आजकल की जीवनशैली में स्वस्थ रहना अत्यन्त आवश्यक हो गया है। वातावरण का प्रभाव, खान-पान की अव्यवस्था तथा खाद्य पदार्थों में मिलावट के कारण हृदयाघात, उच्च रक्तचाप, मधुमेह तथा अन्य बीमारियों का प्रकोप होता रहता है। अधिकतर तेल तथा घी में तले पदार्थ, विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ तथा वसीय पदार्थों का सेवन हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है।
प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है। अतः उसके लिये पोषक भोजन करना आवश्यक है। ऐसा पाया है कि शाकाहारी भोजन प्रत्येक आयु वर्ग के लोगों के लिये लाभदायक होता है। पूर्णतः शाकाहारी पदार्थ ही स्वास्थ्यप्रद होते हैं। इस प्रकार के भोजन से कई प्रकार के रोगों को रोका जा सकता है।
वर्तमान समय में ओमेगा-3 वसीय अम्ल शरीर का भार नियंत्रित रखने वालों के लिये विचारणीय है। भोजन बनाने की प्रक्रिया में बहुत परिवर्तन होने के कारण शाकाहारी व्यक्तियों में सर्वाहारी व्यक्तियों की तुलना में ओमेगा-3 वसीय अम्ल की अत्यधिक कमी पाई जाती है। इस कमी से शाकाहारी व्यक्तियों में अनेक प्रकार के रोगों की सम्भावना अधिक होती है। अतः अच्छे स्वास्थ्य हेतु उचित भोजन की जानकारी होना आवश्यक होता है।
ओमेगा-3 बहुअसन्तृप्त वसीय अम्ल है। इनमें एक-से-अधिक द्विबन्ध (Double bond) होते हैं। पौष्टिकता के अनुसार महत्त्वपूर्ण ओमेगा-3 वसीय अम्ल, एल्फालिनोलेनिक एसिड (alfa linolenic acid ALA) इकोसापेन्टानोइक अम्ल (Eicosapentaenoic acid, EPA) तथा डोकोसाहैक्साइनोइक एसिड (Docosahexaenoic acid, DHA) हैं। ये सभी बहुअसन्तृप्त वसीय अम्ल हैं। शुद्ध शाकाहारी भोजन में उच्चस्तर गुणवत्ता वाले ओमेगा-3 वसीय अम्ल जैसे- ताजा सूरजमुखी का तेल होना चाहिए जिससे भोजन में ओमेगा-3 तथा ओमेगा-6 का सामान्य स्तर बना रह सके।
हमारे शरीर की कोशिकाएँ वसा की बनी होती हैं। जिस प्रकार की वसा होगी उसी प्रकार की कोशिकाओं की भी रचना होती है। सन्तृप्त वसा, जोकि सामान्य ताप पर ठोस होती है, से बनी कोशिका भित्ति कठोर होगी। जबकि असन्तृप्त वसा द्वारा बनी कोशिका भित्ति लचीली होती है जो हमारे शरीर के पोषक तत्वों को कोशिका में आसानी से जाने देगी तथा अपशिष्ट को बाहर निकाल देगी। ओमेगा-3 वसीय अम्लों द्वारा बनी कोशिकाएँ स्तन कैंसर से बचाती हैं।
यद्यपि इस अम्ल का योगदान सामान्य वृद्धि तथा स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है। इसका ज्ञान 1930 के आस-पास ही हो गया था लेकिन उनके स्वास्थ्य लाभ के बारे में होने वाले लाभ का पता कुछ वर्ष पहले ही हो पाया है। ओमेगा-3 वसीय अम्ल युक्त भोजन ट्राइग्लिसराइड (Triglyceride) को कम करता है तथा कोलेस्ट्रॉल (उच्च घनत्व HDL लिपिड) (अच्छा कोलेस्ट्रॉल) को बढ़ाता है। उच्च घनत्व लिपिड ओमेगा-3 वसीय अम्ल रक्त के जमने तथा थक्का बँधने की क्रिया से बचाता है। अन्य अनेक अध्ययन द्वारा पाया गया कि ये वसीय अम्ल रक्तचाप को भी कम करते हैं। (Cathy woung Omega-3 htm 2010) एक विशेष ओमेगा-3 वसीय अम्ल डोकोसाहैक्साइनोइक अम्ल (Docosahexaenoic acid) उस प्रोटीन को एकत्र नहीं होने देता जो कि एल्जाइमर रोग पैदा करता है।
यदि अवसाद, टाइप-2 मधुमेह, हृदय सम्बन्धी रोग, शुष्क, खुजली वाली त्वचा, मंगुर (brittle) बाल तथा नाखून, एकाग्रता की कमी, थकावट जोड़ों का दर्द है तो ओमेगा-3 वसीय अम्ल की कमी हो सकती है।
ओमेगा-3 वसीय अम्ल सामान्य जैविक कार्यों के अतिरिक्त कई अन्य कार्यों के लिये भी आवश्यक होते हैं। ये शरीर में ऊर्जा बढ़ाने, कुछ प्रकार के कैंसर को रोकने, निद्रा बढ़ाने, सूजन कम करने गठिया रोग में आराम देने, त्वचा, नाड़ियों, शिराओं तथा पूरी आँत में चिकनाहट पैदा करने, हृदय सम्बन्धी रोगों को रोकने, एकाग्रता बढ़ाने, एल्जाइमर, अवसाद तथा अन्य रोगों को रोकने, उच्च रक्तचाप तथा कोलेस्ट्रॉल कम करने, विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएँ दूर करने, कोष्ठबद्धता को नियंत्रित करने तथा मस्तिष्क के सामान्य रूप से कार्य करने के लिये भी आवश्यक है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्था द्वारा प्रत्येक सामान्य व्यक्ति को अपने भोजन में लगभग 4 ग्राम ओमेगा-3 वसीय अम्ल का प्रयोग करना चाहिए। यह मात्रा सूरजमुखी के तेल तथा सालमन मछली द्वारा प्राप्त हो सकती है। एक बड़े चम्मच सनबीज (अलसी) में 3-5 ग्राम ओमेगा-3 वसा तथा चार औंस (लगभग 190 ग्राम) सालमन मछली से 1.5 ग्राम ओमेगा-3 वसीय अम्ल मिलता है। भोजन तथा औषधि प्रबन्धन द्वारा प्रति सप्ताह दो बार मछली खाने से यह मात्रा मिल जाती है।
एक अध्ययन के अनुसार, नवजात बच्चों के लिये 500 मिग्रा एक से तीन वर्ष तक के लिये 750 मिग्रा तथा चार से आठ साल के बच्चों को 950 मिग्रा, ओमेगा-3 वसीय अम्ल की संस्तृप्ति की गई है। नौ से तेरह वर्षों तक के लड़कों के लिये 1200 मिग्रा तथा लड़कियों के लिये 1000 मिग्रा की आवश्यकता होती है। तेरह वर्ष के ऊपर तथा युवा लड़कों के लिये 1600 मिग्रा तथा लड़कियों के लिये 1000 मिग्रा प्रतिदिन की खुराक बताई गई है।
सामान्य रूप से मछली, वनस्पतियाँ, अखरोट, मूँगफली तथा अन्य कड़े छिलके वाले पदार्थों के बीजों में ओमेगा-3 वसीय अम्ल पाया जाता है। इकोसापेन्टानोइक अम्ल (Eicosapentaenoic acid, EPA) तथा डोकोसाहैक्सानोइक अम्ल (Docosahexaenoic, acid, DHA) ठंडे जल वाली मछली जैसे- सालमन, मैकरेल (Mackerel) हालीबट (halibut), सरडाइन (Sardine), टूना (Tuna) तथा हेरिंग (Hering) में पाया जाता है। लीयनोलेनिक अम्ल (ALA), सूरजमुखी के तेल, लौकी के बीज तेल अखरोट में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त समुद्री मछली जैसे- शंखमीन (झींगा) (krill) तथा शैवाल (Algae) भी इसके स्रोत हैं।
शाकाहारी स्रोतों जैसे- सूरजमुखी के बीज से प्राप्त ओमेगा-3 वसीय अम्ल शरीर के अन्दर जाकर उसी प्रकार के ओमेगा-3 अम्ल में बदल जाते हैं जैसे कि समुद्री भोजन में होते हैं। अतः शाकाहारी व्यक्तियों को मांसाहारी भोजन की आवश्यकता नहीं होती है। इनको स्वास्थ्य हेतु, मांस, मछली का तेल आदि खाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। बिना साफ किया हुआ सूरजमुखी का तेल सर्वोत्तम होता है जिसमें ओमेगा-3 वसीय अम्ल सबसे अधिक होता है।
सूरजमुखी के बीज मुख्यतः दो प्रकार का होता है भूरा तथा पीला या सुनहरा दोनों प्रकार में समान पोषक तत्व तथा छोटी शृंखला वाले ओमेगा-3 वसीय अम्ल होते हैं। ये सभी अम्ल सर्वोत्तम भोजन पूरक हैं। इसके अतिरिक्त अन्य पोषक तत्व जैसे विटामिन B6 मैग्नीशियम तथा फोलेट भी उपस्थित रहते हैं। ओमेगा-3 युक्त मछली के तेल को अधिक वरीयता दी जाती है क्योंकि इसमें इकोसापेन्टाइनोइक अम्ल (Ecosapentaenoic acid, EPA) तथा डोकोसाहैक्साइनोइक अम्ल (DHA) अधिक मात्रा में होते हैं जो कि शरीर तथा मस्तिष्क के लिये अत्यन्त आवश्यक होते हैं।
मानव शरीर में लीनोलेनिक अम्ल उपापचय क्रिया में एन्जाइम डेल्टा-6 डीसेटूरेस (Delta-6 desaturase) से प्रतिस्पर्धा करते हैं। यह प्रतिस्पर्धा स्वास्थ्य हेतु आवश्यक है, क्योंकि लीनोलेनिक अम्ल की अधिकता डेल्टा-6 डीसेटूरेस (delta-6 desaturase) की मात्रा को कम करती है जो कि लीनोलेनिक अम्ल के उपापचय के लिये आवश्यक है।
मानव जाति का विकास ऐसे भोजन से हुआ है जिसमें ओमेगा-6 से ओमेगा-3 आवश्यक वसा अम्ल मौजूद थे। विगत कुछ वर्षों में तकनीकी विकास तथा भोजन के बदलाव के कारण आवश्यक वसीय अम्लों का अनुपात बदला है जो कि मुख्यतः ओमेगा-6 की अधिकता या ओमेगा-3 वसीय अम्ल की कमी के कारण हुआ है।
शाकाहारी स्रोतों में मुख्यतः पटुआ का तेल है जिसमें 57% ओमेगा-3 वसीय अम्ल पाया जाता है जबकि मछली के तेल में 100% होता है। सोयाबीन में 7% तथा अखरोट में 10% ओमेगा-3 अम्ल पाया जाता है। ओमेगा-6 की उपस्थिति सफोला तेल में 75%, सूरजमुखी में 65% मकई में 54%, बिनौला में 50%, मूँगफली में 32%, सोयाबीन में 51%, अखरोट में 52%, लेकिन मछली के तेल में शून्य होता है।
अतः ओमेगा-3 की उचित मात्रा स्वस्थ रहने तथा हृदय रोग से बचने, वजन नियंत्रित करने हेतु आवश्यक है। इस अम्ल से प्रोस्टाग्लैंडीन (Prostaglandine) का उत्पादन भी होता है जोकि शरीर कार्यकलापों को सामान्य रखने में सहायता करता है। इनमें से मुख्यतः रक्तचाप, नाड़ी संचालन तथा तीव्र ग्राहिता (allerge) नियंत्रण है। गुर्दे, जठरांत्र (Gastrointestinal) क्षेत्र तथा अन्य हार्मोन का उत्पादन भी ओमेगा-3 द्वारा प्रभावित होता है।
विशेष लाभ के लिये उपभोक्ताओं को भोजन में ओमेगा-3 वसीय अम्ल मुक्त पदार्थों जैसे- परिष्कृत खाद्य पदार्थ, बहुत दिनों का रखा तेल, सलाद में प्रयोग किये जाने वाले अम्लीय पदार्थ (Salad dressings), जो कि ओमेगा-6 से युक्त हैं, से परहेज करना चाहिए। शाकाहारी लोगों को पटुआ का तेल प्रयोग करना चाहिए। जिसमें ओमेगा-3 का प्रतिशत बहुत अधिक होता है तथा सूरजमुखी, मक्का तेल तथा सोया तेल का प्रयोग कम करना चाहिए जिनमें ओमेगा-3 बहुत ही कम होता है।
अतः नियमित व्यायाम, चिकित्सक की सलाह तथा खाद्य पूरक पदार्थ लेकर जीवनशैली में सुधार किया जा सकता है। आजकल परिष्कृत तेलों का प्रयोग सर्वाधिक किया जा रहा है जो कि देखने में अच्छा लगता है, लेकिन स्वास्थ्यवर्द्धक नहीं होता है।
लेखक परिचय
प्रो. ईश्वर चन्द्र शुक्ल एवं श्री विशाल कुमार सिंह
रसायन विज्ञान विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद 211 002 (उत्तर प्रदेश)
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