ओखलकांडा के 'वाटर हीरो' पर्यावरण से ऐसा प्रेम कि जंगलों को लौटा दी हरियाली 

ओखलकांडा के वाटर हीरो,PC- द पहाड़ी एग्रीकल्चर
ओखलकांडा के वाटर हीरो,PC- द पहाड़ी एग्रीकल्चर

जंगलों में पेड़ काटने की घटनायें तो आम हैं, लेकिन जंगलों को उनकी हरियाली लौटा देना, ऐसी मिसाल कम ही दिखती है। उत्तराखण्ड के वाटर हीरो या पर्यावरण प्रेमी के नाम से मशहूर चंदन सिंह नयाल ने बिना किसी सरकारी मदद के पर्यावरण संरक्षण का शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया है।

आज हम आपको एक ऐसे 'वॉटर हीरो' के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने जंगल में चारों तरफ हरियाली वापस लायी है. जी हाँ, जिनको पर्यावरण प्रेमी और वॉटर हीरो के नाम से भी जाना जाता है, इनका नाम है चंदन सिंह नयाल। नैनीताल के ओखलकांडा ब्लॉक में नाई गाँव, चामा पंतोली निवासी किसान और पर्यावरण प्रेमी चंदन सिंह नयाल 10 सालों से पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।

चंदन सिंह नयाल जी कहते हैं कि मैंने एक प्राइवेट कंपनी में 3 साल तक नौकरी की और उसके बाद सरस्वती विद्या मंदिर में मैंने कुछ टाइम तक पढ़ाया और मेरा काम जल संरक्षण और एनवायरनमेंट का है और यह मैं 2012 से कर रहा हूँ।

उसके बाद 2016-17 में नौकरी छोड़ने के बाद में सतत इसी को ही करने लग गया, तो जब नौकरी कर रहा था तो छुट्टियों के दौरान जब गाँव आता था तो देखता था कि हमारे चारों तरफ चीड़ के जंगल हैं जिनमें आग लगती रहती थी, और मैं देखता था कि यह पेड़-पौधे हमारे जल रहे हैं, खत्म हो रहे हैं। तो वहीं से ही एक शुरुआत हुयी कि हमें भी पेड़-पौधे लगाने चाहिए फिर हमने अपने चारों तरफ पेड़-पौधे लगाना शुरू कर दिया। फिर हमने सोचा एक मॉडल हम तैयार कर सकते हैं।

गाँव वालों के सहयोग से फिर हमने 4 हेक्टेयर का जंगल तैयार करना शुरू कर दिया। फिर हमको लगा कि पानी की समस्या भी बहुत है। फिर हमने जंगलों में गड्ढे बनाने शुरू कर दिए। पानी के चाल-खाल और पोखर-खतियां और वर्तमान समय में लगभग हम 6000 चाल-खाल बना दिए हैं जो कि 12 हेक्टेयर का जंगल है, उसमें हमने 6000 से अधिक चाल-खाल बनाए हैं। इससे पानी भूमिगत होता है और दो पानी के स्रोत हमारे रिचार्ज हुए हैं जो गोला नदी के कैचमेंट एरिया में और लदीया नदी के कैचमेंट एरिया में लोग काम कर रहे हैं। और हम किसानों से इसलिए जुड़े हैं क्योंकि हम उनके पानी की जरूरत पूरी कर रहे हैं। हम जंगलों में चाल-खाल बना रहे हैं। उससे हमारे वॉटर सोर्सेस चार्ज होते हैं। कुछ चाल खाल हमारे ऐसे बने हैं जिससे लोग खेती के लिए पानी ले जाते हैं तो इसलिए हम कृषि से जुड़े हुए हैं।

आगे नयाल जी कहते हैं पेड़ पौधों की बात करूं तो वर्तमान समय में हमने लगभग 58 हजार पेड़ पौधे हमने स्वयं से लगा दिए हैं, वैसे हम फल के पौधे भी गाँव वालों को वितरित करते हैं। लगभग 60 हजार से अधिक पौधे हम लोगों को वितरित कर चुके हैं और हम खुद की नर्सरी भी तैयार करते हैं। उसके बाद अपनी आजीविका के रूप में उनका कुछ न कुछ बच जाता है। और उसी में से पौधे हम प्लांटेशन भी करते हैं। 58 हजार हमने स्वयं से लगाए हैं। इसके अलावा 50 हजार पौधे हमने दीनदयाल उपाध्याय फाउंडेशन, देहरादून के सहयोग से लगाए हैं। जिसमें की 2 से 3 वन पंचायतों का भी सहयोग रहा।  और प्लांटेशन हमने अलग-अलग जिलों में की हुई है। कुमाऊँ के काफी जिलों में की है। इसके अलावा गढ़वाल में भी काफी जिलों में हम कर रहे हैं। लेकिन हमें लगा कि मुख्य रूप से हम एक मॉडल तो तैयार करें। और पौधे लगाना तो आसान है, लेकिन उनका संरक्षण करना बहुत जरूरी है और मेरा उद्देश्य हमेशा से संरक्षण का रहा है। जिसके लिए हमने अपने ही गाँव में 4 हेक्टर का जंगल लोगों ने तैयार किया है।

अब हम अलग-अलग वन पंचायत में भी कर रहे हैं। जो कवर अप ,है जिसमे तार बाड़ है दीवारें हैं, उन वन पंचायत में हम प्लांटेशन कर रहे हैं। जिसमें वन विभाग भी हमारा सहयोग करता है। और इसमें हम जंगली पेड़ पौधे ज्यादा लगाते हैं जैसे बांज, खरसू रियांज फूलियांथ और हम इसमें कुछ फलदार पौधे भी लगाते हैं जैसे धाडिम, अनार, रोडा, पांगर इस प्रकार के पौधे लगाते हैं और यहां 1800से 2100 की हाइट है तो इस हाइट में जो भी पौधे लगते हैं वह पौधे हम लगाते हैं और जो लोगों को वितरित करते हैं। उसमें तेज पत्ता है, पुलम है, नींबू, माल्टा यह पौधे हम लोगों को वितरित करते हैं।

आगे नयाल जी कहते हैं कि नर्सरी के माध्यम से हर साल 6 से 7 लाख का टर्नओवर हमारा हो जाता है क्योंकि नर्सरी को हम बड़े स्तर पर कर रहे हैं और जितने भी महंगे से महंगे पौधे हैं हम उन्हें नर्सरी के माध्यम से तैयार कर रहे हैं और सब्जी उत्पादन से हमारा सालाना 2 से 2.5 लाख तक हमारा टर्नओवर हो जाता है। और हमारे साथ बहुत से लोग जुड़ गए हैं, अलग-अलग गाँव में हमारी टीम है जिसमें की 7 से 8 लोगों की टीम है। और मेरे गाँव में लगभग 40 से 45 महिलाओं की टीम है और 30 युवाओं की टीम है।

नयाल बतात हैं के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने मन की बात के ट्विटर हैंडल में हमारे कार्यों का जिक्र किया और जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा 2020 में मुझे वाटर हीरो का अवार्ड दिया गया और हाल ही में अभी SDG अचीवर अवार्ड था। वह भी SDG उत्तराखण्ड सरकार ने मुझे दिया। इससे पहले मुख्यमंत्री जी ने इन कार्यों के लिए मुझे सम्मानित किया।

भविष्य हेतु कार्य योजना

चंदन सिंह नयाल जी कहते हैं भविष्य में मेरा प्लान यही है कि हम अधिक से अधिक इस कार्य को बढ़ाएँ। अधिक से अधिक संस्थाओं से सहयोग लेकर इस कार्य को आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे और पूरे क्षेत्र में पूरे उत्तराखण्ड में पूरे भारत में इस कार्य को पहुंचाएँ, और हमारा काम जमीनी स्तर का है हमारा कोई एनजीओ नहीं है, सभी लोग गाँव के मिलकर काम करते हैं और लोगों को यही संदेश देना चाहते हैं कि जब तक हम कम्युनिटी के साथ मिलकर काम नहीं करते हैं तब तक कोई भी काम संभव नहीं है।

और यही संदेश हम उत्तराखण्ड और पूरे देश को देते हैं और जिस दिन यह मॉडल हमारा पूरे दुनिया या पूरे भारत में अपना लिया तो उस दिन यहां पर ना बेरोजगारी होगी ना हम अपने एनवायरनमेंट के लिए परेशान होंगे।

मुख्य समस्याएँ 

नयाल जी कहते हैं कि जब मैंने इसकी शुरुआत की तो गाँव के लोग बोलने लग गए कि यह पागल हो गया है, नौकरी छोड़ दी है इतना पढ़ लिखकर नौकरी करने की 'बजाय यह पेड़-पौधों के पीछे लगा है क्योंकि पहाड़ों में पेड़ों की उतनी वैल्यू नहीं होती है लोग समझते नहीं है क्योंकि मेरे अंदर एक जुनून था एक जोश था कि मुझे यही चीज करनी है। कुछ भी हो जाए मेरे आगे और कुछ नहीं था। कल के दिन मेरी रोजी-रोटी कैसे चलेगी कल के दिन क्या करूंगा। कैसे करूंगा ऐसे मेरे मन के अंदर कुछ भी नहीं था। बस मैं यह समझता था जैसे हमारे बुजुर्गों ने बिना कुछ हुए बिना संसाधन के अपना जीवन पूरा अच्छे से बहुत प्यार से काट दिया था। तो मैंने भी सोच लिया था कि इसी तरीके से काट लूंगा क्योंकि हमारे पास जमीन वगैरा है तो उस में खेती करके उससे जो भी हो हम लोग अपना जीवन यापन कर लेंगे। तो शुरुआत में समस्याएँ आती हैं लोगों समझाना इस चीज के लिए जोड़ना एक मेरे लिए बहुत मुश्किल काम था।

युवाओं को संदेश 

चंदन जी कहते हैं युवाओं को मैं यही कहना चाहूँगा की आज जो सबसे बड़ी जरूरत एनवायरमेंट की है।

स्रोत :- द पहाड़ी एग्रीकल्चर,2023

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Post By: Shivendra
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