पानी बोलता है
एक तरल जबान
प्यास जिसे कण्ठस्थ करती है
और तृप्ति करती रहती है
तरह-तरह के भाष्य
पानी बोलता है
तल में-
बादल में-
बहती धार में
गागर में-सागर में
पानी बोलता है
बारिश जिसका एक लहजा है
कविता में पंक्तियों का समय है यह
धरती में पानी के स्वच्छ-बचाव का
पानी बोलता है
जो नहीं बोलता
वह ‘पानी’ कहाँ हुआ?
एक तरल जबान
प्यास जिसे कण्ठस्थ करती है
और तृप्ति करती रहती है
तरह-तरह के भाष्य
पानी बोलता है
तल में-
बादल में-
बहती धार में
गागर में-सागर में
पानी बोलता है
बारिश जिसका एक लहजा है
कविता में पंक्तियों का समय है यह
धरती में पानी के स्वच्छ-बचाव का
पानी बोलता है
जो नहीं बोलता
वह ‘पानी’ कहाँ हुआ?
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