पाहिनि खड़ाऊँ खेतु निरावै, ओढ़ि रजाई झोंकैं।
घाघ कहै ई तीनों भकुआ, बेमतलब की भौंकैं।।
भावार्थ- घाघ का मानना है कि खड़ाऊँ पहन कर खेत की निराई करने वाला और रजाई ओढ़-कर भाड़ झोंकने वाला, निरुद्देश्य बोलने वाला, ये तीनों ही मूर्ख हैं।
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