गर्मी की छुट्टियों में सुशान्त अपने मामा के यहाँ आया हुआ था। एक दिन सुबह के समय जैसे ही वह जागा, उसे गुसलखाने में से पानी बहने की आवाज सुनाई दी। सुशान्त ने गुसलखाने में जाकर देखा कि नल के नीचे रखी बाल्टी भर चुकी थी और नल में से पूरी रफ्तार से पानी बह रहा था। इससे पानी लगातार नाली में जाकर बर्बाद हो रहा था। सुशान्त ने नल की टोंटी बन्द कर दी।
वह गुसलखाने से बाहर आया ही था कि उसने देखा उसके मामा हाथ में पानी का मग पकड़े सामने से आ रहे हैं।
उसे देखते ही मामा बोले, ‘उठ गए सुशान्त बेटा! आओ हमारी बगिया में चलकर देखो, बहुत सुन्दर-सुन्दर फूल खिले हैं। मैं तो भई हर सुबह आधा-पौना घंटा बगिया में लगाए पेड़-पौधों को खाद-पानी देने में लगाता हूँ।’ कहते-कहते वे गुसलखाने में चले गए। दो-चार पल बाद वे बाल्टी से मग में पानी भरकर बाहर निकले, तो उन्होंने नल को फिर से खुला छोड़ दिया था। इससे बाल्टी से बहकर पानी फिर से बाहर गिरने लगा।
यह देख सुशान्त से रहा नहीं गया। वह कहने लगा, ‘मामा जी, नल को बन्द कर दूँ? पानी बेकार बह रहा है।’ सुशान्त ने यह कहते हुए आगे बढ़कर नल की टोंटी बन्द कर दी।
‘अरे, इससे क्या फर्क पड़ता है सुशान्त बेटा! पानी की कोई कमी थोड़े ही है। दिन-रात आता रहता है पानी।’ मामाजी बोल उठे।मामा की बात सुनकर सुशान्त कहने लगा, ‘मामाजी, आज अगर आपके यहाँ सारा दिन पानी आता है तो इसका मतलब यह नहीं कि हमेशा ऐसा ही होता रहेगा।’
‘क्या मतलब?’ मामाजी हैरानी से बोले।
‘मामाजी, मुझे तो बड़ा अचरज हो रहा है कि आपके शहर में दिन-रात नल में पानी आता रहता है। हमारे शहर में तो सुबह छह से आठ बजे तक ही पानी आता है। उसी समय हम लोगों को दिन भर की जरूरत का पानी भरकर रख लेना पड़ता है।’
‘पूरे दिन में सिर्फ दो घंटे आता है पानी तुम्हारे यहाँ?’ मामाजी ने हैरानी से पूछा।
‘मामाजी, हम तो फिर भी अच्छी हालत में हैं। हमारे देश के कुछ शहरों में तो एक दिन छोड़कर पानी आता है। कहीं-कहीं तो दो दिन छोड़कर आता है पानी।’ सुशान्त ने उत्तर दिया।
मामाजी की हैरानी बढ़ गई, ‘बेटा, अगर दो-दो दिन बाद पानी आता हो, तो काम कैसे चलता होगा लोगों का?’
‘काम तो चलाना पड़ता है मामाजी। पानी की कमी जो होती जा रही है।’ सुशान्त ने कहा।
मामाजी ने कुछ देर तक सोचा और फिर कहने लगे, ‘तब तो हमारे यहाँ भी पानी की कमी की नौबत आ सकती है।’
‘आ क्यों नहीं सकती। कभी-न-कभी तो ऐसा होना ही है। पानी के मामले में आजकल भारत को संकटग्रस्त देश माना जाता है, मगर 2050 में हमारा देश इस मामले में अत्यधिक अभावग्रस्त देशों की सूची में शामिल हो जाएगा।’ सुशान्त ने बताया।
‘क्या मतलब?’ मामाजी पूछने लगे।
‘मामाजी, देश में साफ पानी की कमी हो रही है।’
‘यह तो बड़ी गम्भीर बात है बेटा! मगर ये सब बातें तुम्हें पता कैसे हैं?’ मामाजी ने पूछा।
‘हमारे स्कूल में बताया जाता है न यह सब। हमें तो स्कूल में हर सुबह प्रार्थना के बाद पानी के सदुपयोग का संकल्प दोहराना पड़ता है। साथ ही हमें ऐसे तरीके भी सिखाए जाते हैं कि पानी का कम-से-कम इस्तेमाल कैसे किया जाए।’ सुशान्त ने खुलासा किया।
‘यह तो बड़ी अच्छी बात है।’ मामाजी बोले।
‘इसीलिये हम बच्चे अपने-अपने घर जाकर पानी बचाने के तरीकों के बारे में बताया करते हैं। इसी कारण इस होली पर हमारे शहर में बहुत से लोगों ने सूखी होली खेली थी।’ सुशान्त ने कहा।
‘सूखी होली मतलब बिना पानी का इस्तेमाल किए अबीर और गुलाल की होली?’ मामाजी बोले।
‘जी, मामाजी।’ सुशान्त ने हामी भरी।
‘तुमने तो बड़ी काम की बातें बताई हैं सुशान्त बेटा। हम लोग तो पानी को बचाने के बारे में कभी सोचते ही नहीं हैं।’ मामाजी कहने लगे।
‘मामाजी, हमारे देश में लगभग अस्सी प्रतिशत पानी तो खेती के काम में लग जाता है। अगर पानी का सही इस्तेमाल हो और खेती के लिये किसानों को पूरा पानी मिले, तो इससे फसलों की पैदावार में निश्चित रूप से बढ़ोत्तरी होगी।’
‘अब तो हम भी पानी की बर्बादी नहीं किया करेंगे। एक बात और बेटा। जितने दिन तुम यहाँ हो, आस-पड़ोस के लोगों को भी पानी के महत्त्व के बारे में जागरूक करने का काम करना’ मामाजी ने कहा।
‘जरूर करुँगा, मामाजी।’ सुशान्त ने उत्तर दिया और फिर मामा के साथ बाहर बगिया की ओर चल पड़ा।
लेखक ईमेल : harishkumaramit@yahoo.co.in
वह गुसलखाने से बाहर आया ही था कि उसने देखा उसके मामा हाथ में पानी का मग पकड़े सामने से आ रहे हैं।
उसे देखते ही मामा बोले, ‘उठ गए सुशान्त बेटा! आओ हमारी बगिया में चलकर देखो, बहुत सुन्दर-सुन्दर फूल खिले हैं। मैं तो भई हर सुबह आधा-पौना घंटा बगिया में लगाए पेड़-पौधों को खाद-पानी देने में लगाता हूँ।’ कहते-कहते वे गुसलखाने में चले गए। दो-चार पल बाद वे बाल्टी से मग में पानी भरकर बाहर निकले, तो उन्होंने नल को फिर से खुला छोड़ दिया था। इससे बाल्टी से बहकर पानी फिर से बाहर गिरने लगा।
यह देख सुशान्त से रहा नहीं गया। वह कहने लगा, ‘मामा जी, नल को बन्द कर दूँ? पानी बेकार बह रहा है।’ सुशान्त ने यह कहते हुए आगे बढ़कर नल की टोंटी बन्द कर दी।
‘अरे, इससे क्या फर्क पड़ता है सुशान्त बेटा! पानी की कोई कमी थोड़े ही है। दिन-रात आता रहता है पानी।’ मामाजी बोल उठे।मामा की बात सुनकर सुशान्त कहने लगा, ‘मामाजी, आज अगर आपके यहाँ सारा दिन पानी आता है तो इसका मतलब यह नहीं कि हमेशा ऐसा ही होता रहेगा।’
‘क्या मतलब?’ मामाजी हैरानी से बोले।
‘मामाजी, मुझे तो बड़ा अचरज हो रहा है कि आपके शहर में दिन-रात नल में पानी आता रहता है। हमारे शहर में तो सुबह छह से आठ बजे तक ही पानी आता है। उसी समय हम लोगों को दिन भर की जरूरत का पानी भरकर रख लेना पड़ता है।’
‘पूरे दिन में सिर्फ दो घंटे आता है पानी तुम्हारे यहाँ?’ मामाजी ने हैरानी से पूछा।
‘मामाजी, हम तो फिर भी अच्छी हालत में हैं। हमारे देश के कुछ शहरों में तो एक दिन छोड़कर पानी आता है। कहीं-कहीं तो दो दिन छोड़कर आता है पानी।’ सुशान्त ने उत्तर दिया।
मामाजी की हैरानी बढ़ गई, ‘बेटा, अगर दो-दो दिन बाद पानी आता हो, तो काम कैसे चलता होगा लोगों का?’
‘काम तो चलाना पड़ता है मामाजी। पानी की कमी जो होती जा रही है।’ सुशान्त ने कहा।
मामाजी ने कुछ देर तक सोचा और फिर कहने लगे, ‘तब तो हमारे यहाँ भी पानी की कमी की नौबत आ सकती है।’
‘आ क्यों नहीं सकती। कभी-न-कभी तो ऐसा होना ही है। पानी के मामले में आजकल भारत को संकटग्रस्त देश माना जाता है, मगर 2050 में हमारा देश इस मामले में अत्यधिक अभावग्रस्त देशों की सूची में शामिल हो जाएगा।’ सुशान्त ने बताया।
‘क्या मतलब?’ मामाजी पूछने लगे।
‘मामाजी, देश में साफ पानी की कमी हो रही है।’
‘यह तो बड़ी गम्भीर बात है बेटा! मगर ये सब बातें तुम्हें पता कैसे हैं?’ मामाजी ने पूछा।
‘हमारे स्कूल में बताया जाता है न यह सब। हमें तो स्कूल में हर सुबह प्रार्थना के बाद पानी के सदुपयोग का संकल्प दोहराना पड़ता है। साथ ही हमें ऐसे तरीके भी सिखाए जाते हैं कि पानी का कम-से-कम इस्तेमाल कैसे किया जाए।’ सुशान्त ने खुलासा किया।
‘यह तो बड़ी अच्छी बात है।’ मामाजी बोले।
‘इसीलिये हम बच्चे अपने-अपने घर जाकर पानी बचाने के तरीकों के बारे में बताया करते हैं। इसी कारण इस होली पर हमारे शहर में बहुत से लोगों ने सूखी होली खेली थी।’ सुशान्त ने कहा।
‘सूखी होली मतलब बिना पानी का इस्तेमाल किए अबीर और गुलाल की होली?’ मामाजी बोले।
‘जी, मामाजी।’ सुशान्त ने हामी भरी।
‘तुमने तो बड़ी काम की बातें बताई हैं सुशान्त बेटा। हम लोग तो पानी को बचाने के बारे में कभी सोचते ही नहीं हैं।’ मामाजी कहने लगे।
‘मामाजी, हमारे देश में लगभग अस्सी प्रतिशत पानी तो खेती के काम में लग जाता है। अगर पानी का सही इस्तेमाल हो और खेती के लिये किसानों को पूरा पानी मिले, तो इससे फसलों की पैदावार में निश्चित रूप से बढ़ोत्तरी होगी।’
‘अब तो हम भी पानी की बर्बादी नहीं किया करेंगे। एक बात और बेटा। जितने दिन तुम यहाँ हो, आस-पड़ोस के लोगों को भी पानी के महत्त्व के बारे में जागरूक करने का काम करना’ मामाजी ने कहा।
‘जरूर करुँगा, मामाजी।’ सुशान्त ने उत्तर दिया और फिर मामा के साथ बाहर बगिया की ओर चल पड़ा।
लेखक ईमेल : harishkumaramit@yahoo.co.in
Path Alias
/articles/paanai-kai-kaimata
Post By: Hindi