यदि आप इस बात से परेशान हैं कि आपके नल की टोंटी से बहुत कम समय तक ही पानी आता है तो आने वाले समय में इससे भी भयावह स्थिति के लिये तैयार हो जाइए। 2020 तक हम भले ही विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने का सपना देखते हों लेकिन विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार उसी अवधि तक देश के सभी बड़े शहर पानी की समस्या से जूझ रहे होंगे।
शहरीकरण
1. आने वाले वर्षो में देश की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार का पैमाना शहरीकरण से आंका जा सकेगा। अनुमानों के अनुसार 2030 तक 35 करोड़ आबादी शहरों की तरफ पलायन कर जाएगी।
2. 2050 तक यह आबादी दोगुनी हो जाएगी। वह आबादी अमेरिका की वर्तमान आबादी की ढाई गुणा अधिक होगी।
3. इस बढ़ती आबादी के लिये आधारभूत ढाँचा विकसित करने की दिशा में जल उपलब्धता की सबसे महत्त्वपूर्ण एवं निर्णायक भूमिका होगी। इसकी वजह यह है कि न्यूयार्क, लंदन और पेरिस जैसे विश्वस्तरीय शहरों के निर्माण में जल की महती भूमिका है। इतिहास गवाह है कि जल की कमी के चलते कई शहरों से लोग पलायन कर गए। अकबर की राजधानी फतेहपुर सीकरी को 1585 में जल की कमी के कारण ही छोड़ दिया गया।
खतरा
1. कुछ हिस्सों में पीने के पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड पाया जाना स्वास्थ्य के लिये सबसे बड़ा खतरा है।
2. जल स्रोतों का कुप्रबन्धन अत्यधिक निकासी और प्रदूषण इसके प्रमुख कारण हैं।
3. शु़द्ध पेयजल के स्तर में अभूतपूर्व सुधार हुआ है लेकिन विश्व बैंक के एक आंकलन के अनुसार 21 प्रतिशत संचारी रोग दूषित जल की वजह से होते हैं।
4. भारत में अकेले जलजनित बीमारियों की वजह से अर्थव्यवस्था को 7.3 करोड़ कार्य दिवसों का नुकसान होता है।
5. बोतल बंद पानी की बिक्री हर साल 60-80 अरब डाॅलर के बीच की है।
6. डायरिया की वजह से पाँच साल से कम उम्र के चार लाख बच्चों की सालाना मौत होती है।(स्रोत: दैनिक जागरण, दिनांकः 27/4/12)
7. दुनिया में 35.75 लाख लोग हर साल जलजनित बीमारियों का शिकार होकर मरते हैं। यह अमेरिका के पूरे लाॅस एंजिलिस शहर की आबादी के बराबर है।
8. 88.4 करोड़ लोगों को शुद्ध जल नहीं मिलता। यह आबादी अमेरिका की जनसंख्या से तीन गुना से भी ज्यादा है।
9. 78 करोड़ लोगों की पहुँच शुद्ध पेयजल स्रोतों तक नहीं है। यानि कि हर नौ में से एक व्यक्ति शुद्ध पेयजल से वंचित है।
10. 43 प्रतिशत मौतें डायरिया की वजह से होती हैं। दुनिया के आधे गरीब गंदगी और दूषित जल की वजह से बीमार होते हैं।
11. एक ही शहर में रहने वाले धनी व्यक्ति की तुलना में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाला व्यक्ति प्रति लीटर जल के लिये 5-10 गुना अधिक खर्च करता है।
12. एक अरब से भी ज्यादा लोग प्रतिदिन छः लीटर से भी कम पानी पर गुजारा करते हैं।
13. एक बार टॉयलेट के दौरान औसतन आठ लीटर साफ जल फ्लश द्वारा खर्च किया जाता है।
14. दुनिया के आधे स्कूलों में साफ पेयजल और सफाई का अभाव है।
15. दुनिया के कुल जल उपयोग में कृषि की हिस्सेदारी 70 और उद्योग की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत है।
16. अफ्रीका और एशिया की महिलाओं को पानी के लिये औसतन 3.7 मील चलना पड़ता है।
17. विकासशील देशों में 90 प्रतिशत अपशिष्ट जल नदियों और जलाशयों में प्रवाहित कर दिया जाता है। (स्रोत: दैनिक जागरण, दिनांकः 26/4/12)
पिछले दिनों फ्रांस में विश्व जल फोरम का आयोजन किया गया, जहाँ दुनिया भर के लगभग 150 देशों के 20 हजार से अधिक लोगों ने भाग लिया। सम्मेलन में प्रमुख रूप से पेयजल, स्वच्छता, सिंचाई, कम पानी की खेती, खाद्य सुरक्षा, शहरी इलाकों में पेयजल स्वच्छता और स्वच्छता के अधिकार पर व्यापक चर्चा की गई। इन सबके चिन्तन केन्द्र में हाशिए पर पड़े कमजोर, सामाजिक रूप से बहिष्कृत समुदाय, महिलाएं और बच्चे रहे। इस सम्मेलन में विश्व में लगातार बढ़ रही गरीबी और विषमताओं का असर सीधे तौर पर दिखाई दिया।
सम्मेलन में व्यापक सहमति बनी कि पानी लाभ के लिये नहीं है। यह एक प्राकृतिक संपत्ति है। इस पर सबका बराबरी का अधिकार है। सम्मेलन में जहाँ सामाजिक कार्यकर्ता पानी के व्यापार का विरोध कर रहे थे वहीं दूसरी तरफ पानी के कारोबार में अपना मुनाफा खोज रही कंपनियाँ पानी के व्यवसायीकरण की वकालत भी कर रही थी। ये कंपनियाँ जल संकट के समाधान के नाम पर बाजार खड़ा करने की योजना बना रही हैं। आने वाले समय में पानी का कारोबार दुनिया का सबसे मुनाफे का कारोबार साबित होगा। वैसे अभी भी दुनिया में पानी का सालाना कारोबार 1 लाख करोड़ रूपये से अधिक का है जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
पानी का कारोबार करने वाली कंपनियाँ अपने लाभ व व्यापार के लिये प्राकृतिक संसाधनों जैसे नदियों, झीलों व झरनों को (पहाड़ों) को अपने कब्जे में ले रही हैं। भारतीय संदर्भ में देखें तो एक लीटर पानी की एक बोतल पर कंपनी लगभग 10 रूपये का मुनाफा कमाती है। यानि पानी का कारोबार 70 प्रतिशत लाभ का कारोबार है। कंपनी अपने बाजार को स्थापित करने में समाज का हित घोषित करने वाली संस्थाओं को भी अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रही हैं ताकि आम आदमी तक उनकी पहुँच आसानी से हो सके। भूगर्भीय जल का अत्यधिक दोहन होने के कारण एक बड़ी आबादी की शुद्ध पेयजल से पहुँच दूर होती जा रही है।
छठे विश्व जल सम्मेलन में पानी के बाजार के विरोध में आवाज उठी और सामूहिक रूप से माना गया कि प्रकृति के निःशुल्क उपहार पानी का व्यापार नहीं होना चाहिए। फ्रांस में इस सम्मेलन स्थल में 20 हजार लोगों ने मार्च निकालकर बताया कि पानी व्यापार के लिये नहीं है। पानी के व्यापार का असर पूरी मानव सभ्यता पर पड़ रहा है। सम्मेलन ने पानी के व्यवसायीकरण को जल के वैश्विक संकट का कारण बताया।
पानी की प्राचीन व्यवस्था में यह सुनिश्चित किया गया था कि सबको बिना किसी भेदभाव के पानी मिल सके। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी पानी को कर से मुक्त रखा गया था। कुछ वर्ष पहले संयुक्त राष्ट्र संघ पेयजल और स्वच्छता को मानवीय परिभाषाओं में शामिल किया है। मौलिक अधिकारों के प्रति सरकार की जवाबदेही बनती है, लेकिन मौलिक अधिकारों को निजी क्षेत्र में सौंपने का फायदा उठाकर वैश्विक स्तर पर पानी का कारोबार लगातार बढ़ रहा है।
भारतीय लोक परंपरा में पानी पिलाने का काम पुण्य का काम माना जाता है। इसलिए ज्यादातर लोग जरूरतमंदों को पानी उपलब्ध कराने के लिये कई तरह के इंतजाम करते आए हैं, लेकिन धीरे-धीरे ये प्रयास कमजोर हो रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण से पानी भी प्रदूषित तथा विशाक्त होता जा रहा है। निजी क्षेत्र इस अवसर का फायदा उठाना चाहता है। आधुनिक जीवन शैली और जलवायु परिवर्तन का सीधा असर पेयजल पर पड़ रहा है, जिस कारण पानी की खपत बढ़ रही है। वहीं पानी के भंडारण में कमी आती जा रही है। भूगर्भीय जल स्तर नीचे जा रहा है। कृषि में पानी की उपयोगिता लगातार बढ़ती जा रही है। इसे तत्काल कम करने की आवश्यकता है।
अब समय ही बताएगा कि आने वाले दिनों में यह वैश्विक सामूहिकता क्या असर दिखाती है? (स्रोत: दैनिक जागरण, दिनांकः 27/4/12)
सम्पर्क
पवन कुमार शर्मा, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की
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