पानी के लिए तरसता महाराष्ट्र

महाराष्ट्र राज्य के जलाशयों की हालत इतनी खराब है कि अभी सही से गर्मी भी नहीं पड़ रही है और राज्य के सभी बांधों में मात्र 27 प्रतिशत पानी बचा है। पिछले साल यह प्रतिशत 42 था। पुणे क्षेत्र के पिंपलगांव, जोग, टेमघर, गुंजवणी और कूर्डि-वडज बांधों में मात्र चार प्रतिशत पानी बचा है। राज्य के 12 बांध पूरी तरह से सूख गए हैं। राज्य के बड़े बांधों की हालत भी ठीक नहीं है। महाराष्ट्र के पानी की परेशानी के बारे जानकारी देते अशोक वानखड़े।

महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा पर राज्य की जत तहसील के 44 अकालग्रस्त गांवों ने पानी की कमी से परेशान होकर कर्नाटक राज्य में शामिल होने की इच्छा जाहिर की है। राज्य के कमजोर प्रशासन का इससे अच्छा उदाहरण नहीं हो सकता कि पीने के पानी जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित रहने के कारण अपने ही राज्य को छोडऩे का निर्णय उक्त 44 गांव के लोगों ने तब लिया, जब राज्य एक मई को अपनी वर्षगांठ मना रहा था।

मुंबई के पास ठाणे जिले के मोखाडा तहसील के दोल्हारा गांव की 37 वर्षीय पार्वती जाधव को एक मटके पीने के पानी के लिए अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। दोल्हारा गांव पानी के संकट से जूझ रहा है। गांव में कभी-कभार पानी का टैंकर आता है। टैंकर के आते ही पानी लेने के लिए गांव के लोग इस कदर टैंकर पर टूट पड़े कि पार्वती की उस भीड़ में फंस कर मौत हो गई। इस वर्ष महाराष्ट्र में जलसंकट से होने वाली यह पहली मौत थी। दोल्हारा गांव के लोगों का दुर्भाग्य है कि गांव की जनसंख्या डेढ़ हजार के आसपास है और योजना के अनुसार सरकार पीने के पानी की व्यवस्था करने के लिए प्रति व्यक्ति 2300 रुपए देती है। उस हिसाब से दोल्हारा को मात्र 35 लाख रुपए ही मिल सकते हैं, जबकि जलापूर्ति के लिए जो नल योजना गांव वालों ने प्रस्तावित की है, वह डेढ़ करोड़ की है। नेता से अधिकारी तक सब इस बात को मानते हैं कि सरकार की योजना में गलतियां हैं, लेकिन कोई इसे ठीक नहीं करना चाहता।

मोखाडा तहसील में 23 में से मात्र पांच नल योजनाएं चल रही हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से टैंकरों से पानी की आपूर्ति करना मुश्किल हो जाता है। इस क्षेत्र में रहने वालों का दुर्भाग्य है कि उनके ही क्षेत्र का पानी जिन बांधों में रोका जाता है, वह तानसा, भातसा, बारवी और सूर्या जैसे बांध मुंबई और ठाणे शहर को पानी की आपूर्ति करते हैं, जबकि इस क्षेत्र को लोग पीने के पानी के लिए तरसते हैं। ठाणे जिले में हर साल औसतन तीन हजार मिलीमीटर बारिश होती है। बारिश का यह पानी बहकर समुद्र में समा जाता है। अगर सरकार चाहे तो इस पानी को रोक कर पूरे जिले को पानी के संकट से मुक्त कर सकती है, लेकिन हर वर्ष गर्मी में योजनाएं बनती हैं और बरसात में बह जाती हैं। यह हाल मात्र ठाणे जिले का नहीं, पूरा राज्य सरकार की गलत नीतियों से प्यासा तड़प रहा है।

राज्य में गर्मी का प्रकोप अभी पूरी तरह से शुरू भी नहीं हुआ है, लेकिन पूरा राज्य पानी की कमी से जूझ रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मई के पहले सप्ताह तक राज्य के 1014 गांवों और 4162 छोटे कस्बों में 280 सरकारी और 789 निजी टैंकरों से पानी पहुंचाया जा रहा है। सरकार भले ही कहे कि राज्य के नौ जिले जलगांव, धुलिया, नंदुरबार, गोंदिया, चंद्रपुर, गढ़चिरौली, भंडारा, परभणी और सिंधुदुर्ग टैंकर मुक्त हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। इन जिलों के जनप्रतिनिधि भी जनता की पानी की मांग से परेशान हैं। राज्य की विधानसभा में विपक्ष के नेता एकनाथ खडसे के गृह जिले जलगांव में 75 टैंकरों से वह लोगों की प्यास बुझाने का प्रयास कर रहे हैं। सरकारी अधिकारी भले ही मुंबई को बताते हों कि जल स्वराज योजना की सफलता से राज्य के नौ जिले टैंकर मुक्त हो गए हैं, लेकिन जलस्वराज योजना मात्र कागजी कार्यवाही बनकर रह गई है।

अप्रैल के अंत तक महाराष्ट्र के कई बांध सूख गयेअप्रैल के अंत तक महाराष्ट्र के कई बांध सूख गयेराज्य के जलाशयों की हालत पतली है। अप्रैल के अंत तक राज्य के सभी बांधों में मात्र 27 प्रतिशत पानी बचा है। पिछले साल यह प्रतिशत 42 था। राज्य के कोंकण क्षेत्र में 677 दस लाख घनमीटर, मराठवाड़ा में 1214, नागपुर 1162, अमरावती 674, नासिक में 1007 और पुणे में 2623 दस लाख घनमीटर पानी है। इस तरह राज्य के बांधों में कुल मिलाकर 10015 दस लाख घनमीटर पानी बचा है, जिससे आने वाले जुलाई तक की पूर्ति होनी है, जो नामुमकिन है। राज्य के 17 ऐसे बड़े बांध हैं, जहां के जलाशय खाली हो चुके हैं। विदर्भ के लोअर वेनार, बाग कालीसरार, दिना, खड़कपूर्णा, पेंटाकली बांधों में नाममात्र प्रतिशत पानी बचा है। पुणे क्षेत्र के पिंपलगांव, जोग, टेमघर, गुंजवणी और कूर्डि-वडज बांधों में मात्र चार प्रतिशत पानी बचा है। मराठवाड़ा के लोअर तेरणा और पूर्ण सिद्धेश्वर बांध सूख चुके हैं। सबसे चिंता का विषय है नासिक क्षेत्र के बांध। यहां से मुंबई और मराठवाड़ा के कई शहरों को पानी की आपूर्ति होती है, यहां पर कडवा बांध में 2, भवली में 8, ओझारखेड में 5, तीसगांव और पुणेगांव में 2 प्रतिशत पानी बचा है।

राज्य के 12 बांध पूरी तरह से सूख गए हैं। राज्य के बड़े बांधों की हालत भी ठीक नहीं है। पानशेत में 26, उजनी-उंणे में 5, भंडारदरा में 29, गंगापुर में 23, जायकवाड़ी में 10, मांतजरा में 8, नलगंगा में 20, अरुणावती में 24 और कोयना में 44 प्रतिशत पानी बचा है। हर साल अपने बजट में हजारों करोड़ रुपए का आवंटन कर राज्य में नई सिंचाई परियोजनाओं की घोषणा करने वाली सरकार धन आवंटित कर खर्च करना जानती है। न तो उसे पुरानी परियोजनाओं के हालात पर विचार करने का समय है और न ही नई योजनाओं की पूर्णता का। हर साल सरकार राज्य को टैंकर मुक्त करने के वादे करती है, लेकिन गर्मी का मौसम आते ही लोगों को भगवान भरोसे छोड़ देती है।

महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा पर राज्य की जत तहसील के 44 अकालग्रस्त गांवों ने पानी की कमी से परेशान होकर कर्नाटक राज्य में शामिल होने की इच्छा जाहिर की है। राज्य के कमजोर प्रशासन का इससे अच्छा उदाहरण नहीं हो सकता कि पीने के पानी जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित रहने के कारण अपने ही राज्य को छोडऩे का निर्णय उक्त 44 गांव के लोगों ने तब लिया, जब राज्य एक मई को अपनी वर्षगांठ मना रहा था। राज्य की जनता का आक्रोश देख सरकार ने 15 जिलों को अकालग्रस्त घोषित कर 10 करोड़ रुपए की विशेष सहायता राशि देने का फैसला किया है। ये जिले हैं नासिक, धुलिया, अहमदनगर, नंदूरबार, पुणे, सातारा, सांगली, अमरावती, लातूर, नागपुर, उस्मानाबाद, सोलापुर, गोंदिया, गढ़चिरौली और बुलढाणा। लेकिन, सवाल यह है कि क्या 150 करोड़ रुपयों से इन 15 जिलों के लोगों की प्यास और मवेशियों को चारे की भूख मिट पाएगी।

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