एक अध्ययन रिपोर्ट
असीम मुनाफे के उपासक भारत में भी पानी के निजीकरण के लिए दिन रात जुटे हुए हैं और काफी तैयारी पहले ही कर ली गई है। विशेषज्ञों को समझा लिया गया है, नौकरशाही को अपने खेमे में मिला लिया गया है। हर कोई पूरी लागत वसूली के नए मंत्र का जाप करता दिखाई देता है। इस पवित्र जाप की लय हर दिशा में गूंजती सुनाई देने लगी है।
यूएनडीपी और विश्व बैंक के विरुदावली गायक लंबे समय से इस तान पर नाचते चले आ रहे हैं कि लोग तो नियमित और स्तरीय जल आपूर्ति के लिए कीमत चुकाने को तैयार हैं। मगर सरकारें ही हैं जो वसूली के लिए तैयार नहीं होतीं। विश्व जल आयोग अपनी नवीनतम नृत्य रचना, जिसे उसने जल योजना का नाम दिया है, में कहा है कि जिस एकमात्र सबसे फौरी और सबसे अहम कदम का अभी हम सुझाव दे सकते हैं, वह यह है कि जल सेवाओं की कीमत के तौर पर उनकी पूरी लागत वसूल की जाए। जल योजना इस मंत्र की वैधता को दो लिहाज से साबित करता है - एक, कि यही एक मात्र तरीका है, जिसके सहारे लोगों को पानी के महत्व से अवगत कराया जा सकता है और दूसरे, इससे परिस्थितियां पैदा होंगी, जहां जल सेवाओं में निजी निवेश आकर्षित होने लगेगा। अपने तमाम ढोल वादकों को लेकर भारत सरकार और विश्व बैंक द्वारा पिछले दिनों ही मंचित की गई एक नई जुगलबंदी में भी इसी लय-ताल का अनुसरण किया गया था। इस संयुक्त प्रयास की रिपोर्ट बिक्री के लिए अभी-अभी जारी की गई है और इन पर उड़ती सी नार डालने पर भी साफ हो जाता है कि भारत सरकार पानी के लिए पैसा न वसूलने की अपनी पुरानी आदत को छोड़ने के लिए मन बना चुकी है।
फिलहाल बज रहे राग के मुताबिक सरकार और विश्व बैंक की जुगलबंदी की रिपोर्ट एक निजी प्रकाशक एलाईड पब्लिशर्स ने प्रकाशित की है और इनकी कीमत 250 रुपए के आसपास रखी गई है। इन रिपोर्टों के शीर्षक हैं ''जल क्षेत्र एवं प्रबंधन'', ''भू-जल नियमन एवं प्रबंधन'', ''सिंचाई क्षेत्र'', ''ग्रामीण जल आपूर्ति और स्वच्छता'', ''पूरी लागत वसूली'' की बारम्बार अपीलों के सिवाय पूरी रिपोर्ट का जोर महज इस बात पर दिखाई देता है कि जल बाजार और पानी पर संपत्ति अधिकार निर्धारित किए जाएं। इन तीनों बिंदुओं को साथ रख देने से निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी के लिए बेहद सुगम वातावरण तैयार हो जाता है। भू-जल नियमन एवं प्रबंधन पर केन्द्रित रिपोर्ट दावा करती है कि लगातार विरल होती जा रही भू-जल एवं सतह जल आपूर्ति के पुन: आबंटन के लिए अनिवार्य विशाल नियमन युक्त जल बाजार का विकसित होना अभी शेष है। जल आबंटन के लिए औपचारिक व्यवस्था बाजार की भूमिका को विस्तार देने के लिए जल अधिकारों की रूपरेखा में सुधार और प्रभावी प्रबंधन संस्थानों का विकास एक अनिवार्य शर्त है। इन दोनों पहलुओं के बारे में व्यावहारिक दृष्टिकोण ही बाजारों के विकास के रास्ते में सबसे बड़ी चुनौती है।
शहरी जल आपूर्ति और स्वच्छता यूडब्ल्यूएसएस के लिए रिपोर्ट में पाँच परिवर्तन सुझाए गए हैं -
1. नगर पालिका निकायों की जिम्मेदारियां कम की जाए।
2. सरकारी बोर्डों के सुधार के लिए नीति और नियमन कार्यों का संचालन अलग से किया जाए।
3. वैधानिक परिवर्तनों के जरिए शुल्क ढांचे को तार्किक बनाया जाए और सुधारों को प्रोत्साहन देने के लिए राज्य स्तर पर उत्प्रेरकों और छूटों की व्यवस्था विकसित की जाए।
4. वित्तीय व्यवस्था में इस प्रकार सुधार किए जाएं जिससे यह अधिकाधिक बाजारोन्मुखी बन सके। इसके लिए स्थानीय प्रशासन और उद्यमों की बाजार नियमन ढांचे के अंतर्गत बाजार तक सीधी पहुंच बनाई जाए।
5. प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए तुलनात्मक प्रतियोगी वातावरण निर्मित किया जाए।
रिपोर्ट आगे पुन: दोहराती है कि निजी क्षेत्र की सहभागिता दोनों में अनिवार्य रहेगी, नीति विकसित करने ताकि वह निवेशकों के अनुकूल हो और नगर पालिकाओं व राज्य यूडब्ल्यूएसएस इकाइयों के साथ काम करने के जरिए निजी वित्त एवं प्रबंधन को आकर्षित करने में भी।
ग्रामीण जल आपूर्ति एवं स्वच्छता पर केन्द्रित रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां के लिए तैयार होने वाली रणनीति में यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि संचालन व रख-रखाव खर्चों की पूरी लागत वसूली की जाए तथा लंबे समय में, सभी लागतें, जिनमें पूंजी एवं प्रतिस्थापना लागतें भी शामिल हैं, की वसूली कर ली जानी चाहिए। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि जल शुल्क और थोक पानी की कीमतों को बढ़ाया जाए ताकि संचालन व रख-रखाव की सारी लागतें वसूल हो सकें। आकलन और वसूली प्रक्रियाओं में सुधार किए जाएं। पानी के दामों को मुद्रा स्फीति और मूल्य वृद्धि के अनुरूप व्यवस्थित करते रहने के लिए इंडेक्सिंग व्यवस्था लागू की जाए। सिंचाई क्षेत्र पर केन्द्रित रिपोर्ट निजीकरण के लिए मार्ग प्रशस्त करने की दिशा में इन कदमों की तरफ इशारा करती है -
• जमीनी स्तर पर जल उपभोक्ता एसोसिएशनों (डब्ल्यूयूए) की स्थापना और सिंचाई विभाग का विखण्डन शुल्क के इकट्ठा करने की जिम्मेदारी इन एसोसिएशनों को सौंपी जाए।
• उत्प्रेरकों के जरिए डब्ल्यूयूए को प्रोत्साहित किया जाए ताकि वह संचालन व रख-रखाव की पूरी लागतें वसूल करें।
• पानी की दरों को अच्छे खासे स्तर तक बढ़ाया जाए और जल योजनाओं के निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए वातावरण निर्मित किया जाए।
• आखिर में संचालन कार्यों को निजी संचालक के हवाले कर दिया जाए।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि ऐसे आधारभूत बदलाव भी बेहद दबे-छिपे तरीकों से और सार्वजनिक बहस के मंचों की अनदेखी करते हुए लागू किए जा रहे हैं। इन बदलावों के कार्यान्वयन के लिए विभिन्न तरीकों से दबाव डाला जा रहा है और इन्हें टुकड़ों-टुकड़ों में लागू किया जा रहा है। पिछले दो बजट भाषणों के दौरान संसद में राष्ट्रीय जलागम आंदोलन नाम से एक योजना रखी जा चुकी है, जो उपरोक्त सिफारिशों को अमली जामा पहनाने की जमीन तैयार करती है। जीवन के सभी क्षेत्रों में पानी के इस व्यवसायीकरण से भारतीय सार्वजनिक जीवन के सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक पहलुओं पर दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे। वैश्विक पूंजी को स्काउट-ब्वॉय के नए अवतार में विश्व बैंक आधारभूत ढांचे के क्षेत्र में मुनाफाखोरी की टोली को पानी जैसी सार्वजनिक उपभोग की वस्तु से भी मुनाफा कमाने के लिए ले आया है। दुनिया भर के पैमाने पर पानी का बाजार 344.00 अरब रुपए से ज्यादा आंका जाता है और शीर्षस्थ बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी गोटियां बिछा भी चुकी हैं।
लेटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया की नि:सहाय अर्थव्यवस्थाओं की तो बात ही छोड़िए, खुद अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा और आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड आदि के लोग क्षेत्रों और देशों की सीमाओं से ऊपर उठ कर इन कोशिशों की खिलाफत में सड़कों पर उतरते जा रहे हैं।
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