधानी नहीं बरती गई तो लापता बच्चों की संख्या में कई गुना वृद्धि हो सकती है।सूखा राहत की पूरी कवायद से बच्चे कहीं गायब हो गए थे। जिस सूखे की चपेट में देश की 33 करोड़ से अधिक आबादी हो। उसमें बच्चों का हाल क्या होगा?
वास्तव में पूरे देश से आ रही सूखे की खबर के बीच बच्चों की जिन्दगी का पहलू अनछूआ ही रह गया। वे बच्चे जो समृद्ध नहीं हैं। वे बच्चे जो पब्लिक स्कूल में नहीं पढ़ते। वे बच्चे जिनके घर पानी को साफ करने के लिये आरओ या फिल्टर नहीं लगा। वे बच्चे जिनके घर में एसी/कूलर तो क्या पंखा भी नहीं है। जिनके परिवार के लिये उन्हें दो वक्त की रोटी खिलाना भी मुश्किल है। इस सूखे की घड़ी में वे बच्चे कहाँ हैं? बचपन बचाओ आन्दोलन और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन अपने प्रयासों से पिछले कुछ समय से समाज, सरकार और मीडिया का ध्यान इस तरफ आकर्षित करने के लिये प्रयासरत है।
इस प्रयास की शृंखला में नोबल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने एक पत्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखा है। इस पत्र की जानिब से श्री सत्यार्थी ने प्रधानमंत्री को यह बताने का प्रयास किया है कि सूखे की वजह से बाल मजदूरी, बच्चों की बंधुआ मजदूरी, बच्चों की तस्करी और पलायन में अचानक तेजी आई है। श्री सत्यार्थी के अनुसार- सूखा प्रभावित 10 राज्यों के 254 जिलों में इस सूखे की मार 16 करोड़ 30 लाख बच्चे झेल रहे हैं।
बारिश में हो रही देरी और सूखे का अकाल की तरफ अग्रसर होना इन बच्चों के लिये खतरे का संकेत बनकर खड़ा है। स्कूलों में मध्याह्न भोजन नियमित नहीं मिल रहा है। समय पर भोजन ना मिलने की वजह से भूख से पीड़ित बच्चे स्कूल में लगातार कम हो रहे हैं, इसकी कोई जाँच-पड़ताल नहीं होती कि स्कूल से कम हो रहे बच्चे कहाँ हैं?
शिक्षकों की जिम्मेवारी हाजिरी रजिस्टर में यह दर्ज करना भर है कि कौन सा छात्र आया और कौन सा छात्र नहीं आया। इन बातों का आपसी सम्बन्ध तो जुड़ता ही है कि देश में सूखे की स्थिति है, सूखा प्रभावित राज्यों में स्कूल में बच्चों को मध्याह्न भोजन नियमित नहीं मिल रहा और इसी बीच बच्चों के पलायन में भी इजाफा दर्ज किया जाता है।
श्री सत्यार्थी का डर है कि समय रहते बच्चों को केन्द्र में रखकर राहत और बचाव का काम नहीं किया गया तो आने वाले समय में लाखों और नए बच्चे उपरोक्त मजदूरी, बंधुआ मजदूरी, पलायन, शेाषण की स्थितियों के शिकार होंगे। श्री सत्यार्थी ने अपने पत्र में बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने की अपील प्रधानमंत्री से की है। श्री सत्यार्थी के अनुसार कारपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी खासकर पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग का पैसा सूखे की जद में आये बच्चों के हित में खर्च होना चाहिए।
03 मार्च को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में एक प्रेस कांफ्रेन्स के दौरान कैलाश सत्यार्थी ने बताया कि बुन्देलखण्ड में सूखे के दौरान 24 प्रतिशत बाल मजदूरी बढ़ी है।
महाराष्ट्र अन्तर्गत बीड़ का ग्यारह वर्षीय सचिन केगर पानी के लिये तीस फीट गहरे कुएँ में उतर गया। कुएँ का पानी भी सूखने लगा था। इसी दौरान उसका पैर फिसला और उसकी मौत वहीं हो गई। इस सूखे में जान देने वाला सचिन अकेला नहीं है। कई बच्चों ने इस सूखे में अपना जीवन खोया है।
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सूखे की मार झेल रहे दो बड़े राज्य है। यहाँ की स्थिति भयावह है। इन राज्यों से आ रही खबर और तस्वीरे प्यास की दर्द भरी कहानी कह रही हैं। देश में लापता हुए आधे-से-अधिक बच्चे इन दो राज्यों से आते हैं। सूखे के जैसे हालात इन दो राज्यों में हैं, आने वाले समय में यह चेतावनी ही है कि सावधानी नहीं बरती गई तो लापता बच्चों की संख्या में कई गुना वृद्धि हो सकती है।
बाल विवाह और बाल मजदूरी की संख्या बाढ़ प्रभावित दस राज्यों में अधिक है। इस गम्भीर सूखे की स्थिति में बाल मजदूरी बढ़ेगी।
देश की दो तिहाई आबादी कृषि पर निर्भर है, जब खेत सूखे हैं। खेतों में पानी नहीं है। फसल नहीं है फिर ये किसान अपने परिवार को दो वक्त की रोटी कैसे खिलाएँगे? परिवार चलाने के लिये दिहाड़ी मजदूरी का रास्ता बचता है। मनरेगा के काम को लेकर भी देश बहस में उलझा है। ऐसे में बच्चों पर आने वाले संकट को लेकर कोई कार्य योजना नहीं बनाई गई तो वे किसी भयानक परिस्थिति के शिकार हो सकते हैं।
श्री सत्यार्थी के अनुसार सीएसआर का कई हजार करोड़ रुपए बिना इस्तेमाल के पड़ा हुआ है, उसे बच्चों के हक में सरकार को खर्च करना चाहिए।
बच्चों से जुड़ी बाल मजदूरी-बंधुआ मजदूरी की समस्या नई नहीं है। यह सतत प्रयासों से खत्म होगी। लेकिन हम सभी को प्रयासपूर्वक इस समय लगना होगा। इस पानी के संकट के समय बच्चों पर आने वाले संकट को समझना होगा और इससे निजात दिलाना एक व्यक्ति या संस्था से कभी सम्भव नहीं हो सकता है। इसके लिये एनजीओ, सीविल सोसायटी, कारपोरेट, सरकार सबको साथ मिलकर संयुक्त प्रयास करना होगा।
पानी के संकट के इस काल में आने वाली चुनौती के लिये हमने अभी से खुद को तैयार नहीं किया तो और सरकार की उपेक्षा की नीति यूँ ही बनी रही तो आने वाले समय में बच्चे पानी की कमी के सबसे आसान शिकार होंगे। कैलाश सत्यार्थी ने पत्र लिखकर आने वाले खतरे की घंटी का अलार्म बजा दिया है। अब समय रहते समाज, सरकार और मीडिया को जागना है।
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Post By: RuralWater