पाकिस्तान में पर्यावरण संकट 

पाकिस्तान में  जलवायु परिवर्तन के कारण ये विनाशकारी घटनाएं अधिक से अधिक आम होती जा रही हैं
पाकिस्तान में जलवायु परिवर्तन के कारण ये विनाशकारी घटनाएं अधिक से अधिक आम होती जा रही हैं

पाकिस्तान भारत का पड़ोसी देश है। लेकिन यहां कुदरत की हिफाज़त करने की चिंता भारत जैसी दिखाई नहीं देती।  इस देश में भी कमोबेश चीन जैसी स्थिति नजर आती है। आजादी के बाद यहां भी भौतिक व आर्थिक विकास तो नजर आता है, जिसके कारण प्रकृति (कुदरत) में बिगाड़ बहुत तेजी से नजर आ रहा है। मैंने अपनी यात्राओं के दौरान इस देश में जलवायु परिवर्तन का बहुत बिगाड़ देखा है।

पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद को छोड़कर, सभी भू-पारिस्थितिकी, जलवायु, मौसमीय परिवर्तन की कहानियां, यहां के पर्यावरणविदों से सिंधु नदी यात्रा के दौरान बहुत सुनी हैं। मैं उनकी बातें सुनकर फिर स्वयं उन्हीं स्थानों पर देखने गया।

पाकिस्तान का थार मरुस्थल भी देखा और अन्य कई स्थानों पर गया। भारत की पर्यावरण आस्था को भले ही भारत के विकास के लालच ने लील लिया हो, लेकिन पाकिस्तान की वैसी प्राकृतिक आस्था जो पुराने जमाने में रही होगी, उसका अब पाकिस्तान में सिंधु नदी क्षेत्र में दर्शन नहीं होता। हमें प्रकृति के बेहिसाब शोषण का नजारा पाकिस्तान के अवैज्ञानिक खनन व उद्योग में स्पष्ट नजर आता है। यहां प्राकृतिक पर्यावरण की चिंता करने वाले चंद लोग ही मौजूद हैं, परन्तु इनकी कोई सुनवाई नहीं है।

यहां सिंधु एवं अन्य नदियों के हालात भारत से भी ज्यादा भयंकर प्रदूषणकारी हैं। अब नई प्रौद्योगिकी ने सिन्धु क्षेत्र के भू-जल के भंडारों को शोषित कर दिया है। यहां का खेती में रुझान कम है। उद्योग प्रदूषणकारी हैं और वातावरण के कार्बन को शोषित करके, मिट्टी में जमा करने वाले जंगल घट गए हैं।  खेती की हरियाली भी घट गई है। परिणामस्वरूप यहां भी अब बे-मौसम के कारण बाढ़-सुखाड़ का चलन बढ़ गया है।

यहां के लोगों का मानना है कि, कुदरत की हिफाजत, पैगम्बर का प्रिय काम है। वह व्यवहार प्रत्यक्ष पाकिस्तान में दृष्टिगत नहीं हो रहा है। इसलिए पाकिस्तान का पर्यावरण संकट अब लोगों को विस्थापित होने के लिए मजबूर कर रहा है। यह सबसे ज्यादा स्वीडन जाना पसंद करते हैं। वहां जितने भी पाकिस्तानी हैं, वे भारतीय होटलों में सेवा व भोजन बनाने का काम कर रहे हैं। अफ्रीका के पुनर्वास शिविरों व स्वीडन पुनर्वास शिविरों में विस्थापित पाकिस्तानी मुझे बहुत मिल जाते हैं।  फ्रांस, नीदरलैंड, भी इनके प्रिय देश हैं। लेकिन अभी तक मेरी यात्राओं के दौरान मुझे सबसे ज्यादा विस्थापित पाकिस्तानी स्वीडन, फ्रांस, यू के, नीदरलैंड में ही मिले हैं। वहां ये कम खर्च करके, अपना जीवन अच्छे से बिता रहे हैं।

सिंधु क्षेत्र का विस्थापन गंगा जी से कई गुणा अधिक है। अभी यूरोप में उन्हें भी आर्थिक शरणार्थी ही बोला जाता है। अफ्रिकन की तरह इन्हें जलवायु परिवर्तन शरणार्थी नहीं कहा जाता है। यह सिन्धु का ही प्रभाव है।

पाकिस्तान में विस्थापन दर तेजी से बढ़ रही है। उन्हें यूरोप में भी ठीक से पुनर्वास का अवसर प्राप्त नहीं हो पा रहा है। मुझे बहुत से विस्थापित पाकिस्तानियों ने कहा कि, अब हमें शरणार्थी घोषित कराने में ही तीन चार साल लग जाते हैं, जब तक शरणार्थी घोषित नहीं हो जाते, तब तक विधिवत सेवा करने का अवसर नहीं मिलता।

5-6 अलग देश के पाकिस्तानियों ने कहा कि, जब हम पाकिस्तानी कहते हैं, तो बोल-चाल की भाषा में यूरोपवासी ‘जलवायु परिवर्तन शरणार्थी’ कह कर बुलाते हैं। यदि हम अपने को भारतीय बोलते हैं तभी आर्थिक शरणार्थी कहते हैं। देखने में भारतीयों और पाकिस्तानियों में बड़ा अंतर नहीं है। यह अंतर तो हमारे कागज़ देखने पर ही पता चलता है, इसलिए जहां हमें कागज नहीं दिखाने होते, वहां हम बोल-चाल में भारतीय कहना पसंद करते हैं।

पाकिस्तान की राजधानी ऊपर से देखने में हरी-भरी लगती है, और वहां से निकलें तो नंगे कटे, उजड़े पहाड़ दिखते हैं। पेशावर रोड पर मरग लाहिल, जो कुछ दिन पहले तक हरे-भरे जंगलों से घिरी थी, उन पहाड़ियों के पुराने चित्रों के पोस्टर पांचवीं अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के सब विदेशियों को दिये गये। इस पहाड़ी का भी अरावली पर्वतमालाओं जैसा समृद्ध इतिहास था। आज यहां बेशुमार खनन किया जा रहा है। पूरे के पूरे पहाड़ गायब होते जा रहे हैं। यहां की कुछ संस्थाएं एसडीपीआई मरगलाहिल्‍स, नेशनलपार्क सोसायटी, आईयूसीएन शिरगत माध तथा पत्रकारों ने इन पहाड़ियों को बचाने की बहुत कोशिश की थी। लेकिन यहां की खदानें आज भी चालू हैं। यह पूरा क्षेत्र वनक्षेत्र के रूप में घोषित है।  फिर भी खदानों का काम चलते रहना समझ नहीं आता।

इस क्षेत्र की खदानों ने केवल पहाड़ियों को बर्बाद नहीं किया, बल्कि नीचे की तरफ खेती की जमीन में गहरा कटाव व जमाव शुरू होने से यहां पैदावार भी घटने लगी है। यहां भी कुओं का जलस्तर नीचे जा रहा है। बहुत से कुएं पूरी तरह से सूख गये हैं। मेरे लिए ऑक्सफैम ने पाकिस्तान में जनसभा आयोजित की थी। इसमें चोलिस्तान (पाकिस्तान का रेगिस्तान) और थार से कुछ किसान तथा सरकार के इंजीनियर यहां आये थे। इन्होंने वहां के पानी का जो संकट बताया वह बहुत ही भयावह है। इस क्षेत्र में पानी की कमी के कारण लोग लाचार-बेकार बीमार, बेघर हो रहे हैं। सरकार केवल कुछ पीने के पानी की व्यवस्था करने में जुटी है। पाकिस्तान में राहत कमिश्नर कह रहे थे कि, यहां अकाल राहत का काम केवल सत्ता को राहत पहुंचाने के लिए ही होता है। मैं सरकारी आदमी हूं इसलिए अधिक नहीं बोल सकता।

नूमान नकवी, प्रसिद्ध पर्यावरणविद् बोले कि हमारे यहां गरीब की भलाई के नाम पर हम केवल उसे दबाते हैं। यहां उसकी जरूरत का अहसास किसी को नहीं है। उसे कोई हक नहीं देना चाहता। हमारे पड़ोसी भारत देश की तरह हमें बोलने, नेता चुनने, कुछ करने, करवाने के लिए सत्ता पर दबाब बनाने का हक यहां नहीं है। कम से कम वैसा भी हमारे देश में हो जाये तो हम तरक्की कर सकते हैं। अन्यथा हम, हमारे खेत, पहाड़ पानी, जंगल सब कुछ लुटते रहेंगे। एक दिन फिर सब याद कर के पछतायेंगे।

शहमस उल मुल्क उस समय पाकिस्तान में स्थित पंजाब राज्य के सिंचाई और ऊर्जा मंत्री थे। उन्होंने कहा कि, हमने पानी का बहुत काम किया है, लेकिन बढ़ती जनसंख्या के कारण सब तरह की समस्याएं बढ़ रही हैं।  जनता को जो चाहिए वह सब हम कर रहे हैं। ये मंत्री जी दोनों सम्मेलनों में बराबर बने रहे। बस सरकार की उपलब्धियां बताते रहे। इन्हीं के सामने सांघी संगठन के मुस्ताक भाई इन्हीं की सब कमियां बताने की कोशिश करते रहे । इंडस-ट्रीटी का इन्होंने बहुत बार जिक्र किया। नदियों के पानी के निजीकरण की चिंता यहां बहुत उभरी थी। कई साथियों ने कहा कि, ये मंत्री ही जल का निजीकरण करने वाले हैं।

आरोप-प्रत्यारोप तो बहुत से लोग पाकिस्तान के मूक होकर, छुपकर लगाते हैं। लेकिन यहां पर्यावरण की बर्बादी रोकने का वास्तविक प्रयास दिखाई नहीं दिया। पर्यावरण के यहां होने वाले दुष्प्रभाव हमें भी प्रभावित करेंगे। हमारे देश के प्रतिनिधियों ने अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का शोधकर्मी की तरह ही प्रस्तुतीकरण किया।

मैंने देखा कि हमारे देश की अधिकतर महिलाएं इस कार्यशाला में गई थीं। ये महिलाएं सबलीकरण या सती प्रथा की बातें ही कर रही थीं। यह कार्यशाला एशिया में टिकाऊ विकास को लेकर थी। लेकिन टिकाऊ विकास की चर्चा बहुत कम हो रही थी। सुखाड़-बाढ़ पर चर्चा ज्यादा चल रही थी। इससे बचने के उपाय बहुत बताये गये।

पाकिस्तान की एक कार्यकर्ता ने बैठक में कहा कि “अभी सरकारों के मसले छोड़कर कुछ समाज के मसलों पर चर्चा करना शुरू करें। चोलिस्तान और राजस्थान एक जैसे प्रदेश हैं।  हम अपनी भूमि पर पानी बचाने का काम कर रहे हैं। आप भी ऐसा ही काम शुरू करें।  कुछ लोगों ने शुरू करने की हामी भरी, मुल्तान में हमारे जैसा काम खालिद हुसैन और जुवैदा ने शुरू करने का वादा किया।  चोलिस्तान में नदी महल दर कुछ काम शुरू करने की तैयारी में जुटेंगे। संयुक्त राष्ट्रसंघ के विकास कार्य के सहायक प्रतिनिधि मोहम्मद जफर इकबाल ने भी जल-संरक्षण व जल चेतना का कार्यक्रम चलाने का वादा किया।

मारगला हिल्स को बचाने व उसमें जंगल को बढ़ाने की कोई बात ही करने को तैयार नहीं था, क्योंकि यहां चल रही खदानें सत्ताधारियों की हैं। इनके बारे में तो अब पता ही नहीं होता।  आंदोलनकारी भी शांत हो रहे हैं।  इन पहाड़ियों पर कुछ नहीं बचा है। फिर भी अफगानिस्तान से आईटुम्बा (मांसाहारी भेड़) इन्हें रोंद रही हैं।  अब यहां के भेड़-बकरी के साथ-साथ अफगानिस्तान की बकरी-भेड़ें अधिक दिखाई देती हैं।

मैं, अभी तक अपने यहां हिमालय, अरावली, विन्ध्य की खदानों को देखकर और प्रकृति के साथ हो रहे शोषण को देखकर दुखी होता रहता था। अरावली का खनन तो बंद ही करा दिया है। यह भारत में करना ही संभव है। पाकिस्तान में पहाड़ों का नंगापन देखकर तो आंसू आ गये। दुख तब हुआ जब यहां के नामी पर्यावरणविद् भी कुछ नहीं करने के लिए लाचार और दुखी दिखे। इस विषय पर बात शुरू होते ही वे दूर हटने लगे।  यह सब देखकर अपने देश के उच्चतम न्यायालय को गौरव बढ़ाने का अवसर मिला। हमारे न्यायालय ने सचमुच बहुत ही अच्छे निर्णय पहाड़ों को बचाने हेतु लिये हैं। पाकिस्तान में यह भी संभव नहीं है। यहां की सरकार-सेना के एजेंडा में पर्यावरण नहीं दिखता।  सोने का अंडा पाने की होड़ में यहां मुर्गी का पेट जल्दी ही चीरा जा रहा है। कोई समझाने वाला भी नजर नहीं आता है। यहां जनसामान्य अलग है और सियासत बिलकुल अलग है।

लोग भले हैं, लेकिन सत्ता और सेना का दबाव अधिक है। सोचने वाला कुछ भी करने को मजबूर हैं।  यहां जल, जंगल, जंगली जीव बचाने की कोई मजबूत आवाज खड़ी होगी, तभी पाकिस्तान का पर्यावरण बचेगा और हम सबका साझा भविष्य सुधरेगा।  हम भी पाकिस्तान की घटनाओं को अपने भविष्य के साथ जुड़ा मानें। जैसे पहाड़ का कटाव नीचे की जमीन पर जमाव करके उसे बर्बाद करता है या हवा के साथ आने वाली धूल किसी की आंख को बर्बाद कर देती है, वैसे ही हमारा साझा परिवेश और पर्यावरण हमारा भी नुकसान करता है। हमें जागरूकता व समझदारी से इसे सुधारना चाहिए।  पाकिस्तान में अब इमरान के साथ आशा जगी थी लेकिन ये भी सेना के सामने नतमस्तक दिखते हैं। ये इमरान और सेना एक ही दिखाई देते हैं।

इमरान कुदरत से प्यार करते दिखते हैं। किन्तु प्यार है या नहीं? हमें कुदरत का प्यार सम्मान पाकिस्तान में जगाना कठिन लगता है।

सिन्धु नदी पर संकट है। अतिक्रमण-प्रदूषण-जल का अनैतिक अन्यायपूर्ण शोषण है। इस नदी संकट से बचाने हेतु लोग कब तैयार होंगे मालूम नहीं। इस नदी के हालात गंगा जी से भी बदतर हैं। पाकिस्तान ने इस नदी को राष्ट्रीय नदी केवल घोषित किया है। यह देश अपने राष्ट्रीय पशु-पक्षियों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय मान की तरह राष्ट्रीय सम्मान नहीं करता है। इसे सम्पूर्ण संरक्षित करने वाला कोई कानून भी इस देश ने अपनी राष्ट्रीय नदी के लिए नहीं बनाया है। इसलिए यह बाढ़-सुखाड़ और प्रदूषण का शिकार बनकर मर रही है।

 

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