पानी के अभाव में कुपोषित होते बच्चे

शौचालय और पानी विहीन स्कूल
शौचालय और पानी विहीन स्कूल

देशभर में लाखों बच्चे ऐसे हैं जिन्हें दो जून की रोटी के साथ ही प्रकृति प्रदत्त ‘‘पानी’’ भी मयस्सर नहीं होता। यह हालात तब हैं जब देश में बच्चों के पोषण के लिये केन्द्र अथवा राज्य के बाल विकास मंत्रालयों द्वारा कई कल्याणकारी योजनाएँ भी चलाई जा रही हैं।

यूनिसेफ की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पानी की कमी के कारण 700 मिलियन लोगों को स्वच्छता से समझौता करना पड़ता है। इन लोगों में बच्चे भी शामिल हैं जिसका सीधा प्रभाव उनके शारीरिक विकास पर पड़ रहा है। वे कमजोर होने के साथ खून की कमी से ग्रस्त तो हैं ही उनका मानसिक विकास भी उम्र की तुलना में धीमा है। इसके अलावा गन्दे पानी के इस्तेमाल हर साल पाँच वर्ष तक के उम्र के 2.1 प्रतिशत बच्चों की मौत हो जाती है। वहीं, इसी उम्र सीमा के 42 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से कम होता है।

बच्चों के सम्पूर्ण विकास के लिये उनके खान-पान में स्वच्छ जल का शामिल होना बहुत जरूरी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बच्चों के भोजन में क्रमशः 85 और 95 प्रतिशत पानी की मात्रा होती है। इसी के अनुसार यदि देश के प्राथमिक स्कूलों में स्वच्छ शौचालय और व्यवस्थित पेयजल की सुविधा बहाल हो जाये तो 84 प्रतिशत बच्चों को कुपोषित होने से बचाया जा सकता है।

इस रिपोर्ट में पेश की गई तस्वीर के मुताबिक स्थिति बहुत भयावह है क्योंकि देश के लगभग सभी प्राथमिक विद्यालयों में शौचालय के साथ ही पेयजल की सुविधा बहाल की जा चुकी है। प्राथमिक विद्यालयों में पानी की उपलब्धता सम्बन्धी आँकड़ों पर गौर करने पर यह पता चलता है कि इनमें 60 फीसदी ऐसे हैं जिनमें पानी का अभाव है। पानी के इस अभाव की मुख्य वजह, पाइपलाइन की समुचित देखभाल नहीं होना बताया जा रहा है। देखभाल के अभाव में पाइपलाइन जंग खाकर सड़ चुके हैं। इन स्कूलों में शौचालय तो हैं मगर उनमें पानी नहीं। इससे साफ है कि ये विद्यालय स्वच्छता के मानदण्ड पर भी खरे नहीं उतरते।

ग्रामीण भारत के अधिकांश बच्चों की पढ़ाई इन्हीं स्कूलों में शुरू होती है। इन्हीं स्कूलों में सरकारी स्तर के अध्ययन और प्रयोग भी होते हैं। देश में जब बच्चों के लिये कोई नीति, नया सिलेबस के साथ ही शिक्षण-प्रशिक्षण के तौर तरीकों में यदि कोई नया प्रयोग करना होता है यही स्कूल प्लेटफार्म उपलब्ध कराते हैं। परन्तु दुर्भाग्य कि इन स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे पानी और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिये आज भी तरस रहे हैं। इन स्कूलों में पानी व शौचालय का उचित प्रबन्धन नहीं है।

देश की जानी-मानी संस्था, राजीव गाँधी फाउंडेशन द्वारा देश के 17 राज्यों में सरकारी प्राथमिक स्कूलों में ‘लर्निंग बाय डूईंग’ नाम से एक प्रोग्राम चला रही है। इस प्रोग्राम के तहत प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस प्रशिक्षण का मूल उद्देश्य बच्चों की क्षमता के अनुसार पाठ्यक्रम को रोचक बनाना ताकि उनकी मानसिक दक्षता में तेजी से विकास हो सके। लेकिन इन स्कूलों में पठन-पाठन के अलावा स्वच्छ वातावरण भी तैयार किये जाने की जरुरत है।

 

 

 

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