एक विचारशील व्यक्तित्व होने के नाते यह हमारा उत्तरदायित्व बनता है कि हम प्रकृति संरक्षण के लिये छोटा सा ही सही पर अपना कदम जरूर रखें। एक समन्वित नीति का प्रयोग कर हम जल संरक्षण के लिये उचित कदम उठा सकते हैं।
![पानी बीमा](https://farm2.staticflickr.com/1716/25576430922_20ed4fcc46.jpg)
ईश्वर ने जीवों के सुरक्षित जीवनयापन हेतु जल, वायु और मृदा का सृजन किया। परन्तु वर्तमान में मनुष्यों की बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि आज वायु अशुद्ध है, मृदा प्रदूषित है और भूगर्भीय और सतही दोनों ही जलस्रोत सूख रहे हैं और जो जल बचा है वह भी अत्यन्त प्रदूषित है। इसके साथ ही अत्यधिक नलकूप खोदने से भूमि में पैदा हुए निर्वात से असन्तुलन उत्पन्न हो रहा है जो भविष्य में कई विशाल भूकम्पों का कारण बन सकता है। अगर हम समय रहते जागरूक नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब हम प्रकृति से अपनी प्रजाति का अस्तित्व बनाए रखने के लिये भिक्षा माँग रहे होंगे।
प्रकृति अपनी सेवाओं के लिये हमसे कोई कर जरूर लेती है परन्तु एक विचारशील व्यक्तित्व होने के नाते यह हमारा उत्तरदायित्व बनता है कि हम प्रकृति संरक्षण के लिये छोटा सा ही सही पर अपना कदम रूर रखें। एक समन्वित नीति का प्रयोगकर हम जल संरक्षण के लिये उचित कदम उठा सकते हैं। संक्षिप्त में इसका सूत्र हैं: रिड्यूस, रीयूज़ और रीचार्ज। इसके लिये सर्वप्रथम हमें न्यूनतम जल से अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की आदत डालनी होगी। पानी को उसके अधिकतम उपयोग की सीमा तक उपयोग में लेना सीखना होगा और वर्षाजल को सहेजकर भूजल रीचार्ज की तकनीक को अपनाना होगा।
वर्षाजल संरक्षण द्वारा पानी बीमा
![वॉटर फिल्टर का नलकूप से संयोजन](https://farm2.staticflickr.com/1479/25068395083_78a0e58c42.jpg)
वर्षाजल का संग्रह कर भविष्य के लिये उपयोग में लाना एक वर्षों पुरानी तकनीक है। ऊँचे किलों और रेगिस्तानवासियों के घरों में पानी के टाँके बना कर वर्षा जल एकत्रित किया जाता रहा है। वर्षा ऋतु में घरों की छतों से लाखों लीटर वर्षाजल व्यर्थ बह जाता है। एक गणना के अनुसार यदि 1000 वर्ग फीट की छत पर 1 सेंटीमीटर वर्षा होती है तो लगभग 1000 लीटर पानी एकत्रित होता है अर्थात औसतन यदि 100 सेंटीमीटर वर्षा होती है तो एक लाख लीटर पानी एकत्रित होगा जिसे भूजल में डाल कर हम भूजल की मात्र बढ़ाने के साथ ही गुणवत्ता संर्वधन में भी सहयोग कर सकते हैं।
उदयपुर शहर में वर्षाजल संरक्षण अभियान में जुटे और ‘दैनिक भास्कर राजस्थान जल स्टार अवार्ड-2012 से सम्मानित, चिकित्सक डाॅ. पी.सी. जैन’ बताते हैं कि उदयपुर शहर में विगत 14 वर्षों से ‘रूफ टाॅप रेन वाटर हार्वेस्टिंग जागरुकता अभियान’ चलाया जा रहा है जिसमें अभी तक शहर के लगभग 1500 सरकारी, गैर-सरकारी विद्यालयों, महाविद्यालयों, यूनिवर्सिटीज, होस्टल्स, आवासीय बिल्डिंग्स और घरों की छतों से बहने वाले पानी को वर्षाजल संयंत्र की सहायता से नलकूप, हैण्डपम्पस और कुओं को रीचार्ज किया गया है। वर्षाजल सरंक्षण के प्रति जागरुकता लाने के लिये वे पाॅवर पाॅइंट प्रजेंटेशन्स, लघु नाटिकाएँ, नुक्कड़ नाटक, गीत और एस.एम.एस. का प्रयोग करते हैं। इस अभियान के तहत एक महत्त्वपूर्ण बात यह सामने आई कि व्यक्ति एक आधुनिक सुविधा सम्पन्न स्नानगृह बनवाने में लाखों खर्च कर देता है, परन्तु अपने घर में वर्षाजल संरक्षण करवाने में संकुचित सोच का प्रदर्शन करता है और यह विस्मृत कर देता है कि बिना पानी के किसी भी स्नानगृह की कोई उपयोगिता नहीं है।
डाॅ. जैन बताते हैं कि वर्षाजल को भूजल में डालना बहुत आसान है और इसे बिना किसी तोड़-फोड़ के घरों में कार्यान्वित किया जा सकता है। इसके लिये छत से निकलने वाले अधिकतम निकास बिन्दुओं को पाइप से जोड़कर जमीन के बाहर रहने वाले देवास वाॅटर फिल्टर से जोड़ दिया जाता है और फिल्टर के आगे पाइप लगाकर उसे सीधे नलकूप/हैण्डपम्प या कुएँ से जोड़ा जा सकता है। वर्षा ऋतु आने से पहले घरों की छतों को एक बार साफ़ कर लिया जाता है। प्रथम वर्षा के समय फिल्टर में लगे ‘ड्रेन वाॅल्व’ को बन्द कर ‘फिल्टर वाॅल्व’ को खोल दिया जाता है जिससे पानी फिल्टर से शुद्ध होता हुआ सीधे भूजल स्रोत में प्रवेश कर जाता है। इस तरह से भूजल संवर्धन होता है और कई बार एक घंटे की तेज बारिश से भी वर्ष भर के जल की आपूर्ति हो जाती है। फिल्टर में लगे ‘बेक वाॅश वाॅल्व’ की सहायता से वर्षा ऋतु आगमन से पहले फिल्टर की सफाई भी की जाती है।
![रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम](https://farm2.staticflickr.com/1665/25695127085_5d6ab80b11.jpg)
पानी के संकट को देखते हुए आज हमारा फर्ज़ बनता है कि हम समय रहते ही ‘पानी बीमा’ में निवेश करें और अपनी भावी पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित बनाएँ। वर्तमान समय की आवश्यकता को देखते हुए हमें अपनी ‘जीवन बीमा पाॅलिसी’ से भी पहले ‘पानी बीमा पॅालिसी’ में निवेश करना चाहिए। वर्षा ऋतु में वर्षा की स्वर्णिम बूँदों को व्यर्थ न गवाँकर भूजल पुनर्भरण में अपना सहयोग देना मनुष्य की ओर से प्रकृति को सर्वोत्तम प्रतिदान है। इस सम्बन्ध में जिन्होंने इस तकनीक को अपनाया है यदि उनके अनुभव सुने तो हम समझ सकते हैं कि वर्षाजल संरक्षण की दैनिक जीवन में कितनी महत्ता है। वर्षा जल संरक्षण की अनिवार्यता और प्रशासनिक सख्ती व जागरुकता से ही हम भूजल पुनर्भरण के अपने लक्ष्य को पूरा करने में सफल हो सकते हैं। इसके साथ बचपन से ही बच्चों को पानी का न्यायसंगत उपयोग करने की आदत डालनी चाहिए ताकि वे अपने जीवन में पानी की महत्ता समझकर जल-संसाधनों के संरक्षण में सहयोग करें। यदि हम भूजल दोहन की सामर्थ्य रखते हैं तो हमें भूजल पुनर्भरण की नैतिक जिम्मेदारी से भी पीछे नहीं हटना चाहिए।
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डाॅ. वर्तिका जैन, वनस्पति शास्त्र विभाग, राजकीय महाविद्यालय, डूंगरपुर - 314001, राजस्थान
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