• केस नंबर 1- टीकमगढ़ जिले के बलदेवगढ़ विकासखंड का ग्राम खरो। एक आदिवासी ने बदहाली से तंग आकर अपनी पत्नी और दो बच्चों को मारने के बाद खुदकुशी कर ली। उसके पास जॉब कार्ड तक नहीं था।
• केस नंबर 2- टीकमगढ़ के ही पलेरा कस्बे में कथूरा धीमर ने 50 हजार रुपए उधार लेकर मछली पालन का ठेका लिया था लेकिन तहसीलदार को बीस हजार नहीं मिले तो ठेका एक रसूखदार को मिल गया। कथूरा ने 9 मार्च, 2011 को पलेरा तहसील के सामने घासलेट छिड़क कर खुदकुशी कर ली। चौंकाने वाली बात यह है कि कथूरा मामले को कांग्रेस ने भी विधानसभा सत्र में नहीं उठाया।
• केस नंबर 3- पन्ना में तालाबों के काम में भारी अंधेरगर्दी। सब कुछ पता होते हुए भी सभी सिरे से मौन।
यह ऐसा आइटम है जो कि सबसे महंगा होता है लेकिन हीरे की खदानों के लिए मशहूर पन्ना की खास बात यह है कि यहाँ पर अस्सी फीसदी निर्माण कार्य स्थलों के आसपास (ज्यादा से ज्यादा दो किलोमीटर दूरी) पर अच्छा और कड़ा पत्थर प्रचुरता से उपलब्ध है। वहां निजी और सरकारी जमीन पर पत्थर की खदानें भी चल रही हैं लेकिन पन्ना में बन रहे बांधों के लिए पत्थर 30 किलोमीटर दूर से लाना बताया जा रहा है। कहने को ठेकेदारों को टेंडर राशि से बीस फीसदी कम पर ठेके लेने की बात कहकर उन्हें दरियादिल ठहराया जा रहा है लेकिन वह प्रति पत्थर 229 रुपए 60 पैसे प्रति घनमीटर ज्यादा कमा रहे हैं। निर्माण स्थल के आसपास पड़े पत्थर ठेकेदारों और अफसरों की जेब भर रहे हैं। कुल मिलाकर देखें तो बुंदेलखंड पैकेज के तहत बन रहे बांधों में प्रति बांध औसतन बीस हजार घनमीटर पत्थर लगता है यानी एक बांध पर 45 लाख 92 हजार रुपए ठेकेदार और अफसरों की जेब में जा रहे हैं।
बात सिर्फ पत्थर के खेल तक सीमित नहीं है। सबको पता है कि बुंदेलखंड पानी के मामले में सूखा है लेकिन पन्ना में बन रहे बांधों के निर्माण के दौरान नाले भरे दिखाए जा रहे हैं। उनसे पानी उलीचने का काम भी मस्टर रोल में चढ़ रहा है। 59 रुपए प्रति घंटे के हिसाब से पानी उलीचा जा रहा है। जब कागजों पर पानी है तो मिट्टी भी गीली होगी लिहाजा गीली मिट्टी की खुदाई के नाम पर भी अतिरिक्त भुगतान हो रहा है। फिर पानी है तो बांध बनाने के लिए काफर डेम (अस्थायी बांध) भी कागजों पर बनाए जा रहे हैं। इसके लिए भी मिट्टी दूर से ढोकर लाई जा रही है। मिट्टी पास में है लेकिन कागजों पर उसका बाकायदा परिवहन खर्च भी जोडा़ जा रहा है। इन बांधों के कामकाज की गुणवत्ता देखें तो कोई भी इसमें भ्रष्टाचार की गंध सूंघ सकता है। बांध के लिए मिट्टी की सतह को बार-बार पानी डालकर रोलर से दबाया जाना (वाटरिंग काम्पेक्शन) चाहिए लेकिन सिमरा बांध की मिट्टी की पाल देखें तो कोई भी कह सकता है कि यहां मिट्टी डंप कर दी गई है। नतीजा यह होगा कि बारिश होने पर मिट्टी के पाल की ऊंचाई पच्चीस फीसदी घट जाएगी। पानी कम भरेगा तो सिंचाई क्षमता भी आधी से कम रह जाएगी यानी सिंचाई के रकबे के दावे झूठे पड़ जाएंगे। यह कहानी पन्ना के सिमरा तालाब की ही नहीं है जिसमें कोई साठ लाख का घोटाला साफ दिख रहा है। 2 करोड़ 26 लाख की पटी तालाब योजना में कोई 57 लाख का घालमेल हुआ है। 1 करोड़ 41 लाख के खौरा तालाब सिंचाई योजना में 57 लाख का घालमेल हुआ है। 1 करोड़ 46 लाख की बरोहा तालाब सिंचाई योजना में 63 लाख का घपला दिख रहा है। तो 1 करोड़ 51 लाख की सिली तालाब योजना में तो लगभग आधी राशि हड़प कर ली गई है। ऐसे एक दो नहीं, 67 तालाब बुंदेलखंड पैकेज के तहत निर्माणाधीन हैं। सिमरा बांध के दायरे में तो वन भूमि भी बगैर केंद्रीय मंजूरी के आ गई है तो कई किसानों ने भूमि के मुआवजे के लिए हाइकोर्ट की तरफ रुख किया है।
पन्ना के भाजपा नेता और जिला केंद्रीय सहकारी बैंक के अध्यक्ष संजय नगाईच का आरोप है कि जिले में अब तक 75 करोड़ में कोई तीस करोड़ घोटाले की भेंट चढ़े हैं। यदि कोई रोकटोक नहीं हुई तो यह घोटाला बढ़ता ही जाएगा। नगाईच का कहना है कि मुख्य तकनीकी परीक्षक यहाँ जांच दल भेजें तो घोटाले की सारी तस्वीर सामने आ जाएगी। पन्ना जिले के प्रभारी मंत्री गोपाल भार्गव को भी इसका पता है लेकिन अफसरों, नेताओं और ठेकेदारों का गठजोड़ इतना सशक्त है कि वह कुछ नहीं कर पा रहे हैं। यही नहीं, विधानसभा में भाजपा के युवा विधायक विश्वास सारंग ने सवाल उठाए थे कि घोटालेबाज इंजीनियरों के तबादले क्यों रोके गए लेकिन उन्हें सही जवाब नहीं मिल सका।
प्रदेश के पूर्व मंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री राजा पटेरिया भी मानते हैं कि राहुल गांधी ने जिस भाव से बुंदेलखंड को संवारने की कवायद की है उसका मंतव्य पूरा होता नहीं दिखता। इसके लिए वह इलाके के कांग्रेसी नेताओं को भी जिम्मेदार मानते हैं जिनकी निष्क्रियता के चलते आंखों देखी मक्खी निगली जा रही है। पटेरिया का मलाल अपनी जगह है लेकिन ठेकेदारों की सूची की तरफ निगाह डालें और उनके आकाओं की तरफ देखें तो साफ हो जाता है कि इस पूरे खेल में सभी शामिल हैं। रसूखदार नेताओं ने अपने रिश्तेदारों या फिर समर्थकों के नाम ज्यादातर ठेके ले रखे हैं। इसमें कांग्रेस से लेकर भाजपा तक सभी को खुश करने की कोशिश की गई है। ऐसे में इनके खिलाफ कौन बोले लेकिन बुंदेलखंड मित्र परिषद ने बुंदेलखंड पैकेज निगरानी समिति बनाई है। इस समिति के अध्यक्ष इंजीनियर राजेंद्र सिलाकारी ने कहा कि पैकेज की राशि के दुरुपयोग की भारी शिकायतें मिल रही हैं। हमें यह समझ में ही नहीं आ रहा कि राहुल गांधी ने यहां के शोषितों को यह पैकेज दिया है या शोषकों को मालामाल करने का इंतजाम किया है। सिलाकारी कहते हैं कि हमारी समिति ऐसे चेहरों को बेनकाब करेगी। केंद्र को भी चाहिए कि वह कोई निगरानी समिति बनाए। सागर संभाग के कमिश्नर एस.के. वेद का कहना है कि निर्माण कार्यों के लिए टेंडर आदि की दरें इंजीनियरों की समिति तय करती है इसलिए वे कुछ नहीं कह सकते। हां, टेंडर रेट से कम राशि पर ठेकेदारों के ऑफर मंजूर हुए हैं।
• केंद्र प्रवर्तित योजनाओं के तहत आवंटन- 1906 करोड़ 80 लाख
• केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा जारी राशि 53 करोड़ 42 लाख
• जो राशि अटकी पड़ी है- 1853.38 करोड़
• पैकेज के तहत अतिरिक्त केंद्रीय सहायता
• वादा किया- 1953.2 करोड़
• स्वीकृत 1123.92 करोड़
• आवंटित 730 करोड़ 2 लाख
• अटकी रकम- 1223 करोड़ 18 लाख
• केस नंबर 2- टीकमगढ़ के ही पलेरा कस्बे में कथूरा धीमर ने 50 हजार रुपए उधार लेकर मछली पालन का ठेका लिया था लेकिन तहसीलदार को बीस हजार नहीं मिले तो ठेका एक रसूखदार को मिल गया। कथूरा ने 9 मार्च, 2011 को पलेरा तहसील के सामने घासलेट छिड़क कर खुदकुशी कर ली। चौंकाने वाली बात यह है कि कथूरा मामले को कांग्रेस ने भी विधानसभा सत्र में नहीं उठाया।
• केस नंबर 3- पन्ना में तालाबों के काम में भारी अंधेरगर्दी। सब कुछ पता होते हुए भी सभी सिरे से मौन।
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में बात सिर्फ पत्थर के खेल तक सीमित नहीं है। यहां पानी की किल्लत है लेकिन पन्ना में बन रहे बांधों के निर्माण के दौरान नाले भरे दिखाए जा रहे हैं। उनसे पानी उलीचने का काम भी मस्टर रोल में चढ़ रहा है।
एक नहीं, ऐसे दर्जनों केस हैं जो इस बात के गवाह हैं कि दशकों से सामाजिक अन्याय के शिकार बुंदेलखंड को मिला पैकेज गरीबों के लिए जरा भी कारगर साबित नहीं हो रहा है। पैकेज की रकम से एक बार फिर इलाके के शोषक समाज की पौ बारह हो रही है। सामंतों, अफसरों और नेताओं का गठजोड़ बुंदेलखंड पैकेज की रकम हड़प रहा है। बुंदेलखंड पैकेज के तहत चल रहे कामों की बानगी देखना हो तो पन्ना जिले में चल रहे तालाबों के निर्माण कार्य देखे जा सकते हैं। मध्य प्रदेश में 3,760 करोड़ के कुल बुंदेलखंड पैकेज के तहत इलाके में 1,118 करोड़ के काम जल संसाधन विभाग के अधीन होने हैं। पन्ना जिले में अभी 57 करोड़ के जो 67 टेंडर मंजूर हुए हैं। उनमें कोई 28 करोड़ घोटाले की भेंट चढ़ चुके हैं। जो टेंडर जारी किए गए हैं उसमें निर्माण में होने वाले कामों को इस तरह संयोजित किया गया है कि ठेकेदार को जमकर फायदा पहुँचे। मुख्य रूप से सिंचाई के लिए बनाए जा रहे बांध में पत्थरों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। इसे गिट्टी, बोल्डर, चिप्स, पिंचिंग स्टोन तथा मेसनरी स्टोन के बतौर इस्तेमाल में लिया जाता है।यह ऐसा आइटम है जो कि सबसे महंगा होता है लेकिन हीरे की खदानों के लिए मशहूर पन्ना की खास बात यह है कि यहाँ पर अस्सी फीसदी निर्माण कार्य स्थलों के आसपास (ज्यादा से ज्यादा दो किलोमीटर दूरी) पर अच्छा और कड़ा पत्थर प्रचुरता से उपलब्ध है। वहां निजी और सरकारी जमीन पर पत्थर की खदानें भी चल रही हैं लेकिन पन्ना में बन रहे बांधों के लिए पत्थर 30 किलोमीटर दूर से लाना बताया जा रहा है। कहने को ठेकेदारों को टेंडर राशि से बीस फीसदी कम पर ठेके लेने की बात कहकर उन्हें दरियादिल ठहराया जा रहा है लेकिन वह प्रति पत्थर 229 रुपए 60 पैसे प्रति घनमीटर ज्यादा कमा रहे हैं। निर्माण स्थल के आसपास पड़े पत्थर ठेकेदारों और अफसरों की जेब भर रहे हैं। कुल मिलाकर देखें तो बुंदेलखंड पैकेज के तहत बन रहे बांधों में प्रति बांध औसतन बीस हजार घनमीटर पत्थर लगता है यानी एक बांध पर 45 लाख 92 हजार रुपए ठेकेदार और अफसरों की जेब में जा रहे हैं।
बात सिर्फ पत्थर के खेल तक सीमित नहीं है। सबको पता है कि बुंदेलखंड पानी के मामले में सूखा है लेकिन पन्ना में बन रहे बांधों के निर्माण के दौरान नाले भरे दिखाए जा रहे हैं। उनसे पानी उलीचने का काम भी मस्टर रोल में चढ़ रहा है। 59 रुपए प्रति घंटे के हिसाब से पानी उलीचा जा रहा है। जब कागजों पर पानी है तो मिट्टी भी गीली होगी लिहाजा गीली मिट्टी की खुदाई के नाम पर भी अतिरिक्त भुगतान हो रहा है। फिर पानी है तो बांध बनाने के लिए काफर डेम (अस्थायी बांध) भी कागजों पर बनाए जा रहे हैं। इसके लिए भी मिट्टी दूर से ढोकर लाई जा रही है। मिट्टी पास में है लेकिन कागजों पर उसका बाकायदा परिवहन खर्च भी जोडा़ जा रहा है। इन बांधों के कामकाज की गुणवत्ता देखें तो कोई भी इसमें भ्रष्टाचार की गंध सूंघ सकता है। बांध के लिए मिट्टी की सतह को बार-बार पानी डालकर रोलर से दबाया जाना (वाटरिंग काम्पेक्शन) चाहिए लेकिन सिमरा बांध की मिट्टी की पाल देखें तो कोई भी कह सकता है कि यहां मिट्टी डंप कर दी गई है। नतीजा यह होगा कि बारिश होने पर मिट्टी के पाल की ऊंचाई पच्चीस फीसदी घट जाएगी। पानी कम भरेगा तो सिंचाई क्षमता भी आधी से कम रह जाएगी यानी सिंचाई के रकबे के दावे झूठे पड़ जाएंगे। यह कहानी पन्ना के सिमरा तालाब की ही नहीं है जिसमें कोई साठ लाख का घोटाला साफ दिख रहा है। 2 करोड़ 26 लाख की पटी तालाब योजना में कोई 57 लाख का घालमेल हुआ है। 1 करोड़ 41 लाख के खौरा तालाब सिंचाई योजना में 57 लाख का घालमेल हुआ है। 1 करोड़ 46 लाख की बरोहा तालाब सिंचाई योजना में 63 लाख का घपला दिख रहा है। तो 1 करोड़ 51 लाख की सिली तालाब योजना में तो लगभग आधी राशि हड़प कर ली गई है। ऐसे एक दो नहीं, 67 तालाब बुंदेलखंड पैकेज के तहत निर्माणाधीन हैं। सिमरा बांध के दायरे में तो वन भूमि भी बगैर केंद्रीय मंजूरी के आ गई है तो कई किसानों ने भूमि के मुआवजे के लिए हाइकोर्ट की तरफ रुख किया है।
पन्ना के भाजपा नेता और जिला केंद्रीय सहकारी बैंक के अध्यक्ष संजय नगाईच का आरोप है कि जिले में अब तक 75 करोड़ में कोई तीस करोड़ घोटाले की भेंट चढ़े हैं। यदि कोई रोकटोक नहीं हुई तो यह घोटाला बढ़ता ही जाएगा। नगाईच का कहना है कि मुख्य तकनीकी परीक्षक यहाँ जांच दल भेजें तो घोटाले की सारी तस्वीर सामने आ जाएगी। पन्ना जिले के प्रभारी मंत्री गोपाल भार्गव को भी इसका पता है लेकिन अफसरों, नेताओं और ठेकेदारों का गठजोड़ इतना सशक्त है कि वह कुछ नहीं कर पा रहे हैं। यही नहीं, विधानसभा में भाजपा के युवा विधायक विश्वास सारंग ने सवाल उठाए थे कि घोटालेबाज इंजीनियरों के तबादले क्यों रोके गए लेकिन उन्हें सही जवाब नहीं मिल सका।
प्रदेश के पूर्व मंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री राजा पटेरिया भी मानते हैं कि राहुल गांधी ने जिस भाव से बुंदेलखंड को संवारने की कवायद की है उसका मंतव्य पूरा होता नहीं दिखता। इसके लिए वह इलाके के कांग्रेसी नेताओं को भी जिम्मेदार मानते हैं जिनकी निष्क्रियता के चलते आंखों देखी मक्खी निगली जा रही है। पटेरिया का मलाल अपनी जगह है लेकिन ठेकेदारों की सूची की तरफ निगाह डालें और उनके आकाओं की तरफ देखें तो साफ हो जाता है कि इस पूरे खेल में सभी शामिल हैं। रसूखदार नेताओं ने अपने रिश्तेदारों या फिर समर्थकों के नाम ज्यादातर ठेके ले रखे हैं। इसमें कांग्रेस से लेकर भाजपा तक सभी को खुश करने की कोशिश की गई है। ऐसे में इनके खिलाफ कौन बोले लेकिन बुंदेलखंड मित्र परिषद ने बुंदेलखंड पैकेज निगरानी समिति बनाई है। इस समिति के अध्यक्ष इंजीनियर राजेंद्र सिलाकारी ने कहा कि पैकेज की राशि के दुरुपयोग की भारी शिकायतें मिल रही हैं। हमें यह समझ में ही नहीं आ रहा कि राहुल गांधी ने यहां के शोषितों को यह पैकेज दिया है या शोषकों को मालामाल करने का इंतजाम किया है। सिलाकारी कहते हैं कि हमारी समिति ऐसे चेहरों को बेनकाब करेगी। केंद्र को भी चाहिए कि वह कोई निगरानी समिति बनाए। सागर संभाग के कमिश्नर एस.के. वेद का कहना है कि निर्माण कार्यों के लिए टेंडर आदि की दरें इंजीनियरों की समिति तय करती है इसलिए वे कुछ नहीं कह सकते। हां, टेंडर रेट से कम राशि पर ठेकेदारों के ऑफर मंजूर हुए हैं।
पैकेज एक नजर में (वर्ष 2009-10 से मार्च, 2011 तक)
• केंद्र प्रवर्तित योजनाओं के तहत आवंटन- 1906 करोड़ 80 लाख
• केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा जारी राशि 53 करोड़ 42 लाख
• जो राशि अटकी पड़ी है- 1853.38 करोड़
• पैकेज के तहत अतिरिक्त केंद्रीय सहायता
• वादा किया- 1953.2 करोड़
• स्वीकृत 1123.92 करोड़
• आवंटित 730 करोड़ 2 लाख
• अटकी रकम- 1223 करोड़ 18 लाख
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