ऑलवेदर रोड के निर्माण में पेंच ही पेंच

ऑलवेदर रोड
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ऑलवेदर रोड (फोटो साभार - हिन्दुस्तान टाइम्स)उत्तराखण्ड स्थित चारों धामों यानि बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को जोड़ने वाली सड़क, ‘ऑलवेदर रोड’ के निर्माण पर फिलहाल रोक लगा दिये जाने के कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। निर्माण स्थल के आस-पास निवास करने वाले लोगों को आवागमन में भी काफी परेशानी हो रही है।

देहरादून की स्वयंसेवी संस्था ग्रीन दून द्वारा राष्ट्रीय हरित न्यायालय (National Green Tribunal) के आदेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में ऑलवेदर रोड निर्माण के विरोध में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की गई थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 22 अक्टूबर 2018 को इस सड़क के निर्माण पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दिया था। कोर्ट के इस आदेश के बाद सड़क निर्माण का काम लगभग रुक गया है। जिन जगहों पर सड़क निर्माण का कार्य आरम्भ हो चुका था वे क्षेत्र मलबे के ढेर, पेड़ों की कटाई के अवशेष, आधी-अधूरी दीवार, पत्थरों के चट्टे, सीमेंट, सरिया और सड़क निर्माण की अन्य सामग्री से अटे पड़े हैं। इसके कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

लोगों का कहना है कि इस तरह की परियोजनाओं से स्थानीय स्तर पर दो तरह की समस्या खड़ी होती है। पहली, पर्यावरण का नुकसान और दूसरा बेरोजगारी का संकट। वे कहते हैं कि यदि किसी कारणवश काम को बीच में ही रोक दिया गया तो सड़कों की स्थिति सुधारने में बहुत वक्त लगेगा जिससे पहाड़ की अधिकांश आबादी को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है।

ज्ञात हो कि ऑलवेदर रोड प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है। इस प्रोजेक्ट की घोषणा उन्होंने 27 दिसम्बर, 2016 को देहरादून में आयोजित की गई एक जनसभा के दौरान किया था। कुल 889 किलोमीटर लम्बी इस सड़क के निर्माण पर 12000 करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान है। मौजूदा जानकारी के अनुसार इस परियोजना के 440 किलोमीटर हिस्से पर कोर्ट के आदेश तक तेजी से काम चल रहा था।

इसके तहत 8542.41 करोड़ रुपए की लागत वाले 37 कार्य स्वीकृत हो चुके हैं और इनमें से 6683.58 करोड़ रुपए की लागत वाले 28 कार्यों पर कोर्ट के आदेश तक काम जारी था। इसके अलावा 246.39 करोड़ रुपए के तीन कार्य की निविदाओं के अनुबन्ध हो चुके हैं। वहीं, 1374.67 करोड़ रुपए की चार योजनाओं की निविदाएँ प्राप्त हो गई हैं और उनके मूल्यांकन की प्रक्रिया जारी है। इनके अतिरिक्त 237.75 करोड़ रुपए की लागत वाले दो कार्यों के लिये निविदाएँ आमंत्रित की जा चुकी हैं। इस परियोजना को वर्ष 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

राष्ट्रीय हरित न्यायालय 26 सितम्बर को एक आदेश जारी करते हुए इस परियोजना को हरी झंडी दे दी थी। एनजीटी ने इस राजमार्ग के बनने से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को देखने के लिये एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन भी कर दिया था। इस सात सदस्यीय समिति की अध्यक्षता की जिम्मेदारी केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एक विशेष सचिव को दी गई थी। राष्ट्रीय हरित न्यायालय में भी ऑलवेदर रोड को चुनौती ग्रीन दून संस्था द्वारा ही दिया गया था। याचिकाकर्ता के अनुसार इस परियोजना की शुरुआत बिना किसी पर्यावरण मंजूरी के हुई थी और वन मंजूरी के बिना ही 25,000 से अधिक पेड़ काटे दिये गए।

इस परियोजना के सम्बन्ध में एक अन्य गम्भीर आपत्ति सड़क के चौड़ीकरण से पैदा हुए मलबे के निस्तारण से जुड़ी है। पर्यावरणविदों का कहना है कि मलबे के निस्तारण के लिये डम्पिंग यार्ड की व्यवस्था नहीं की गई है। वे कहते हैं की डम्पिंग यार्ड के अभाव में मलबा को सीधे गंगा और उसकी सहायक नदियों में बहा दिया जाता है जिससे भविष्य में प्रदेश में जून 2013 जैसी आपदा की पुनरावृत्ति की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस परियोजना के तहत गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के लिये जाने वाली मौजूदा सड़क को 10 से 24 मीटर तक चौड़ा किया जाना है।

इस परियोजना के तहत कुल 50,000 पेड़ों के काटे जाने का अनुमान है। लेकिन मिली जानकारी के अनुसार वन विभाग से इसके लिये अब तक क्लीरेंस नहीं लिया गया है। दरअसल, पर्यावरण मंत्रालय से इस परियोजना के लिये 53 हिस्सों में स्वीकृति ली गई है क्योंकि 100 किलोमीटर से अधिक सड़क निर्माण के लिये पर्यावरण प्रभाव का आकलन आवश्यक शर्त है। पर्यावरण प्रभाव के आकलन से बचने के लिये 889 किलोमीटर लम्बी इस सड़क का निर्माण कई छोटे-छोटे हिस्सों में दिखाकर मनमाफिक पेड़ों की कटाई की जा रही है। यही वजह है कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 6 अप्रैल, 2018 को एनजीटी में दाखिल हलफनामे में कहा था कि उसने चारधाम नाम से किसी भी सड़क के निर्माण को मंजूरी नहीं दी है।

मालूम हो कि इस परियोजना से जुड़ी एक अन्य बड़ी आपत्ति ईको सेंसिटिव जोन में भूमि हस्तान्तरण की है। राष्ट्रीय राजमार्ग 18 के धरासू बैंड से गंगोत्री के हिस्से तक इको सेंसिटिव जोन की वजह से भूमि हस्तान्तरण का काम शुरू नहीं हो पा रहा है। यहीं से चारधाम सड़क परियोजना बनने जा रही है। इस हेतु केन्द्र सरकार द्वारा निगरानी समिति का पुनर्गठन कर दिया गया है। परियोजना की कार्यदायी एजेंसियाँ, केन्द्रीय सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय, बीआरओ और राष्ट्रीय राजमार्ग, जिलाधिकारी के माध्यम से वन भूमि हस्तान्तरण के प्रस्ताव को निगरानी समिति को भेजेंगी। इस सम्बन्ध में कार्यदायी एजेंसियों को पहले चरण की सैद्धान्तिक मंजूरी की प्रक्रिया पूरी करने का आदेश जारी किया गया है। इस बात की जानकारी प्रभारी सचिव वन अरविंद सिंह ह्यांकी द्वारा दी गई है। वहीं, इस परियोजना के तहत 81.50 प्रतिशत वन भूमि के हस्तान्तरण की प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है। इस परियोजना के तहत कुल 841.46 किलोमीटर की लम्बाई में भूमि का हस्तान्तरण किया जाना है जिसमें से 685.70 प्रतिशत भूमि के हस्तान्तरण की स्वीकृति हो चुकी है।

चारधाम सड़क परियोजना एक नजर में

1. सड़क की कुल लम्बाई 889 किलोमीटर
2. 440 किलोमीटर हिस्से पर काम शुरू हो चुका है
3. परियोजना की कुल लागत लगभग 12 हजार करोड़ रुपया है
4. इसके तहत कुल 132 ब्रिज, 25 हाई फ्लड लेबल ब्रिज के साथ ही 13 बाईपास बनाए जाने हैं।
5. इनके अलावा 115 बस स्टैंड, 9 ट्रक स्टैंड, 3889 वाटर वार्ट बनाया जाना है।
6. इस परियोजना को 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

 

 

 

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