धरती पर 70% हिस्से में पानी है। जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0-0.001% जलवाष्प और बादल के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटियों में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों मे 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकियों, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। बर्फीली चोटियों, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है।
हमारे देश में बढ़ते जल प्रदूषण के कारण जल जनित रोगों की वृद्धि इस कदर हुई है कि 10% से अधिक आबादी चपेट में आ चुकी है। जल में विकृति लाने वाले प्रदूषक तत्व विभिन्न स्रोतों से मानवीय क्रियाकलापों के दौरान ही प्रवेश करते हैं व मानव पर ही हानिकारक प्रभाव डालते हैं। मानव के अतिरिक्त जलीय एवं स्थलीय जीव-जन्तु भी प्रभावित होते हैं। एक अनुमानानुसार भारत में 21 प्रतिशत रोग जल से सम्बंधित हैं। 16 से ज्यादा राज्यों के जल स्रोत फ्लोरोसिस नामक रोग पैदा करते हैं। इस रोग के साथ ही दांतों और कंकाल तंत्र में दोष उत्पन्न हो रहे हैं। करीब तीन करोड़ लोग खारे पानी की समस्या से जूझ रहे हैं।
यदि यह भयावह स्थिति आज है तो भविष्य में विकरालता और बढ़ेगी। सन 2025 तक भारत को 1140 घन किमी पानी की जरूरत पड़ेगी। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा सिंचाई का होगा जिसे 770 घन किमी पानी चाहिए। इसके बाद 120 घन किमी उद्योगों, 71 घन किमी ऊर्जा, 52 घन किमी घरेलू क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों की जरूरतों का है। भारत
की प्यास जैसे बढ़ेगी, समस्याएं भी वैसे-वैसे विकराल होती जाएंगी। संपोषित विकास हेतु पानी की उपलब्धता को बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि जल प्रबंधन को महत्व देकर प्रदूषण पर नियंत्रण करने के उपाय किए जाएं। जल संसाधनों के विकास एवं नियोजन हेतु वैज्ञानिक एवं परम्परागत प्रबंधन को ठोस आयाम देने की आवश्यकता है। परमार्थ हेतु स्वार्थ को भूलने वाले लोगों की आवश्यकता है। जल संकट को सामूहिक रूप से निपटाना है, जिसमें हम सबका स्वार्थ निहित है। जल प्रबंधन करते समय इसके प्राकृतिक मानवीय पहलुओं को प्राथमिकता प्रदान करने की विशेष आवश्यकता है। भारत की प्राकृतिक संरचना जल प्रबंधन के संदर्भ में काफी बेहतर है, यहाँ औसत रूप में पर्याप्त जल उपलब्ध है, किन्तु इसके साथ समस्या यह है कि इसका विभाजन समान रूप से नहीं है। एक ओर सर्वाधिक वर्षा वाला राज्य मेघालय है
तो दूसरी ओर एक-एक बूंद के लिए तरसता थार रेगिस्तान है, जहाँ एक ओर जल सरंक्षण व प्रबंधन की पर्याप्त व्यवस्था का अभाव ही इसकी मूल समस्या की जड़ है, वहीं घरेलू कचरे और औद्योगिक उत्सर्जन को सतही जल में मिलाकर इतना प्रदूषित कर दिया जाता है कि इस जल का उपयोग पीने के रूप में नहीं किया जा सकता है। जल प्रदूषण की समस्या विकट रूप धारण करती जा रही है। रसायन, वस्त्र, कागज, पेट्रो रसायन, चीनी, धातु, दवाओं और उर्वरकों के कारखानों के कारण नदियों में हानिकारक रसायन मिल रहे हैं। जिनसे नदियों में अत्यधिक प्रदूषण फैल रहा है। जल प्राकृतिक स्रोतों, नदियों और नहरों, जलाशयों, कुंडों और तालाबों से आता है लेकिन मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु शहरी औद्योगीकरण से, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों से अनुपचारित जल के जल स्रोतों में बहाये जाने से जल की गुणवत्ता खराब हो जाती है क्योंकि इनके द्वारा जल में कुछ प्रदूषक तत्व प्रवेश कर जाते हैं, जो पर्यावरण को अधिक हानि पहुँचाते हैं। इनमें पारा, सीसा, जस्ता, फ्लोराइड, सोडियम, फीनॉल, नाइट्राइट तथा आर्सेनिक प्रमुख हैं। भारत में जल प्रदूषण की स्थिति खतरनाक होती जा रही है। आकलन के अनुसार देश का लगभग 70 प्रतिशत भूजल मानवीय उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो चुका है। वैज्ञानिकों के अनुसार 145 बड़े नगरों में से केवल 9 में ही संतोषजनक सिवरेज व्यवस्था है तथा 52 में आंशिक व शेष 83 नगरों में कोई व्यवस्था न होने से नगरीय गन्दगी का निष्कासन नहीं हो पाता जिसके परिणाम स्वरूप जल प्रदूषण बढ़ रहा है।
यह निर्विवाद सत्य है कि समय सिकुड़ते स्वच्छ पानी के स्रोतों ध्यान नहीं दिया गया तो तेजी से रहते पर गिरती प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता के कारण एक महासंकट खड़ा हो जाएगा। चूंकि पानी पूरी दुनिया की जरूरत है और पानी की कमी से पूरी मानव जाति प्रभावित होगी, इसलिए पूरी दुनिया के देश सीमाओं के दायरे से निकलकर पानी के प्रबंधन नियोजन एवं उचित उपयोग में सक्रिय सहयोग दें ताकि हम संपोषित विकास हेतु अग्रसर रहें। जैसा कि हम सब जानते हैं कि जल जीवन का आधार है, जल प्रबंधन संपोषित विकास का प्रमुख कारक है। संपोषित विकास हेतु पानी के प्रबंधन के लिए दो बातें विशेष महत्वपूर्ण हैं- जल संरक्षण व जल स्वच्छता या शुद्धता। यही कारण है कि जल प्रबंधन करना इस सदी की सबसे बड़ी सामाजिक आवश्यकता के रूप में उभरा है। उपलब्ध पानी को सुरक्षित करने और उसे प्रदूषित होने से बचाना हम सबका सामूहिक उत्तरदायित्व है। सफल जल प्रबंधन हेतु निम्न उपाय उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं :
- पानी के मूल प्राकृतिक स्रोतों समुद्र, नदियों व पहाड़ों आदि को स्वच्छ रखें, कृपया इनमें अपशिष्ट सामग्री न डालें।
- वातावरण को संरक्षित रखने में सामूहिक रूप में सहयोगी बनें पानी का सीमित उपयोग।
- जल संसाधन के विकास व नियोजन हेतु वैज्ञानिक व परंपरागत प्रबंधन।
- अत्यधिक जल दोहन पर अंकुश
- जल प्रबंधन, जन-आंदोलन का विषय बनकर उभरे और इसके सम्बंध में उचित जनजागृति आए।
- जल की अधिकता वाले क्षेत्र से जल को जल की कमी वाले क्षेत्रों में स्थानान्तरित करने की व्यवस्था हो।
- पानी के उचित उपयोग हेतु तथा भूजल स्तर बढ़ाने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक लागू की जाए।
- नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाओं का कुशल उपयोग।
- जल प्रदूषण को रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएं।
- जल की गुणवत्ता सुधारने हेतु समन्वित प्रयास जरूरी।
- सरकारी साधनों की निर्भरता के बजाय सामाजिक स्तर पर इसको बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
पानी की बचत कैसे करें -
गिलास में एक बार में उतना ही पानी लें, जितनी आपको प्यास है। पूरा गिलास भरकर पानी लेकर व जूठा छोड़ने से पानी बरबाद होता है, अगर कोई मेहमान भी गिलास में पानी छोड़ जाए तो उसे पेड़-पौधों में डालें तथा इसे बर्बाद होने से रोकें। जब भी नल से पानी व्यर्थ बहता देखें तुरन्त नल को बंद करें।
- पाईप लाईन अथवा टंकी से पानी लीक होते ही उसे ठीक करवायें, ताकि बून्द - बून्द करके पानी बेकार न बहता रहे।
- कहीं भी पाईप लाईन टूटी हो और पानी सड़क अथवा अन्य किसी स्थान पर व्यर्थ बह रहा हो तो जलदाय विभाग को सूचित करें तथा लिकेज को रोकने के प्रयास करें।
- घरों में वे ही पौधे लगायें जिन्हें कम पानी की जरूरत होती है। घास में दो दिन में एक बार पानी दें। फल, सब्जी व कपड़े धोकर पानी नाली की जगह घास अथवा पौधों में डालें।
- जल संग्रहण हेतु बनाये गये कुओं, तालाब आदि की सफाई रखें।
- सोने से पहले घर के सारे नलों को अच्छी तरह से बंद करें।
- ब्रश अथवा मंजन करते समय नल खुला न छोड़ें बल्कि एक मग अथवा गिलास में पानी भरकर दांत साफ करें।
- नहाते समय बाल्टी व मग का प्रयोग करके नहाएं क्योंकि फव्वारे व बाथ टब से पानी अधिक बर्बाद होता है।
- शेविंग करते समय नल खुला न रहने दें। जब मुंह धोने की जरूरत हो तभी नल खोलें व पानी का उपयोग करें।
- हाथ साफ करने के लिये पहले साबुन लगायें व बाद में नल खोलकर हाथ धोयें।
- अपनी गाड़ी को साफ करने के लिये पानी के पाईप का प्रयोग न कर गीले तथा सादे कपड़े का प्रयोग करें।
- फर्श साफ करने के लिये घरों को धोने के बजाय पोंछा लगाकर साफ करें।
देश के हर नागरिक को नैसर्गिक संसाधनों के उचित उपयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए। वर्तमान में पानी की विकट समस्या विश्व के सामने है लेकिन शुद्ध पानी की आवश्यकता और बढ़ गई है। वर्तमान समय में शुद्ध जल की उपलब्धता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। जल में बढ़ते प्रदूषण से शुद्ध जल के लिये विभिन्न शोधक पद्धतियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। अशुद्ध जल को रिसाइकल कर पुनः शुद्ध कर पीने योग्य बनाने की क्रिया की अत्यंत आवश्यकता है जिससे शहर, गाँव, उद्योग, कृषि आदि में पानी की किल्लत को दूर किया जा सके। इसके लिए भविष्य में जल संसाधनों की अधिक आवश्यकता है जिससे कृषि, उद्योग, घरेलू उपयोग की माँग को पूरा किया जा सके। जल के शुद्धिकरण हेतु विकसित पद्धतियों में रिवर्स ऑसमॉसिस प्रमुख है, रिवर्स ऑसमॉसिस (Reverse osmosis) वह क्रिया है जिसके द्वारा गंदे पानी को शुद्ध कर पीने योग्य बनाया जाता है, जो जल के नुकसान, अपव्यय या प्रयोग को कम करने के लिए लागू किया जाता है। आज विश्व में स्थापित 13000 रिवर्स ऑस्मोसिस संयंत्रों द्वारा 300 लाख घन लीटर शुद्ध जल का उत्पादन हो रहा है। भारत में 120 संयंत्रों द्वारा केवल 10 मीटर शुद्ध जल का निर्माण हो रहा है। भारत में जहाँ प्रतिवर्ष औसतन 60 सेमी. वर्षा होती है, जहाँ प्रतिवर्ष 4000 खरब घन मीटर जल प्राप्त होता है।
जिसका केवल 1000 खरब घन मीटर ही भूजल के रूप उद्योग, कृषि, रसायन आदि में इस्तेमाल होता है। शेष मात्रा नदी या समुद्र में बेकार चली जाती है। अतः आने वाले दिनों में जल संसाधन के सर्वश्रेष्ठ उपयोग के लिए रिवर्स ऑसमोसिस की माँग काफी बढ़ जाएगी।
प्रकृति द्वारा प्रदत्त संसाधनों में जल सर्वाधिक महत्वपूर्ण संसाधन है यह पृथ्वी पर जीवन का पर्याय है। जल, मनुष्य के जीवन हेतु कृषि, पशुपालन तथा विकास के सभी कार्यों के लिए आवश्यक है। पृथ्वी पर जल की प्राप्ति का मुख्य स्रोत, वर्षा जल है, परन्तु पृथ्वी पर वर्षा जल का वितरण एक सामान नहीं है। वर्षा जल का वितरण सामयिक तथा स्थानिक रूप से असमान होता है, प्राकृतिक जल चक्र का एक अंग बाढ़ भी है। बाढ़ का सामान्य अर्थ होता है-विस्तृत स्थलीय भाग का लगातार कई दिनों तक जलमग्न रहना। जिसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध वर्षा से है एवं यह जल प्रबन्धन को प्रभावित करती है। यदि किसी क्षेत्र में वर्षा अधिक मात्रा में ,होती है, तो नदियाँ असंतुलित होकर उफान अवस्था में आ जाती है और बाढ़ की उत्पत्ति होती है। इस विकट पर्यावरणीय परिस्थिति का प्रभाव उक्त क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर भी पड़ता है। यद्यपि बाढ़ के लिए प्रकृति ही उत्तरदायी है लेकिन मानवीय क्रियाकलाप भी कम उत्तरदायी नहीं हैं। वर्षा जल के वितरण का असमान होना, बाढ़ एवं सूखा आदि समस्याओं ,का प्रमुख कारण है। बाढ़ एवं सूखा जैसी समस्याओं के साथ अन्य विविध समस्याओं के समाधान के लिए जल संसाधनों का उचित उपयोग तथा प्रबंधन अति आवश्यक है। बाढ़ आमतौर पर अचानक नहीं आती, साथ ही यह और कुछ विशेष क्षेत्रों और वर्षा में ही आती है। बाढ़ तब आती है
ऋतु: जब नदी जल-वाहिकाओं में इनकी क्षमता से अधिक जल बहाव होता है, और जल, बाढ़ के रूप में मैदान के निचले हिस्सों में भर जाता है।
सामान्यतः भारी बारिश के बाद जब प्राकृितक जल संग्रहण स्रोतों की जल धारण करने की क्षमता का संपूर्ण दोहन हो जाता है, तो पानी उन स्रोतों से निकलकर आस-पास की सूखी भूमि को डूबा देता है और बाढ़ की स्थिति पैदा कर देता है। किसी इलाके में जब पानी की उपलब्धता मानव की आवश्यकताओं से कम हो जाती है तो उस स्थिति को सूखा कहते हैं।
भारत में वर्षा और जलवायु परिस्थितियों में स्थानिक विविधताओं की वजह से अलग-अलग राज्यों में सूखे का खतरा बना रहता है तथा लगभग हर वर्ष सूखा पड़ता ही है। पानी की कमी होने से अकाल की स्थिति पैदा हो जाती है, सूखे की वजह से कृषि में किसानों की आमदनी में नुकसान होता है और लोगों को पानी की कमी से घरेलू कामों में काफी परेशानी। पानी की कमी से कुपोषण, और अन्य बीमारियाँ पैदा होती हैं। बाढ़ और सूखे के प्रबंधन के लिए बाढ़ के पानी के अत्यधिक अपवाह को रोकने के लिए अनेकों नदियों और नहरों पर बाढ़ नियंत्रण बांध बनाए जाएं तथा जल नीति और विनियमन व जल सुरक्षा योजना को शक्ति से लागू की जाए। सूखा व बाढ़ की रोकथाम के लिए सूखा व बाढ़ की निगरानी करना जरूरी है जिसके लिए वर्षा जल संग्रहण, जल बेसिन का निर्माण, बाउन्ड्री प्लानिंग, कृत्रिम नदी तट निर्माण, जल संरक्षण, जल का सही ढंग से इस्तेमाल, जल का पुनः इस्तेमाल और भूजल की रिचार्जिंग पर समुचित ध्यान दिया जाए।
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स्रोत - जल चेतना 0 2जुलाई 2021
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