पानी के लिए जहां बहता है खून

9 अगस्त 2011 इतिहास में दर्ज हो जाएगा, 9 अगस्त 1942 को गांधी जी ने बम्बई में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था। 9 अगस्त 2011 को अब किसानों की जायज मांगों को बेरहमी दमन करने के लिए गोली चलाई गई। किसानों की मांग है कि पावना बांध का पानी पहले उनके खेतों में जाना चाहिए, ना कि शहर में। किसानों का ये आंदोलन तीन साल पुराना है। वो 2008 से ही पावना डैम से पिंपरी चिंचवाड़ तक पाइप लाइन बिछाने का विरोध कर रहे हैं। किसानों को डर है कि पाइप लाइन बन जाने से उन्हें सिंचाई के लिए भरपूर पानी नहीं मिलेगा। यह रपट भास्कर अखबार से ली गई है . . .

पूरे देश ने राखी और आजादी का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया। लेकिन पुणे जिले के मावल क्षेत्र के किसानों के घर मातम छाया हुआ था। अपने हिस्से का पानी पिंपरी चिंचवड़ को दिए जाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे मावल क्षेत्र के किसानों ने बडर गांव के पास जब मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे पर जाम लगा दिया और उनका आंदोलन हिंसक हो गया तो पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में चार लोग मारे गए। मारे गए किसान मोरेश्वर साठे, श्यामराव तुपे की बहनें और शांताबाई ठाकुर के भाई जीवनभर रक्षाबंधन से वंचित रहेंगे।

प्रश्न यह नहीं कि कौन गलत था और कौन सही। असली सवाल तो यह है कि हर बार राज्य की जनता को न्याय पाने के लिए कानून हाथ में क्यों लेना पड़ता है? चाहे वह नागपुर के न्यायालय में माननीय न्यायाधीश के सामने महिलाओं द्वारा की गई एक बलात्कारी की हत्या हो या मावल के लोगों द्वारा किया गया आंदोलन।

राज्य में फैले भ्रष्टाचार और निरंकुश अफसरशाही के चलते न सरकार के आदेशों का पालन हो रहा है और न ही विकास के काम। तारापुर में परमाणु ऊर्जा केंद्र स्थापित हुए वर्षों बीत गए, लेकिन वहां के विस्थापितों के लिए पीने के पानी का प्रबंध करने का जो काम सरकार को तब करना था, वह आज तक नहीं हुआ। अंत में उन विस्थपितों को न्यायालय की शरण में जाना पड़ा। पिछले ही सप्ताह मुंबई उच्च न्यायालय ने सरकार को खरी-खरी सुनाते हुए तुरंत पीने के पानी की व्यवस्था करने का आदेश दिया।

पानी सिर्फ मावल या तारापुर की समस्या नहीं, पूरा महाराष्ट्र पानी के लिए आंदोलित है। राज्य में 22845 लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती हो रही है। इसमें से 307.58 लाख हेक्टेयर खेती को सिंचाई के लिए पानी मिल पा रहा है यानी 15 प्रतिशत खेत ही सिंचित हैं। इस सिंचित 307.58 लाख हेक्टेयर खेती में से मात्र 22.45 लाख हेक्टेयर खेती विदर्भ की है। बरसाती पानी पर निर्भर विदर्भ किसी समय में अपनी खेती के लिए जाना जाता था, लेकिन आज वही विदर्भ किसानों की आत्महत्या के लिए जाना जाता है।

विदर्भ में सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए राज्य शासन ने कई सिंचाई परियोजनाएं घोषित कीं। विदर्भ की 18 बड़ी परियोजनाएं, जो 4400 करोड़ रुपए में पूरी होनी थीं, वे आज 35000 करोड़ पर पहुंच चुकी हैं। अगर इसी गति से काम चलता रहा तो यह खर्च 50000 करोड़ से भी ज्यादा हो सकता है। विदर्भ के लिए घोषित प्रधानमंत्री पैकेज के तहत भी 2177 करोड़ रुपए सिंचाई परियोजनाओं के लिए आवंटित किए गए। जिन परियोजनाओं का काम पूरा हुआ, वहां भी स्थिति संतोषजनक नहीं है।
 

दूसरी ओर किसानों पर बढ़ते औद्योगीकरण की मार पड़ रही है। सिंचाई परियोजना का पानी खेती के बजाय उद्योगों को दिया जा रहा है। जल नीति संघर्ष समिति के डॉ द्वारकादास लोहिया ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि 11 जनवरी 2011 को महाराष्ट्र जलसंपत्ति नियमन प्राधिकरण कानून में संशोधन कर राज्य सरकार ने राज्य के 38 बांधों से 15 लाख घनमीटर पानी औद्योगिक क्षेत्र को आवंटित कर 2.6 लाख हेक्टेयर खेती को पानी से वंचित रखा।

यवतमाल जिले के परसोड़ा, सावरगांव, मातेगांव, पिंपलगांव व दहेगांव के किसानों ने बरसों पहले अपनी जमीन बेंबले सिंचाई परियोजना के लिए यह सोच कर सरकार के हवाले की थी कि परियोजना शुरू होते ही उनके खेतों को पानी मिलेगा और घर में लक्ष्मी आएगी। परियोजना पूरी हुई, लेकिन भ्रष्ट नौकरशाही और ठेकेदारों के चलते परियोजना का काम काफी निम्न स्तरीय किया गया। उमरी से परसोड़ा के बीच बनाई गई नहर से पानी नालों में बह जाता है। दहेगांव में उपनहर की दीवारों में पड़ी दरारों से हजारों गैलन पानी बेकार बह जाता है। दहेगांव से परसोड़ा के बीच आखिर नहर क्यों बनी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

दूसरी ओर किसानों पर बढ़ते औद्योगीकरण की मार पड़ रही है। सिंचाई परियोजना का पानी खेती के बजाय उद्योगों को दिया जा रहा है। जल नीति संघर्ष समिति के डॉ द्वारकादास लोहिया ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि 11 जनवरी 2011 को महाराष्ट्र जलसंपत्ति नियमन प्राधिकरण कानून में संशोधन कर राज्य सरकार ने राज्य के 38 बांधों से 15 लाख घनमीटर पानी औद्योगिक क्षेत्र को आवंटित कर 2.6 लाख हेक्टेयर खेती को पानी से वंचित रखा। विदर्भ में स्थिति और भी बुरी है। विदर्भ में 55,070 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए 85 थर्मल पावर प्रोजेक्ट को राज्य सरकार ने स्वीकृति दी है। उसमें से 55 पावर प्रोजेक्ट के लिए 1526.57 लाख घनमीटर पानी आवंटित किया गया है। इसके अलावा, विदर्भ में 21 स्टील, 11 कपड़ों, 8 सीमेंट, 4 पेपर के कारखाने, ९ एसईजेड सहित कुल 62 उद्योगों को लाइसेंस दिए गए हैं। इसके साथ ही विदर्भ में 116 खानें भी हैं। इन सब के लिए 350 लाख घनमीटर पानी की आवश्यकता होगी, जो विदर्भ की सिंचाई परियोजनाओं से पूरी की जाएगी। अमरावती जिले के किसान पिछले कई महीनों से सोफिया पावर प्रोजेक्ट के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं। किसानों के इस विरोध में उनका यह डर छिपा है कि जब उनकी खेती का पानी सोफिया को दिया जाएगा, तो वे क्या करेंगे। मावल के किसानों पर विकास विरोधी होने के आरोप लगाए जा रहे हैं। कुछ समय पहले किसान मोर्चा की राष्ट्रीय सचिव डॉ। शोभा वाघमारे ने मावल परिसर के

एक कहावत है- ‘पानी जैसा खून बहाना’। लेकिन महाराष्ट्र में पानी जैसा नहीं, बल्कि ‘पानी के लिए’ खून बहाना पड़ रहा है। राज्य के शहरों में रहने वाले पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। गांव में रहने वाले किसान खेती के लिए पानी मांग रहे हैं और इन सभी की मांगों को पूरा करने के नाम पर अधिकारी, ठेकेदार और नेता सब साथ मिलकर सरकार का पैसा पानी जैसा बहा रहे हैं।

किसानों के बीच दौरा किया। वहां से लौटने के बाद उनका कहना था कि वहां के किसान किसी भी विकास के विरुद्ध नहीं हैं। इतना ही नहीं, वे इस बात को भी मानते हैं कि पिंपरी चिंचवड़ को भी पानी की जरूरत है। लेकिन उनका विरोध पाइनलाइन द्वारा पानी ले जाने पर है। वे चाहते हैं कि यदि पानी नहर द्वारा ले जाया जाए तो किसान भी अपनी जरूरत के अनुसार उस नहर से पानी ले सकेंगे। लेकिन प्रशासन जबरदस्ती उनकी जमीनें अधिग्रहीत कर पाइपलाइन का काम शुरू करने पर आमादा है। वाघमारे ने बताया कि पहले भी विकास के नाम पर मावल क्षेत्र की जमीनों का अधिग्रहण किया जा चुका है, लेकिन सरकार ने वहां के किसानों से किए गए किसी भी वादे को आज तक पूरा नहीं किया।

एक कहावत है- ‘पानी जैसा खून बहाना’। लेकिन महाराष्ट्र में पानी जैसा नहीं, बल्कि ‘पानी के लिए’ खून बहाना पड़ रहा है। राज्य के शहरों में रहने वाले पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। गांव में रहने वाले किसान खेती के लिए पानी मांग रहे हैं और इन सभी की मांगों को पूरा करने के नाम पर अधिकारी, ठेकेदार और नेता सब साथ मिलकर सरकार का पैसा पानी जैसा बहा रहे हैं। इतना होने के बाद भी पानी की समस्या रोज बढ़ रही है। पानी के इंतजार में अब जनता की आंखों का पानी भी सूखने लगा है।
 

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