पानी है अनमोल


चंपक वन के राजा भोरसिंह बड़े दयालु और न्यायप्रिय व्यक्ति थे। वन के पशु-पक्षियों के प्रति उनके मन में बड़ा स्नेह था। चंपक वन में उन्होंने एक विशाल उद्यान बनाया था जिसमें विभिन्न तरह के वृक्ष थे, जो फल और फूलों से लदे रहते थे। क्यारियों में रंग-बिरंगे पुष्पों के पौधे थे जिनमें पुष्प खिलते थे। कई रंग-बिरंगी तितलियाँ व भौंरे इनके आस-पास गुँजन करते रहते थे।

इस विशाल उद्यान में एक तालाब था जिसमें पशु-पक्षी स्नान करते थे। पशु-पक्षी इसमें किल्लौल करते हुए आनंद लेते थे। पानी पीने के लिये अलग से व्यवस्था थी। कुछ नल की टोटियाँ भी थी, जिनसे पानी पिया जाता था। सब पशु-पक्षियों के लिये यह उद्यान खुला था।

इस उद्यान में सुबह से ही पशु-पक्षियों का मेला लग जाता था। बच्चे दौड़ते-भागते थे और वृद्ध पशु धूप में आराम करते, बच्चों की देखभाल करते। चंपक वन बड़ा प्रसिद्ध वन था। यहाँ आस-पास के जंगलों से भी पशु-पक्षी उद्यान को देखने आते थे।

आज सुबह का समय था। अकस्मात राजा भोरसिंह चुपचाप अपने बड़े बेटे विक्रान्त के साथ इस उद्यान में आ गए। वे उद्यान में भ्रमण कर रहे थे। उन्होंने देखा कि नटखट बंदर चिन्टू तालाब का पानी उछाल-उछाल कर तालाब के बाहर फेंक रहा है। लम्बू जिराफ पीने वाले पानी के नल खोल कर मुँह धो रहा है। नल से पानी बाहर जा रहा है। भोरसिंह ने नल के पास जाकर टोंटी बंद की और नटखट चिन्टू को बुलाकर कहा, ‘‘तुम पानी क्यों खराब कर रहे हो ? पानी में स्नान जरूर करना चाहिए पर ध्यान रखना चाहिए कि वह व्यर्थ बरबाद न हो, इस पानी पर सबका अधिकार है जितना आवश्यक हो उतना ही खर्च करना चाहिए।”

राजा भोरसिंह का बेटा विक्रान्त साथ था। उसने यह सुना तो बोला ‘‘पिताजी, आप मुझे क्षमा करें। हमारे क्षेत्र की नदी में कितना पानी भरा है। यह नटखट बंदर कितना ही पानी बरबाद करें, पानी कम नहीं पड़ेगा, आप इसे आनन्द लेने दीजिए। इसे क्यों रोकते है।”

राजा भोरसिंह ने अपने बेटे की ओर देखा। बोले ‘‘बेटा तुम कहते तो ठीक हो, पर नदी के इस पानी पर हमारा ही अधिकार नहीं है। दुनिया में चंपक वन जैसे कई वन है, जिनमें हजारो पशु-पक्षी हैं। उन सबका पानी पर अधिकार है। हम यदि पानी नष्ट करेंगे तो पानी कम पड़ जायेगा। हमें उतना ही पानी खर्च करना चाहिए जितना आवश्यक है।”

.भोरसिंह बोलते हुए रुके और नल चालू कर मुँह धोकर बताते हुए जिराफ से बोले ‘‘देखो! जिराफ जब मुँह धो रहे हो तब नल को बंद रखो। पानी को व्यर्थ मत बहने दो। जितना आवश्यक है उतना पानी खर्च करो।”

जिराफ ने सुना और देखा। उसने अपनी गर्दन झुका कर कहा ‘हाँ महाराज! आप सच कहते हैं। पानी है अनमोल। हम इसे पैदा नहीं कर सकते। अब हम ध्यान रखेंगे।’ नटखट चिन्टू ने अपने कान पकड़े और कहा ‘महाराज हम तो बच्चे हैं। आपने हमे अच्छा सबक सिखाया।’

भोरसिंह का बेटा विक्रान्त भी शर्मिन्दा था। उसने तो इस सम्बन्ध में सोचा ही नहीं था। राजा भोरसिंह पुनः उद्यान में भ्रमण करने निकल गए।

संपर्क : श्री सत्यानारायण भटनागर, 2, एम.आई.जी.देवरादेव, नारायण नगर, रतलाम (मध्य प्रदेश), पिन कोड - 457 001, मो.: 9425103328

Path Alias

/articles/paanai-haai-anamaola

Post By: Hindi
×