परमाणु प्रतिष्ठान दुनिया भर में यह आकलन करने में लापरवाही बरतता है कि उसके क्रियाकलापों का पर्यावरण व सेहत पर क्या असर होता है। उचित आकलन तो छोड़िए, कई देशों में तो इस बाबत आंकड़े भी इकट्ठे नहीं किए जाते और इस तरह के आंकड़े लोगों को बताना तो कहीं नहीं किया जाता है। भारत में भी बरसों तक परमाणु सम्बंधी बहस निरर्थक ही थी क्योंकि दोनों ही पक्षों के पास परमाणु गतिविधि के प्रभाव सम्बंधी पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध नहीं थे जब भी कोई नया परमाणु संयंत्र स्वीकृत होता. तो आसपास के इलाके में काफी विरोध होता मगर इन विरोध में आंकड़ों की पैनी धार नहीं होती थी।
हमने सितम्बर 1991 में फैसला किया कि राजस्थान में कोटा के पास स्थित रावतभाटा परमाणु संयंत्र के प्रभावों का एक सर्वेक्षण किया जाए। रावतभाटा का परमाणु बिजली घर देश का पहला ऐसा संयंत्र था भारत में ही निर्मित कैन्डू किस्म का संयंत्र । कण्डू यानी कनाडियन ड्यूटीरियम- यूरेनियम आधारित संयंत्र । चूंकि भारतीय परमाणु कार्यक्रम कैन्डू परमाणु भट्टी पर आधारित था, इसलिए यही रिएक्टर देश में प्रोटोटाइप बना रावतभाटा स्थल का चयन 1961 में हुआ था और यूनिट 1 पर काम 1964 में कनाडा के सहयोग से शुरू हुआ। यह इकाई 1972 में क्रिटिकल अवस्था में पहुंची और 1973 में इसे एक व्यावसायिक इकाई घोषित कर दिया गया। दूसरी इकाई पर काम 1967 में शुरू हुआ और 1981 में यह भी एक व्यावसायिक इकाई के रूप में काम करने लगी। इन दो परमाणु भट्टियों के अलावा इस इलाके में एक और औद्योगिक इकाई भारी पानी संयंत्र है जो इन्हीं परमाणु भट्टियों के लिए भारी पानी का उत्पादन करता है।
तालिका-1
बीमारियों का पैटर्न
इन दो तरह के गांवों में जो सबसे चौकाने वाले फर्क था वह उनकी बीमारियों व अस्वस्थता के पैटर्न में था रावतभाटा संयंत्र के नज़दीकी गांवों में अपेक्षाकृत ज्यादा लोगों ने बीमारियों की शिकायत की। जहां दूरस्थ गांवों के 25 प्रतिशत लोगों ने किसी बीमारी की बात कही, वहीं नजदीकी गांवों के 45 प्रतिशत लोगो ने तालिका में इन दो इलाकों में स्वास्थ्य की स्थिति देखी जा सकती है।
दो इलाकों में जिस ढंग की बीमारियां बताई गई उनमें उन बीमारियों में तो समानता नजर आती है जो अल्प अवधि की हैं जैसे थोड़े समय का बुखार आना, सांस की परेशानी वगैरह। मगर जीर्ण किस्म की समस्याएं नजदीकी इलाकों में 2-3 गुना ज्यादा बताई गई, जैसे लम्बे समय का बुखार, चमड़ी की समस्याएं, मोतियाबिंद, लगातार अपच, जोड़ों में दर्द, सुस्ती वगैरह एक बात यह भी सामने आई कि नजदीकी गांवों के लोग औसतन 10 वर्ष कम उम्र में ही इन दिक्कतों की शिकायत करते हैं। ट्यूमर के संदर्भ में काफी फर्क नजर आया। नजदीकी गांवों में हमने ट्यूमर के 30 मामले देखे जबकि दूरस्थ गांवों में ऐसे मात्र 5 मामले दिखाई पड़े।
तालिका -2
रावतभाटा सर्वेक्षण
सितम्बर 1991 में हमने कुल 1023 परिवारों का सर्वेक्षण किया। इनमें से 571 परिवार रावतभाटा परमाणु बिजली घर से 10 कि.मी. की दूरी के अंदर बसे पांच गांवों के थे। 472 परिवार संयंत्र से 50 कि.मी. दूर बसे गांवों के थे। कुल मिलाकर नज़दीकी गांवों के 2860 और दूरस्थ गांवों के 2544 व्यक्तियों का सर्वेक्षण किया गया।
उम्र व लिंग के हिसाब से, जातिगत वितरण के हिसाब से तथा शिक्षा के हिसाब से इन दो आबादियों में कोई खास अंतर नहीं है। हमने यह भी पता लगाया कि दोनों तरह के गांवों ( नज़दीकी व दूरस्थ) में लोगों का भोजन भी लगभग एक-सा था। इसके अलावा मातृत्व सम्बंधी विभिन्न सूचकांक गर्भावस्था की औसत संख्या परिवार का आकार, पहले बच्चे के समय मां की औसत उम्र वगैरह भी समान थे। यह भी पता लगाया गया कि दोनों जगह के लोग एक-सा ईंधन इस्तेमाल करते हैं। अलबत्ता भूस्वामित्व के पैटर्न में थोड़ा अंतर ज़रूर था नज़दीकी गांवों में भूस्वामियों की संख्या थोड़ी ज्यादा थी जबकि दूरस्थ गांवों में भूमिहीन ज्यादा थे। मगर दूरस्थ गांवों में सिंचाई की सुविधा बेहतर थी और वे रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का उपयोग अधिक करते थे।दोनों तरह के गांवों के बीच एक अंतर बहुत स्पष्ट था- दूरस्थ गांवों में जहां 52 प्रतिशत घरों में बिजली थी. वहीं परमाणु बिजली घर के नज़दीकी गांवों में मात्र 19 फीसदी में ही बिजली थी।
तालिका- 3
गर्भावस्था
स्वास्थ्य के संदर्भ में सबसे प्रमुख अंतर गर्भावस्था के नतीजों में देखने को मिला गर्भपात, मृत शिशु जन्म, नवजात शिशुओं की मृत्यु तथा जन्मजात विकृतियों वगैरह हर मामले में ये अंतर सामने आए।उदाहरण के लिए, नज़दीकी गांवों के 45 लोगों में जन्मजात विकृतियां देखी गई जबकि दूरस्थ गांवों में ऐसे लोगों की संख्या मात्र 6 है। इसी प्रकार से, 1991 के सर्वे से पहले दो वर्ष की अवधि में ऐसे बच्चों की संख्या भी देखी गई जो जन्म के एक दिन के अंदर मौत के शिकार हो गए थे नज़दीकी गांवों में ऐसे 7 मामले हुए थे जबकि दूरस्थ गांवों में एक भी नहीं ये अंतर संयोगवश ही हों, इसकी सम्भावना बहुत कम (दस लाख में एक के बराबर) है।
तालिका -4
अंतरों का कारण
आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता चलता कि दो इलाकों की सेहत में ये अंतर गरीबी, कुपोषण, अस्वच्छ रहन सहन जैसी चीज़ों में अंतर की वजह से नहीं है। देखा जाए तो परमाणु संयंत्र की वजह से नज़दीकी गांवों के लोगों की आमदनी बढ़ी है। मगर स्वास्थ्य पर उन्हें अधिक खर्च करना पड़ रहा है।
जब ये आंकड़े हमने एक शोध पत्रिका में प्रकाशित किए तो पहले तो सरकार तथा परमाणु प्रतिष्ठान की प्रतिक्रिया थी कि स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं हुआ है क्योंकि होता तो हमें पहले ही मालूम पड़ जाता। मगर उसके बाद कई अखबारों और टीवी संवाददाताओं ने जाकर तथ्यों की पुष्टि की। तब सरकार ने कहना शुरू कर दिया कि हो सकता है कि वहां के लोगों की सेहत खराब है मगर इसका विकिरण से कुछ लेना-देना नहीं है। मगर उनके इस दावे के पीछे किसी अध्ययन का आधार नहीं है
स्रोत- विशेष फीचर्स,फरवरी 2003
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