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All weather road project
विकल्प: सुगम यात्रा की ओर ऑल वेदर रोड का संकल्प
![ऑलवेदर रोड का मैप ऑलवेदर रोड का मैप](https://farm5.staticflickr.com/4795/25871230277_f36b61f1cc.jpg)
12 हजार करोड़ की लागत से लगभग 900 किमी लम्बी सड़क ऑलवेदर रोड के नाम से उत्तराखण्ड के चार धार्मिक पर्यटक स्थलों तक बनेगी। जिसका निर्माण कार्य ऋषिकेश से आरम्भ हो चुका है। यदि यह महत्वकांक्षी योजना ठीक-ठाक रही तो आने वाले दिनों में दुनिया भर के श्रद्धालुओं की उत्तराखण्ड के पवित्र स्थल केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री तक सीधी पहुँच होगी। ऐसा भी माना जा रहा है कि यह देश की पहली पहाड़ी मोटर रोड़ होगी जिस पर 24 घण्टे आवागमन के लिए यातायात जैसी सुविधा उपलब्ध होगी।
रात दिन इस मार्ग पर आवागमन करने वालो को खान-पान की भी सुविधा मुहैया होंगी। क्योंकि 24 मीटर चौड़ी सड़क है। कोई मोटर दुर्घटना का भय तब पहाड़ में नहीं होगा। मोटर वाहन कुलांचे नहीं अपितु फर्राटे भरेंगे। यह सब होगा प्राकृतिक संसाधनो की कीमत पर। यहां अगर ऑलवेदर रोड़ ही बनानी है तो प्राकृतिक संसाधनो का दोहन तो करना ही होगा। इस ऑलवेदर रोड़ के जानकार कहते हैं कि बिना दोहन के कोई बड़ी योजना भला कैसे बन सकती।
12 हजार करोड़ की लागत से लगभग 900 किमी लम्बी सड़क ऑलवेदर रोड के नाम से उत्तराखण्ड के चार धार्मिक पर्यटक स्थलों तक बनेगी। जिसका निर्माण कार्य ऋषिकेश से आरम्भ हो चुका है। यदि यह महत्वकांक्षी योजना ठीक-ठाक रही तो आने वाले दिनों में दुनिया भर के श्रद्धालुओं की उत्तराखण्ड के पवित्र स्थल केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री तक सीधी पहुँच होगी।
उल्लेखनीय है कि ऑलवेदर रोड़ के कारण उत्तराखण्ड के गाँवो में इन दिनों लोगो के बीच एक बहस पैदा हो गई है कि इतनी बड़ी सड़क बनने के कारण सीमा के प्रहरियों के लिए आवश्यक सामग्री पहुँचाने में सुगमता होगी। कुछ लोग कहते हैं कि इस सड़क के कारण चारों पवित्र स्थलो तक दुनियां के लोगो की सीधी पहुँच बनेगी। वहीं दूसरी ओर जो गाँव पहले से ही इन राष्ट्रीय राजमार्गो पर बसे हैं उन्हे यह डर सता रहा है कि यदि सड़क 24 मीटर चौडी बन गई तो उनके गाँव का नामो-निशां ही मिट जायेगा। अर्थात विस्थापन की स्थिति पैदा होने की आशंका है। पर योजनाकारों ने कभी नहीं बताया कि ऑलवेदर रोड़ के कारण गाँव विस्थापन की कगार पर आ जायेंगे। उदाहरण स्वरूप उत्तरकाशी का सुनगर और भंगेली जैसे दर्जनो ऐसे गाँव है जो पूर्व की सड़क के एकदम सिराहने पर बसे हैं।इसी तरह बद्रीनाथ और केदारनाथ जाने वाले मार्ग पर फाटा, तिलवाड़ा, गोचर, सिमली जैसे गाँव हैं जो एक तरफ 2013 की आपदा की मार झेल रहे हैं और अब उनके सामने ऑलवेदर रोड़ का संकट दिखाई दे रहा है। यमुनोत्री मार्ग पर पनोथ, ग्योनोटी, पौलगाँव, बाडि़या, किशाला, खनेड़ा, रानागाँव की बसने की बनावट ही कुछ ऐसी बनी है कि जैसे ही ऑलवेदर रोड़ के लिए निर्माण कार्य आगे बढ़ेगा वैसे ये गाँव मलबे के साथ बहकर नीचे आ जायेंगे। इसी तरह गेंवला, कल्याणी, वजरी जैसे दर्जनो गाँव है जो सड़क निर्माण के दौरान सम्पूर्ण दबान में आ जायेंगे। क्षेत्र के जागरूक लोगो का कहना है कि ऑलवेदर रोड़ के डीपीआर में कहीं भी ऐसा नहीं बताया गया कि सड़क चौड़ीकरण से जो मलबा निकलेगा उस हेतु उचित डम्पिग यार्ड की आवश्यकता पड़ेगी, दबान व कटान से गाँव खतरे में पड़ेंगे वगैरह…….।
![ऑलवेदर रोड प्रोजेक्ट का पूरा ब्यौरा](https://farm5.staticflickr.com/4791/38931726350_d1038e215e.jpg)
![चारधाम परियोजना की कुल लागत](https://farm5.staticflickr.com/4785/25871230157_e7ae69c99d.jpg)
वैसे लोग चाहते हैं कि उत्तराखण्ड में मोटर मार्ग व्यवस्थित हो क्योंकि यात्राकाल में खराब सड़को के कारण कई मौते हो जाती है, सुखद यात्रा का खौफ बना रहता है लेकिन भूस्खलन व अन्य आपदा के कारण यात्रा और सामान्य आवागमन के बाधित होने जैसी समस्याओं का समाधान 24 मीटर चौड़ी सड़क से हो ऐसा कहना गलत होगा। इसलिए कि उत्तराखण्ड के पहाड़ समकोण आकृति से बने है, सतपुड़ा और विंध्याचल की पहाडियों जैसे पक्के नहीं हैं। यहाँ पूर्व का अनुभव है कि एक मीटर खोदने से 10 मीटर के मलबे को संभालना ही मुसीबत का पहाड़ बन जाता है। जितने भी डेंजर जोन हैं वे सभी अप्राकृतिक छेड़-छाड़ से पैदा हुए हैं। फिर भी लोगों का है कि मौजूदा मोटर मार्गो को ही इस भारी-भरकम बजट से वैज्ञानिक व आधुनिक विधि से सुदृढ़ किया जा सकता है। इससे पर्यावरण की सामान्य क्षति होगी जिसे सामान्य किया जा सकता है और विस्थापन की स्थिति भी नहीं बनेगी।
![भारतीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया मैप](https://farm5.staticflickr.com/4797/38931726050_c31ae97bac.jpg)
![ऑलवेदर रोड बाईपास](https://farm5.staticflickr.com/4788/38931726630_163d92f313.jpg)
उत्तराखण्ड में दर्जनों मार्ग कई बार की आपदाओं से क्षतिग्रस्त हैं। लोग इन मार्गों के सुधारीकरण की माँग कर रहे हैं। यह माँग टिहरी, उत्तरकाशी, पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग जनपदों के आपदा प्रभावित गाँवों की लम्बे अर्से से है। लोग ऑलवेदर रोड़ के योजनाकारों से यह भी जानना चाहते हैं कि उत्तराखण्ड के पहाड़ विंध्याचल और सतपुड़ा की पहाडि़यों जैसे मजबूत हैं। यदि ये पहाड़ कच्चे और नये हैं तो इन पहाड़ियों का विकास के नाम पर ऐसा विदोहन किया जा सकता है। यदि यह संभव है तो गाँव और पर्यावरण का कम से कम नुकसान हो सकता है। जैस-जैसे हम आधुनिक विकास की ओर अग्रसर हो रहे हैं वैस-वैसे हमारे यहाँ तो यह दिखाई दे रहा है कि सड़क बन रही है, बिजली बन रही है, गाँव और सर्वाधिक ऊँचाई के स्थानों तक बिजली पहुँच भी रही है, पर इसके विपरी स्थितियां बेकाबू हो रही हैं। जैसे बाढ़, भूकम्प, भूस्खलन की समस्याओं का तेजी से बढ़ना। और बर्फबारी का कम होना, जलस्रोतों का तेजी से सूखना। मोटर मार्ग बने हैं तो वे सालभर में दो या चार माह तक ही आवागमन के लिए सुलभ हो पाते हैं। अधिकांश समय में वे आपदा आदि के कारण बाधित ही रहते हैं। पहाड़ों में दरारें दिखाई दे रही हैं हर माह भूकम्प का खौफ बना रहता है। इन सम्पूर्ण समस्याओं को ध्यान में रखते हुए ऑलवेदर रोड़ पर काम किया जाए।
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