एक थे दशरथ मांझी, जिन्होंने अपने गांव के लोगों की सहूलियत के लिए पहाड़ को चीर कर रास्ता बना दिया था। दशरथ मांझी की तरह देश में ऐसे दर्जनों गुमनाम नायक हैं, जिन्होंने असंभव दिखने वाले कई काम किये हैं। उनके इन कामों को देखकर सहसा हमारे मन में सवाल उठने लगता है कि क्या सचमुच ऐसे लोग इस दुनिया में हैं, जो ऐसा काम भी कर गुजरते हैं!
इन्हीं नायकों में एक नायक हैं पानी अन्ना के नाम से मशहूर - कामे गौड़ा। 85 वर्षीय कामे गौड़ा मूल रूप से कर्नाटक के मंडया जिले के देशनाडोडी गांव के रहने वाले हैं। वह चरवाहा समुदाय से आते हैं और छोटे से कमरे में रहते हैं। वह आर्थिक तौर पर गरीब हैं, लेकिन उनके दिल में मानवजाति का कल्याण करने का जज्बा कूट-कूट कर भरा हुआ है।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में कामे गौड़ा का जिक्र करते हुए उन्हें जल योद्धा की संज्ञा दी। उन्होंने कहा,
“वे अपने इलाके में पानी की समस्या को दूर करना चाहते हैं।, इसलिए जलसंरक्षण के काम में छोटे-छोटे तालाब बनाने में जुटे हुए हैं। आप हैरान होंगे कि 80-85 वर्ष के कामेगौड़ा जी, अब तक 16 तालाब खोद चुके हैं, अपनी मेहनत से, अपने श्रम से।”
कर्नाटक की सरकार ने उन्हें आजावीन निःशुल्क पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल करने का पास दिया है।
गांव में थी पानी की किल्लत
दरअसल, कामे गौड़ा जिस गांव में रहते हैं, वहां पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं रहता है। वहां के लोग किसी तरह अपने लिए पानी का इंतजाम तो कर लेते, लेकिन जंगली जानवरों और मवेशियों को पानी मिलना मुश्किल हो जाता था। इस संकट से निजात पाने के लिए अपने गांवों में अकेले 14 तालाब खोद डाले और जलसंकट से जूझते गांव को पानीदार बना दिया।
कामे गौड़ा अपने माता-पिता की 10 संतानों में से एक हैं। चूंकि उनके माता-पिता की 10 संतानें थीं, तो जाहिर था कि सबको एक-सा दुलार नहीं ही मिलता होगा।
वह कहते हैं,
“मैं बचपन में आवारगी करता था। मेरे 9 और भाई बहन थे, तो मेरे माता-पिता मुझ पर बहुत ध्यान नहीं देते थे। इसलिए मैं इधऱ-उधर भटकता रहता था। मैं अपने माता-पिता से ज्यादा जानवरों के करीब था।”
जानवरों के करीब रहते हुए उन्होंने उनके दु-ख दर्द को भी समझना शुरू कर दिया था।
वह कहते हैं,
“ मैं मवेशियों को चराने के लिए जब पहाड़ी क्षेत्र में जाता था, तो देखता था कि मवेशी-जानवरों को गर्मी के सीजन में पानी नहीं मिल रहा है, जिससे वे परेशान हो जाते थे। इतना ही नहीं, वहां की हरियाली भी खत्म हो रही थी। इलाके में जितनी भी बारिश होती थी, उसका पानी पहाड़ से उतर कर नीचे बह जाता था।ये देखते हुए मुझे तालाब खोदने का खयाल आया।”
रात में भी तालाब खोदने निकल पड़ते
तालाब खोदने को लेकर उनकी दिवानगी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कई बार वह रात के अंधेरे में ही तालाब खोदने के लिए निकल जाते थे। हालांकि, उन्होंने तालाब खोदने के लिए रोज एक नियमित समय तय कर लिया था और पिछले 40 वर्षों से समय का पाबंद होकर तालाब की खुदाई किया करते थे।
वह बताते हैं,
“सुबह 4 बजे से सुबह 9 बजे तक तालाब खोदता था और इसके बाद मवेशियों को चराया करता था। कई बार मैं रात में लैंप लेकर तालाब खोदने निकल जाता था। लोग मुझे पागल भी कहते थे, लेकिन इसके क्या फर्क पड़ता है।”
दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने इन तालाबों का नाम अपनी पोतियों के नाम पर रखा है। उनका मानना है कि अगर वे अपने पोते-पोतियों और बाल-बच्चों को रुपया पैसा देंगे, तो उसे बर्बाद कर देंगे, लेकिन अगर तालाब देंगे, तो वे सदियों तक जानवरों और लोगों को पानी देते रहेंगे।
भेड़ों को बेचकर जुटाया पैसा
तालाब खोदने की उनकी मुहिम आसान नहीं थी। अव्वल तो वह इतने पैसे वाले नहीं थे कि आसानी से तालाब खुदवा लेते और दूसरा उनके पास उतना मानव संसाधन भी नहीं था। लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी। सबसे पहले कुछ भेड़ों को बेचकर उन्होंने कुदाल, फावड़ा और अन्य औजार खरीदे। इन औजारों की मदद से करीब 6 महीने में उन्होंने पहला तालाब खोदा। इस बीच वह पैसे भी बचा रहे थे। उन्होंने इतना पैसा बचा लिया था कि कुछ मजदूरों को भी इस काम में लगा सकते हैं। अतः उन्होंने बाद में मजदूरों को इसमें लगाया और खुद भी काम किया। इस तरह कुल 16 तालाब खोद डाले, जिनमें अभी सालभर लबालब पानी भरा रहता है।
तालाब बनवाने, उनके आसपास जंगल लगाने और तालाबों के रखरखाव पर वह अब तक 10 से 15 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं। तालाब उनके लिए उनकी संतान जैसे हैं। वह बिना नागा किए रोज कम से कम एक बार सभी तालाबों को देख आते हैं। तालाबों के प्रति अपनी दिवानगी के बारे में वह कहते हैं,
“अगर आप किसी शराबी को पैसा देंगे, तो वो शराब पर खर्च करेगा। इसी तरह अगर आप मुझे पैसा देंगे, तो मैं तालाब पर खर्च करूंगा। तालाब मेरा नशा है।”
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